Monday, July 20, 2020

आत्मबल बढ़ाने के तीन उपाय - सत्य, प्रेम व न्याय


            Face the truth no matter how painful it is.
                सत्य चाहे कितना कटु अथवा दर्द भरा हो उसको स्वीकार अवश्य करना चाहिए। भारतीय संस्कृति का मूलभूत सिद्धान्त है- सत्यमेव जयते। जो सत्य के मार्ग पर चलते हैं।
1. सत्य का अनुसंधान करने वाले, सत्य को स्वीकार करने वाले, सत्य से प्रेम करने वाले एवं सच्चाई की राह पर चलने वाले लोग चाहिए। ऐसे लोग ही इसका अभ्यास करते-करते स्थितप्रज्ञ हो जाते हैं।
2. ईश्वर मानवता से प्रेम करने वाले, संवेदनशील हृदय चाहिए। दुःखी पीड़ित मानवता पर करुणा की शीतल धार जो बहा सकें वह उदार आत्मा चाहिए। ऐसे व्यक्ति ही ईश्वरीय कृपा के पात्र होते हैं। प्रेम का दायरा बढ़ाते-बढ़ाते व्यक्ति देवमानव बन जाता है।
3. ईश्वर न्यायकारी है अतः जो कुछ भी हमारे साथ घटर हा है वह हमारे ही कर्मों का परिणाम है। दूसरा हम धन, पद, प्रतिष्ठा के वशीभूत होकर अन्याय का साथ दें। कर्ण, द्रोण, आदि जब अन्याय के साथ खड़े हुए तो वो भी मारे गए। अन्याय को जो साथ देता है उससे ईश्वरीय संरक्षण हट जाता है।
                समान्य मानव वह है जो अपने परिवार, मित्र, बन्धुओं से प्रेम करे। परन्तु महामानव, देवमानव वह होता है जो किसी से भी, अनजान से भी प्रेम करता है। आत्मा की महानता की माप प्रेम ही है। अतः संस्कृतिवसुधैव कुटुम्बकमकी बात करती है। पूरी वसुधा को ही अपना कुटुम्ब अर्थात् परिवार मानकर सभी से प्रेम भाव स्थापित करना चाहिए।