Wednesday, March 6, 2024

Best Doctor

 देह अपनी चिकित्सा खुद ही करती है ...( Thanks by Harish Bhai)

कोल्ड फ़्लू होते ही कफ़ बनता है, गला सूज जाता है और शरीर में ज्वर हो जाता है. यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली का परिणाम है।

शरीर का कोई हिस्सा कहीं जोर से टकरा जाए तो तुरंत ही वहां एक गुमड़ा बन जाता है।

चोटिल टिशूज की मरम्मत के लिए हजारों कोशिकाएं वहाँ भेज दी जाती हैं. तुरंत...तत्क्षण !

किसी अन्य मदद आने के बहुत पहले !

कोई घाव हो तो देखिए वह धीरे-धीरे सूखता है. एक दो दिन उसमें पपड़ी बनती है. फिर कोई बीस पच्चीस दिन में वह पपड़ी स्वतः ही झड़ जाती है। और ताज़ा त्वचा प्रकट हो जाती है।

एक बहुत ही कौशल से भरा, सजग और ध्यानस्थ चिकित्सक हमारे भीतर मौजूद है।

वह बोलता नही है।

उसकी भाषा..संकेत है।

अगर ज़रा सी उठ बैठ में थकान लगे.. तो यह संकेत है कि शरीर को विश्राम चाहिए।

भूख का कम लगना, संकेत है कि शरीर को अल्प-आहार चाहिए।

ठंड लगे तो कुछ ओढ़ कर शरीर को ऊष्मा दी जाए।

वह भीतरी डॉक्टर, बोलकर नहीं बल्कि संकेत की भाषा में सजेशन देता है।

कब क्या खाना है, कितना व्यायाम, कितनी ऑक्सीजन, कितनी धूप चाहिए.. वह इशारा कर देता है।

चाहे हृदय की चिकित्सा हो कि मस्तिष्क चिकित्सा,

आहार नली का संक्रमण हो कि ओवरियन सिस्ट..दुनिया का सबसे काबिल डॉक्टर हमारा शरीर खुद ही है।

किसी वायरस या बैक्टीरिया का आक्रमण होता है अथवा किसी खाद्य दोष से संक्रमण होता है.. तो शरीर, तत्क्षण उससे जूझने में प्रवृत्त हो जाता है।

हमें तो ख़बर तब लगती है.. जब इस भीतरी युद्ध के परिणाम..ज्वर, श्लेषमा (कफ, ब्लगम), ठंड, कमज़ोरी के रूप में बाहरी शरीर पर उजागर होते हैं।

अगर देह की सांकेतिक भाषा को सुनने का अभ्यास हो, तो बहुत आरंभ में ही रोग का नाश किया जा सकता है।

चाहे कितना ही जटिल रोग क्यों न हो, उपचार की सर्वोत्तम व्यवस्था शरीर में ही मौज़ूद है।

उसे हमसे कुछ सहयोग और रसद आपूर्ति की दरकार है।

ऑक्सीजन भरपूर, ठीकठाक पानी , पथ्य-कुपथ्य, चित्त की प्रफुल्लता आदि, और हम बड़े से बड़े रोग को मात दे सकते हैं.. कैंसर को भी।

देह की हमसे कुछ न्यूनतम अपेक्षाएं भी हैं।

पहला, कि देह में अपशिष्ट और टॉक्सिंस इकट्ठे न हों।

और अगर हो जाएं, तो उनका पूरी तरह उत्सर्जन भी हो।

दूसरा, मन में भी अपशिष्ट और टॉक्सिंस न हों।

क्योंकि ज्यादातर रोग, मनोदैहिक होते हैं।

पहले विचार बीमार होता है फिर शरीर बीमार होता है ....।

विचार बीमार है..तो जीने के ढंग में नुक्स होगा।

आप जल्दबाज होंगे तो जल्दी खाएंगे..जल्दी चबाएंगे ...।

इस तरह रोज-रोज, अनचबा पेट में ढकेलेंगे तो देर सबेर पेट, आंत और लीवर की बीमारी का आना लाजमी है ....।

बीमार जीना, बीमारी लाता है।

सजग जीना, स्वास्थ्य लाता है।

सजगता का अर्थ सिर्फ खाना पीना और सोने उठने में सजगता नहीं है बल्कि, धनाकांक्षा, दिखावा, कामुकता, संसाधन जुटाने की हवस ..ऎसे हर मनोभाव और प्रवृति के प्रति सजगता है ।

मन में गांठ है, तो कैंसर की गांठ बहुत दूर नहीं ।

विचारों में जकड़न है तो जोड़ों में जकड़न अवश्यंभावी है ... ।

देह और मन की सफाई हर रोग का खात्मा है ...।

बाहरी चिकित्सा कितनी ही एडवांस क्यों न हो, वह देह की बुनावट और उसके रेशों का रहस्य, उतना नहीं जानती जितना देह स्वयं जानती है !

