Wednesday, September 30, 2020

हृदय का विज्ञान

भारत की भूमि पर अनेक ऋषियों का आशीर्वाद रहा है। इन्हीं में से एक कृपाहस्त महर्षि चरक का भी है। चरक मुनि आयुर्वेद विशारद के रूप में भी जाने जाते हैं। कहते हैं तत्कालीन राजा ने इन्हें किसी भी पौधे, फल या फूल पर अनुसंधान करने की खुली छूट दी हुई थी। इस कारण इन्हें कोई भी वनस्पति, कही से भी, बिना पूछे तोड़ लेने की स्वतंत्रता थी। 

एक बार की बात है। एक बाग से गुजरते हुए महर्षि चरक को एक ऐसा फूल नजर आया, जो आज से पहले उन्होंने नहीं देखा था। एकाएक चरक मुनि ने अपने शिष्य से कहा- ‘यह फूल तो शोध का विषय है। यह भी हो सकता है कि इसके अध्ययन से ऐसी औषधि सामने आए, जिससे किसी असाध्य बीमारी का इलाज किया जा सके।’ इतना सुनना था कि शिष्य उत्साहित हो उठा और फूल को तोड़ने के दौड़ पड़ा। वह फूल पर लपकने वाला ही था कि चरक मुनि ने उसे वहीं रोक दिया। शिष्य ने पलटकर हैरानी से पूछा- ‘क्या हुआ ऋषिवर? अगर मैं फूल तोडँ़ूगा नहीं, तो हम इस पर शोध कैसे कर पायेंगे?’

महर्षि चरक- इस फूल को तोड़ने से पहले इस बाग के मालिक से अनुमति लेनी जरूरी है। 

शिष्य- किंतु गुरुवर, आपको तो राजा से यह अधिकार प्राप्त है कि शोध हेतु आप कहीं से भी, कुछ भी तोड़ सकते हैं। फिर अनुमति लेने की क्या आवश्यकता है?

महर्षि चरक- देखो, यह बात अच्छे से समल लो। तुम्हें केवल वनस्पति विज्ञान पर ध्यान नहीं देना है, बल्कि हृदय के विज्ञान को भी समझना है। क्योंकि हृदय के विज्ञान का बहुत गहरा संबंध है हमारे शोध के साथ।

जरा सोचो! जिस माली ने इस फूल को उगाया है, उसका इसके साथ कितना जुड़ाव होगा! क्योंकि उसने दिन-रात इसकी देख-रेख की, इसका पालन-पोषण किया। बेशक हम माली से बिना पूछे फूल तोड़ सकते हैं। किंतु इससे माली दुःखी होगा। उसके दुःखी मन का स्पंदन वायुमंडल में तैरता हुआ हम तक पहुँचेगा और हमारे शोध में बाधा बनेगा। हमारा शोध सफल नहीं हो सकेगा। इसलिए आवश्यक है कि हम माली से फूल तोड़ने की आज्ञा लें। जब वह सहर्ष स्वीकृति देगा, तो हमारे लिए अपने शोध में सफलता प्राप्त करना सहज हो जाएगा। यही हृदय का विज्ञान है। 

पाठकों, इस दृष्टांत से हमें यही प्रेरणा मिलती है कि कुछ भी करने से पहले हम दूसरों की भावनाओं का भी ध्यान रखें। किसी को आहत करके हम कभी भी पूर्ण सफलता नहीं पा सकते। 

कुछ भी करने से पहले हम दूसरों की भावनाओं का भी ध्यान रखें। किसी को आहत करके हम कभी भी पूर्ण सफलता नहीं पा सकते। 

सूरज बना सितारा

यह बात तब की है, जब भारत पर अंग्रेजों का शासन था। उस समय एक उच्च कोटि के साहित्यकार व विद्वान थे- राजा शिवप्रसाद! कहते हैं, वे इतने गुणी थे कि अंग्रेज सरकार भी उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी। उन्हें ‘सितारे हिंद’ की पदवी से सम्मानित किया। इस खुशी में एक जलसा निकाला गया कि अंग्रेजों ने किसी भारतीय को ‘सितारे’ का सम्मान दिया है। जब यह जलसा एक स्थान से गुजर रहा थ, तो वहाँ बैठे एक फकीर ने मस्त अंदाज मे राजा शिवप्रसाद से कहा- ‘हैरानी की बात है! जो कभी सूरज हुआ करता था, आज वह बौना-सा सितारा बनने पर उत्सव मना रहा है... तू अपने प्रखर तेज औ शौर्य का आंकलन नहीं कर पाया शिवप्रसाद। तभी तो अंग्रेजों के अधीन काम किया और उन्होंने तूझे सूरज से नगण्य सितारा बना दिया। यह खुशी की नहीं, दुख की बेला है।’

