Tuesday, March 30, 2021

गिर की गायों के बारे में कुछ रोचक तथ्य क्या हैं?

A2A - गाय के कई प्रकारों के बीच गिर सबसे सर्वोत्तम प्रकार की नस्ल हैं ! गिर ज़ेबू प्रजाति का पशु हैं (ज़ेबू की विशेषता ये होती हैं की उनके कंधे पर एक मोटा कूबड़ होता है)। विभिन्न अध्ययनों से यह सर्वविदित तथ्य है कि गिर गाय A2 दूध (पचाने में आसान और स्वस्थ) का उत्पादन करती है।

गिर गाय मूल रूप से गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में विशेष रूप से काठियावाड़ के गिर पहाड़ियों और जंगलों का पशु हैं । गीर गाय आमतौर पर गर्म तापमान और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों मैं वास करने वाला पशु हैं । दूध की गुणवत्ता और स्वास्थ्य लाभ इसे घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बहुत ज्यादा प्रचलित बनाते हैं ! गिर गाय के दूध के फायदे और घी के फायदे पूरे विश्व मैं विख्यात हैं ! लोग दूर दूर से इसके घी के लिए भारत मैं आते हैं और ऑनलाइन आर्डर कर के अपने देश मंगवाते हैं !

गिर गाय के दूध के लाभ

  • गिर गाय के दूध में एमिनो एसिड होता है जो आपको जोड़ों के दर्द, अस्थमा, मोटापा, अनिद्रा आदि बीमारियों से लड़ने में मदद करता है।
  • गिर गाय का दूध कोलन कोशिकाओं को उन रसायनों से बचाता है जिनसे कैंसर जैसी बीमारियाँ होती हैं
  • मजबूत प्रतिरक्षा प्रणाली विकसित करने में आपकी सहायता करें
  • गिर गाय का दूध एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर होता है
  • गिर गाय का दूध कैल्शियम का समृद्ध स्रोत है और आपको मजबूत हड्डियां बनाने में मदद करता है
  • विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि यह रोगियों को गठिया की समस्या से भी उबरने में मदद करता है
  • यह शरीर में सीरम कोलेस्ट्रॉल के निर्माण को रोकता है
  • यह अम्लता की समस्या को कम करता है और पाचन शक्ति को बढ़ाता है
  • गिर गाय का दूध किडनी के लिए अच्छा माना जाता है
  • दूध में मौजूद पोटैशियम दिल की सही कार्यप्रणाली के लिए बेहतर होता है

भारत मैं गिर गाय का पालन देश के कई हिस्सों मैं होता हैं !

बढ़ती उम्र के साथ मर्दाना ताकत

 

बढ़ती उम्र के साथ मर्दाना ताकत कमजोर क्यों होती है?

महाभारत के युद्ध में पांडवों की उम्र 70 के लगभग थी. भीष्म पितामह की उम्र 150 वर्ष थी.द्रोणाचार्य, कृपाचार्य आदि सभी बड़े थे. और ये युद्ध सभी के जीवन का सबसे भीषण युद्ध था.

मुझे लगता है बढ़ती कुचेष्टाओं से ही सब हानी होती हैं.

क्या मधुमेह रोगियों में रक्तचाप में वृद्धि होती है?

 शुरुआत में मधुमेह की वजह से ज्यादा दिक्कतें नहीं होतीं. दिन भर में एक या दो टेबलेट लेकर और थोडा बहुत परहेज करके लोगों का शुगर लेवल सामान्य के आस-पास रहता है. हाँ ये जरुर है कि जबान पर थोड़ी लगाम लगानी पड़ती है और बाथरूम बार-बार जाने से कमजोरी शुरू हो जाती है. हालांकि कुछ लोग इन्सुलिन लेने के बाद भी खुद को स्वस्थ ही मानते हैं.

कुल मिलाकर अधिकाँश लोगों की गाड़ी ठीक ठाक ही चलती रहती है. दिक्कत शुरू होती है 3 या 4 सालों के बाद.

