Friday, July 31, 2015

गुरु पूर्णिमा विशेष

The fruit  of discipleship blossom not in silver vases, but in the blood-red grounds of sacrifices and offerings.
साधना प्रखर हम करें दृढ़ संकल्प मन में धरें|
खिल उठे सहस्त्रदल कमल, सृजित हो नवयुग विमल||
            किसी भी मिशन में ऐसे व्यक्तियों की संख्या कम होती है जो किसी व्यक्तिगत स्वार्थ के कारण मिशन से न जुड़ें हो। मिशनों की सबसे बड़ी कमी तो यह है कि मिशन में सत्य की मशाल जलाकर रखने वाले लोग न के बराबर होते हैं। ये लोग ही मिशन की गतिविधियों, सफलताओं, विफलताओं की सही समीक्षा कर पाते हैं। कारण यह है कि ऐसे लोगों को मिशन में कम ही बर्दाश्त किया जाता है क्योंकि मिशन के अधिकतर पदाधिकारी मात्र अपने मिशन का गुणगान व बड़ी-बड़ी बातें बनाना जयकारे लगवाना व चापलूसी करवाना पसन्द करते हैं। जिन सूत्रों से मिशन की नींव मजबूत होती है धीरे-धीरे उन सूत्रों की अवहेलना होना प्रारम्भ हो जाता है। इससे मिशन बाहर से तो बढ़ता चढ़ता फेलता दिखता है परन्तु भीतर ही भीतर खोखला होता जाता है।
            वही मिशन समाज को कुछ सार्थक दे पाता है जिसमें वो लोग पर्याप्त हो तो अपने जीवन व अपने परिवार से अधिक मिशन को प्यार करते हों। अन्यथा मिशन में भाई भतीजावाद उपजता है व धीरे-धीरे करके एक भीतरी असन्तोष लोगों की कार्यक्षमता को कम करता जाता है। जब हम राजपूताने का इतिहास पढ़ते हैं तो ऐसे लोग बहुत हुआ करते थे जो अपनी मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने को तत्पर रहते थे। परन्तु आज वो प्यार वो इच्छा शक्ति लुप्तप्राय होती जा रही है। जहाॅं तहाॅं है तो अलग-थलग पड़ी है।
            जब मैं गायत्री परिवार से जुड़ा व मुझे पता चला कि श्रीराम आचार्य जी श्री रामकृष्ण परमहंस का अगला जन्म हैं तो मेरे मन में एक प्रश्न उठा। यदि ये वही हैं तो इन्होंने उस मिशन का उपयोग क्यों नहीं किया। क्यों दुबारा से सारा नया सरंजाम जोड़ा जिससे इतना समय-साधन लगे। बहुत बाद में इस प्रश्न का उत्तर मिला। मिशन में 40-50 वर्ष चलने के बाद स्वार्थी व महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति घुसकर गुड़-गोबर एक कर डालते हैं व मिशन से कोई भी उच्च प्रयोजन हल नहीं हो पाता।
            गायत्री परिवार के संविधान में एक सूत्र आता है-
            सज्जनों को संगठित करने, अनीति से लोहा लेने व नवसृजन की गतिविधियों में . . .
            इस सूत्र पर हम ईमानदारी से यदि काम करें तो हमें काफी सफलता मिल सकती है। उदाहरण के लिए विश्वविद्यालय ;क्ैटटद्ध के गौशाला के एक श्रमिक कार्यकत्र्ता को हरिद्वार आते हुए देवबन्द के कुछ गुण्डा तत्वों ने जबरन कैद कर लिया। वहाॅं एक गिरोह कार्य करता है जो मजदूरों को बहला-फूसलाकर ले जाता है व उन्हें कैद करके बुरी तरह मार-मार कर काम करवाता है। गायत्री परिवार के एक साहसी परिजन को जब यह पता चला तो उसने उन मजदूरों को मुक्त कराने का निर्णय लिया। इस साहसिक अभियान में गुरुवर के आशीर्वाद से उनको सफलता मिली व अनेक मजदूर, औरतें, बच्चे जालिमों की कैद से मुक्त करवाए। वास्तव में ऐसे लोग ही अनीति से लोहा लेने में सक्षम हैं। यदि केन्द्र ऐसे लोगों की गतिविधियों पर नजर रखे व ऐसे 100-200 लोग आपस में जुड़ कर संगठित हो जाएॅं तो कुछ बड़े साहसिक अभियानों को गति दी जा सकती है। तभी नवसृजन की गतिविधियाॅं कुछ जोर पकड़ेंगी अन्यथा खाली बातें व मंचों से घोषणाएॅं होती रहेगी। हम 40 वर्ष पूर्व भी हवन-कीर्तन किताबें बेचने का कार्य करते थे आज भी वही कर रहे हैं। उस समय भी लोगों का आवाहन अखण्ड ज्योति के माध्यम से करते थे आज भी वही कर रहे हैं। सन् 1990 में भी हम यही कहते थे कि 12 वर्षों का सन्धिकाल है, 12 वर्षों बाद सतयुग आएगा आज 24 वर्षों बाद भी यह कह रहे हैं कि 12 वर्षों बाद सतयुग आएगा। ज्यों के त्यों, वहीं के वहीं क्यों खड़े हैं क्यों नहीं आगे बढ़ पा रहे हैं इसकी कठोर समीक्षा मिशन के पुरोहितों शुभ-चिन्तकों को एक उच्च स्तरीय बैठक के माध्यम से करनी चाहिए। यह हमारे गुरुदेव व हमारे मिशन की इज्जत का सवाल है।
            अन्यथ आने वाली पीढ़ी हमारे नाम पर थूकेगीऋ कहेगी पाॅंच करोड़ का विशाल गायत्री परिवार समाज में कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन ला पाने में कामयाब नहीं हो पाया। कहने का तात्पर्य है कि 24 हजार समर्थ लोग संगठित होकर पाॅंच वर्षों की एक लक्ष्य, एक योजना के अन्तर्गत कार्य करें, वीर राजपूतों की तरह अपने प्राणों की बाजी लगा दें और गड्ढ़े में फंसी गाड़ी को ऐसा उठाएॅं कि यह स्पष्ट दोड़ती चली जाए। यदि जीवन रहे तो आन बान शान के साथ यदि मृत्यु आए तो गुरुवर का हाथ हमारे सिर पर हो वो कहें - आओं मेरे प्रिय राजकुमार तुमने इस मिशन के लिए कुर्बानी दी है, तुमने यह मानव जीवन सार्थक किया है अब तुम्हें स्वर्ग, मोक्ष व )षि  संसद में स्ािान मिलने जा रहा है भव बन्धन से मुक्त होकर ब्रह्मानन्द, परमानन्द में विचरण करो।
            आओ मित्र! आज छोटी मोटी संकीर्णताओं, चिन्ताओं, आशा अपेक्षाओं को त्यागकर उस महाप्राण के महाभियान में प्राणाहुति का संकल्प करें। आदर्शों सिद्धान्तों से समझौता न कर उस लाल मशाल में अपने लाल रक्त रूपी तेल को डालने का साहस करे। आज मिशन को नपुंसकों की नहीं मंगलपाडे व अभिमन्यु जैसे शूरवीरों की जरूरत है तो युग निर्माण के इस महाभियान में उबाल ला सकें व रक्त की अंतिम बूॅंद तक इसके लिए संघर्ष करते रहें। आज गुरु पूर्णिमा 2015 पर हम अपनी ढीली पीली नीतियाॅं त्यागकर कुछ ऐतिहासिक करने का प्रण करें।

विश्वामित्र राजेश

स्वस्थ भारत

लेखक द्वारा एक नयी पुस्तक स्वस्थ भारत का लेखन जारी है | पुस्तक का draft नीचे दिए गए लिंक से प्राप्त करें|
पुस्तक की प्रमुख विशेषताएँ -

