Saturday, January 31, 2015

पुस्तक का अंतिम पृष्ट


दिव्य सन्ताओं का ऐसा मानना है कि जब से सृष्टि की रचना हुयी है| मानव स्वस्थ्य की दृष्टि से इतनी जर्जर अवस्था में कभी नहीं पंहुचा जितना की आज पंहुच गया हाउ| भारत में व्यक्ति की आयु 100 वर्ष से घटकर 75 वर्ष ही रह गयी है यह बहुत ही दुखद बात है| आने वाली पीढ़ी के लिए 60-70 वर्ष तक स्वस्थ्य जीवन जीना भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य बनता जा रहा है| ऐसा किन कारणों से हो रहा है इसकी विवेचना करना आवश्यक है| परन्तु इससे भी अधिक आवश्यक है यह जानना कि इस विषम समय में हम अपने स्वस्थ्य की रक्षा किस प्रकार करें|
     क्यों व्यक्ति भौतिक सुखो के चक्कर में सर्वोपरि समझे जाने वाले स्वस्थ्य रूपी अनमोल धन के साथ खिलवाड़ कर रहा है| यह एक यक्ष प्रशन है| स्वस्थ्य के प्रति सचेत न रहना अथवा उसकी उपेक्षा करना भारतवर्ष के लिए एक बहुत बड़ा संकट उत्त्पन कर सकता है| सृष्टि में सबसे समझदार माना जाने वाला ‘मानव’ शीघ्र ही अपनी भूल को सुधारे व हम लोग मिल-जुलकर ‘स्वस्थ्य भारत’ की और बढ़ सकें| इसी आशा के साथ पुस्तक को लिखा गया है व जागरूक आत्माओं तक पंहुचाने का प्रयास किया जा रहा है| इस अभियान में हम सभी अपनी भागीदारी अवश्य सुनिश्चित करें| यह हमारा प्रथम कर्तव्य है|

Friday, January 30, 2015

मॉसहार बंद किया जाए!!

मॉस मनुष्य की प्रकृति के सर्वथा विरुद्ध है| उसकी शरीर रचना विशुद्ध शाकाहारियों की है| न उसके नाख़ून हिंसक जीवों जैसे है, न दांत, न वह कच्चे मॉस को पचा सकता है और न उसकी जीभ रक्त मॉस में रूचि लेती है| मिर्च मसालों की सहायता से उबाल पकाकर उसे कहने योग्य कोई भले बना ले| अपने स्वाभाविक रूप में न मॉस मनुष्य को रचता है, न पचता है| प्रकृति के विपरीत आहार यदि जबरदस्ती किया भी जाए तो उससे कभी किसी का कुछ लाभ नहीं हो सकता| वह शारीरिक और मानसिक विक्रतियाँ ही पैदा करेगा| मॉस का प्रोटीन मनुष्य के लिए सबसे घटिया किस्म का प्रोटीन है| इससे अच्छे जीवन तत्त्व तो फल, मेवा, शाक, घी, दूध, दाल, अन्न आदि में मौजूद है| जो सस्ते भी है सात्विक भी और पौष्टिक भी| यह भ्रम नितान्त अज्ञानमूलक है कि मॉस खाने से मनुष्य बलवान बनता है| यह बुढ़िया मान्यता आज से कई वर्ष पूर्व के बाल-बुद्धि शारीरशास्त्रियों की है| आज की नवीनतम शोधें यह प्रतिपादन बड़े साहसपूर्वक कर रही है कि मॉस मनुष्य के लिए नितान्त हानिकारक पदार्थ है| शारीर के लिए ही नहीं मानसिक स्थिति को अवांछनीय बनाने का भी उसमे भारी दोष है| अगले दिनों जैसे-जैसे शारीर-शास्त्र की-आरोग्य-शास्त्र की शोध अधिक गहराई से और बारीकी से होने लगेगी तो यह निष्कर्ष पूरी तरह सामने आ जावेगा कि मॉस मनुष्य का स्वाभाविक भोजन नहीं है| 

     मॉस उपार्जन के लिए जो शक्ति लगानी पड़ती है उससे बहुत कम में अधिक पौष्टिक और अधिक अच्छा खाध उगाया जा सकता है| मॉस महंगा है, उससे कहीं सस्ते कहीं अधिक स्वादिष्ट, कहीं अधिक पौष्टिक दुसरे पदार्थ मौजूद है और वे आसानी से पाये और बढायें जा सकते है| फिर मॉस की ऐसी क्या जरूरत रह जाती है| जिसके लिए मनुष्य को जिव-हत्या जैसे न्रशंस क्रूर-कर्म में प्रव्रत होना पड़े? अंडा और मॉस का प्रचलन आज फैशन के नाम पर ही बढ़ रहा है वस्तुत: उपयोगिता की दृष्टि से यह पदार्थ दो कौड़ी मूल्य के हैं|