बाहरी चिकित्सक कितना ही अनुभवी और योग्य क्यों न हो, शरीर में मौजूद 'परम चिकित्सक' के सम्मुख अभी विद्यार्थी ही है !

देह को सहयोग करें और वह अपनी चिकित्सा स्वयं ही कर लेगी ....।

Sunday, January 14, 2024

कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित कैसे करें?

 कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित कैसे करें?
कोलेस्ट्रॉल दुनिया में किसी भी चीज में नहीं पाया जाता है।
चाहे वह कोई भी खाद्य पदार्थ हो, परमात्मा ने यह जिम्मेदारी सिर्फ एनिमल को ही बनाने को दिया है।
अगर आप एनिमल प्रोडक्ट बंद कर देंगे तो कोलेस्ट्रॉल आपकी बॉडी में कभी नहीं बनेगा। सिर्फ जानवर ही कोलेस्ट्रॉल बनाते हैं। अगर जानवर से आया हुआ कुछ भी अगर आप खाते हैं तो हमारे बॉडी में कोलेस्ट्रॉल बनेगा।
आप समझ गए होंगे मैं क्या कहना चाहता हूं कोई भी एनिमल पशु पक्षी जानवर किसी भी चीज से अगर कुछ भी आप खा रहे हैं तो कोलेस्ट्रॉल बनेगा। कोई रोक नहीं सकता।
इसके अलावा फल सलाद सब्जियां अनाज जो कुछ भी आप खायेगे इससे कोलेस्ट्रॉल नहीं बनेगा।
अगर आप फैक्ट्री का भी सामान खाएंगे तो कोलेस्ट्रॉल बनेगा। क्योंकि आप देख नहीं रहे हैं की फैक्ट्री में कैसे सामान बनाए जाते हैं। जाने अनजाने हर चीज में कोलेस्ट्रॉल एनिमल प्रोडक्ट का उपयोग किया ही जाता है। एनिमल प्रोडक्ट से ही केमिकल बहुत सारे बनाए जाते है। इसीलिए आप घर का खाना खाईए फल सब्जियां खाईए।
एनिमल प्रोडक्ट बिल्कुल बंद कर दीजिए, आपके कोलेस्ट्रॉल है तो खत्म हो जाएंगे, नहीं है तो कभी होंगे नहीं।

एसिडिटी का परमेनन्ट इलाज क्या है?

 एसिडिटी का परमेनन्ट इलाज क्या है?
अगर आप एसिडटी से परेशान हैं तो निम्नलिखित तरीकों से आप इस परेशानी से राहत पा सकते हैं-
रोजाना सुबह उठकर हल्का गुनगुना पानी पीएं। इससे एसिडिटी की समस्या से राहत मिलेगी।
जीरे या सौंफ के पानी का सेवन करें। इससे पाचन शक्ति ठीक रहती है।
दही एसिडिटी से राहत दिलाने में मदद करता है।
तेल, मसाला एवं तला भूना खाना न खाएं।
कैफीन युक्त पदार्थों के सेवन से परहेज करें।
पानी का सेवन ज्यादा मात्रा में करें।
खाने में संतुलित आहार लें।
एक बार में ज्यादा न खाएं और हमेशा खाने को अच्छे से चबाकर खाएं।
नियमित रूप से व्यायाम करें।
धूम्रपान का सेवन बिल्कुल भी न करें।

Misuse of Justice

 मात्र 32 साल की उम्र में अपने मेहनत से एक सफल ट्रांसपोर्ट व्यवसाई जिसके पास 200 ट्रक और डेढ़ सौ लोडर थे वह दिलीप भाई अहीर ने 2 दिन पहले गांधीधाम में आत्महत्या कर लिया
दिलीप भाई ने पूरा बिजनेस साम्राज्य अपनी मेहनत से खड़ा किया था इनके पिताजी खेती और पशु पालक थे
दिलीप अहीर के ऊपर एक लड़की ने बलात्कार का केस दर्ज किया उससे यह परेशान थे और उन्होंने आत्महत्या कर लिया
पुलिस ने जब पूरे मामले की जांच की तक बेहद खौफनाक खुलासा हुआ
भुज जेल में बंद 3 मुस्लिम अपराधियों ने दिलीप अहिर से 5 करोड़ों रुपए वसूलने के लिए यह पूरा कुचक्र रचा और जांच में पता चला कि उस लड़की के ऊपर कोई बलात्कार नहीं हुआ था ...उस लड़की ने पुलिस को बयान दिया 5 करोड़ में से 5000000 उसे मिलने थे
फिर जांच में यह भी पता चला यह गैंग कुल 10 लोगों को रेप का आरोप लगाने का धमकी देकर ब्लैकमेल करके हर महीने मोटी रकम वसूल कर रहा था
आज किसी भी पुरुष को बर्बाद करना हो तो आप किसी भी महिला को कुछ रुपए का या पद का लालच दीजिए और बलात्कार यौन शोषण गलत तरीके से छूना जैसे आरोप लगवा दीजिए