1. लेखक की 24 साल से भी अधिक शोधपूर्ण अध्धयन, मनन, चिन्तन एवं अनुभवों का निचोड़।
2. सौ वर्ष तक स्वस्थ जीवन जीने के सौ सरल एवं अद्भुत सूत्र।
3. मात्र तीन-चार जड़ी-बूटी के पौधे घर में उगाकर व उनसे विविध रोगों में उपचार कर दवाईंयों के खर्च में 75 प्रतिशत तक की कटौती।
4. व्यक्ति अपनी प्रकृति की पहचान कर उस अनुसार आचरण कर संभावित रोगों से रक्षा।
5. अग्रेंजी दवाओं के रूप में लिए जा रहे विषैले रसायनों से मुक्ति।
6. सप्तधातुओं के संतुलित विकास से जीवन में प्रत्येक खुशी व सफलता का मार्ग प्रशस्त।
7. रोग को दबाने की बजाए जड़-मूल से नष्ट करने और पूर्ण आरोग्य प्रदान करने में सक्षम स्वदेशी औषधियों का विवरण।
8. अपने ही देश के त्रिकालदर्शी षि महर्षि और आयुर्वेदाचार्य एवं चिकित्सकों द्वारा जन-कल्याण और आरोग्य के अविष्कृत एवं विकसित भारत के सर्वथा अनुकूल भारतीय चिकित्सा पद्यति का ज्ञान।
9. हृदय रोग एवं उच्च रक्तचाप जैसे रोगों से रक्षा के लिए दूर्लभ जानकारी।

https://drive.google.com/file/d/0B1hbKb27bkTIUERIcnlxa2VfSEU/view?usp=sharing

Friday, July 24, 2015

विश्वामित्र - प्रारम्भ प्रयोजन

वक्त है आया ऐतिहासिक वीरों जैसे बलिदान  का ,
कार्यक्षेत्र मैं ध्यान रहा है जिन्हें गुरु के मान का|
भक्तिभाव से ओत प्रोत हो कुछ तो ऐसा कर जाएँ,
सच्चे शिष्य बनकर के हम विजय पताका लहराएँ||

        यातनाओं से सच्ची भावनाएँ कब किसकी मिटी हैं?
                कठिन दुर्गम श्रृंग से क्या प्रबल सरिताएँ रुकी हैं?
                क्या कभी रुका है पतंगा अग्नि की जलन से?
                च्युत किया कब वारों ने वीर को कर्तव्य पथ से?
                लोह दुर्गम द्वार से कब शक्तियाँ रुक सकी हैं?
                संघर्षों से ही सदा संकल्प शक्ति दृढ़ हुई है।

तपस्वी व साहसी इन्सान कभी तूफानों से घबराया नहीं करते।
वो क्या बंदें मुसीबत में जो मुस्कराया नहीं करते।
गिराए जाएँ गिरि से या गिरी ही आ पड़े उन पर।
भयंकर मौत भी आए तो भय खाया नहीं करते।
सदाकत के लहू से सींच कर पाले हैं जो गूंचे।
खिंजा भी आए तो वो फूल कुम्हलाया नहीं करते।
भरोसा है जिन्हें अपने सिदक पर और ईश्वर पर।
तमन्नााओं में वो दामन को उलझाया नहीं करते।
जो  अक्सर  राज  आने  का  समझ  जाते  हैं।
वो जग में एक दफा आकर भी फिर आया नहीं करते।


            कुछ वर्षों पूर्व की बात है मैं व मेरा एक विद्यार्थी कुरुक्षेत्र में प्रत्येक शनिवार को ब्रह्मसरोवर पर रहने वाले साधु-बाबाओं की सेवा करते थे। जो रोगी होते थे उनको दवाईयाॅं वितरित की जाती थी। एक दिन हमने देखा कि एक दुबले पतले साधु चुपचाप लेटे हुए थे। हमने उनसे पूछा कि क्या वो रोगी हैंउन्हें दवा चाहिए। इस पर उन्होंने उत्तर दिया नहीं वो रोगी नहीं है अपितु अमरण अनशन पर 10 दिन से बिना कुछ खाए पिए बैठे हैं। उन्होंने गायों की गोचर भूमि छुड़ाने के लिए अनशन कर रखा था परन्तु उनका कोई संगी साथी न था अकेले थे। हमारा आश्चर्य बढ़ा व उनसे कहा कि ऐसे आप अकेले कैसे अनशन करेंगे, कुछ तो साथ चाहिए। इस पर उन्होंने निराशा भरा उत्तर दिया कि अनेक संस्थाओं में घूमा सबको गायों के दर्द के बारे में बताया परन्तु उनका साथ देने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ इस कारण अकेले अनशन पर बैठ गए हैं। पूछने पर उन्होंने बताया कि वो दण्डी स्वामी हैं व अपना कत्र्तव्य पूरा कर रहे हैं। इस पर हमने कहा कि अकेले कब तक लड़ोगे ऐसे तो भूखे मर जाओगे और सफाई कर्मचारी आपकी लाश को गडढा खोद कर दफना देंगे। क्या यह आत्म हत्या नहीं होगी? इस पर उनका उत्तर था-
            दुनिया डरे मरण से, मेरे मन आनन्द।
            कब मरिए कब मिलिए, पूर्ण परमानन्द।।
            उन्होंने कहा कि गायों की दुर्दशा वो बर्दाश्त नहीं कर सकते इसके लिए यदि उन्हें अपने प्राणों का बलिदान भी करना पड़े तो वो सहर्ष तैयार हैं। उनकी बात सुनकर हमारी आॅंखों से आॅंसू लुढ़क निकले व हमने उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिया। आज भी इस राष्ट्र में ऐसे साधु-संन्यासी मौजूद हैं जो राष्ट्र की संस्कृति, गौ माता की रक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान करने को तैयार हैं। दण्डी स्वामी पढ़े लिखे नहीं थे परन्तु उनका जीवन अनमोल है जो इस राष्ट्र की संस्कृति से इतना प्रेम करते हैं। हमने जिला प्रशासन की मदद से उनको आश्वासन दिलाया व बड़ी कठिनाई से एक माह उपरान्त उनका अनशन तुड़वाया।
            स्वामी विवेकानन्द जी 100 युवकों के द्वारा राष्ट्र निर्माण का कार्य कराना चाहते थे। परन्तु आज जनसंख्या बहुत बढ़ चुकी है व स्थिति पूर्व से भी अधिक भयावह है अतः आज युग निर्माण के लिए ऐसे 24,000 समर्थ व्यक्तित्व चाहिएॅं जो इस राष्ट्र की संस्कृति को अपने प्राणों के समान प्यार करते हों। यदि ऐसे महान व्यक्तित्वों को संगठित किया जा सके तो युग निर्माण की दिशा में प्रगति सम्भव है। ऐसी बात नहीं है कि भारत में महान व्यक्तित्वों की कमी है, खोजने पर लाखों ऐसे व्यक्तित्व मिलना सम्भव है परन्तु कठिनाई यह है कि ये चेहरे विभिन्न मिशनों में बिखरे पड़े हैं व संगठित नहीं हो पा रहे हैं। कोई ऐसे समर्थ तन्त्र नहीं बन पाया जो इन महानुभावों को एक मंच, एक मशाल के नीचे ला सके। परन्तु देवसत्ताओं की यह इच्छा अब पूरी होने जा रही है।
            कहते हैं कि भारत में 33 करोड़ देवी-देवता निवास करते थे परन्तु आज चारों ओर भौतिकवाद अर्थात् पैसा, पद, प्रतिष्ठा, बड़ी गाड़ी, आलीशान कोठी का परचम लहरा रहा है। मेरा भारत इतना संस्कृति विहीन इतना कान्तिहीन शायद ही कभी रहा हो जितना आज है। अनेक समस्याएॅं अपनी संस्कृति को बचाने के लिए जी तोड़ प्रयास कर रही हैं। यदि भोगवाद की आॅंधी के सामने ये संस्थाएॅं दीवार बनकर न खड़ी होती तो आज हमारा बुरी तरह पाश्चात्यकरण हो गया होता। न परिवार परम्परा रहती न संस्कार परम्परा बचती। वासनाओं के दलदल व धन के मद में पूरा समाज अस्त-व्यस्त हो गया होता। ये संस्थाएॅं वास्तव में साधुवाद की पात्र हैं जो अपना-अपना दीपक जलाएॅं भोगवाद में डूबे इस अन्धे समाज को कुछ उजाला दिखाने का प्रयास कर रही हैं।
            अपने 24 वर्षों के अनुभव के दौरान मैं अनेक संस्थाओं के सम्पर्क में आया व मैंने उनसे ज्ञान, ध्यान, साधना व स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया । भारत में अनेकों छोटी-बड़ी संस्थाएॅं काम कर रही हैं। पहले हम कुछ बड़ी संस्थाओं व उनके अनुयायियों पर निगाह डालते हैं जिनका मोटा - मोटा अनुमान नीचे दिया जा रहा है।
गायत्री परिवार 3 करोड़
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 3 करोड़
ब्रह्मकुमारी २ करोड़
iskcon 2 करोड़
धन धन सतगुरु 2 करोड़
कुल 12 करोड़
इसके अलावा ऐसे अनेक मिशन हैं जिनके अनुयायिओं की संख्या 1 करोड़ के आस पास हैं ऐसे कुछ मिशन नीचे दिए जा रहें हैं |
1. श्री श्री रवि शंकर
2. दिव्य ज्योति जागृति संस्थान
3. सत्य साईं सेवा मिशन
4. सत्य धर्म बोध मिशन
5 श्री राम चन्द्र मिशन
6. दी प्रेम रावत मिशन
7. अमृतानंद मयी माँ मिशन
8. दिवाइन लाइफ सोसाईटी
9. राधा स्वामी
10. आर्य समाज
11. राम कृष्ण मिशन
12. शिव सेना
13. भारत स्वाभिमान मंच
14. स्वामी नारायण
15. विश्व हिन्दू परिषद्
           इस प्रकार इन सभी मिशन से जुड़े व्यक्तियों की संख्या 24 करोड़ से अधिक है| यदि ये मिशन अपनी कमियों को दूर कर अपना अपना सुधर कर लें उसी दिन धरती पर स्वर्ग का अवतरण हो जायेगा|मिशनों से अनुरोध यह है कि यदि वो जितनी शक्ति प्रचार प्रसार में लगते है यदि उसकी चौथाई शक्ति अपनी कमियों को दूर करने मे लगाएँ तो बहुत काम हो जाएगा 

