Sunday, May 16, 2021

आमों को खरीदते समय आप कैसे पता लगाते हैं कि वे प्राकृतिक तरीके से पके हुए हैं या उन्हें किसी केमिकल का इस्तेमाल कर के पकाया गया है?

 


प्राकृतिक तरीके से पके हुए आमों की पहचान इस प्रकार करें।

1. प्राकृतिक तरीके से पके हुए आमों को सुंघने पर मीठी-मीठी खुशबू आती है।

2. यह आम पूरी तरह पीले नहीं होते बल्कि इनका रंग थोड़ा हरा, पीला और थोड़ा सुनहरा होता है।

3. यह आम पानी में डुबाने से एकदम तल में जाकर बैठ जाते हैं।

4. प्राकृतिक रूप से पके हुए आमों में हरे-पीले रंग के कोई पैचेज नहीं दिखाई देते।

केमिकल से पके हुए आमों की पहचान इस प्रकार हैं

1. केमिकल से पकाए गए आमों का रंग एकदम पीला और चमकीला दिखाई देता है।

2. यह आम जल्दी काले पड़ जाते हैं।

3. यह आम पानी में डुबाने से सतह पर ही रह जाते हैं।

4. यह आम अंदर से काटने पर कहीं से पीला और कहीं से सफेद निकलता।

5. केमिकल से पके हुए आमों का छिलका ज्यादा पका हुआ होगा लेकिन अंदर से इसमें कच्चापन होता है।

इसलिए दोस्तों आमों को खरीदते समय इन बातों का ध्यान रखें और अच्छी सेहत पाएं।

Thanks by Ashok Sachdeva

Saturday, May 1, 2021

Art of Liviving

 

जीवन के बारे में एक क्रूर सच्चाई क्या है जिसे कहा जाना चाहिए?

आपको इसका उत्तर जानने के लिए ये कहानी पढ़नी पड़ेगी

!! रिक्शे वाला !!

एक बार एक अमीर आदमी कहीं जा रहा होता है तो उसकी कार ख़राब हो जाती है। उसका कहीं पहुँचना बहुत जरुरी होता है। उसको दूर एक पेड़ के नीचे एक रिक्शा दिखाई देता है। वो उस रिक्शा वाले पास जाता है। वहां जाकर देखता है कि रिक्शा वाले ने अपने पैर हैंडल के ऊपर रखे होते हैं। पीठ उसकी अपनी सीट पर होती है और सिर जहां सवारी बैठती है उस सीट पर होती है।

और वो मज़े से लेट कर गाना गुन-गुना रहा होता है। वो अमीर व्यक्ति रिक्शा वाले को ऐसे बैठे हुए देख कर बहुत हैरान होता है कि एक व्यक्ति ऐसे बेआराम जगह में कैसे रह सकता है, कैसे खुश रह सकता है। कैसे गुन-गुना सकता है।

वो उसको चलने के लिए बोलता है। रिक्शा वाला झट से उठता है और उसे 20 रूपए देने के लिए बोलता है।

रास्ते में वो रिक्शा वाला वही गाना गुन-गुनाते हुए मज़े से रिक्शा खींचता है। वो अमीर व्यक्ति एक बार फिर हैरान कि एक व्यक्ति 20 रूपए लेकर इतना खुश कैसे हो सकता है। इतने मज़े से कैसे गुन-गुना सकता है। वो थोड़ा ईर्ष्यापूर्ण हो जाता है और रिक्शा वाले को समझने के लिए उसको अपने बंगले में रात को खाने के लिए बुला लेता है। रिक्शा वाला उसके बुलावे को स्वीकार कर लेता है।

वो अपने हर नौकर को बोल देता है कि इस रिक्शा वाले को सबसे अच्छे खाने की सुविधा दी जाए। अलग अलग तरह के खाने की सेवा हो जाती है। सूप्स, आइस क्रीम, गुलाब जामुन सब्जियां यानि हर चीज वहाँ मौजूद थी।

वो रिक्शा वाला खाना शुरू कर देता है, कोई प्रतिक्रिया, कोई घबराहट बयान नहीं करता। बस वही गाना गुन-गुनाते हुए मजे से वो खाना खाता है। सभी लोगों को ऐसे लगता है जैसे रिक्शा वाला ऐसा खाना पहली बार नहीं खा रहा है। पहले भी कई बार खा चुका है। वो अमीर आदमी एक बार फिर हैरान एक बार फिर ईर्ष्यापूर्ण कि कोई आम आदमी इतने ज्यादा तरह के व्यंजन देख के भी कोई हैरानी वाली प्रतिक्रिया क्यों नहीं देता और वैसे कैसे गुन-गुना रहा है जैसे रिक्शे में गुन-गुना रहा था।