गाँठ गलाने का रामबाण उपाय

 शरीर के किसी भी हिस्से में उठने वाली कोई भी गठान या रसौली एक असामान्य लक्षण है जिसे गंभीरता से लेना आवश्यक है। ये गठानें पस या टीबी से लेकर कैंसर तक किसी भी बीमारी की सूचक हो सकती हैं।
गठान अथवा ठीक नहीं होने वाला छाला व असामान्य आंतरिक या बाह्य रक्तस्राव कैंसर के लक्षण हो सकते हैं। ज़रूरी नहीं कि शरीर में उठने वाली हर गठान कैंसर ही हो।
अधिकांशतः कैंसर रहित गठानें किसी उपचार योग्य साधारण बीमारी की वजह से ही होती हैं लेकिन फिर भी इस बारे में सावधानी बरतनी चाहिए। इस प्रकार की किसी भी गठान की जाँच अत्यंत आवश्यक है ताकि समय रहते निदान और इलाज शुरू हो सके।
चूँकि लगभग सारी गठानें शुरू से वेदना हीन होती हैं इसलिए अधिकांश व्यक्ति नासमझी या ऑपरेशन के डर से डॉक्टर के पास नहीं जाते। साधारण गठानें भले ही कैंसर की न हों लेकिन इनका भी इलाज आवश्यक होता है। उपचार के अभाव में ये असाध्य रूप ले लेती हैं, परिणाम स्वरूप उनका उपचार लंबा और जटिल हो जाता है।
कैंसर की गठानों का तो शुरुआती अवस्था में इलाज होना और भी ज़रूरी होता है। कैंसर का शुरुआती दौर में ही इलाज हो जाए तो मरीज के पूरी तरह ठीक होने की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।
आपके शरीर मे कहीं पर भी किसी भी किस्म की गांठ हो। उसके लिए है ये चिकित्सा चाहे किसी भी कारण से हो सफल जरूर होती है। कैंसर मे भी लाभदायक है। आज हम आपको All Ayurvedic के माध्यम से गाँठ गलाने के उपाय के बारे में बताएंगे लेकिन उससे पहले आपसे निवेदन है कि इस पोस्ट को अंत तक पढ़े और यदि आपको यहाँ दी गयी जनउपयोगी लगे तो अपने मित्रों के साथ शेयर करे….
आप ये दो औषधि पंसारी या आयुर्वेद दवा की दुकान से लेले
कचनार की छाल और गोरखमुंडी : वैसे यह दोनों जड़ी बूटी बेचने वाले से मिल जाती हैं पर यदि कचनार की छाल ताजी ले तो अधिक लाभदायक है। कचनार (Bauhinia purpurea) का पेड़ हर जगह आसानी से मिल जाता है।
कचनार इसकी सबसे बड़ी पहचान है – सिरे पर से काटा हुआ पत्ता। इसकी शाखा की छाल ले। तने की न ले। उस शाखा (टहनी) की छाल ले जो 1 इंच से 2 इंच तक मोटी हो। बहुत पतली या मोटी टहनी की छाल न ले। गोरखमुंडी का पौधा आसानी से नहीं मिलता इसलिए इसे जड़ी बूटी बेचने वाले से खरीदे।
कैसे प्रयोग करे ?
कचनार की ताजी छाल 25-30 ग्राम (सुखी छाल 15 ग्राम ) को मोटा मोटा कूट ले। 1 गिलास पानी मे उबाले। जब 2 मिनट उबल जाए तब इसमे 1 चम्मच गोरखमुंडी (मोटी कुटी या पीसी हुई ) डाले। इसे 1 मिनट तक उबलने दे। छान ले। हल्का गरम रह जाए तब पी ले। ध्यान दे यह कड़वा है परंतु चमत्कारी है।