            जहाॅं तक गायत्री परिवार का सम्बन्ध है यह मिशन देव सत्ताओं के द्वारा पोषित व श्रेष्ठ आध्यात्मिक व्यक्तियों का मिशन हैं  इस मिशन ने सर्वप्रथम अध्यात्म एवं विज्ञान के समन्वय को पुरे विश्र्व के प्रबुधु वर्ग का ध्यान भारतीय संस्कृति की विशेषताओं की ओर आकर्षित किया हैं इस दिशा में देवसंस्कृति विश्वविद्यालय का योगदान सराहनीय है जहाँ शिक्षा,संस्कार व् संस्कृति की दिव्य त्रिवेणी बहती है अब अन्य अनेक संस्थाएँ भी इस दिशा में अच्छा प्रयास कर रही हैँ।  युग की माँग के अनुसार संस्थाओं के देवस्ताओं के दायित्व बदलते रहते है सन  2011शताब्दी समारोह पर देवस्ताओं ने एक नया दायित्व इस मिशन को दिया है वह है 24000समर्थ लोकसेवियो का राष्ट्र को समर्पण इसकी भूमिका तो सन 1995 मेंअर्ध महापूर्णहुति से बननी प्र्रारंभ हो गयी थी परन्तु इस कार्य में विलम्ब होता चला गया जब भी कोई महान कार्य प्र्रारंभ होता है स्वार्थी व महत्वाकाँक्षी व्यक्ति मिशन में घुसना प्र्रारंभ कर देते है व् उनमें टकराव आना स्वाभाविकहै  इससे मिशनों में अनेक समस्याएँ जन्म लेने लगती है इसी प्रकार गायत्री परिवार में भी समय के साथ -साथ बहुत सी खरपतवार पनपी है जिसकी सफाई आवश्यक है अन्यथा हम पुस्तकें बेचते,हवन करते,भजन कीर्तन गाते रह जाएँगे ,युग निर्माण का मोर्चा हमारे हाथ से खिसक सकता है हमें दूसरे मिशनों से बहुत कुछ सीखना है
उदाहरण के लिए सन् 2014 हमने साधना वर्ष घोषित किया। जिसमें लाखों लोगों ने भाग लिया। अब यदि इन लोगों को साधना में जो कठिनाईयाॅं उत्पन्न हुई होंगी क्या उनके समाधान की कोई उचित व्यवस्था मिशन ने बनाई। साधना वर्ष घोषित करने से पूर्व प्रत्येक राज्य के उच्च स्तरीय साधकों की सूचि साधना करने वालों के लिए जारी करनी चाहिए थी जिससे जो साधना के प्रति गम्भीर थे उनकी कठिनाईयों का अविलम्ब हल निकाला जा सके। साधना की सफलता के लिए हमें रामचन्द्र मिशन से सीख लेनी चाहिए उन्होनें विभिन्न जिलों में अपने बड़े अच्छे प्रशिक्षक केंद्र से तैयार करके भेज रखे है जो विभिन्न लोगो की साधना संबंधी समस्याओं में बहुत सहायक सिद्ध होते हैं व् निःशुल्क लोगो का साधनामय उपचार करते हैं जबकि हमारे परिजनों को इधर उधर भटकना पड़ता हैं  यदि हम ढंग से नहीं चलेंगे तो कैसे हम किसी भी अभियान में सफल नही  हो पाएॅंगे। युग निर्माण एक ऐसा संघर्ष है जिसमें यदि एक भी पक्ष कमजोर पड़ा तो अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाएगी। 
                        यदि हम 24000 समर्थ लोकसेवी तैयार करने के लिए विशेष अभियान नही चलाते तो युग निर्माण का मात्र लोगो को बहलावे ही देते रहेंगे जैसे एक माँ अपनी बेटी को दे रही थी घटना इस प्रकार है की एक बार एक परिवार अपनी बेटी को कॉलज हॉस्टल में छोड़ने आया परिवार में एक छोटी बेटी थी जो बड़ी बहन से बहुत लगाव करती थी जब वो वापिस ट्रेन में जाने लगे तो छोटी बेटी बड़ी बहन को याद करके रोने लगी माँ ने उसको टॉर्च  पकड़ा दी व कहा  कि बहन यही कही छुपी होगी ढूढ़ ले तीन चार घंटे का सफर इस प्रकार कट गया इसी प्रकार यदि हमने कुछ ठोस अभियान न चलाया तो हम अपना समय इस भुलावे में यो ही काटते रहेंगे कि हम युग निर्माण कर रहे हैं 
   मिशनों की कमियों को उजागर करना इस पवित्र पुस्तक का उद्देश्य नहीं है मात्र स्थान-स्थान पर संकेत ही किए जा रहे हैं। जिससे मिशनों के पदाधिकारी जागरूकता पूर्वक उन संकेतों को समझ कर अपनी कमियों को दूर कर सकें। अन्यथा धीरे-धीरे मिशन पैर पूजने पुजवाने, जयकारा बोलने, चन्दा, गेहूॅं-चावल इकट्ठा कर जीवन यापन करने, आम जनता की मनोकामना पूर्ति तक ही सीमित रह जाते हैं उनसे कोई महत्त्वपूर्ण कार्य नहीं सध पाता न ही कोई बड़ी योजना को क्रियान्वित कर पाते हैं।
            अंग्रेजों की चापलूसी करते-करते उनकी जयकार लगाते-लगाते यह संस्कार हमारे भारतवासियोें के रक्त में आ गया है। कोई भी सेठ जी आएॅं, कोई भी राजनेता धर्मनेता आएॅं आम जनता का काम है। उनकी जी हजूरी करना। गलत को गलत व सही को सही कहने वाले लोग एक मंच के नीचे एकत्रित होने चाहिएॅं। आज पुनः महात्मा गाॅंधी के सत्याग्रह आन्दोलन की आवश्यकता पड़ रही है क्योंकि राजतन्त्र, धर्मतन्त्र, अर्थतन्त्र व प्रबुद्ध वर्ग मिलकर अपनी रोटियाॅं सेक रहा है जबकि इन तन्त्रों को राष्ट्र हित अथव जनहित को सर्वोपरि महत्व देना चाहिए। यही कारण है कि विभिन्न मिशन राष्ट्रीय मुद्दों पर एक होकर जोर नहीं लगा पा रहे हैं। ऐसे अनेक राक्षस हमको निगलने के लिए तैयार बैठे हैं परन्तु हम सब भारतवासी मिलकर एकजुट होकर उनको परास्त करने का प्रयास नहीं कर रहे हैं क्योंकि हम सब गुरुओं के नाम पर, मिशनों-संस्थाओं के नाम पर, क्षेत्रों, जातियों, पार्टियों के नाम पर बट चुके हैं। इनके कुछ समस्याओं का जिक्र नीचे दिया गया है।
1. जनसंख्या नियन्त्रणः यह एक ऐसा असुर है जो हमारे सारे संसाधनों को निगल जाता है। प्रदूषण, गंदगी, भीड़ व चारों ओर बेरोजगारी, चोरी-चकारी इसी असुर ने फेला रखी है। परन्तु हम सब कुछ जानते हुए भी चुप्पी साधे बैठे हैं। हमारा पौरुष, हमारा आत्मबल क्या इतना क्षीण हो चुका है।
2. अश्लीलता निवारणः यह एक ऐसा असुर है जिसने हमारी युवा पीढ़ी को मदहोश बना दिया है। उन्हें बस धन, गाड़ी, बंगला वैभव विलास ही प्रिय है। उनका रक्त आज राष्ट्र व धर्म संस्कृति की दयनीय स्थिति को देखकर कहाॅं उबलता है जैसे भगतसिंह, आजाद, सुभाष, खुदी राम बोस व सावरकर आदि का उबलता था। आज लड़कियों को भी अमीर व विलासी लड़कों से लगाव है। वो सावित्री कहाॅं जो सत्यवान जैसे आदर्शवादी को वरण कर हिन्दू नारियों के लिए मिसाल कायम कर पाए।
3. गौ संरक्षणः जब तक गौ का सम्मान नहीं होगा तब तक कैसे सात्विकता व स्वास्थ्य इस देश में आ पाएगा। परन्तु हम इस दिशा में कितने गम्भीर हैं यह हम सब जानते हैं।
4. कृषि: कृषि में रासायनिक खादों व विषैले कीटनाशकों का प्रयोग हमारी सारी भूमि का नाश किए दे रहा है। परन्तु इसको रोकने का कोई भी उच्च स्तरीय प्रयास हमारे समाज ने नहीं किया।
5. कचरा प्रबन्धनः जगह-जगह पाॅलिथीन के कूड़े के ढेर लोग एकत्र कर उनमें आग लगा देते हैं इससे खतरनाक विषैली गैसों की उत्पत्ति होती है परन्तु जन सामान्य को इसकी जानकारी नहीं है।
            ऐसा प्रतीत होता है कि हमारे स्वार्थ, महत्त्वाकाक्षाएॅं, वैभव-विलास ने हमारी आत्मा को इतना मलिन कर दिया है कि हमारे ऊपर मंडराते संकट हमें दिखाई नहीं दे रहे। प्रबुद्ध वर्ग को अपने बैंक बैंलेंस की फिक्र है कि कैसे यह बढ़ता जाए। धर्मतन्त्र को भीड़ से मतलब है कि कैसे उनकी संस्थाओं में भीड़ बढ़े व उनके प्रवचनों पर जोरदार तालियाॅं बड़ें कैसे ऊॅंचे-ऊॅंचे, बड़े-बड़े भव्य मन्दिर बनें, भीड़ जुटे और चारों ओर उनकी ख्याति फैले। राजतन्त्र वोट बैंक के मोह में कोई भी कठोर निर्णय लेने का साहस ही नहीं कर पा रहा है।