समय के साथ, मधुमेह शरीर में छोटी रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचाता है, जिससे रक्त वाहिकाओं की दीवारें कठोर हो जाती हैं। क्योंकि उन पर चाशनी की तरह शुगर इकठ्ठा होने लगती है इसे आप मीठा या फैट या कोलेस्ट्रॉल कुछ भी कह सकते हैं. इससे इन नलियों पर दबाव बढ़ता है और दिल को ज्यादा दबाव लगा कर उन नलियों में रक्त भेजना पड़ता है. जिससे उच्च रक्तचाप होता है”. दिक्कत यहीं ख़त्म नहीं होती और इन सारी चीज़ों का लोगों के पाचन पर बहुत गहरा असर पड़ता है. उसके बाद नंबर आता है किडनी का. उसमें इन्फेक्शन शुरू होने के बाद लिवर में दिक्कत होने लगती है. उच्च रक्तचाप और मधुमेह के संयोजन से आपको दिल का दौरा या स्ट्रोक होने का खतरा बढ़ जाता है.

कुल मिलाकर एक छोटी सी टेबलेट से नियंत्रण में रहने वाला मधुमेह एक दिन कई सारे अंगों को निष्क्रिय करने का कारण बनता है. और ये सारी दिक्कतें होने से पहले इंसान को पता भी नहीं चलता. पता तब चलता है जब बहुत देर हो चुकी होती है. इसलिए मधुमेह की बीमारी को भूल कर भी हलके में न लें. हमने बहुत से लोगों को इससे परेशान और असहाय होते हुए देखा है.

Sunday, March 28, 2021

कलयुग के ऊपर दृष्टि

 पूरा एक बार जरूर पढ़ें

एक हसीन लडकी

राजा के दरबार में

डांस कर रही थी...

( राजा बहुत बदसुरत था )

लडकी ने राजा से एक

सवाल की इजाजत मांगी

.

राजा ने कहा ,

" चलो पुछो ."

.

लडकी ने कहा ,

"जब हुस्न बंट रहा था

तब आप कहां थे..??

.

राजा ने गुस्सा नही किया

बल्कि

मुस्कुराते हुवे कहा

~ जब तुम हुस्न की

लाइन् में खडी

हुस्न ले रही थी , ~

.

~ तो में

किस्मत की लाइन में खडा

किस्मत ले रहा था

.

और आज

तुझ जैसीे हुस्न वालीयां

मेरी गुलाम की तरह

नाच रही है...........

.

इसलीय शायर खुब कहते है,

.

" हुस्न ना मांग

नसीब मांग ए दोस्त ,

हुस्न वाले तो

अक्सर नसीब वालों के

गुलाम हुआ करते है...

" जो भाग्य में है ,

वह भाग कर आएगा,

जो नहीं है ,

वह आकर भी

भाग जाएगा....!!!!!."

यहाँ सब कुछ बिकता है ,

दोस्तों रहना जरा संभाल के,

बेचने वाले हवा भी बेच देते है,

गुब्बारों में डाल के,

सच बिकता है ,

झूट बिकता है,

बिकती है हर कहानी,

तीनों लोक में फेला है ,

फिर भी बिकता है

बोतल में पानी ,

कभी फूलों की तरह मत जीना,

जिस दिन खिलोगे ,

टूट कर बिखर्र जाओगे ,

जीना है तो

पत्थर की तरह जियो ;

जिस दिन तराशे गए ,

" भगवान " बन जाओगे...!!!!

बंद कर दिया सांपों को सपेरे ने यह कहकर,

अब इंसान ही इंसान को डसने के काम आएगा।

आत्महत्या कर ली गिरगिट ने सुसाइड नोट छोडकर,

अब इंसान से ज्यादा मैं रंग नहीं बदल सकता!

गिद्ध भी कहीं चले गए, लगता है उन्होंने देख लिया,

कि इंसान हमसे अच्छा नोंचता है!

कुत्ते कोमा में चले गए, ये देखकर,

क्या मस्त तलवे चाटता है इंसान!

कोई टोपी, तो कोई अपनी पगड़ी बेच देता है,

मिले अगर भाव अच्छा, जज भी कुर्सी बेच देता है!

जला दी जाती है ससुराल में अक्सर वही बेटी,

जिसकी खातिर बाप किडनी बेच देता है!

ये कलयुग है, कोई भी चीज़ नामुमकिन नहीं इसमें,

कली, फल, फूल, पेड़, पौधे सब माली बेच देता है!