गांठ कैसी ही हो, प्रोस्टेट बढ़ी हुई हो, जांघ के पास की गांठ हो, काँख की गांठ हो गले के बाहर की गांठ हो , गर्भाशय की गांठ हो, स्त्री पुरुष के स्तनो मे गांठ हो या टॉन्सिल हो, गले मे थायराइड ग्लैण्ड बढ़ गई हो (Goiter) या LIPOMA (फैट की गांठ ) हो लाभ जरूर करती है। कभी भी असफल नहीं होती। अधिक लाभ के लिए दिन मे 2 बार ले। लंबे समय तक लेने से ही लाभ होगा। 20-25 दिन तक कोई लाभ नहीं होगा निराश होकर बीच मे न छोड़े।
गाँठ को घोलने में कचनार पेड़ की छाल बहुत अच्छा काम करती है. आयुर्वेद में कांचनार गुग्गुल इसी मक़सद के लिये दी जाती है जबकि ऐलोपैथी में ओप्रेशन के सिवाय कोई और चारा नहीं है।
आकड़े के दूध में मिट्टी भिगोकर लेप करने से तथा निर्गुण्डी के 20 से 50 मि.ली. काढ़े में 1 से 5 मि.ली अरण्डी का तेल डालकर पीने से लाभ होता है।
गेहूँ के आटे में पापड़खार तथा पानी डालकर पुल्टिस बनाकर लगाने से न पकने वाली गाँठ पककर फूट जाती है तथा दर्द कम हो जाता है।
फोडा-फुन्सी होने पर
अरण्डी के बीजों की गिरी को पीसकर उसकी पुल्टिस बाँधने से अथवा आम की गुठली या नीम या अनार के पत्तों को पानी में पीसकर लगाने से फोड़े-फुन्सी में लाभ होता है।
एक चुटकी कालेजीरे को मक्खन के साथ निगलने से या 1 से 3 ग्राम त्रिफला चूर्ण का सेवन करने से तथा त्रिफला के पानी से घाव धोने से लाभ होता है।
सुहागे को पीसकर लगाने से रक्त बहना तुरंत बंद होता है तथा घाव शीघ्र भरता है।
फोड़े से मवाद बहने पर
अरण्डी के तेल में आम के पत्तों की राख मिलाकर लगाने से लाभ होता है।
थूहर के पत्तों पर अरण्डी का तेल लगाकर गर्म करके फोड़े पर उल्टा लगायें। इससे सब मवाद निकल जायेगा। घाव को भरने के लिए दो-तीन दिन सीधा लगायें।
पीठ का फोड़ा होने पर गेहूँ के आटे में नमक तथा पानी डालकर गर्म करके पुल्टिस बनाकर लगाने से फोड़ा पककर फूट जाता है।
गण्डमाला की गाँठें (GOITRE)
गले में दूषित हुआ वात, कफ और मेद गले के पीछे की नसों में रहकर क्रम से धीरे-धीरे अपने-अपने लक्षणों से युक्त ऐसी गाँठें उत्पन्न करते हैं जिन्हें गण्डमाला कहा जाता है।
मेद और कफ से बगल, कन्धे, गर्दन, गले एवं जाँघों के मूल में छोटे-छोटे बेर जैसी अथवा बड़े बेर जैसी बहुत-सी गाँठें जो बहुत दिनों में धीरे-धीरे पकती हैं उन गाँठों की हारमाला को गंडमाला कहते हैं और ऐसी गाँठें कंठ पर होने से कंठमाला कही जाती है।
क्रौंच के बीज को घिस कर दो तीन बार लेप करने तथा गोरखमुण्डी के पत्तों का आठ-आठ तोला रस रोज पीने से गण्डमाला (कंठमाला) में लाभ होता है। तथा कफवर्धक पदार्थ न खायें।
काँखफोड़ा (बगल मे होने वाला फोड़ा)
कुचले को पानी में बारीक पीसकर थोड़ा गर्म करके उसका लेप करने से या अरण्डी का तेल लगाने से या गुड़, गुग्गल और राई का चूर्ण समान मात्रा में लेकर, पीसकर, थोड़ा पानी मिलाकर, गर्म करके लगाने से काँखफोड़े में लाभ होता है।