            ऐसी विषम परिस्थिति में इस राष्ट्र की जागरूक आत्माओं को, पुरोहितों को संगठित होना होगा, एक सत्याग्रही सेना का गठन करना होगा जो चार बड़े तन्त्रों, धर्मतन्त्र, राजतन्त्र, अर्थतन्त्र व जनतन्त्र को दिशा विहीन होने से रोकें।

Wednesday, July 15, 2015

स्वास्थ्य के शत सूत्र

           From my book "100 Golden Rules for Health" cost Rs 12/- each  postal charge extra mail at rkavishwamitra@gmail.com or phone on 09354761220.
Kindly donate Rs 100/- or more to get soft copy of the book. Donation would be used for the research work of an extra ordinary book "स्वस्थ भारत " to be published in 2016.
                   जिन नियमों को अपनाकर व्यक्ति स्वस्थ जीवन जी पाए उनकी जानकारी व वैज्ञानिक विवेचन नीचे दिया जा रहा है। अच्छा तैराक वह होता है जिसे नदी ष्ेऽ सभी भंवरों की जानकारी होती है न कि वह जो भंवर में फंस जाए। यह संसार भी एक भवसागर है जिसमें अनेक भंवर होते हैं। यदि एक बार व्यक्ति भंवर में फंस जाए तो निकलने में काफी कठिनाई होती है, प्राण जाने का भय भी रहता है। इसी प्रकार यदि व्यक्ति किसी गम्भीर रोग ष्ेऽ चंगुल में फंस जाए तो बहुत दर्द सहना पड़ता है व प्राण जाने का खतरा भी मंडराता रहता है। इसीलिए समझदारी इसी में है कि हम यथा सम्भव स्वास्थ्य ष्ेऽ स्वर्णिम सूत्रों का विस्तृत अध्ययन व पालन करने का प्रयास अवश्य करें। स्वास्थ्य के सूत्रों को पाठकों को अपनी प्रकृति के अनुसार ग्रहण करना चाहिए। स्वस्थ व्यक्ति के लिए सूत्र अलग हैं व रोगी के लिए अलग। उदाहरण के लिए शीतल जल में स्नान से बहुत लाभ होता है परन्तु यदि ज्वर पीडि़त व्यक्ति ठण्डे जल से नहा ले तो हानि भी हो सकती है। इसी प्रकार घी खाने से व्यक्ति हष्ट-पुष्ट बनता है परन्तु जिसका हाजमा कमजोर है वह यदि घी खा ले तो पेट दर्द अथवा दस्त से पीडि़त हो सकता है। अतः पाठकों से विनम्र निवेदन है कि विवेक का प्रयोग करते हुए अथवा किसी उत्तम वैद्य के परामर्श से साथ ही सूत्रों का लाभ उठाएॅं। ये सूत्र निम्नलिखित हैं।
1. भूख व भोजन
     अच्छे स्वास्थ्य ष्ेऽ लिए यह आवश्यक है कि उचित भूख लगने पर ही भोजन किया जाए। ऐसा क्यों करें? कारण यह है कि जो भोजन हम करते हैं उसका परिपाक आमाशय में होता है। यदि भूख ठीक न हो तो आमाशय ष्ेऽ द्वारा भोजन ठीक से नहीं पकता अथवा पचता। इस कारण भोजन से जो रस उत्पन्न होते हैं वो दूषित रहते हैं। ये रस व्यक्ति में रोग उत्पन्न करते हैं व स्वास्थ्य खराब करते हैं। इस समस्या ष्ेऽ आयुर्वेद में आमवात कहा जाता है। किसी ने सत्य ही कहा है-
   ”आम कर दे काम तमाम
श्।ड। पे जीम जमतउ नेमक पद ।लनतअमकं वित मदकवजवगपदे. ज्ीम ष्।उंष् ंतम मदकवजवगपदे वितउमक पद जीम पदजमेजपदमे कनम जव ंिनसजल कपहमेजपवद. ज्ीम सवू कपहमेजपअम पितम समंके जव वितउंजपवद व िमितउमदजंजपवद पदेपकम जीम पदजमेजपदमे ंदक जींज पद जनतद बंद पदबतमंेम जीम वितउंजपवद व िचने ंदक उनबने. ज्ीम वितउंजपवद व िष्।उंष् पे पदबतमंेमक प िजीम विवक पे तपबी पद ंिेज विवकेए चंबांहमक विवकए इनतहमतेए चप्र्रंेए दवद.अमह कपमज ंदक वजीमत ीमंअल हतमंेल पजमउे.  ..;क्त. टपातंउ ब्ींनींदद्ध
यह आमवात ही सन्धिवात का मूल कारण होता है।
         परन्तु आज विडम्बना यह है कि व्यक्ति को खुलकर भूख लगना ही भूख लगना ही बंद हो गया है प्राष्ृऽतिक भूख व्यक्ति को लग नहीं पा रही है। बस दो या तीन समय भोजन सामने देख व्यक्ति भोजन कर डालता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति भूख से कम खाए। भोजन पेट की भूख से तीन चैथाई करें। एक चैथाई पेट खाली रखें। जब पेट भरने लगे अथवा डकार आ जाए तो भोजन करना बन्द कर दें। ठूस-ठूस कर खाने से शरीर भारी हो जाता है। भूख से अधिक खाने पर पाचन तन्त्र पर एक दबाव बनता है। पेट, आमाशय, आॅंतें मिलकर पाचन तन्त्र बनता है, इसमें फूलने सिकुड़ने की क्रिया होती रहती है, और उलट पुलट के जिए जगह की गुंजाईश रखे जाने की आवश्यकता पड़ती है। इस सारे विभाग में ठूॅंस-ठूॅंस कर भरा जाए और कसी हुई स्थिति में रखा जाए, तो स्वभावतः पाचन में बाधा पड़ेगी, अवयवों पर अनावश्यक दबाव-खिंचाव रहने से उनकी कार्यक्षमता में घटोतरी होती जाएगी। उन अंगों से पाचन के निमित्त जो रासायनिक स्त्राव होते हैं, उनकी मात्रा न्यून रहेगी और सदा हल्की-भारी कब्ज बनी रहेगी।
 आहार के सम्बन्ध में यह विशेष उल्लेखनीय है कि सच्ची एवं परिपक्व भूख लगने पर ही खाना खाएॅं। रुस के स्वास्थ्य विशेषज्ञ ब्लाडीमार कोरेचोवस्को का मत है - भूख से जितना अधिक खाते हैं, समझना चाहिए कि उतना ही विष खाते हैं।
            बच्चों ष्ेऽ लिए भोजन में कोई नियम नहीं रखने चाहिए। जब इच्छा हो खाएॅं। युवाओं ष्ेऽ पौष्टिक भोजन नियमानुसार करना चाहिए व प्रौढ़ भोजन सन्तुलित करें।
अपवाद ;म्गबमचजपवदेद्धः
 बहुत से व्यक्ति डायबिटिज व अन्य घातक रोगों ष्ेऽ चंगुल में फंस कर बहुत कमजोर हो गए हैं। ऐसे लोगों को यह सुझाव दिया जाता है कि हर दो तीन घण्टें में ष्ुऽछ न ष्ुऽछ खाते रहें अन्यथा बहुत दुर्बलता अथवा अम्लता ;।बपकपजलद्ध बनने लगेगी।
2. भोजन का समय
            दो समय भोजन काना अच्छा होता है। भोजन करने का सबसे अच्छा समय प्रातः 8 से 10 बजे व सांय 5 से 7 बजे ष्ेऽ बीच है। यदि कोई भारी खाद्य पदार्थ लेना है तो प्रातः ष्ेऽ भोजन में ही लें, क्योंकि पाचन क्षमता सूर्य से प्रभावित होती है। 12 बजे ष्ेऽ आस-पास पाचन क्षमता सर्वाधिक होती है, अतः 10 बजे तक किया गया भोजन बहुत अच्छे से पच जाता है। अन्न वाले खाद्य पदार्थ दो बार से अधिक न लें। परन्तु आवश्यकतानुसार तीन बार भी भोजन किया जा सकता है। सांयकाल भोजन हल्का करें। भोजन का पाचन सूर्य पर निर्भर करता है। सूर्य की ऊष्मा से नाभिचक्र अधिक सक्रिय होता है। भोजन पचाने में लगी अग्नि को जठराग्नि कहा जाता है जिसका नियंत्रण नाभि चक्र से होता है। जिनका नाभि चक्र सुस्त हो जाता है, कितना भी चूर्ण चटनी खा लें भोजन ठीक से नहीं पच पाता। गायत्री का देवता सविता ;सूर्यद्ध है अतः नाभि चक्र को मजबूती ष्ेऽ लिए गायत्री मंत्र का आधा घण्टा जप अवश्य करें। दो ठोस आहारों के बीच 6 घण्टें का अन्तर रखें। 3 घण्टें से पहले ठोस आहार न लें। अन्यथा अपच होगा जैसे हाण्डी में यदि कोई दाल पकाने के लिए रखी जाए उसके थोड़ी देर बाद दूसरी दाल डाल दी जाए तो यह सब कच्चा पक्का हो जाएगा। बार-बार खाने से भी यह स्थिति उत्पन्न होती है। भोजन के पश्चात् 6 घण्टें से अधिक भूखे न रहें। इससे भी अम्लता इत्यादि बढ़ने का खतरा रहता है।
