Tuesday, October 31, 2023

आज की कहानी: सबसे-बड़ा-मुर्ख

एक बहुत धनी व्यापारी था। उसने बहुत धन संपत्ति इकट्ठा कर रखी थी। उसका एक नौकर था संभु। जो अपने वेतन का एक बड़ा हिस्सा गरीबों की मदद में खर्च कर देता था। व्यापारी रोज उसे धन बचाने की शिक्षा देता। लेकिन संभु पर कोई असर नहीं होता था।
इससे तंग आकर एक दिन व्यापारी ने संभु को एक डंडा दिया और कहा कि जब तुझे अपने से भी बड़ा कोई मूर्ख मिले तो इसे उसको दे देना। इसके बाद व्यापारी अक्सर उससे पूछता की कोई तुझसे बड़ा मूर्ख मिला। संभु विनम्रता से इनकार कर देता।
एक दिन व्यापारी बीमार हो गया। रोग इतना बढ़ा कि वह मरणासन्न हो गया।
अंतिम समय उसने संभु को अपने पास बुलाया और कहा कि अब मैं इस संसार को छोड़कर जाने वाला हूँ। संभु ने कहा, “मालिक मुझे भी अपने साथ ले चलिए।” व्यापारी ने प्यार से डांटते हुए कहा, “वहां कोई किसी के साथ नहीं जाता।”
संभु ने फिर कहा, "फिर तो आप धन-दौलत, सुख- सुविधा के सामान जरूर ले जाइए और आराम से वहां रहिएगा।” व्यापारी ने कहा, "पगले! वहां कुछ भी लेकर नहीं जाया जा सकता। सबको अकेले और खाली हाथ ही जाना पड़ता है।”
इस पर संभु बोला, “मालिक! तब तो यह डंडा आप ही रखिये। जब कुछ लेकर जाया नहीं जा सकता। तो आपने बेकार ही पूरा जीवन धन दौलत और सुख सुविधाओं को एकत्र करने में नष्ट कर दिया। न तो दान पुण्य किया, न ही भगवान का भजन। इस डंडे के असली हकदार तो आप ही हो।”
मोरल ऑफ द स्टोरी
अधिक धन कमाए पर साथ ही साथ दान-धर्म का भी पालन करे। क्योंकि अंत समय में मनुष्य के साथ कुछ नहीं जाता..!! बस अच्छे कर्म ही जाते है।

Law of Karma

 विश्वयुद्ध के समय जापानी सेना द्वारा बंदी बनाई गई औरतों के साथ क्या किया जाता था ?
विश्वयुद्ध में जापानी सेना द्वारा बंदी बनाई गई महिलाओं के साथ जानवरों से भी बदतर बर्ताव किया जाता था।जापानी सेना किसी शहर पर कब्ज़ा जमाने के बाद वहाँ की औरतों के साथ बलात्कार करते और उन्हें तड़पा तड़पा के मार डालते थे।
जापानियों ने 10 साल की बच्चियों तक को नहीं छोड़ा और एक एक लड़कियों से समूह में बारी बारी से दुष्कर्म किया जाता था जब तक वे बेसुध या मार न जाए।
कई महिलाओं को पकड़ के वे तवायफ़ खानों में डाल देते थे जहाँ वे युद्ध लड़ रहे जापानी सैनिकों की रखैल बन कर रहती थीं और विरोध करने पर मार दी जाती थीं।
इन्होंने गर्भवती महिलाओं तक को नहीं छोड़ा। जापानी इम्पीरियल आर्मी दुनिया की सबसे बदतर और नीच आर्मी थीं। ये महिलाओं को बंदी बनाकर उनपर तरह तरह के खतरनाक एक्सपेरिमेंट करते थे जैसे-
महिलाओं को रेडियोएक्टिव पदार्थ देना और उन्हें तड़पाना
महिलाओं में एचआईवी के वायरस जबरदस्ती डाल देना।
बिना बेहोश किये शरीर की चीर फाड़ करना और एक एक कर अंगों को शरीर से अलग कर देना।
इनकी बर्बरता की कहानी जाननी हो तो विकिपीडिया से
द नानकिंग रेप बाई जापानी आर्मी
यूनिट731 एक्सपेरिमेंट बाई जापानी आर्मी
कम्फर्ट वीमेन बाई जापानी आर्मी
इन तीन के बारे में पड़ने से ही आपको पता लग जायेगा कि शालीन और शांत दिखने वाले जापान का सैन्य इतिहास कितना बर्बर रहा हैं।