आयुर्वेदिक औषधि त्रिफला चूर्ण

 त्रिफला चूर्ण बनाने की सही विधि क्या है और इसे कितने समय तक यूज कर सकते हैं?
आयुर्वेद की महान देन त्रिफला से हमारे देश का आम व्यक्ति परिचित है व सभी ने कभी न कभी कब्ज दूर करने के लिए इसका सेवन भी जरुर किया होगा |
बहुत कम लोग जानते है इस त्रिफला चूर्ण जिसे आयुर्वेद रसायन भी मानता है , से अपने कमजोर शरीर का कायाकल्प किया जा सकता है | बस जरुरत है तो इसके नियमित सेवन करने की | त्रिफला के सेवन से अपने शरीर का कायाकल्प कर जीवन भर स्वस्थ रहा जा सकता है |

दो तोला हरड बड़ी मंगावे | तासू दुगुन बहेड़ा लावे |
और चतुर्गुण मेरे मीता | ले आंवला परम पुनीता ||
कूट छान या विधि खाय|ताके रोग सर्व कट जाय ||

नियमित त्रिफला सेवन विधि - सुबह हाथ मुंह धोने व कुल्ला आदि करने के बाद खाली पेट ताजे पानी के साथ इसका सेवन करें तथा सेवन के बाद एक घंटे तक पानी के अलावा कुछ ना लें | इस नियम का कठोरता से पालन करें |
इससे पेट सम्बंधित बहुत सारी गड़बड़ी या बीमारी होती ही नहीं है।
सुबह अगर हम त्रिफला लेते हैं तो उसको हम "पोषक " कहते हैं |क्योंकि सुबह त्रिफला लेने से त्रिफला शरीर को पोषण देता है जैसे शरीर में vitamine ,iron,calcium,micronutrients की कमी को पूरा करता है एक स्वस्थ व्यक्ति को सुबह त्रिफला खाना चाहिए |
त्रिफला लेने अन्य नियम -
रात में जब त्रिफला लेते हैं उसे "रेचक " कहते है क्योंकि रात में त्रिफला लेने से पेट की सफाई (कब्ज इत्यादि )का निवारण होता है | रात में त्रिफला हमेशा गर्म दूध के साथ लेना चाहिए |
आँखों के लिए बहुत गुणकारी है - एक चम्मच त्रिफला चूर्ण रात को एक कटोरी पानी में भिगोकर रखें। सुबह कपड़े से छानकर उस पानी से आंखें धो लें। यह प्रयोग आंखों के लिए अत्यंत हितकर है। इससे आंखें स्वच्छ व दृष्टि सूक्ष्म होती है। आंखों की जलन, लालिमा आदि तकलीफें दूर होती हैं।
त्रिफले का कुल्ला करना - एक चम्मच त्रिफला रात को एक गिलास पानी में भिगोकर रखें। सुबह मंजन करने के बाद यह पानी मुंह में भरकर रखें , थोड़ी देर बाद निकाल दें , ऐसा 4 से 5 बार कीजिए । इससे दांत व मसूड़े वृद्धावस्था तक मजबूत रहते हैं। इससे अरुचि, मुख की दुर्गंध व मुंह के छाले नष्ट होते हैं।
त्रिफला को गुनगुने पानी में एक चम्मच शहद मिलाकर पीने से मोटापा कम होता है। त्रिफला के काढ़े से घाव धोने से एलोपैथिक- एंटिसेप्टिक की आवश्यकता नहीं रहती, घाव जल्दी भर जाता है।
मूत्र संबंधी सभी विकारों व मधुमेह में यह फायदेमंद है। रात को गुनगुने पानी के साथ त्रिफला लेने से कब्ज नहीं रहती है।
मात्रा - 2 से 4 ग्राम चूर्ण दोपहर को भोजन के बाद अथवा रात को गुनगुने पानी के साथ लें।
त्रिफला सेवन में सावधानी - दुर्बल, कमजोर व्यक्ति तथा गर्भवती स्त्री को और बुखार में त्रिफला का सेवन नहीं करना चाहिए।

Tuesday, November 14, 2023

अमंगल से मंगल की यात्रा

निःसंदेह, ज्योतिष विद्या हमारी भारतीय संस्कृति का एक उत्तम विज्ञान है। इस विज्ञान से ग्रह-नक्षत्रों की दशा और दिशा का अध्ययन करके भविष्य का आंकलन किया जा सकता है। एक कुशल ज्योतिषी इसी वैज्ञानिक पद्धति के आधार पर आपको बता सकता है कि भावी समय आपके लिए सौभाग्य के फूल पथ पर बिछाएगा या दुर्भाग्य के कंकड़-पत्थर। परन्तु जिन गत कर्म-संस्कारों से आपका यह भाग्य बना है, कोई भी ज्योतिषी या ज्योतिष विज्ञान उन कारणों को निर्मूल नहीं कर सकता है। उनको जड़ से हटाने-मिटाने का सामर्थ्य नहीं रखता। वह भाग्य की लकीरें पढ़ तो सकता है। लेकिन उन लकीरों को बदलने की ताकत नहीं रखता। इसका सामर्थ्य केवल और केवल एक पूर्ण गुरु द्वारा प्राप्त ‘ब्रह्मज्ञान’ में है। क्रियायोग द्वारा प्राप्त प्रज्ञा हमारे कर्मों को व्यवहार को और वृत्तियों को सुधारती है। उन्हें दिव्य और सकारात्मक बनाती है। यहाँ तक कि हमारे पूर्व जन्मों के संस्कारों को भी भस्मीभूत कर देती है। 

इसलिए क्रियायोग की साधना करने वाले साधक को न केवल अंतरानुभूतियों से भावी अनिष्ट का सकेत मिल जाता है; अपितु गुरु-कृपा और साधना से उसके बचाव का तरीका भी मालूम हो जाता है तथा जीवन का यह अमंगल मंगल में बदल जाता है।