3. भोजन की प्रकृति
            रोटी ष्ेऽ लिए मोटा प्रयोग करें यह आॅंतों में नहीं चिपष्ेऽगा। मैदा अथवा बारीक आटा आॅंतों में चिपक कर सड़ता है जिससे आॅंतों ष्ेऽ संक्रमण ;इन्फेक्शनद्ध का खतरा बढ़ जाता है।  साबूत दालें भिगोकर अंष्ुऽरित कर खाएॅं। भोजन का जरूरत से ज्यादा पकाएॅं नहीं। भोजन ष्ेऽ विषय में कहा जाता है - हितभुक, )तभुक मितभुक हितभुक का अर्थ है वह भोजन करें तो हितकारी हो।   जैसे दूध ष्ेऽ साथ मूली व दही ष्ेऽ साथ खीर लेना अहितकारी है परन्तु ष्ेऽले ष्ेऽ साथ छोटी इलाइची एवं चावल ष्ेऽ साथ नारियल की गिरी लाभप्रद है )तभुक का अर्थ है भोजन )तु ष्ेऽ अनुष्ूऽल हो उदाहरण ष्ेऽ लिए ग्रीष्म )तु में आटे में गेहूॅं ष्ेऽ साथ जौ पिसवाना लाभप्रद रहता है क्योंकि जौ की प्रष्ृऽति शीतल होती है परन्तु वर्षा )तु में गेहूॅं ष्ेऽ साथ चना पिसवाना आवश्यक है वर्षा )तु में वात ष्ुऽपित होता है जिसको रोकने ष्ेऽ लिए चना बहुत लाभप्रद रहता है। अन्यथा व्यक्ति कमर दर्द व अन्य पीड़ाओं से ग्रस्त हो सकता है। अन्तिम मितभुक का अर्थ है भूख से कम भोजन करें। पेट को ठूॅंस-ठूॅंस कर न भरें।
4. भोजन के समय की स्थिति
भोजन से पूर्व अपनी मानसिक स्थिति शान्त कर लें। भोजन शान्त मन से चबा-चबा कर व स्वाद ले-लेकर करें। यदि भोजन में रस आए तो वह शरीर को लगता है अन्यथा खाया-पीया व बेकार निकल गया तथा पचने में मेहनत और खराब हो गई। भोजन करते हुए किसी भी प्रकार ष्ेऽ तनाव, आवेश, भय, चिन्ता ष्ेऽ विचारों से ग्रस्त न हों। भोजन ईश्वर का प्रसाद मानकर प्रसन्न मन से करें। भोजन को खूब चबा-चबा कर खाना चाहिए। आचार्य भाव मिश्र कहते हैंः-
ईष्र्याभयक्रोध् समन्वितेन, लुब्धेन रुग् दैन्यनिपीडितिेन।
विद्वेष युक्तेन च सेव्यमान, अन्नं न सम्यष््ऽ परिपाकमेतिû
      अर्थात् भोजन ष्ेऽ समय ईष्र्या, भय, क्रोध, लोभ, रोग, दीनता का भाव, विद्वेष रखने से खाया हुआ अन्न भली-भाँति नहीं पचता है, जिससे रस रक्तादि की उत्पत्ति भी ठीक प्रकार शु( रूप से नहीं होती है। अतः सुखपूर्वक बैठकर प्रसन्नता से धीरे-धीरे खूब चबा-चबा कर भोजन करना चाहिए।
भोजन ष्ेऽ समय कोई अन्य काम जैसे पुस्तक पढ़ना, टीवी देखना न करें। भोजन को सही से चबाने पर उसमें पाचक रसों का समावेश उपयुक्त मात्रा में होता है। यदि जल्दी जल्दी में भोजन को पेट की भट्टी में झोंक दिया जाए तो इसका परिणाम अपच, दस्त तथा गैस उत्पति के रूपमें अनुभव किया जा सकता है। जो लोग अप्रसन्न मन से भोजन करते हैं उनके शरीर में कीटोन्स ;विषाक्त तत्वद्ध बढ़ने लगते हैं। अतः जो भी भोजन ग्रहण करें प्रसन्न मन से भगवान् को धन्यवाद देना न भूलें।
5.  दिन में भोजन के पश्चात् थोड़ी देर विश्राम एवं सांयकाल लगभग 100-200 कदम अवश्य चलें।
6. भोजन ष्ेऽ पश्चात् एक घण्टे तक जल न पीएँ। यदि आवश्यकता लगे तो भोजन ष्ेऽ बीच अल्पमात्रा में पानी पीएँ, क्योंकि अधिक जल पीने से पाचक रस मन्द हो जाते हैं।
7. सप्ताह में एक दिन इच्छानुसार स्वादिष्ट भोजन कर सकते हैं। पाँच दिन सामान्य भोजन करें व एक दिन व्रत अवश्य करें। सामान्य भोजन में मिर्च मसालों का प्रयोग कम से कम करें।
8. घी का सेवन वही करें जो शारीरिक कार्य अधिक करते हैं। मानसिक कार्य करने वाले घी का सेवन अल्प मात्रा में ही करें। पित्त प्रकृति वालों के लिए घी का प्रयोग लाभप्रद होता है।
9. दूध या पेय पदार्थों को जल्दी-जल्दी नहीं गटकना चाहिए। धीरे-धीरे चूस-चूस कर पीना चाहिए। पेय पदार्थों का तापक्रम न तो अधिक गर्म हो न ही अधिक शीतल।
10. घी में तले हुए आलू, चिप्स आदि का प्रयोग कम से कम करना चाहिए। तलने ष्ेऽ स्थान पर भाप द्वारा पकाना कहीं अधिक गुणकारी व सुपाच्य होता है।
11. क्या खाया? कितना खाया? यह महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि कितना पचाया यह महत्वपूर्ण है।
12. भोजन जीवन का साधन मात्र है। शु(, सात्विक व स्वच्छ भोजन से ही जीवन अच्छा हो सकता है।
13. इतना मत खाओ कि तुम्हारा शरीर आलसी हो जाए।
14. दिनान्ते च पिवेद् दुग्धं निशान्ते च जलं पिबेत्।
भोजनान्ते पिवेत् तक्रं वैद्यस्य किं प्रयोजनम्û
            यदि रात्रि ष्ेऽ शयन से पूर्व दुग्ध, प्रातःकाल उठकर जल ;उषापानद्ध और भोजन ष्ेऽ बाद तक्र ;मट्ठाद्ध पिएँ तो जीवन में वैद्य की आवश्यकता ही क्यों पड़े?
15. दीर्घ आयु के लिए भोजन का क्षारीय होना आवश्यक है। क्षार व अम्ल का अनुपात 31 होनी चाहिए। जो लोग अम्लीय भोजन करते हैं उसमें उनको रक्त-विकार अधिक तंग करते हैं। कुछ शोधों के निष्कर्ष यह भी बताते हैं कि भोजन में क्षार तत्व बढ़ाकर हृदय की धमनियों के इसवबांहम भी खोलें जा सकते हैं। भोजन में अम्लीय पदार्थों की मात्रा कम रखें। 
            स्वस्थ रहने के लिए रक्त की क्षारीयता 80 प्रतिशत तथा अम्लता 20 प्रतिशत होनी चाहिए। यह सन्तुलन बना रहता है, तब तक रोगों का भय नहीं रहता है। आज की पश्चिम जीवनशैली को अपनाकर हमारे देश में अस्पताल और डाॅक्टर दोनों बढ़ने पर तथा नई-नई दवाओं का आविष्कार होने पर भी रोग और रोगी दोनों ही घटने का नाम नहीं ले रहे हैं। आवश्यकता है क्षारीयता प्रदान करने वाले खाद्यों का उत्पादन भी बढ़ाया जाए और जीवनशैली में भी लाया जाए। रक्त को क्षारीयता प्रदान करने वाले खाद्यों में चोकर युक्त आटे की रोटी, अंकुरित अनाज, मूली, गाजर, टमाटर, पत्तागोभी, हरा धनिया, मेथी, पालक, बथुआ, चने इत्यादि शाक-सब्जी, सलाद तथा सभी ताजे पके हुए मीठे फल लेने चाहिए। सभी फल एवं हरी सब्जियों का प्रयोग करें। अंकुरित मूॅंग, अंकुरित चना, अंकुरित सोयाबीन इत्यादि का भरपूर प्रयोग करें। मैदा, बेसन, बिना छिलके की दालें एवं सफेद चीनी, सफेद नमक, तेल, शराब, चाय, काॅफी, कोल्ड-ड्रिंक्स जैसे बोतलबंद पेय, बिस्कुट, ब्रैड , आचार, चाट, कचैड़ी, समौसा, नमकीन एवं पराठें, पूड़ी आदि खून में अम्लता बढ़ाकर रोग पैदा करते हैं अतः स्वास्थ्य रक्षा के लिए अपने दैनिक भोजन में अधिकाधिक फल तथा हरी सब्जियों को स्थान देना चाहिए।