धन से बेशक गरीब रहो, पर दिल से रहना धनवान,

अक्सर झोपड़ी पे लिखा होता है: "सुस्वागतम"

और महल वाले लिखते हैं:

"कुत्तों सॆ सावधान"

Thanks by Mayank Singh

Tuesday, March 16, 2021

over trust may be harmful

 


चर्म रोगों को जड़ से खत्म करने के लिए उपाय

आपने भुट्टे तो बहुत देखे व खाए होंगे, कवर से ढंके हुए भुट्टे भी बहुतायद में देखे होंगे जिन्हें दुकानदार आपके सामने छिलकर व कवर हटाकर तराजू पर तौलते दिखते हैं, उन्ही कवर्ड भुट्टों के शीर्ष पर मुलायम जटाएं भी होती हैं । बस वही मुलायम बालनुमा जटाएं आपके चर्मरोगों की समस्या दूर कर सकती हैं ।

आप दो गिलास पानी में 10ग्राम के करीब ये रेशेनुमा बाल (जटा) डालकर उस पानी को इतना उबाल लें कि पानी एक गिलास रह जाए फिर उसे छानकर पी लें ।

सुबह 9 के पहले व शाम भोजन के 1 / 1.30 घंटे पहले दिन में दो बार ये प्रयोग करके देखें । यथासम्भव कैसा भी चर्मरोग इससे दूर होने लगेगा । दूसरे-चौथे दिन से लाभ आप स्वयं महसूस कर सकेंगे । 


निजी अंग में काफी दिनों से खुजली है। दवा खाने पर ठीक हो जाती है, लेकिन दोबारा खुजली हो जाती है। इसे हमेशा के लिए कैसे ठीक करें?

इसका मै अपका सरल और सटीक विकल्प बता रहा हूं, क्योंकि ये मेरा खुद का अनुभव है जो मेंने खुद आजमाया है।

जी है Tigboderm ये खाज खुजली के लिए One of the Best product हैं

आप इसे किसी भी मेडिकल स्टोर से ले सकते है

इस product की सबसे अच्छी खास बात ये है कि इससे स्किन के किल मुंहासे या आंखों के नीचे डार्क circle भी पूरी तरह से नस्ट कर देता है,

आप इसे रात को सोने से पहले यूज कर करना है ।

नोट:- Tigboderm कि थोड़ी सी मात्रा ले ओर हल्का सा मसाज करे उस जगह पर जहर पर जहा आपको खुजली 👹👹 हो रही है या दाद है या कुछ और

With Thanks by Amit Thakur

यह जीवन अनमोल

 मानव जीवन बड़ा ही अनमोल है, अमूल्य है, अनुपम है, अद्वितीय है, अतुलनीय है। मनुष्य शरीर देवदुर्लभ है। इसे पाने को देवता भी तरसते हैं। मानव जीवन की गरिमा और महिमा सर्वसिद्ध है, सर्वविदित है। विभिन्न धर्मग्रंथों में भी मानव जीवन की महान महिमा का वर्णन है, पर यदि मानव जीवन सचमुच महान है, अमूल्य है, अनुपम है तो मानव जीवन पाकर भी लोग क्यों हताश हैं, निराश हैं, उदास हैं, दुःखी हैं?


ऐसा अनुपम जीवन पाकर भी लोग क्यों आनंदित, उल्लसित व आहादित नहीं हैं ? इस प्रश्न का सही समाधान पाए बिना हम निश्चित ही चिंतित, विचलित और पीड़ित होते हैं। इन प्रश्नों का सही समाधान पाना भी उतना ही अभीष्ट है, आवश्यक है, अनिवार्य है। अस्तु इन प्रश्नों के सही समाधान को पाने के लिए हम एक बहुत ही प्रेरक व मधुर कहानी में प्रवेश करते हैं।

एक गृहस्थ के घर में बहुत दिनों से एक वीणा रखी हुई थी। यों ही बेजान, बेकार व बिना किसी उपयोग के शायद उस घर के लोग यह भूल गए थे कि उस वीणा का उपयोग कैसे करना है। हाँ! पीढ़ियों पहले उस घर में अवश्य ही कोई ऐसे रहे होंगे, जिन्हें वीणा बजाना आता रहा होगा और इसलिए शौकिया तौर पर उन्होंने उस वीणा को अपने घर में रखा होगा, पर अब जो लोग उस घर में रह रहे थे उनके लिए वह वीणा महज एक बेकार की वस्तु थी, जिसका कोई उपयोग न था।