Monday, January 26, 2015

High Quality Human Resource

एक बार मैंने एक अदभुत समाचार सुना जो यूरोप के एक देश जर्मन से सम्बन्धित है| भारत में लेह-लद्दाख के बर्फीले क्षेत्र में एक जाति पाई जाती है जो अपने को असली आर्यन बताती है| ये लोग बहुत ही मजबूत शरीर के धनी होते है| नंगे पैर बर्फ में घूमते है व वहां की भयानक शीत को बड़े ही अल्प साधनों में आनंद के साथ सहन करते है| जर्मन वालो को जब उनके बारे में पता चला तो वहां के वैज्ञानिक उनसे संपर्क बनाने वहां पंहुचे| परन्तु उन लोगो ने उनको किसी प्रकार का सहयोग देने से मना कर दिया| उस जाति का नियम है कि वो बाहर के व्यक्तियों से घुलते-मिलते नहीं है और ना ही किसी को अपने क्षेत्र में स्वीकार करते हैं| अब जर्मन वालो ने एक युक्ति निकली| उन्होंने कुछ सुन्दर जर्मन युवतियां उस क्षेत्र के आस-पास छोड़ दी| उन युवतियों ने काबिले के कुछ युवकों से चोरी छुपे संपर्क किया व उनसे गर्भाधान कराकर जर्मन वापस चली गयी| अब जर्मन के Botany के प्रोफेसर्स उनकी Genetic Structure पर छान-बीन कर रहे हैं| उदेश्य यह है कि किस प्रकार जर्मनी में उत्तम गुणवता के लोगो को उत्त्पन्न किया जा सके जिससे भविष्य में जर्मनी का Human Resource सर्वोतम हो और वह पुरे विश्व में अग्रणी हो सके| 
 

धन्य है ऐंसे देश जो इतना सब कुछ सोच पते है| यह सब सुनकर त्रेता युग की घटना याद आती हैं| जब रीछ वानरों ने शरीर बल व देवताओं के आत्म बल दोनों के सयोंग से हनुमान, जामवन्त, सुग्रीव जैसे महापराक्रमी योद्धा पैदा हुए थे| परन्तु दुर्भाग्य है आज हमारा कि हमारा खाधान्न, दूध दही सब कुछ अपनी गुणवत्ता खोता चला जा रहा हैं| हम मात्र चेन के प्रकरण अधिक उत्पादन तक ही सोच पाते हैं| कोई हमें आने वाले काठिन समय में स्वंय को खड़ा रख पाएंगे| यह एक बड़ी चुनौती है| जनता को मात्र सस्ता सामान चाहिए व राजनेता तथा धर्मनेता इनको बढ़िया से बढ़ियां सामान व साधन उपलब्द है फिर क्यों इस दिशा में कोई आवाज उठाएं| हम मात्र बड़े अस्पतालों व विकास की ही उपरी बाते करते रहते है| जिससे आम जनता का ध्यान मूल समस्याओं से भटक जाता हैं

आयुर्वेद के सिद्दान्तो की तप शक्ति के बल पर ही हम अपना शारीर सुद्दढ़ बनाने में सक्षम हो सकते हैं| परिस्थीती बहुत ही विषम होती चली जा रही है यदि यही हल रहा तो जीवमे शरद: शलम के स्थान पर जीवमे शरद: पंचाशत ही कहना पड़ेगा अर्थात व्यक्ति की काम करने लायक उम्र घटकर मात्र 50 वर्ष ही रह जाएगी| मानव शरीर दिन पर दिन दुर्बल हो रहा है व गुणवत्ता खो रहा है| इसके सुधार के लिए हम सभी को जागरूक होकर प्रयास करना है जिससे हम स्वस्थ व खुसी भावी पीडी का निर्माण कर पाए
 


भारत का भवरं


हमारे देश भारत में विविध प्रकार के रोगों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। कारण एक ही है कि हमारे शरीरों में मजबूत उत्तकों (strong tissue) का निर्माण नहीं हो पा रहा है। जरा सा झटका लगते ही वो अपनी समर्थ्य खो बैठते है| झटके का कारण कुछ भी हो सकता है - कोई दुर्घटना, कोई असफलता, कोई कष्ट, बुखार, कोई संक्रमण रोग आदि।

