Wednesday, January 27, 2021

स्वस्थ वयस्क

 

एक स्वस्थ वयस्क को दिन में कितनी बार मल त्याग करना चाहिए ?

इसके लिए हम आपको एक छोटी सी कहानी बताते हैं।

एक बार एक वैद्य की लड़की कुएं पर पानी लेने गई। घड़ा भर कर एक व्यक्ति को घड़ा उठवाने के लिए बुलाया, परंतु उस व्यक्ति ने घड़ा उठवाने से मना कर दिया। उस लड़की ने नाराज होकर उस व्यक्ति को धमकी दी कि कभी मेरे पिता के पास दवाई लेने के लिए आओगे तब तुम्हें बताउंगी । उस व्यक्ति ने कहा कि मैं तेरे पिता के पास कभी नहीं आऊंगा क्यों कि मैं दिन में दो बार, महिने में दो बार और साल में दो बार चिकित्सा करता हूं। उस लड़की ने अपने पिता से उस व्यक्ति की शिकायत की और उस व्यक्ति द्वारा कही गई बात का अर्थ पूछा।

वैद्य जी ने कहा कि वह व्यक्ति दिन में दो बार मल त्याग करता है, महिने में दो बार व्रत रखता है और साल में दो बार जुलाब लेता है। इस से उसके शरीर में कोई भी बिमारी नहीं होगी और उसे मेरे पास आने की कोई आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी।

नोट-- जुलाब लेना होता है दस्त लगने की दवा ले कर पेट साफ करना।

By Shri Radhey Shyam

Tuesday, January 26, 2021

क्या आपने लोगों को किए हुए कर्मों के बदले बराबर फल पाते देखा है?

 

By Rana Pratap Bihar

तस्वीर में इस आदमी नाम ईश्वर यादव है।

वह इंदौर के पास एक गाँव में रहता है। उनके पास जीवन में केवल एक ही मंत्र है, "हर संभव तरीके से भगवान के हर जीवित प्राणी की मदद करना।" यादव ने 15 साल की उम्र में एक किराने की दुकान में एक मजदूर के रूप में काम करना शुरू कर दिया था। उन्होंने हर दिन क्षेत्र के गरीब लोगों को भोजन / चाय की पेशकश करने में अपने दैनिक मजदूरी के 100 रुपये में से 30 रुपये खर्च किए।

बाद में भगवान की कृपा से उन्होंने एक चाय की दुकान खोली। वह सुबह 7 बजे तक हर किसी को चाय और नाश्ता मुफ्त में देते थे और गरीब लोगों को दिन में कभी भी। बाद में, चाय की दुकान की सफलता के बाद, उन्होंने एक ढाबा खोला। उन्होंने अनपढ़ और गरीब लोगों को मुफ्त में भोजन और चाय परोसना जारी रखा। यह ढाबा इतना लोकप्रिय हो गया कि लोग 200-250 किलोमीटर दूर से दोपहर / रात के भोजन के लिए यहां आते थे।

दुर्भाग्य के कारण, यादव का ढाबा राज्य सरकार द्वारा ध्वस्त कर दिया गया था, और उन्हें कुछ भी नहीं बचा था। वह कंगाल हो गया और अपने साथी ग्रामीणों से दोपहर और रात के खाने की व्यवस्था करने के लिए 20-30 रुपये उधार लेने लगा। एक दिन, उसने परिवार के लिए चाय बनाने के लिए 30 रुपये उधार लिए क्योंकि उस दिन दोपहर और रात का खाना असंभव लग रहा था।

अचानक एक महिला उसके रास्ते में आई और उससे खाने के लिए पैसे मांगे। अपनी इस आदत के कारण वह खुद पर काबू नहीं रख पाया और 30 में से 10 रुपये उस महिला को बिना सोचे दे दिए। महिला ने यादव को दुआ दी और चली गई। बिना शर्त लोगों को दान देने और खिलाने के इस कर्म के कारण कर्म वापिस यादव के पास आया... उनका ढाबा इस घटना के दो महीने बाद फिर से खुल गया!

कुछ समय में यादव का ढाबा पूरे मध्य प्रदेश में शीर्ष 3 रेस्त्रां में से एक बन गया। वह एक ढाबा अब दो प्रसिद्ध ढाबों और एक रिज़ॉर्ट में बदल गया है। ये रेस्त्रां एक दिन में औसतन 5000 से 7000 लोगों की सेवा में हैं, और त्यौहार के समय यहाँ 10,000 से ऊपर लोग आते हैं।


हैरानी की बात है कि दोनों रेस्त्रां पर दरवाजे नहीं हैं। ये रेस्त्रां कभी बंद नहीं हुए। वे वर्ष में 24×7 और 365 दिन खुले रहते हैं। और यादव हमेशा की तरह वंचितों की मदद करता रहा! लोगों के अलावा, वह रोजाना उस क्षेत्र के आसपास के 100-200 बंदरों, 30-40 गायों, और चींटियों को 5-10 किलो आटा खिलाता है।

कर्म, दुआ, आशीर्वाद में बहुत ताकत है। यह व्यक्ति जो 8वीं कक्षा में असफल रहा था, जीता जागता उदाहरण है!

Thursday, January 14, 2021

गुटखा बनाने में मृत छिपकली के पाउडर का इस्तेमाल

 

गुटखा बनाने में मृत छिपकली के पाउडर का इस्तेमाल होता है?


आपकी बात 100 प्रतिशत सत्य हे हमने 3 पार्टनर लोगो ने फ़तेहपुर उत्त्तर प्रदेश में गुटखा बनाने का 25 वर्ष पूर्व कारखाना लगाया । 6 महीने में बंद करना पड़ गया क्योंकि सवेरा नाम से गोल्डन अलुमिनियम पैकिंग और सफेद बैकग्राउंड में अच्छा प्रोडक्ट बनाया पर बाजार से 65 प्रतिशत माल वापिस आ गया सर्वे से पता चला लोगो का कहना था की इसमें सेंट नही कुछ में कहा ईंस में पिनक नही और कुछ ने कहा दम नही तब पता किया कि छिपकलियों की पूंछ सांप का अल्प विष टेनिन निकोटिन डालना पड़ेगा।

अब गलत काम नही कर सकते लोगो को मार कर पैसा कमाना नही भाया तो 4 महीने में बंद कर के आर थोक में आने पौने दाम में पिसी सुपारी और पान मसाला पनवाड़ी लोगो को बेच दिया फतेहपुर में आज भी पता कर सकते हो ।

देख लो क्या खा रही दुनिया मैन अपना ये अनुभव पर्सनल लोगो को बताया हे आज वो अनैतिक काम करते तो 700 करोड़ रुपये कमा सकते थे पर दिल हे कि मानता नही । जान दे सकते हे ले नही सकते मित्रो कानपुर आगरा और नॉइडॉ में ऐसे जहर बनाये जा रहे।

जिंदगी न मिलेगी दोबारा।

सोचिए लोगों के दांत पाचनतंत्र खराब उसके बाद जान जाती है । मेरे अनुभव को 4 करोड़ लोगों तक पहुंचा सकते बहुत सी जाने बचाई जा सकती हैं।

With Thanks

Gurupreet Singh