अब तो कभी कोई बच्चा भूल से भी उस वीणा के तार को हैड़ देता तो घर के लोग नाराज हो जाते। कभी हवा के झोंकों से भी यदि वीणा के तार बज उठते तो भी लोग नाराज हो जाते। कभी कोई बिल्ली छलाँग लगाकर उस वीणा को गिरा देती तो आधी रात में उसके तार झनझना जाते, उससे घर के लोगों को नींद टूट जाती और लोग नाराज हो जाते। इस प्रकार वह वीणा एक उपद्रव का कारण हो गई, शोर-शराबे का कारण हो गई, अशांति उत्पन्न करने का कारण हो गई। अंततः एक दिन घर के लोगों ने तय किया कि इस वीणा को फेंक दिया जाए; क्योंकि यह जगह घेरती है, शोर-शराबा करती है, अशांति फैलाती है और शांति में बाधा डालती है। उस घर के लोग उस वीणा को घर के बाहर कूड़े में फेंक आए।

घर के लोग उस वीणा को फेंककर अभी घर भी नहीं लौटे थे कि उन्हें पीछे से कुछ मधुर स्वर सुनाई पड़े। उन्होंने पीछे मुड़कर देखा तो पाया कि उनके द्वारा कूड़े में फेंकी गई उस वीणा को उस मार्ग से जा रहे एक फकीर ने उठा लिया था। उस फकीर ने ही उस वीणा के तारों को छेड़ा। वे लोग जो उस वीणा को बेकार समझकर कूड़े में फेंक चुके थे, उस वीणा के स्वर सुनकर ठिठक गए, ठहर गए और कुतूहलवश वापस लौट गए। उस रास्ते से होकर जो लोग भी गुजर रहे थे, वे सभी वीणा के स्वर को सुनकर ठिठक गए, ठहर गए। घरों में जो लोग थे, वे भी बाहर आ गए वहाँ भीड़ लग गई। वह फकीर मंत्रमुग्ध हो उस वीणा को बजा रहा था।

जब उस घर के लोगों को वीणा का स्वर और संगीत मालूम पड़ा तो जैसे ही उस फकीर ने बजाना बंद किया, तभी उन सभी ने उस फकीर से कहा-"यह वीणा हमें लौटा दो। यह वीणा हमारी है।" उस फकीर ने कहा "वीणा उसकी है; क्योंकि वह उसे बजाना जानता है।" अब वे आपस में लड़ने-झगड़ने लगे। उन्होंने फकीर से फिर कहा-" हमें वीणा वापस चाहिए।" उस फकीर ने कहा-"इसे लेकर तुम क्या करोगे? यह बेकार पड़ी रहेगी, तुम्हारे घर में जगह घेरेगी। फिर कोई बच्चा उसके तारों को छेड़ेगा और घर की शांति भंग होगी। वीणा घर की शांति भंग भी कर सकती है, यदि इसे सही से बजाना न आता हो। वीणा घर की शांति को गहरा भी कर सकती है, यदि इसे बजाना आता हो। सब कुछ बजाने वाले पर निर्भर करता है।"

आखिरकार बहुत आग्रह करने पर वह फकीर उस व्यक्ति को वीणा वापस करने को तैयार हो गया, पर वह


व्यक्ति बोला- "मुझे सिर्फ वीणा नहीं, बल्कि आपसे उसे बजाने के नियम भी सीखने हैं।" उस व्यक्ति के आग्रह पर अंततः वह फकीर उसके घर आकर उसे वीणा बजाना सिखाने लगा। कुछ दिनों के अभ्यास से ही वह व्यक्ति वीणा बजाना सीख गया।

वह फकीर वहाँ से चला गया, पर अब तो वह व्यक्ति नित्य वीणा बजाया करता। धीरे-धीरे उसका अभ्यास गहरे से-गहरा होता गया। वीणा के तार छेड़ते ही उसके अंदर एक आनंददायी हलचल शुरू हो जाती। उसके हृदय के तार भी झंकृत होने लगे। उसका मन एकाग्र होने लगा और अब तो वीणा की स्वर लहरियों के साथ ही उसकी आत्मा में भी आनंद की लहरें उठने लगों और उसे असीम आत्मिक आनंद की अनुभूति होने लगी। जिस वीणा के स्वर से कभी उस घर की शांति भंग हो जाया करती थी, उस वीणा के स्वर सुनते ही अब उस घर के लोगों के मन में भी असीम शांति उतर आती थी। अब तो जिस दिन वीणा के स्वर सुनाई नहीं पड़ते, उस दिन घर के सभी लोग परेशान हो जाया करते, व्याकुल हो जाया करते।