पहले व्यक्ति थोड़ा खाता था परन्तु स्वस्थ्य रहता थ। आज घी, मक्खन, दाले, सभी अच्छी मात्र में उत्त्पन हो रहे है व् सेवन किए जा रहे है परन्तु वो स्वस्थ्य कहाँ जो रोटी नमक या रोटी लस्सी खाकर बना करता था। अनेक कारणों में सबसे बड़ा कारण है खाध पदार्थो की गुणवत्ता में कमी आना। इस्कॉन की एक शाखा ने एक बार 80 गाय के घी के नमूने बैंगलोर की प्रयोगशाला में भेजें| पता चला मात्र एक में ही गाय का घी है बाकी सारे नकली है व् कृत्रिम रसायनो के द्वारा तैयार किए गए है। जबकि इनमें से अधिकांश कंपनिया वो थी जिनकी गुणवत्ता भारत में अव्वल दर्जे की मानी जाती है।  

      सरकार भी बैचारी क्या करे? यदि इस और शिंकजा कसती है तो मंहगाई बहुत बढ़ जाएगी क्यों-कि इतनी बड़ी मात्र में लोगो को पेट भरने के लिए शुद्ध सामान तो उपलब्ध नहीं हो सकता| यह है भारत का भवर जिसमे हम सब फँसे पड़े है। जो लोग अमीर है बड़े पदाधिकारी है वो तो सब कुछ उपलब्ध करा सकते है व् स्वस्थ रह सकते है। परन्तु यह तो मात्र 1% की ही बात है बाकी 99% तो इस भवर में तड़पने उलझने के लिए ही मजबूर हो रहे है। दुःख की बात यह है कि इतनी भयावह परिस्थिति के वावजूद भी भारत में जनसँख्या नियंत्रण के लिए कोई भी मंच शोर नहीं मचा रहा है। समस्या उनकी है जो जागरूक है वो कैसे इस भवर में न फंसे| उनके लिए एक ही समाधान नजर आता है सयंम व् साधना का मार्ग अपनाकर मजबूत उत्तकों का निर्माण करें| छोटे-छोटे समूहों का निर्माण हो जो जैविक खेती, गो पालन जैसी दिशा में कार्य करे| यदि हमारे उत्तक मजबूत है तो हमें रोंगो से भय बहुत ही कम हो जाएंग| परन्तु यदि कमजोर है तो सर्दी-गर्मी सहने से लेकर विविध प्रकार के दुष्प्रभाव  हमें रोज अस्पतालों  के चक्कर लगाने के लिए मजबूर करते रहेंगे।
कभी लाल भहादुर शाश्त्री जी ने ऊन की पूर्ति के लिए देशवाशियों से एक समय भोजन व् एक समय उपहास की अपील की थीं| आज इस विषम भवर से मुक्ति के लिए हम जागरूक आत्मओं के हर संकल्प के लिए प्रेरित कर रहे है।
   'ठीक से उगाओं'
   'सही से पकाओं'
   'थोड़ा खाओं'
   'अच्छे से पचाओं' 
परन्तु मेरे देशवाशियों को आदत पड गयी है वो प्यास लगने पर ही खड्ढा खोदते है। अथवा जब भवर में फस जाते है तभी रोते-चिल्लाते है अथवा अपने विवेक की आँख बंद कर भेड़ चाल में जीवन बिताते रहते है।
जो विवेकवान है वो हर दिशा में प्रयास अवश्य करेगा व् इस भवर से निकलने व् अन्यों को निकालने का पथ प्रदर्शन करेंगे|


जो लोग इस भंवर में फंसे है एंव आध्यात्मिक मानसिकता के है उनके लिए अच्छे-अच्छे सहारे भी भगवान ने खोले है जिससे उनको इस नरक से छुटकारा मिल सकें| इसके लिए कुछ सूत्र जीवन में अपनाना अवश्यक हैं|


1. ये व्यक्ति रसायन का प्रयोग बदल-बदल कर करते रहे| रसायनों का उपयोग व्यक्ति अपनी प्रकृति के अनुसार करें| गितीय, आंवला व तुलसी अच्छे सस्ते व सर्वसुलभ रसायन हैं|

2. मृतुंजय मंत्र का जप नीचों के चक्रो (आज्ञा चक्र व सहस्त्रार चक्र) में करें व गयात्री मंत्र का जप उपर के चक्रो में करें| नीचे के चक्र बल व संतुलन प्रदान करते हैं तथा ऊपर के चक्र व्यक्ति को संयम व विवेक प्रदान करते है| नीचे के चक्र शारीरक क्षमता को बढ़ाते है तो ऊपर के चक्र मानसिक क्षमता को विकास करते हैं| चक्र साधना व्यक्ति अपने बलबूते पर नहीं कर पाता इसके लिए देवी देवताओं का सरक्षण अनिवार्य होता है अन्यथा आसुरी शक्तियां चक्रो में अपना प्राण डालकर व्यक्ति में अनेक प्रकार के अतिभ्रम पैदा करती हैं|