16. तीन सफेद विषों का प्रयोग कम से कम करें - सफेद नमक, सफेद चीनी व सफेद मैदा।
17. फल सब्जियों में ।दजपवगपकंदजे पर्याप्त मात्रा में होते हैं। इनका प्रयोग लाभप्रद रहता है।
18. कभी-कभी बादाम व अखरोट का भिगोकर सेवन करते रहें। इससे जोड़ों की ग्रीस अर्थात् ताकत बनी रहती है अखरोट में व्उमहं3होता है जो सेहत के लिए जरुरी है।
19. जितना सम्भव हो जीवित आहार लें। अधिक तला भुना पदार्थ व जंक फूड मृत आहारों की श्रेणी में आते हैं।
20. गेहूॅं, चावल थोड़ा पुराना प्रयोग करें।
21. घर में फ्रिज में कम से कम सामान रखने का प्रयास करें। पुराना बारीक आटा व सब्जी का प्रयोग जोड़ों के दर्द को आमन्त्रित करता है।
22. भोजन के उपरान्त वज्रासन में बैठना बहुत लाभकारी होता है। भोजन करने के पश्चात् एक दम न सोएॅं न दिन में, न रात में।दिन में भोजन के पश्चात् थोड़ी देर विश्राम व सांयकाल लगभग 100-200 कदम अवश्य चलें।
23. भोजन के पश्चात् दाई साॅंस चलाना अच्छा होता है। इससे जठाराग्नि तीव्र होती है व पाचन में मदद मिलती है।
24. पानी सदा बैठकर धीरे-धीरे पिएॅं, एकदम न गटकें। जल पर्याप्त मात्रा में पिएॅं अन्यथा भ्पही ठच् शिकार हो जाएॅंगे। सामान्य परिस्थितियों में जल इतना पीएॅं कि 24 घण्टें में 6 बार मूत्र त्याग हो जाए। मूत्र त्याग करते समय अपने दाॅंत बीच कर रखें।
नियमित दिनचर्याः
            अधिकांश व्यक्ति अपनी जीवन-शैली को अस्त-व्यस्त रखते हैं इस कारण रोगों की चपेट में आने लगते हैं। रोगी होने पर एलोपैथी अथवा अन्य चिकित्सकों से इलाज कराते हैं, परन्तु जीवन-चर्या को ठीक करने की ओर ध्यान नहीं देते। इस कारण रोग जिद्दी ;बीतवदपबद्ध होने लग जाते हैं। जब रोग घातक स्थिति तक पहुॅंच जाता है तभी आॅंख खुलती है व रोग ष्ेऽ निवारण ष्ेऽ लिए बहुत परेशानी उठानी पड़ती है। यदि हम पहले से ही सचेत रहकर अपनी जीवनचर्या पर नियन्त्रण रखें तो हम )षियों ष्ेऽ अनुसार जीवेम शरदः शतम्अर्थात् 100 वर्ष तक स्वस्थ जीवन जी सकते हैं। इसष्ेऽ लिए हमें निम्न सूत्रों को जीवन में अपनाना होगा।
25.  प्रातःकाल सूर्योदय से दो घण्टा पूर्व अवश्य उठें। )षियों ने इसे ब्रह्ममुहूत्र्त की संज्ञा दी है। इस समय की वायु में जीवनी शक्ति सर्वाधिक होती है। वैज्ञानिकों ने शोध किया है कि पेड़-पौधों की वृ(ि इस समय व संधिकाल ;दिन-रात ष्ेऽ मिलने का समयद्ध में सबसे अधिक होती है।
26.  प्रातः उठने ष्ेऽ पश्चात् ऊषा पान ;जलपानद्ध करें। यह जल ताजा पी सकते हैं। यदि रात को ताम्र पात्र में जल भरकर रख दें वह पीना अधिक लाभप्रद है। ताम्र पात्र को विद्युत रोधी लकड़ी, रबड़, प्लास्टिक ष्ेऽ ऊपर रखें इससे पानी में ऊर्जा निहित हो जाती है। यदि सीधा जमीन या स्लैब आदि पर रख दें तो यह ऊर्जा जमीन में चली जाती है। शीत )तु में जल को हल्का गर्म करष्ेऽ पीयें व ग्रीष्म )तु में सादा ;अधिक ठण्डा न होद्ध लें। जल की मात्रा इच्छानुसार लें। जितना पीना आपको अच्छा लगे- आधा किलो, एक किलो, सवा किलो उतना पी लें। जोर-जबरदस्ती न करें। कई बार अधिक पानी-पीने ष्ेऽ चक्कर में हृदय की धड़कन बढ़ती है या पेट में दर्द आदि महसूस देता है, अतः जितना बर्दाश्त हो उतना ही पानी पिया जाए।
27.  जल पीकर थोड़ा टहलने ष्ेऽ पश्चात् शौच ष्ेऽ लिए जाएँ। मल-मूत्र त्यागते समय दाँत थोड़ा भींचकर रखे व मुँह बंद रखें। मल-मूत्र त्याग बैठकर ही करना उचित होता है।
28.  मंजन जलपान करने से पहले भी कर सकते हैं व शौच जाने ष्ेऽ बाद भी। ब्रश से ऊपर-नीचे करष्ेऽ मंजन करें। सीधा-सीधा न करें। यदि अंगुली का प्रयोग करना हो तो पहली अंगुली तर्जनी का प्रयोग न करें। अनामिका ;त्पदह थ्पदहमतद्ध अंगुली का प्रयोग करें, क्योंकि तर्जनी अंगुली से कभी-कभी ;मनः स्थिति ष्ेऽ अनुसारद्ध हानिकारक तरंगें निकलती हैं जो दाँतों, मसूड़ों ष्ेऽ लिए हानिकारक हो सकती है। कभी-कभी नीम की मुलायम दातुन का प्रयोग अवश्य करें। इससे दाँतों ष्ेऽ कीटाणु मर जाते हैं यदि नीम की दातुन से थोड़ा-बहुत रक्त भी आए तो चिन्ता न करें। धीरे-धीरे करष्ेऽ ठीक हो जाएगा। ष्ुऽछ देर नीम की दातुन करते हुए रस चूसते रहें उसष्ेऽ पश्चात् थोड़ा-सा रस पी लें। यह पेट ष्ेऽ कीटाणु मार देता है। यदि पायरिया ष्ेऽ कारण दाँतों से रक्त अधिक आए तो बबूल की दातुन का प्रयोग करें वह काफी नरम व दाँतों को मजबूती प्रदान करने वाली होती है। मंजन दोनों समय करना अच्छा रहता है- प्रातःकाल व रात्रि सोने से पूर्व। परन्तु दोनों समय ब्रश न करें। एक समय ब्रश व एक समय अंगुलि से मंजन करें। अधिक ब्रश करने से दाँत व मसूढ़े कमजोर होने का भय बना रहता है। मंजन करने ष्ेऽ पश्चात् दो अंगुलि जीभ पर रगड़कर जीभ व हलक साफ करें। हल्की उल्टी का अनुभव होने से गन्दा पानी आँख, नाक, गले से निकल आता है। इससे टान्सिलस की शिकायत नहीं होती।
29.  स्नान ताजे जल से करें, गर्म जल से नहीं। ताजे जल का अर्थ है जल का तापक्रम शरीर ष्ेऽ तापक्रम से कम रहना चाहिए। छोटे बच्चों ;5 वर्ष से कमद्ध ष्ेऽ लिए अधिक ठण्डा जल नहीं लेना चाहिए। शरद् )तु में भी जल का तापक्रम शरीर ष्ेऽ तापक्रम से कम ही होना चाहिए, परन्तु बच्चों, वृ(ों व रोगियों को गुनगुने जल से स्नान करना चाहिए। स्नान सूर्योदय से पूर्व अवश्य कर लेना चाहिए। रात्रि में पाचन तन्त्र ष्ेऽ क्रियाशील रहने से शरीर में एक प्रकार की ऊष्मा ;ीमंजद्ध बनती है जो शीतल जल में स्नान करने से शांत हो जाती है, परन्तु यदि सूर्योदय से पूर्व स्नान नहीं किया गया तो सूर्य की किरणों ष्ेऽ प्रभाव से यह ऊष्मा और बढ़ जाती है तथा सबसे अधिक हानि पाचन तन्त्र को ही पहुँचाती है।
30. स्नान ष्ेऽ पश्चात् भ्रमण ;तेज चाल सेद्ध, योगासन, प्राणायाम, ध्यान, पूजा का क्रम बनाना चाहिए। इसष्ेऽ लिए प्रतिदिन आधा से एक घण्टा समय अवश्य निकालना चाहिए। बच्चों को भी मंदिर में हाथ जोड़ने, चालीसा आदि पढ़ने का अभ्यास अवश्य कराना चाहिए।
 शारीरिक श्रम व व्यायाम