गहन चिंतन करें, तो हम पायेंगे कि इन वाक्यों में गूढ़ तथ्य निहित है। राजा शिवप्रसाद जैसी भूल आज हर भारतीय कर रहा है। भारत की संस्कृति का तेज सूर्य के समान प्रखर है। पर हम इस सत्य से अनभिज्ञ हैं या फिर जानते हुए भी अंजान बने हुए हैं। हम अपनी संस्कृति, मूल्यों, आदर्शों की महिमा नहीं गाते। उन पर गर्व अनुभव नहीं करते। पूरे विश्व में उनका प्रचार-प्रसार नहीं करते। लेकिन जब कोई विदेशी हमारी किसी धरोहर के बारे में दो शब्द सम्मान के बोल देता है, तब हमें विश्वास होता है और हम उत्सव मनाते हैं। 

पर यकीन मानिए, विदेशी हमारी सांस्कृतिक धरोहरों का सही मोल कभी लगा ही नहीं सकते। वे अपनी बौनी बुद्धि से हमारी ज्ञान-विज्ञान युक्त विरासत की विराटता को कभी समझ ही नहीं सकते। उनकी सीमित दृष्टि तो भारत की सूरज सम संस्कृति को सितारा भर देखती है। पर विडम्बना यह है कि हम भारतीय भी उन्हीं के चश्में से देखते आए हैं। पर अब भारतवासियो, जागो! भारत के आध्यात्मिक प्रणेताओं की शरणागत होकर सही नजरिए को पाओ। ताकि जब कोई विदेशी हमारी संस्कृति को सूरज से सितारा बनाये, तब हम तालियाँ पीटते नजर न आयें! सूरज को सूरज की तरह ही देख सकें।

प्रशंसा की आग

गाँव में एक गरीब महिला ने अपनी सहेली को बहुत सुन्दर चूड़ा पहने देखा। वह चूड़ा इतना आकर्षक था कि गाँव की सभी औरतें उस चूड़े की तारीफ करती नहीं थक रही थीं। तब उस गरीब महिला के भीतर भी चाह उठी कि वह भी वैसा ही मनमोहक चूड़ा पहने और सारे उसके चूड़े की वाह-वाही करें। इस भाव को लिए वह दौड़ी-दौड़ी अपने पति के पास गई और बोली कि उसे एक चूड़ा खरीदना है। पति ने बहुत समझाया कि हमारे पास धन का अभाव है। पर पत्नी के हठ के आगे पति की कहाँ चलने वाली थी! सो, कर्ज लेकर चूड़ा खरीदा गया।
महिला बड़े चाव से चूड़ा पहनकर चौपाल पर गई। वहाँ जान-बूझकर हाथ उठा-उठा कर सभी स्त्रियों से बातें करने लगी। किन्तु किसी का भी ध्यान उसके चूड़े की तरफ नहीं गया। फिर उसने बातों-बातों में चूडे़ की बात छेड़ी। लेकिन सब ने वह बात भी नजरअंदाज कर दी। उसने लाख कोशिशें की, पर किसी ने भी उसके चूड़े की तारीफ नहीं की। गुस्से में तमतमाती हुई वह घर लौटी। रात भर उसे नींद नहीं आई। करवटें बदलती हुई वह यही सोचती नही कि कैसे उसे लोगों की प्रशंसा मिल सकती है! प्रशंसा के लालची कान और मन उसे बेचैन किए हुए थे। तभी उसके दिमाग में एक फितूर उठा। उसने केरोसीन से भरा कनस्तर उठाया, अपने घर पर डाला और आग लगाकर अपने ही घर को जला डाला। अड़ोसी-पड़ोसी आग बुझाने के लिए दौड़े-दौड़े आए, किन्तु तब तक घर स्वाह हो चुका था। गाँव वालों ने सहानुभूति भरे शब्दों में कहा- ‘अरे बहन! तुम्हारा तो बहुत ज्यादा नुकसान हो गया। सारा सामान जल गया।’ इस पर वह महिला तुरन्त बोली- ‘नहीं-नहीं, सबकुछ नहीं जला। देखो, आप सब देखो! यह चूड़ा तो अभी भी मेरे हाथों में ही है। यह बच गया है। है न यह चूड़ा अति मनमोहक?’
पाठकगणों! इस दृष्टांत को पढ़कर आपको लग रहा होगा कि यह तो हद की बेवकूफी है। जरा सी प्रशंसा पाने के लिए भला अपने घर को कौन जलाता है? ऐसा हकीकत में तो कभी हो ही नहीं सकता! पर अगर हम इस दृष्टांत की गहराई में जायें तो पायेंगे कि हममें से अधिकतर का स्वभाव उस महिला के जैसा ही है। अपने बॉस या अपने दोस्तों से प्रशंसा सुनने का हममें इतना पागलपन होता है कि हम अपना सब कुछ उसके लिए स्वाह कर देते हैं। अपने नैतिक मूल्य, अपने आदर्श, अपना परिवार, अपने रिश्ते... सब प्रशंसा की लोलुपता की अग्नि में झोंक देते हैं। इसलिए यह दृष्टांत हमें चेता रहा है कि हम ऐसी मूर्खता न करें। 