Sunday, November 12, 2023

स्वर योग द्वारा सिरदर्द का निवारण

 सिरदर्द को 5 मिनट में ठीक करने वाली प्राकृतिक चिकित्सा...
नाक के दो हिस्से हैं दायाँ स्वर और बायां स्वर जिससे हम सांस लेते और छोड़ते हैं ,पर यह बिल्कुल अलग - अलग असर डालते हैं और आप फर्क महसूस कर सकते हैं।
दाहिना नासिका छिद्र "सूर्य" और बायां नासिका छिद्र "चन्द्र" के लक्षण को दर्शाता है या प्रतिनिधित्व करता है।
सरदर्द के दौरान, दाहिने नासिका छिद्र को बंद करें और बाएं से सांस लें
और बस ! पांच मिनट में आपका सरदर्द "गायब" है ना आसान ?? और यकीन मानिए यह उतना ही प्रभावकारी भी है।
अगर आप थकान महसूस कर रहे हैं तो बस इसका उल्टा करें...
यानि बायीं नासिका छिद्र को बंद करें और दायें से सांस लें ,और बस ! थोड़ी ही देर में "तरोताजा" महसूस करें।
दाहिना नासिका छिद्र "गर्म प्रकृति" रखता है और बायां "ठंडी प्रकृति"
अधिकांश महिलाएं बाएं और पुरुष दाहिने नासिका छिद्र से सांस लेते हैं और तदनरूप क्रमशः ठन्डे और गर्म प्रकृति के होते हैं सूर्य और चन्द्रमा की तरह।
प्रातः काल में उठते समय अगर आप बायीं नासिका छिद्र से सांस लेने में बेहतर महसूस कर रहे हैं तो आपको थकान जैसा महसूस होगा ,तो बस बायीं नासिका छिद्र को बंद करें, दायीं से सांस लेने का प्रयास करें और तरोताजा हो जाएँ।
अगर आप प्रायः सरदर्द से परेशान रहते हैं तो इसे आजमायें ,दाहिने को बंद कर बायीं नासिका छिद्र से सांस लें बस इसे नियमित रूप से एक महिना करें और स्वास्थ्य लाभ लें।
बस इन्हें आजमाइए और बिना दवाओं के स्वस्थ महसूस करें।

भारतीय संस्कृति के प्रति हमारीअनभिज्ञता (Unaware of Indian Culture)

 एक सुंदर लड़की और गुप्ता जी में अफेयर चल रहा था....!
एक दिन दोनो पार्क में बैठे हुए थे कि....
लडकी ने पुछा-
क्या तुम्हारे पास मारूति कार है ?
गुप्ता जी - नहीं...!
लडकी - क्या तुम्हारे पास फ्लैट है ?
गुप्ता जी - नहीं...!
लडकी - क्या तुम्हारे पास नौकरी है ?
गुप्ता जी - नहीं...!
और....
फिर..... ब्रेक अप....!!
इधर....प्रेमिका के इस तरह चले जाने से गुप्ता जी उदास हो गए
और सोचने लगे कि....
जब मेरे पास पाँच-पाँच
BMW कार हैं ...
तो, मुझे भला मारूति की क्या जरूरत है ?
जब, मेरे पास खुद का इतना बडा बंगला है तो मुझे फ्लैट की क्या जरुरत है ????
और...
जब, मेरे पास 500 करोड टर्नओवर का अपना बिजनेस है और 400 लोग मेरे यहाँ नौकरी करते है तो फिर मुझे नौकरी की क्या जरूरत ????
आखिर, वो मुझे क्यों छोड गयी ???
इसीलिए.... बिना पूरी बात
जाने जल्दीबाजी मे कोई फैसला नहीं करना चाहिए...!
और.... सबको अपने स्टैन्डर्ड से नहीं परखना चाहिए क्योंकि हो सकता है वो आपकी सोच से ज्यादा बडा हो...!
यही हालत आज हमारे सनातन हिन्दू समाज की है....!
हमारे सनातन हिन्दू समाज के हर परंपराओं और हर त्योहार बदलते मौसम के अनुसार वैज्ञानिक पद्धति से उसमें एडजेस्ट करने और उससे परेशान होने की जगह उसमें स्वस्थ रहने के लिए बनाए गए हैं...!
झाड़ू का सम्मान करने से लेकर तिलक लगाने, हाथ में कलावा बांधने से लेकर सर पर चोटी रखने और मंदिर में घण्टा बजाने तक का वैज्ञानिक आधार मौजूद है.
क्योंकि.... हमारे हर त्योहार और परम्पराएं पूर्णतः वैज्ञानिक पद्धति से बनाए गए हैं...!
लेकिन.... ज्यादातर लोगों को इसका ज्ञान नहीं है इसीलिए वे इसे सिर्फ महज एक परंपरा मानकर निभाते चले जा रहे हैं...!
जबकि.... हमें जरूरत है अपनी हर परंपरा और त्योहारों के वैज्ञानिक आधार को जानने की... ताकि, हम उसे ज्यादा हर्षोउल्लास से मना सकें और अपनी आने वाली पीढ़ी को भी उसकी जानकारी दे सकें...!
अगर हम ऐसा नहीं कर पाएंगे तो ....जानकारी के अभाव में... अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ने वाले हमारी आगामी पीढ़ी .... आने वाले समय में इसे एक महज अंधविश्वास मानकर इससे किनारा कर लेंगे...!
और.... हमारी आने वाली पीढ़ी का हमारे हिन्दू सनातन धर्म से "ब्रेकअप" हो जाएगा .
इसीलिए.... मेरी नजर में हमारी जिम्मेदारी बहुत बड़ी है... तथा, हमें उसे निभाने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए.. !!