31. स्वस्थ व्यक्ति प्रतिदिन इतना श्रम अवश्य करें कि उसष्ेऽ शरीर से पसीना निकलता रहे। इससे खून की सफाई हो जाती है। जो व्यक्ति पर्याप्त मेहनत नहीं करता उसको व्यायाम, योगासन अथवा प्रातः सांय तीन चार कि.मी. पैदल चलना चाहिए।
32. हमारा सम्पूर्ण शरीर माॅंसपेशियों का बना है। माॅंसपेशियों की ताकत बनाए रखने ष्ेऽ लिए उचित शारीरिक श्रम अथवा व्यायाम अनिवार्य है।
 33. चीन ष्ेऽ लोग स्वस्थ व ताकतवर होते हैं क्योंकि वो साइकिलों का प्रयोग खूब करते हैं। पहले महिलाएॅं घर का कार्य स्वयं करती थी इससे बहुत स्वस्थ रहती थी, परन्तु आज ष्ेऽ मशीनी युग ने हमारी माता-बहनों का स्वास्थ्य चैपट कर दिया है। यह हमारे सामने प्रत्यक्ष है कि बागडि़यों व पहाड़ी महिलाओं को प्रसव में बहुत कम कष्ट होता है। उनष्ेऽ यहाॅं आराम से घर पर ही बच्चे पैदा हो जाते हैं क्योंकि वो मेहनत बहुत करती हैं।
34. शारीरिक श्रम व्यक्ति अपनी सामथ्र्य ष्ेऽ अनुसार करें। यदि रोगी व दुर्बल व्यक्ति अधिक मेहनत कर लेगा तो उसे लाभ ष्ेऽ स्थान पर हानि भी हो सकती है। इस स्थिति में पैदल चलना बहुत लाभप्रद रहता है।
35. समाज में ष्ुऽछ अच्छी परिपाटियाॅं अवश्य चलें। जैसे प्रातः अथवा सांय पूरा परिवार मिलकर स्वयं लघु वाटिका चलाए ष्ुऽछ फल, फूल, सब्जियाॅं उगाए। इससे परिवार को अच्छी सब्जियाॅं मिलेंगी व शारीरिक श्रम भी होगा।
36.  इन्द्रिय संयम - इस नियम ष्ेऽ अन्तर्गत जीभ व जननेन्द्रिय का संयम आता है। जिह्वा संयम ष्ेऽ लिए सप्ताह में एक दिन अस्वाद व्रत अर्थात् बिना नमक मिर्च मसालों का अस्वाद भोजन करें। जननेन्द्रिय संयम ष्ेऽ लिए अश्लील वातावरण से बचने का प्रयास करें। गलत वातावरण बड़े-बड़े जितेन्द्रिय का भी पतन कर देता है।
            विवाहित व्यक्ति भी गृहस्थ जीवन में मर्यादानुसार ही सम्भोग करें। 25 से 35 वर्ष तक ष्ेऽ गृहस्थी हफ्ते, दो हफ्ते में एक बार, 35 से 45 वर्ष की आयु तक ष्ेऽ गृहस्थी तीन चार सप्ताह में एक बार व इससे ऊपर दो चार माह में एक बार ही मिलें। महिलाओं ष्ेऽ )तुकाल में यह वर्जित है क्योंकि इस समय प्रष्ृऽति अनुष्ूऽल नहीं होती।
37. आहार, निद्रा व ब्रह्मचर्य इन तीनों बातों से स्वास्थ्य पर बहुत प्रभाव पड़ता है। आहार में मांस, अण्डा, शराब, मिर्च-मसाले व अधिक नमक से बचना चाहिए। निद्रा छः से आठ घण्टे ष्ेऽ बीच लेनी चाहिए व अश्लील चिन्तन से बचना ही ब्रह्मचर्य है।
38. जीवन आवेश रहित होना चाहिए। ईष्र्या-द्वेष, बात-बात पर उत्तेजित होने का स्वभाव जीवनी शक्ति को भारी क्षति पहुँचाता है।
39. रात्रि को सोते समय मच्छरों से बचने ष्ेऽ लिए मच्छरदानी का प्रयोग करना चाहिए। कीटनाशकों का कम से कम प्रयोग करना चाहिए। लम्बे समय तक मच्छरनाशक रसायनों ष्ेऽ उपयोग से मनुष्य को सर्दी-जुकाम, पेट में ऐंठन और आँखों में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। ये लक्षण और विड्डतियाँ पायरेथ्राइडस नामक ड्डत्रिम कीटनाशक ष्ेऽ कारण होती हैं जो कीटों ष्ेऽ तंत्रिका तन्त्र पर हमला करता है। सेफ्टी वाच समूह सी.यू.टी.एस.ने अपने नए प्रकाशन इज इट रियली सेफमें बताया है कि ये रसायन मानव शरीर ष्ेऽ लिए बहुत-ही विषैले और हानिकारक होते हैं।
40.  भोजन बनाते समय साबुत दालों का प्रयोग करना चाहिए। छिलका उतरी दालों का प्रयोग बहुत कम करना चाहिए। आटा चोकर सहित मोटा प्रयोग में लाना चाहिए। बारीक आटा व मैदा कम से कम अथवा कभी-कभी ही प्रयोग करना चाहिए। दाल, सब्जियों को बहुत अधिक नहीं पकाना चाहिए। आधा पका ;ींस िबववाद्ध भोजन ही पाचन व पौष्टिकता की दृष्टि से सर्वोत्तम है।
41. व्यस्त रहें, मस्त रहें ष्ेऽ सूत्र का पालन करना चाहिए। व्यस्त दिनचर्या प्रसन्नतापूर्ण ढंग से जीनी चाहिए।