कर्तव्य बनाम अधिकार

एक गाँव में चार बहुत ही गरीब लोग रहते थे। गरीब होने के साथ-साथ वे मूर्ख और स्वार्थी भी थे। एक बार उन चारों व्यक्तियों को राजा ने दया करके एक गाय भेंट स्वरूप दे दी। यही सोचकर कि उस गाय से उन चारों का कुछ भला हो जायेगा। किन्तु पहले ही दिन उन चारों में उस गाय को लेकर लड़ाई छिड़ गई। तब एक विद्वान ने आकर उन्हें समझाया- ‘आप चारों बारी-बारी से एक-एक दिन गाय का दूध निकाल लें।’ चारों ने इस परामर्श को स्वीकार किया और गाय का दूध निकालने लगे। किन्तु कुछ समय बाद गाय ने दूध देना बंद कर दिया। जानते हैं क्यों? क्योंकि चारों गाय पर अधिकार तो जमाना जानते थे, पर कर्तव्य निभाना नहीं। सारे अपनी-अपनी बारी पर दूध तो निकाल लेते थे, पर कोई भी गाय को चारा नहीं खिलाता था। किसी ने यदि उन्हें चारा डालने को कहा भी, तो उनका जवाब होता था कि मेरी बारी तो तीन दिन बाद आएगी, ऐसे में गाय को चारा डालने से मुझे क्या फायदा होगा?
यही गलती तो आज हम सब कर रहे हैं। चाहे हमारा घर हो, दफ्तर हो या देश ही क्यों न हो, हमें सिर्फ अपने अधिकार चाहिए होते हैं। हम भूल जाते हैं कि अधिकार के साथ हमारे कुछ कर्तव्य भी हैं। और इसी स्वार्थ के कारण अंत में हम सब कुछ खो बैठते हैं। ऐसा न हो, इसीलिए पाठकों, अपने कर्तव्यों को भी पूर्ण निष्ठा से निभायें। 