नारी शक्ति

भ्रष्ट्राचारियों और राष्ट्रद्रोहियों के साथ कैसा बर्ताव होना चाहिए, उसका उदाहरण हमारे इतिहास में घटी एक घटना से मिलता है।
यह सजा भी किसी राजा या सरकार द्वारा नही बल्कि उसके परिजन द्वारा ही दी गई।
ई.सन 1311 में जालौर दुर्ग के गुप्त भेद अल्लाउद्दीन खिलजी को बताने के फलस्वरूप पारितोषिक स्वरूप मिला धन लेकर विका दहिया खुशी खुशी अपने घर लौट रहा था। इतना धन उसने पहली बार ही देखा था। चलते चलते रास्ते में सोच रहा था कि युद्ध समाप्ति के बाद इस धन से एक आलिशान हवेली बनाकर आराम से
रहेगा। हवेली के आगे घोड़े बंधे होंगे, नौकर चाकर होंगे।
उसकी पत्नी हीरादे सोने चांदी के गहनों से लदी रहेगी। अलाउद्दीन द्वारा जालौर किले में तैनात सूबेदार के दरबार में उसकी बड़ी हैसियत समझी जायेगी।
घर पहुंचकर कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए धन की गठरी अपनी पत्नी हीरादे को सौंपने हेतु बढाई।
अपने पति के हाथों में इतना धन व पति के चेहरे व हावभाव को देखते ही हीरादे को अल्लाउद्दीन खिलजी की जालौर युद्ध से निराश होकर दिल्ली लौटती फौज का अचानक जालौर की तरफ वापस मुड़ने का राज समझ आ गया।
वह समझ गयी कि उसके पति विका दहिया ने जालौर दुर्ग के असुरक्षित हिस्से का राज अल्लाउद्दीन की फौज को बताकर अपने वतन जालौर व अपने पालक राजा कान्हड़ देव सोनगरा चौहान के साथ गद्दारी की है। यह धन उसे इसी गद्दारी के पारितोषिक स्वरूप प्राप्त हुआ है।
उसने तुरंत अपने पति से पुछा- क्या यह धन आपको अल्लाउद्दीन की सेना को जालौर किले का कोई गुप्त भेद देने के बदले मिला है?
विका ने अपने मुंह पर कुटिल मुस्कान बिखेर कर व खुशी से अपनी मुंडी ऊपर नीचे कर हीरादे के आगे स्वीकारोक्ति कर जबाब दे दिया।
उसे तत्काल समझ आ गया कि उसका पति भ्रष्ट्राचारी है। उसके पति ने अपनी मातृभूमि के लिए गद्दारी की है और अपने उस राजा के साथ विश्वासघात किया है। हीरादे आग बबूला हो उठी और क्रोद्ध से भरकर अपने पति को धिक्कारते हुए दहाड़ उठी- अरे! गद्दार आज विपदा के समय दुश्मन को किले की गुप्त जानकारी देकर अपने देश के साथ गद्दारी करते हुए तुझे शर्म नहीं आई?
क्या तुम्हें ऐसा करने के लिए ही तुम्हारी माँ ने जन्म दिया था?
अपनी माँ का दूध लजाते हुए तुझे जरा सी भी शर्म नहीं आई?
क्या तुम एक क्षत्रिय होने के बावजूद क्षत्रिय द्वारा निभाये जाने वाले राष्ट्रधर्म को भूल गए?
विका दहिया ने हीरादे को समझाने का प्रयास किया हीरादे जैसी देशभक्त क्षत्रिय नारी उसके बहकावे में कैसे आ सकती थी?
पति पत्नी के बीच इसी बात पर बहस बढ़ गयी। विका दहिया की हीरादे को समझाने की हर कोशिश ने उसके क्रोध को और ज्यादा भड़काने का ही कार्य किया।
हीरादे पति की इस गद्दारी से बहुत दुखी व क्रोधित हुई। उसे अपने आपको ऐसे गद्दार पति की पत्नी मानते हुए शर्म महसूस होने लगी।
उसने मन में सोचा कि युद्ध के बाद उसे एक गद्दार व देशद्रोही की बीबी होने के ताने सुनने पड़ेंगे। इन्ही विचारों के साथ किले की सुरक्षा की गोपनीयता दुश्मन को पता चलने के बाद युद्ध के होने वाले संभावित परिणाम और जालौर दुर्ग में युद्ध से पहले होने वाले जौहर के दृश्य उसके मन मष्तिष्क में चलचित्र की भांति चलने लगे। जालौर दुर्ग की रानियों व अन्य महिलाओं द्वारा युद्ध में हारने की आशंका के चलते अपने सतीत्व की रक्षा के लिए जौहर की धधकती ज्वाला में कूदने के दृश्य, छोटे छोटे बच्चों के रोने कलपने के दृश्य।