42. प्रातः उठते ही दिनभर की गतिविधियों की रूपरेखा बना लेनी चाहिए व रात्रि को सोते समय दिन भर की गतिविधियों का विश्लेषण करना चाहिए। यदि कभी कोई  गलती प्रतीत होती हो, तो भविष्य में उस त्रुटि को दूर करने का संकल्प लेना चाहिए।
43. शयन ष्ेऽ लिए बिस्तर पर मोटे बाजारू गद्दों का प्रयोग न करें, हल्ष्ेऽ रूई ष्ेऽ गद्दों का प्रयोग करें।
घर में अथवा आस-पास नीम चढ़ी गिलोय उगाकर रखें व हफ्ते पन्द्रह दिन एक-दो बार प्रातःकाल उबालकर पीते रहें। गिलोय से शरीर स्वस्थ व निरोग रहता है। लीवर सुचारू रूप् से काम करता है।
44. शीत )तु में दो तीन माह ;क्मबमउइमतए श्रंदनंतलए थ्मइतनंतलद्ध  आॅंवले का उपयोग करें। यह बहुत ही उच्च कोटि का स्वास्थ्यवर्धक रसायन है।
45. प्रातःकाल सूर्योदय के समय सविता देवता को प्रणाम कर उत्तम स्वास्थ्य की कामना करें व गायत्री मन्त्र पढ़ें। इससे सूर्य स्नान होता है। नस नाडि़यों के रोग जैसे सर्वाइकल आदि नहीं होते।
46. वस्त्र सदा ढीलें पहने। नाड़े वाले कुर्ते-पजामे सर्वोतम वेश हैं। कसी जीन्स आदि बहुत घातक होती हैं।
47. जब भी मिठाई खाएॅं, कुल्ला अवश्य करें।
48. घर में तुलसी उगाकर रखें इससे सात्विक ऊर्जा में वृद्धि होती है तथा वास्तु दोष दूर होते हैं। समय-समय पर तुलसी का सेवन करते रहें।
49. मोबाईल पर लम्बी बातें न करें। यह दिमाग में टयूमर व अन्य व्याधियाॅं उत्पन्न कर सकता है।
50. देसी गाय के दूध घी का सेवन करें। देसी गौ का सान्निधय भी बहुत लाभप्रद रहता है।
51. दस-पन्द्रह दिन में एक बार घर में यज्ञ अवश्य करें। अथवा प्रतिदिन घी का दीपक जलाएॅं।
52. ध्यान रहे लम्बे समय तक वासना, ईष्र्या, द्वेष, घृणा, भय, क्रोध के विचार मन में न रहें अन्यथा ये आपका स्नायु तन्त्र ;छमतअवने ैलेजमउद्ध विकृत कर सकते हैं। यह बड़ा ही दर्दनाक होता है न व्यक्ति जीने लायक होता है न मरने लायक।
53. धन ईमानदारी से कमाने का प्रयास करें। सदा सन्मार्ग पर चलने का अभ्यास करें। इससे आत्मबल बढ़ता है।
54. सदा सकारात्मक सोच रखे। यदि आपने किसी का बुरा नहीं सोचते तो आपके साथ बुरा कैसे हो सकता है। यदि आपसे गलतियाॅं हुई हैं तो उनका प्रायश्चित करें। इससे उनका दण्ड बहुत कम हो जाता है। जैसे डाकू वाल्मिकी ने लोगों को लूटा तो सन्त हो जाने पर बेसहारों को सहारा देने वाला आश्रम बनाया।
55. रोग का उपचार नहीं कारण खोजिए। रोगों का इलाज औषधालय में नहीं भोजनालय में देखिए।
56. यदि किसी को बार-बार जुकाम होता है तो नाक में रात्रि में सोने से पहले दो बूॅंद शुद्ध सरसों का तेल अथवा गाय का घी डालें। इससे नेत्र ज्योति बढ़ती है। दिमाग तेज होता है व नजला जुकाम आदि विकारों से राहत मिलती है।
57. रात्रि में सोने से पहले पैरों के तलवों पर सरसों के तेल की हल्की मालिश  करने से नस-नाडि़याॅं मजबूत होती है व नींद अच्छी आती है।
58. यदि किसी के हृदय की धड़कन बढ़ती है तो यह हृदय की माॅंसपेशियों की कमजोरी दर्शाता है इसके लिए 10 पत्ते पीपल के लेकर दोनों तरफ से थोड़ा-थोड़ा कैंची से काटकर दो गिलास पानी में उबाल लें। जब पानी एक गिलास बचे तो उसको हल्के नाश्ते के बाद 10-10 मिनट के उपरान्त तीन बार पीएॅं। इससे हृदय की माॅंसपेशियाॅं मजबूत होती हैं व धड़कन में राहत मिलती है। पीपल का पत्ता हृदय की ेींचम का होता है व उत्तम ीमंतज जवदपब माना जाता है। यह प्रयोग 10-15 दिन तक कर सकते हैं।

59. घर में प्रतिदिन घी का दीपक जलाने से नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है व परिवार के सदस्यों का तेज बढ़ता है। जिन लोगों को भूत-प्रेत, टोने-टोटकों का भय हो वो कभी-कभी 24 घण्टें अखण्ड दीप जलाएॅं।