घर ऑफिस से क्लेश मिटाने का सूत्र

एक बार गुरु और शिष्य प्रचार के लिए एक दूसरे नगर की ओर जा रहे थे। राह में एक वन पड़ता था। गुरु-शिष्य उस वनमार्ग के मध्य में पहुँच चुके थे। किन्तु अब संध्या हो गई थी। सो गुरु ने शिष्य को कहा- ‘अब यहीं रुककर रात को ध्यान साधना व विश्राम करेंगे। 
रात्रि का पहला पहर बीत चुका था। शिष्य अपने गुरु के पास खड़े होकर पहरा दे रहा था। तभी कहीं दूर से हवा की गति से दौड़ता लाल आँखों वाला एक राक्षस आया। इस दैत्य ने पूरे वेग से शिष्य पर कटु शब्दों का वार किया। प्रतिक्रिया स्वरूप शिष्य ने भी पिशाच पर क्रोध करना प्रारम्भ कर दिया। नतीजा यह निकला कि दोनों में वाक् युद्ध छिड़ गया। आखिरकार पिशाच क्रोध में पागल हो गया और उसने प्रहार किया शिष्य वहीं  बेहोश होकर गिर पड़ा। 
कुछ समय बाद जब शिष्य ने अपनी आँखें खोली, तो अपने सिर को गुरु की गोद में पाया। उसने घबराते हुए गुरु दे पूछा- ‘गुरुवर! क्या आप पर भी लाल आँखों वाले दैत्य ने प्रहार किया?’ गुरुवर ने ‘हाँ’ में सिर हिलाया। शिष्य व्याकुल हो गया- ‘वह बहुत ही खूंखार राक्षस था। गुरुवर, आपको कही चोट तो नहीं आई न?’ गुरु सहजता से बोले- ‘नहीं पुत्र, वह मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाया। मैंने उस पिशाच को दुर्बल कर दिया।’
शिष्य- किन्तु गुरुवर, मुझसे तो वह दुर्बल हो ही नहीं रहा था।
गुरु- इसलिए क्योंकि तुम उसको स्वयं बल दे रहे थे।
शिष्य- पर मैं क्या करता? मैं जैसे ही उस पर वार करता था, वैसे ही उसका बल और बढ़ जाता था।
गुरु- दरअसल, वह दैत्य और कोई नहीं बल्कि क्रोध का पिशाच था। इसलिए तुम्हारे क्रोध से वह और बलवान होता जा रहा था। परन्तु जब वह मेरे समझ आया, तब मेरे शांत व्यवहार ने उसका बल क्षीण कर दिया और वह भाग गया।
पाठकगठों! बस यही रामबाण है क्रोध के पिशाच को खत्म करने का। अगर हम क्रोध की प्रतिक्रिया क्रोध से करने लग जाते हैं, तो वह आग में घी डालने जैसा होता है। इसलिए यदि कोई आप पर क्रोध में कटु शब्दों से प्रहार करता है, तो आप विवेक और संयम का परिचय दें। शांत होकर परिस्थिति का सामना करें। यह क्रोध के पिशाच को दुर्बल कर देगा। घर-परिवार-ऑफिस में क्लेश मिटाने का यह एक महत्त्वपूर्ण सूत्र है।

Monday, September 28, 2020

जनसंख्या नियंत्रण कानून

जनसंख्या वृद्धि ने भारत को कैसे प्रभावित किया है?    

 यह गणना की गई है कि हमारे देश में हर साल लगभग 165 लाख लोगों को जोड़ने के लिए, हमें हर साल 1.5 लाख प्राथमिक और मध्य विद्यालय, 10 हजार उच्च माध्यमिक विद्यालय, 50 लाख प्राथमिक और मध्य विद्यालय के शिक्षक, 1.5 लाख उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की आवश्यकता होगी शिक्षक, 5,000 अस्पताल और औषधालय, 2,000 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, दो लाख अस्पताल के बिस्तर, 50 हजार डॉक्टर, 25 हजार नर्स, 5 लाख टन अनाज, 25,000 मीटर कपड़ा और 2.5 मिलियन घर और 30 लाख नई नौकरियां

हमारे शहरों की भयावह भीड़ (जो कैंसर के विकास को पसंद कर रही हैं, मलिन बस्तियों के साथ अनियंत्रित हो रही हैं) परिवहन, बिजली और अन्य सेवाओं के एक आभासी टूटने के लिए लाया है। इसने अपराध में वृद्धि और शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में हिंसा में वृद्धि भी की है। यह सब हर साल लगभग kai मिलियन लोगों के जुड़ने से वार्षिक जनसंख्या वृद्धि दर से सीधे प्रभावित हुआ है।

यदि इस दर से जनसंख्या में वृद्धि जारी रही, तो अब से कुछ वर्षों में, हमारे पास बेरोजगार, भूखे और हताश लोगों की एक सेना होगी जो देश की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रणालियों और संस्थानों की बहुत नींव को खतरा पैदा करेगी।

ज्यादा मोबाइल चलाना आंखों को कैसे नुकसान पहुंचाता है और इससे कैसे बचा जा सकता है?