इस कहानी की प्रेरणा यही है कि यदि जीवन, जीवन की तरह जिया जाए तो उसमें आनंद-ही-आनंद है, शांति हो-शांति है, पर यदि जीवन जीने का तरीका सही न हो तो जीवन में दुःख-ही-दुःख है, अशांति-ही-अशांति है। यह देवदुर्लभ मनुष्य जीवन भी एक तरह की वीणा है, पर फिर भी हम उदास हैं, हताश हैं, निराश हैं; क्योंकि हमें इसे बजाना नहीं आता। हमें जीवन जीना नहीं आता, इसलिए तो इतना अनमोल मानुष तन पाकर भी हमारे जीवन में इतनी उदासी है, इतना दुःख है, इतना क्लेश है, इतनी पीड़ा है। इसीलिए जगत् में इतना अँधेरा है, इतनी हिंसा है, इतनी घृणा है, इतनी नफरत है, इतना वैमनस्य है, इतनी शत्रुता है, इतनी कटुता है। इसलिए जगत् में इतना युद्ध है। जिस जीवन से संगीत की मधुर व आनंददायी लहरें उठ सकती थीं, उस जीवन से काम-वासना का धुआँ उठ रहा है। जिस जीवन से प्रेम की ऊँची ऊंची लहरें उठ सकती थीं, उस जोवन से घृणा, नफरत, शत्रुता व कटुता की चिनगारियाँ निकल रही हैं। जिस जीवन में प्रेम, पवित्रता व करुणा का अथाह सागर उमड़ सकता था, वह जीवन आज सूखा ही पड़ा है।

जिस मनुष्य शरीर में रहकर परम शांति की अनुभूति हो सकती थी, उस जीवन में संस्कारों का व संसार का

शोर-शराबा अपने चरम पर है, शीर्ष पर है, उफान पर है और इसने हमारे सुख-चैन को ही छीन लिया है तो निश्चित ही हमसे भूल यह हो रही है कि हम जीवनरूपी वीणा को बजाना ही नहीं जानते। हमारा जोर वीणा को बजाने के नियम जानने व समझने पर नहीं; हमारा जोर वीणा को बजाने पर नहीं, उसे मात्र सजाने संवारने पर है हमारा जोर देहभाव से उठकर आत्मभाव में स्थिर होने पर नहीं, बल्कि हमारा जोर तो इंद्रियों को दासता में डूबे रहने पर है, उनसे बाहर निकल आने पर नहीं। हमारा जोर मन की लहरों को मारने मिटाने पर नहीं, बल्कि उन्हें आश्रय और प्रश्रय देने पर है। हमारा जोर चित्त को संस्कारों से मुक्त करने पर नहीं, वरन उसे नित नए कर्म-संस्कारों से भरने पर है। हमारा जोर ध्यान की गहन गहराई में उतरकर बुद्धत्व की प्राप्ति पर नहीं, वरन नित्य भौतिकता की चकाचौंध में और भी अधिक गहरे में डूबते जाने पर है। हमारा जोर आत्मज्ञान व ब्रह्मज्ञान पाने पर नहीं, वरन अज्ञानता के प्रवाह में बहते जाने पर है।

जो जप, तप, योग, ध्यान आदि के माध्यम से इस अज्ञानता के प्रवाह से बाहर निकल आए, देहभाव से निकलकर आत्मभाव में स्थिर हो गए-वे लोग इसी मानव शरीर में रहते हुए बुद्ध बन गए, विवेकानंद बन गए. आचार्य शंकर बन गए अस्तु यह अवसर, यह मार्ग हमारे लिए भी सुलभ है। अगर चाहें तो हम भी उस परम स्थिति को, आनंद की, परमानंद की, ब्रह्मानंद की स्थिति को प्राप्त हो सकते हैं युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी के शब्दों में कहें तो यही जीवन देवता की साधना है, आराधना है। इंद्रिय संयम, विचार संयम, समय संयम व अर्थ संयम की साधना से हम अपने स्वयं के जीवन को ही देवता बना सकते हैं और मनचाहा वरदान प्राप्त कर सकते हैं।