उसे उन योद्धाओं के चेहरे के भाव, जिनकी पत्नियां उनकी आँखों के सामने जौहर चिता पर चढ़ अपने आपको पवित्र अग्नि के हवाले करने वाली थी, स्पष्ट दिख रहे थे। साथ ही दिख रहा था जालौर के रणबांकुरों द्वारा किया जाने वाले शाके का दृश्य जिसमें जालौर के रणबांकुरे दुश्मन से अपने रक्त के आखिरी कतरे तक लोहा लेते लेते कट मरते हुए मातृभूमि की रक्षार्थ शहीद हो रहे थे।
एक तरफ उसे जालौर के राष्ट्रभक्त वीर स्वातंत्र्य की बलि वेदी पर अपने प्राणों की आहुति देकर स्वर्ग गमन करते नजर आ रहे थे तो दूसरी और उसकी आँखों के आगे उसका भ्रष्ट्राचारी राष्ट्रद्रोही पति खड़ा था।
ऐसे दृश्यों के मन आते ही हीरादे विचलित व व्यथित हो गई। उन वीभत्स दृश्यों के पीछे सिर्फ उसे अपने पति की गद्दारी नजर आ रही थी। उसकी नजर में सिर्फ और सिर्फ उसका पति ही इस सबका जिम्मेदार था।
हीरादे की नजर में पति द्वारा किया गया यह एक ऐसा जघन्य अपराध था जिसका दंड उसी वक्त देना आवश्यक था। उसने मन ही मन अपने गद्दार पति को इस गद्दारी का दंड देने का निश्चय किया।
उसके सामने एक तरफ उसका सुहाग था तो दूसरी तरफ देश के साथ अपनी मातृभूमि के साथ गद्दारी करने वाला गद्दार पति। उसे एक तरफ देश के गद्दार को मारकर उसे सजा देने का कर्तव्य था तो दूसरी और उसका अपना उजड़ता सुहाग।
आखिर उस देशभक्त वीरांगना ने तय किया कि- "अपनी मातृभूमि की सुरक्षा के लिए यदि उसका सुहाग खतरा बना है तो ऐसे अपराध व दरिंदगी के लिए उसकी भी हत्या कर देनी चाहिए। गद्दारों के लिए यही एक मात्र सजा है।"
मन में उठते ऐसे अनेक विचारों ने हीरादे के रोष को और भड़का दिया उसका शरीर क्रोध के मारे कांप रहा था। उसके हाथ देशद्रोही को सजा देने के लिए तड़प उठे। हीरादे ने आव देखा न ताव पास ही रखी तलवार उठाकर एक झटके में अपने गद्दार और देशद्रोही पति का सिर काट डाला।
हीरादे के एक ही वार से विका दहिया का सिर कट कर लुढक गया।
वह एक हाथ में नंगी तलवार व दुसरे हाथ में अपने गद्दार पति का कटा मस्तक लेकर अपने राजा कान्हड़ देव के समक्ष उपस्थित हुई और अपने पति द्वारा गद्दारी किये जाने व उसे उचित सजा दिए जाने की जानकारी दी।
कान्हड़ देव ने इस राष्ट्रभक्त वीरांगना को नमन किया और हीरादे जैसी वीरांगनाओं पर गर्व करते हुए अल्लाउद्दीन की सेना से आज निर्णायक युद्द के लिए चल पड़े।
हीरादे अनायास ही अपने पति के बारे में बुदबुदा उठी-
"हिरादेवी भणइ चण्डाल सूं मुख देखाड्यूं काळ"
अर्थात्- विधाता आज कैसा दिन दिखाया है कि इस चण्डाल का मुंह देखना पड़ा।
इस तरह एक देशभक्त वीरांगना अपने पति को भी देशद्रोह व भ्रष्टाचार का दंड देने से नहीं चूकी।
देशभक्ति के ऐसे उदाहरण विरले ही मिलते है जब एक पत्नी ने देशद्रोह के लिए अपने पति को मौत के घाट उतार कर अपना सुहाग उजाड़ा हो। देश के ही क्या दुनियां के इतिहास में राष्ट्रभक्ति का ऐसा अतुलनीय अनूठा उदाहरण कहीं नहीं मिल सकता।
काश आज हमारे देश में भ्रष्ट्राचार में लिप्त बड़े बड़े अधिकारियों, नेताओं व मंत्रियों की पत्नियाँ भी हीरादे जैसी देशभक्त नारी से सीख ले अपने भ्रष्ट पतियों का भले सिर कलम न करें पर उन्हें धिक्कार कर बुरे कर्मों से तो रोक सकती ही है।