• नेत्ररोग विशेषज्ञों का कहना है कि लगातार मोबाइल स्क्रीन पर एकटक देखने से आंखों का ब्लिंकिंग रेट कम हो गया है। सामान्य तौर पर प्रति मिनट 12 से 14 बार आंखे ब्लिंकिंग करती हैं, लेकिन मोबाइल स्क्रीन पर बने रहने पर ब्लिंकिंग रेट छह से सात हो जाता है। इससे आंखों में ड्राइनेस बढ़ रही है और आंखें कमजोर हो रही हैं।

• रेटिना पर अटैक

रात में जब आप अपना फोन यूज़ करते हैं, तो उससे निकलनेवाली लाइट सीधे रेटिना पर असर करती है. इससे आपकी आंखें जल्दी ख़राब होने लगती हैं. देखने की क्षमता धीरे-धीरे घटने लगती है

• क्या आप जानते हैं कि स्मार्टफोन हमेशा के लिए आंखों की रोशनी छीन सकता है? जी हां, कई शोधों में ये बात साबित हो चुकी है. फोन से निकलनेवाली ब्लू लाइट आंखों को पूरी तरह से डैमेज कर सकती है.

• जिस तरह से युवा स्मार्टफोन के आदि होते जा रह हैं ,हर वक्त फोन की ब्लू लाइट उनकी आंखों पर पड़ती हैं जो रेटिना के लिए बेहद नुकसानदेह है। मोबाइल की लाइट हमारे रेटिना को नुकसान पहुंचाती है और देखने की क्षमता को भी कम करती है।ब्लू लाइट आंखों के फोटोरिसेप्टर सेल्स में जहरीले रासायनिक मॉलिक्यूल को ट्रिगर करती है जो सेल को मार देते हैं।आंखों की इस समस्या को मैक्यूलर डिजनरेशन नाम की गंभीर बीमारी बताया गया है जिसका कोई इलाज भी नहीं है।

• स्मार्टफोन पर ज्यादा काम करने से आंखों में दर्द भी पैदा हो सकता है और आंखे खराब भी हो सकती है।

• स्मार्टफोन की स्क्रीन को ज्यादा देर और लगातार देखने के बाद रात को जब सोने जाते है तो नींद नहीं आती। इसके पीछे की वजह मेलाटोनिन है, स्मार्टफोन हानिकारक नीली रोशनी छोड़ता है जो आपके दिमाग को संकेत पहुँचाती है और यह मेलाटोनिन बनाना बंद कर देता है। मेलाटोनिन एक केमिकल होता है जो हमारे शरीर में बनता है और हमें सोने में मदद करता है।

मोबाइल से आंखों को बचाने के उपाय

• मोबाइल से निकलने वाली ब्लू रेज किरणे सबसे अधिक आंखों को प्रभावित करती है यदि आप दिन में औसतन 2 घंटे से ज्यादा मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं तो सबसे पहले आपको इस ब्लू रेज से बचने का उपाय करना चाहिए सामान्य तौर पर इन नीली किरण से बचने के लिए बहुत से चश्मा बाजार में उपलब्ध है तो आप कोशिश करें कि आप भी मोबाइल ब्लू रेज प्रोटक्शन चश्मा लगाकर ही चलाएं खास करके रात के समय में वर्तमान समय में यह चश्मे आसानी से उपलब्ध है आप भी यह चश्मा ले ले ताकि आपकी आंखें नीली रोशनी से बस सके

• यदि संभव हो सके तो मोबाइल चलाते समय अपने पलकों को ज्यादा बार जब गए और ड्राइनेस या सूखापन महसूस होने पर आंखों को ठंडे पानी से धो लें और उसे थोड़ा आराम दे हर 40 मिनट मोबाइल चलाने के बाद 20 मिनट तक अपनी आंखों को बंद करके आराम दे ताकि उसके ड्राइनेस दूर हो जाए

• यदि फिर भी आंखों में दर्द हो तो आपको मोबाइल कम से कम चलाना चाहिए और गुलाब जल इत्यादि चीज की एक एक बूंद आंखों में रात को सोने से पहले डालते रहे

• मोबाइल को ज्यादा पास से ना देखें मोबाइल पर आंखों के बीच की न्यूनतम दूरी 25 सेंटीमीटर से अधिक रखें

• आंखों को ठंडे पानी से दिन में दो बार धोएं

• यहां से आप ब्लू रेज प्रोटेक्शन चश्मा देख सकते हैं जो मै बहुत दिनों से इस्तेमाल कर रहा हूं जिससे मेरी आंखों का दर्द बंद हुआ था


Kuber Dakad

मेथी का पानी

क्या सुबह को थोड़ी सी मेथी का पानी पीना फायदेमंद होता है? यदि होता है तो क्यों होता है?    