यह सब कुछ देखकर अमीर आदमी की ईर्ष्या और बढती है। अब वह रिक्शे वाले को अपने बंगले में कुछ दिन रुकने के लिए बोलता है। रिक्शा वाला हाँ कर देता है।

उसको बहुत ज्यादा इज्जत दी जाती है। कोई उसको जूते पहना रहा होता है, तो कोई कोट। एक बेल बजाने से तीन-तीन नौकर सामने आ जाते हैं। एक बड़ी साइज़ की टेलीविज़न स्क्रीन पर उसको प्रोग्राम दिखाए जाते हैं। और एयर-कंडीशन कमरे में सोने के लिए बोला जाता है।

अमीर आदमी नोट करता है कि वो रिक्शा वाला इतना कुछ देख कर भी कुछ प्रतिक्रिया नहीं दे रहा। वो वैसे ही साधारण चल रहा है। जैसे वो रिक्शा में था वैसे ही है। वैसे ही गाना गुन-गुना रहा है जैसे वो रिक्शा में गुन-गुना रहा था।

अमीर आदमी के ईर्ष्या बढ़ती चली जाती है और वह सोचता है कि अब तो हद ही हो गई। इसको तो कोई हैरानी नहीं हो रही, इसको कोई फर्क ही नहीं पढ़ रहा। ये वैसे ही खुश है, कोई प्रतिक्रिया ही नहीं दे रहा।

अब अमीर आदमी पूछता है: आप खुश हैं ना?

रिक्शा वाला: जी साहेब बिलकुल खुश हूँ।

अमीर आदमी फिर पूछता है: आप आराम में हैं ना ?

रिक्शा वाला कहता है: जी बिलकुल आरामदायक हूँ।

अब अमीर आदमी तय करता है कि इसको उसी रिक्शा पर वापस छोड़ दिया जाये। वहाँ जाकर ही इसको इन बेहतरीन चीजों का एहसास होगा। क्योंकि वहाँ जाकर ये इन सब बेहतरीन चीजों को याद करेगा।

अमीर आदमी अपने सेक्रेटरी को बोलता है कि इसको कह दो कि अपने दिखावे के लिए कह दिया कि आप खुश हो, आप आरामदायक हो। लेकिन साहब समझ गये हैं कि आप खुश नहीं हो आराम में नहीं हो। इसलिए आपको उसी रिक्शा के पास छोड़ दिया जाएगा।”

सेक्रेटरी के ऐसा कहने पर रिक्शा वाला कहता है: ठीक है सर, जैसे आप चाहे, जब आप चाहे।

उसे वापस उसी जगह पर छोड़ दिया जाता है जहाँ पर उसका रिक्शा था। अब वो अमीर आदमी अपने गाड़ी के काले शीशे ऊँचे करके उसे देखता है।

रिक्शे वाले ने अपनी सीट उठाई बैग में से काला सा, गन्दा सा, मेला सा कपड़ा निकाला, रिक्शा को साफ़ किया, मज़े में बैठ गया और वही गाना गुन-गुनाने लगा।

अमीर आदमी अपने सेक्रेटरी से पूछता है: “चक्कर क्या है। इसको कोई फर्क ही नहीं पड रहा इतनी आरामदायक वाली, इतनी बेहतरीन जिंदगी को ठुकरा के वापस इस कठिन जिंदगी में आना और फिर वैसे ही खुश होना, वैसे ही गुन-गुनाना।”

फिर वो सेक्रेटरी उस अमीर आदमी को कहता है: “सर यह एक कामयाब इन्सान की पहचान है। एक कामयाब इन्सान वर्तमान में जीता है, उसको मनोरंजन करता है और बढ़िया जिंदगी की उम्मीद में अपना वर्तमान खराब नहीं करता।

अगर उससे भी बढ़िया जिंदगी मिल गई तो उसे भी वेलकम करता है उसको भी मनोरंजन (enjoy) करता है उसे भी भोगता है और उस वर्तमान को भी ख़राब नहीं करता। और अगर जिंदगी में दुबारा कोई बुरा दिन देखना पड़े तो वो भी उस वर्तमान को उतने ही ख़ुशी से, उतने ही आनंद से, उतने ही मज़े से भोगता है मनोरंजन करता है और उसी में आनंद लेता है।”

जीवन की क्रूर सच्चाई ये ही है की कामयाबी आपके ख़ुशी में छुपी है, और अच्छे दिनों की उम्मीद में अपने वर्तमान को ख़राब कर देते है । और न ही कम अच्छे दिनों में ज्यादा अच्छे दिनों को याद करके अपने वर्तमान को ख़राब करना है।

*सदैव प्रसन्न रहिये।*

*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*

With Thanks By Kautilya Tripathi (MHRD)