यदि हम जीवन की वीणा को बजाना सचमुच सीख गए तो जिस जीवन से अब तक वासना की दुर्गंध आती रही, उसी जीवन से ही समाधि की सुगंध आने लग सकती है। उस जीवन में ही समाधि के फूल खिल सकते हैं और पूरा जीवन उसकी ब्राह्मी खुशबू से महक सकता है। जिस जीवन में अब तक दुःख, उदासी, निराशा और अशांति का साम्राज्य रहा है, उस जीवन में ही ध्यान की गहन गहराई में उतर आने पर ऐसी परम शांति प्राप्त हो सकेगी, जो कभी भी खंडित न हो सकेगी। जिसे चलते-फिरते, सोते-जागते, उठते-बैठते, खाते-पीते, हर समय में, हर स्थिति में महसूस किया जा सकेगा। हमारे जीवन में भी सर्वदा वही परम शांति हो सकेगी, जैसी बुद्धपुरुषों के जीवन में होती रही है। हमारे भीतर में भी वही परम आनंद उतर सकेगा, जो कि बुद्धपुरुषों के जीवन में उतरा करता है।

जिस मनुष्य शरीर को पाकर हम इतनी दुर्लभ चीजें पा सकते हैं; उस शरीर को पाकर भी हमारे जीवन का दुःखों से भरा होना हमारे लिए कितना लज्जाजनक है, कितना अफसोसजनक है, कितना अशोभनीय है। मनुष्य शरीर तो मोक्ष का साधन है। इस साधन को पाकर भी यदि हम साधना नहीं कर सके, अपनी आत्मा की मुक्ति के लिए पुरुषार्थ नहीं कर सके तो शास्त्रीय दृष्टि से, आध्यात्मिक दृष्टि से यह हमारे लिए न सिर्फ निंदनीय है बल्कि आत्मघाती भी है। तभी तो आचार्य शंकर ने विवेक

चूड़ामणि में कहा है

लब्ध्वा कथञ्चिन्नरजन्म दुर्लभ
तत्रापि पुंस्त्वं श्रुति करदर्शनम् ।

अर्थात-किसी प्रकार इस दुर्लभ मनुष्य जन्म को पाकर और उसमें भी, जिसमें श्रुति के सिद्धांत का ज्ञान होता है, जो मूढबुद्धि अपनी आत्मा की मुक्ति के लिए प्रयत्न नहीं करता, वह निश्चय ही आत्मघाती है। वह असत् में आस्था रखने के कारण अपने को नष्ट करता है। दुर्लभ मनुष्य देह को पाकर जो स्वार्थ-साधन में प्रमाद करता है, उससे अधिक मूढ़ और कौन होगा?

वहीं भगवान श्रीराम रामचरितमानस में कहते हैं 

एहि तन कर फल बिषय न भाई। स्वर्गउ स्वल्प अंत दुखदाई॥ 

नर तनु पाइ बिषय मन देहीं। पलटि सुधा ते सठ बिष लेहीं॥ 

नर तनु भव बारिधि कहुँ बेरो। सन्मुख मरुत अनुग्रह मेरो॥ 

करनधार सदगुर दृढ़ नावा। दुर्लभ साज सुलभ करि पावा॥

जो न तरै भव सागर नर समाज अस पाइ। सो कृत निंदक मंदमति आत्माहन गति जाइ॥ 

अर्थात-भगवान श्रीराम कह रहे हैं कि हे भाई! इस शरीर के प्राप्त होने का फल विषय-भोग नहीं है। इस जगत् के भोगों की तो बात ही क्या, स्वर्ग का भोग भी बहुत थोड़ा है और अंत में दुःख देने वाला है। अतः जो लोग मनुष्य शरीर पाकर विषयों में मन लगा लेते हैं, वे मूर्ख अमृत को बदलकर विष ले लेते हैं। यह मनुष्य शरीर तो भवसागर से तारने के लिए बेड़ा (जहाज) है। मेरी कृपा ही अनुकूल वायु है। सद्गुरु इस मजबूत जहाज के कर्णधार (खेने वाले) हैं। इस प्रकार दुर्लभ साधन सुलभ होकर उसे प्राप्त हो गए हैं। जो मनुष्य ऐसे साधन पाकर भी भवसागर से न तरे, वह कृतघ्न और मंदबुद्धि है और आत्महत्या करने वाले की गति को प्राप्त होता है।

अस्तु यदि किसी ब्रह्मज्ञानी गुरु की शरण में रहकर अपने जीवन की वीणा को हम बजाना सीख सकें तो यह हमारे जीवन का अहोभाग्य है, सौभाग्य है। फिर हमारे जीवन में दुःख नहीं, वरन आनंद-ही-आनंद है। फिर हमारे जीवन में कोई बंधन नहीं, वरन मुक्ति-ही- मुक्ति है।

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