 यदि हम रोज सुबह को लगभग एक गिलास भी मेथी का पानी पियें तो यह हमारे सेहत के लिए फायदेमंद रहता है  आखिर मेथी में ऐसा क्या होता है जिसके पानी के पीने मात्र से ही हमारा शरीर कई बिमारियों से मुक्त रहता है। मेथी चाहे स्वाद में कड़वा होता हो परन्तु यह हर घर में आसानी से मिल जाता है क्योंकि इसका प्रयोग खाना बनाते समय छौंक के लिए किया जाता है जिससे खाना और भी स्वादिष्ट हो जाता है अधिकांश लोगों को मेथी के अन्य गुणों के के बारे में कोई भी जानकारी नहीं होती है , जबकि मेथी का पानी और भी ज्यादा गुणकारी होता है । मेथी में गेलेक्टोमैनन नामक फाइबर भरपूर मात्रा में होता है साथ ही इसमें ऐंटिऑक्सिडेंट गुण भी पाए जाते हैं यदि हम रात को लगभग एक से डेढ़ चम्मच मेथी को एक गिलास पानी में भिगोने रख दें और सुबह उठते ही इसके पानी का सेवन करें तो यह हमें कई बिमारियों से दूर रखता है

मेथी के पानी को पीने के निम्न फायदे हैं -

 1.       इसके ऐंटिऑक्सिडेंट गुण के कारण मेथी के पानी के सेवन से हमें सर्दी, जुखाम तथा खांसी के वायरल से बचने में फायदा होता है

2.     इसके पानी के सेवन से पेट में जलन, गैस की समस्या से आराम मिलता है

3.      इसके पानी के रोज सुबह सेवन से मोटापा में भी कमी आती है क्योंकि इसमें भरपूर मात्रा में फाइबर होता है जिससे हमें बार बार भूख नहीं लगती है

4.     इसके रोज सुबह नियमित सेवन से ब्लड शुगर भी नियंत्रित रहता है जो कि डायबिटीज के रोगियों के लिए फायदेमंद है।

5.    इसके नियमित सेवन से यह कुछ हद तक किडनी की पथरी को दूर करने में भी सहायता करता है

6.   इसके सेवन से जोड़ों के दर्द में भी कमी आती है

7.     इसका सेवन त्वचा के लिए भी बेहद फायदेमंद होता है

8.   इसके पानी के सेवन से यह दिल गुर्दे को भी स्वस्थ बनाये रखता है

मेथी के पानी का हमें नियमित सेवन करना चाहिए क्योंकि यह हमें कई बिमारियों से बचाने में सहायक होता है

 

नवजागरण के देवदूत - महायोगी अरविंद

      कलकत्ता के सेशन जज की अदालत में मानिकलता बम केस का ऐतिहासिक मुकद्मा चल रहा था। अभियुक्ततों में से अधिकांश ऐसे नवयुवक थे, जिन्होंने देश को विदेशी शासन से मुक्त कराने का संकल्प लिया था और उसके लिए वे प्राण अर्पण करने को प्रस्तुत थे। ये सब युवक बड़े साहसी, उग्र और क्रातिकारी विचारों के थे और वे रक्त से हस्ताक्षर करके गुप्त-समिति के सदस्य बने थे। इस मुकदमे में उनको फाँसी और काला पानी जैसे कठोर दण्डों की ही संभावना थी, तो भी न कोई भयभीत था, न अपने बचाव की कोशिश कर रहा था। सब लोग ऐसे अमोद-प्रमोद के साथ जेलखाने में रहते थे जैसे किसी महोत्सव में सम्मिलित होने आये हों।

      पर इन सबकी अपेक्षा अधिक निर्भय और साथ ही अधिक गंभीर तथा निश्चिंत थे- श्री अरविंद घोषऋ जो दस वर्ष से अध्यात्ममार्ग के पथिक थे। वे राजनीतिक आंदोलन में भाग लेने के साथ ही आध्यात्मिक शक्तियों को बढ़ाने के लिए कई प्रकार के योग संबंधी अभ्यास करते रहते थेपर जब तक वे बाहर रहेतब तक। नौकरी और उसके बाद आंदोलन के कारण इस तरफ पूरा ध्यान देने का समय ही नहीं मिलता था। अब जेल में जा बैठने पर सब तरह के झंझटों से छूट गए और अपनी कोठरी में बैठकर समस्त मन-प्राण से भगवान का ध्यान करने लगे। इसलिए वे अपनी जेल यात्रा को आश्रम-वास“ कहने लगे। वहाँ उन्हें गहरी साधना का अवसर मिला और वे ब्रह्म-चेतना तक पहुँच गएजो अध्यात्म-साधना का सवोच्च स्तर माना जाता है। कहते हैं कि जेल में प्राणायाम का अभ्यास करते समय उनका शरीर एक तरफ से हवा में ऊँचा उठ जाता था।

      जेल में रहते हुए ही उनकी ब्रह्म-भावना’ इतनी बढ़ गई कि उनको सर्वत्र लीलामय प्रभु के दर्शन होने लगे। इसके पश्चात् उनके लिए जेल और जेलरपुलिस और अदालतअभियुक्त और जजभगवान के ही अनेक रूप प्रतीत होते थे। जेल जाने से पहले वे जिस अध्यात्मिक स्थिति पर पहुँचे थेउसमें वे अपने को भगवान के हाथ का यंत्र या माध्यम समझने लगे थेपर अब तो उनको अपने चारों ओर भगवान दिखाई देने लगा। उनकी चेतना के हर एक कोने में गीता और उसके उपदेश समा गए। जब वे जेल से बाहर निकलेतो संसार के अणु-अणु से उनको भगवान का ही अनुभव होता था।

      इस प्रकार जेल के भीतर योग साधना करने वाले श्री अरविंद सच्चे अर्थों में एक युग-पुरुष थे। एक तरफ तो वे योरोपियन भाषाओं और वहाँ के साहित्य में पारंगत थेलैटिनग्रीकअंग्रेजीफ्रांसीसीजर्मनइटालियन आदि कितनी ही भाषाओं में ऊँचे दर्जे की योग्यता रखते थे और दूसरी ओर भारतीय धर्मदर्शन-शास्त्र तथा उनके विभिन्न अंगों के रहस्य के भी पूरे जानकार थे। इस प्रकार पूर्वी और पश्चिमी दोनों विद्याओं के ज्ञाता होकर वे कार्यक्षेत्र में उतरे थे। इस अगाध योग्यता के बल पर वे आगे चलकर साधको के लिए पूर्ण योग’ की साधन-प्रणाली का अनुसंधान कर सकैजिसका आश्रय लेकर भारत ही नहींसंसार के सभी देशों के अध्यात्म प्रेमी आत्मोन्नति के उच्च शिखर की तरफ अग्रसर हो रहे हैं।

      महर्षि अरविंद अपनी साधना के लक्ष्य के विषय में अपने सुप्रसिद्ध ग्रन्थ सावित्री ’ में लिखते हैं-

To raise the World to God in deathless light,

To bring God down to the World on earth we came!

      साधना के प्रकाश द्वारा पूरे जगत को भगवान की ऊचाइयों तक ले जाना (Evolution) एवं उच्च लोको की चैतन्यता एवं दिव्यता को धरती पर उतार लाना (Involution)

      महर्षि अरविंद का जीवन मानव को यह प्रेरणा देता है कि जब सभी रास्ते बन्द होने लगते हैं तो मानव को पूर्ण तत्परता के साथ ईश्वर की ओर मुड़ जाना चाहिए। श्री अरविन्द को आजीवन कारावास अथवा काले पानी की सजा तय थी। परन्तु ईश्वर की शरण में जाने से कैसे वो अंग्रेजों की जेल से छूट पाए इसका बड़ा ही मार्मिक प्रसंग है। उनके साथ कैम्ब्रिज में पढ़ा उनका परम मित्र एक अंग्रेज जज की कुर्सी पर आ गया व उनको कैद से मुक्त कर दिया। उनको तुरन्त वहाँ से दूर भाग जाने की अन्तःप्रेरणा हुयी। जैसे ही अंग्रेज सरकार को इस बात का पता चला उन्होंने जज को वहाँ से हटाया व अरविन्द को पुनः कैद के आदेश दिए। श्री अरविंद मोटर बोट पर सवार हो चुके थे। उनके पीछे अंगें्रजों के सैनिक लग गए। परन्तु वो फ्रांस के अधीन पॉण्डिचेरी सुरक्षित पहुँच गए। अंग्रेज सरकार उनको पकड़ने में असफल रही।

      ईश्वर को सर्वशक्तिमान की संज्ञा भारतीय संस्कृति में इसी कारण दी जाती है कि वह असम्भव को भी सम्भव कर दिखा जाता है।

      श्री अरविंद ने अपनी पुस्तक भारत का पुनर्जन्म’ में लिखा है- विशेष युगों में कुछ विशेष आंदोलन होते हैंजब ईश्वरीय शक्ति अपने आप को प्रकट करती है और अपनी चरम शक्ति से मानव के सारे आकलनों को तहस-नहस कर देती है। सारे पूर्वानुमानों को झूठा बना देती है और जितनी प्रचंडता और तीव्रगति से वह आगे बढ़ती हैउससे उसका मानवातीत शक्ति द्वारा संचालित होना स्पष्ट रूप से प्रकट हो जाता है। यही वह समय हैजब हम कहते हैं कि उस आंदोलन में ईश्वर का हाथ है। वही उसका नेता है और उसे अपना उद्देश्य पूरा करना ही हैचाहे मनुष्य के लिए उन साधनों को समझना कितना ही असंभव क्यों न हो।

      श्री अरविंद आगे कहते हैं- भारत राष्ट्रों का गुरु हैवह मानवी आत्मा के गंभीर रोगों का चिकित्सक हैउसके भाग्य में एक बार फिर विश्व के जीवन को नए साँचे में ढालना लिखा है।

      प्रकृति के अन्दर एक उर्ध्वमुखी क्रमविकास चल रहा है। यह पत्थर से पेड-पौधे तकपेड़-पौधे से पशु तकपशु से मनुष्य तक जाता है। इस समयचूंकि मनुष्य ही इस ऊर्ध्वमुखी क्रमविकास के शिखर के अंतिम स्तर पर वर्तमान है इसलिएवह समझता है कि वही इस आरोहण की अंतिम अवस्था है और यह विश्वास करता है कि इस पृथ्वी पर उससे बड़ी कोई दूसरी चीज नहीं हो सकती। पर यह उसकी भूल है। अपनी भौतिक प्रकृति में वह अभी तक करीब-करीब पूर्ण रूप से पशु है। वह एक विचार करने वाला और बात करने वाला प्राणी तो हैपर फिर भी अपनी भौतिक आदतों और सहज-प्रवृत्तियों में एक पशु भी है। निस्संदेहप्रकृति एक ऐसे प्राणी को उत्पन्न करने का प्रयास कर रही है जो मनुष्य के लिए वैसा होगा जैसा मनुष्य पशु के लिए हैजो एक ऐसा प्राणी होगा जो अपनी बाहरी आकृति में तो मनुष्य ही रहेगा पर फिर भी उसकी चेतना मनोमयी चेतना और अज्ञान के प्रति उसकी दासता से बहुत अधिक ऊपर उठ जाएगी।

      श्री अरविंद मनुष्यों को इसी सत्य की शिक्षा देने के लिए पृथ्वी पर आए थे। उन्होंने बताया कि मनुष्य कैवल एक मध्यवर्ती सत्ता है जो मनोमयी चेतना में निवास करती हैपरन्तु उसके लिए एक नयी चेतनासत्यचेतना प्राप्त करना सम्भव है और उसमें एक पूर्ण सुसमंजसशुभ और सुंदरआनंदपूर्ण और संपूर्ण-सचेतन जीवन यापन करने की क्षमता है। इस पृथ्वी पर अपने पूरे जीवन-काल में श्री अरविंद ने अपना सारा समय इसी चेतना को- जिसे वह अतिमानसिक चेतना कहा करते थे- अपने अन्दर स्थापित करने में तथा अपने इर्द-गिर्द इकट्ठे हुए लोगों को इसे प्राप्त करने में सहायता करने में ही बिताया।