Surrender to God

 जंगल में एक गर्भवती हिरनी बच्चे को जन्म देने को थी। वो एकांत जगह की तलाश में घुम रही थी, कि उसे नदी किनारे ऊँची और घनी घास दिखी। उसे वो उपयुक्त स्थान लगा शिशु को जन्म देने के लिये।
वहां पहुँचते ही उसे प्रसव पीडा शुरू हो गयी।
उसी समय आसमान में घनघोर बादल वर्षा को आतुर हो उठे और बिजली कडकने लगी।
उसने दाये देखा, तो एक शिकारी तीर का निशाना, उस की तरफ साध रहा था। घबराकर वह दाहिने मुडी, तो वहां एक भूखा शेर, झपटने को तैयार बैठा था। सामने सूखी घास आग पकड चुकी थी और पीछे मुडी, तो नदी में जल बहुत था।
मादा हिरनी क्या करती ? वह प्रसव पीडा से व्याकुल थी। अब क्या होगा ? क्या हिरनी जीवित बचेगी ? क्या वो अपने शावक को जन्म दे पायेगी ? क्या शावक जीवित रहेगा ?
क्या जंगल की आग सब कुछ जला देगी ? क्या मादा हिरनी शिकारी के तीर से बच पायेगी ?क्या मादा हिरनी भूखे शेर का भोजन बनेगी ?
वो एक तरफ आग से घिरी है और पीछे नदी है। क्या करेगी वो ?
हिरनी अपने आप को शून्य में छोड, अपने बच्चे को जन्म देने में लग गयी। कुदरत का कारिष्मा देखिये। बिजली चमकी और तीर छोडते हुए, शिकारी की आँखे चौंधिया गयी। उसका तीर हिरनी के पास से गुजरते, शेर की आँख में जा लगा,शेर दहाडता हुआ इधर उधर भागने लगा।और शिकारी, शेर को घायल ज़ानकर भाग गया। घनघोर बारिश शुरू हो गयी और जंगल की आग बुझ गयी। हिरनी ने शावक को जन्म दिया।
हमारे जीवन में भी कभी कभी कुछ क्षण ऐसे आते है, जब हम पूर्ण पुरुषार्थ के बावजूद चारो तरफ से समस्याओं से घिरे होते हैं और कोई निर्णय नहीं ले पाते। तब सब कुछ नियति के हाथों सौंपकर अपने उत्तरदायित्व व प्राथमिकता पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।अन्तत: यश, अपयश ,हार ,जीत, जीवन,मृत्यु का अन्तिम निर्णय ईश्वर करता है।हमें उस पर विश्वास कर उसके निर्णय का सम्मान करना चाहिए।

चिन्तनीय विषय

*एक 'पाप' से सारे 'पुण्य' नष्ट हो जाते हैं*
*महाभारत के युद्ध पश्चात जब "श्रीकृष्ण" लौटे तो रोष में भरी 'रुक्मणी' ने उनसे पूछा ?*

*”युद्ध में बाकी सब तो ठीक था... किंतु आपने "द्रोणाचार्य" और "भीष्म पितामह" जैसे धर्मपरायण लोगों के वध में क्यों साथ दिया ?"*
*"श्रीकृष्ण"ने उत्तर दिया - ये सही है की उन दोनों ने जीवन भर धर्म का पालन किया किन्तु उनके किये एक 'पाप' ने उनके सारे 'पुण्यों' को नष्ट कर दिया।"*
*"वो कौन से 'पाप' थे ?"*
*"जब भरी सभा में 'द्रौपदी' का चीरहरण हो रहा था तब यह दोनों भी वहाँ उपस्थित थे... बड़े होने के नाते ये दोनों दु:शासन को रोक भी सकते थे... किंतु इन्होंने ऐसा नहीं किया...उनके इस एक 'पाप' से बाकी सभी धर्मनिष्ठता छोटी पड़ गई।"*
*"और कर्ण...! वो तो अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध था... उसके द्वार से कोई खाली हाथ नहीं गया... उसके मृत्यु में आपने क्यों सहयोग किया... उसकी क्या गलती थी ?"*
*"हे प्रिये..! तुम सत्य कह रही हो..वह अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध था और उसने कभी किसी को 'ना' नहीं कहा...किन्तु जब अभिमन्यु सभी युद्धवीरों को धूल चटाने के बाद युद्धक्षेत्र में घायल हुआ भूमि पर पड़ा था*
*तो....*
*उसने कर्ण से पानी माँगा... कर्ण जहाँं खड़ा था उसके पास पानी का एक गड्ढा था किंतु ... कर्ण ने मरते हुए, अभिमन्यु को पानी नहीं दिया !"*
*"इसलिये उसका जीवन भर दानवीरता से कमाया हुआ 'पुण्य' नष्ट हो गया। बाद में उसी गड्ढे में उसके रथ का पहिया फँस गया और वो मारा गया।"*
*"हे रुक्मणी...! अक्सर ऐसा होता है.. जब मनुष्य के आस पास कुछ गलत हो रहा होता है और वे कुछ नहीं करते...वे सोचते हैं की इस 'पाप' के भागी हम नहीं हैं...अगर वे मदद करने की स्थिति में नही है तो भी सत्य बात बोल तो सकते हैं... परंतु वे ऐसा भी नही करते..ऐसा ना करने से वे भी उस 'पाप' के उतने ही हिस्सेदार हो जाते हैं... जितना 'पाप' करने वाला....!"*

पतिव्रता स्त्री की महिमा

 किसी नगर में कौशिक नामक एक क्रोधी और निष्ठुर ब्राह्मण रहता था। उसे कोढ़ की बीमारी थी। उसकी पत्नी शांडिली अत्यंत माँ दुर्गा की बड़ी भक्ता थी। वह बड़ी पतिव्रता थी और कोढ़ से सड़े-गले पति को सर्वश्रेष्ठ पुरूष और पूजनीय समझती थी।
एक रात वह अपने पति को कंधे पर लादकर कहीं लेकर जा रही थी। रास्ते में माण्डव्य मुनि को उसके पैरों की ठोकर लग गई।
ऋषि क्रोधित हुए और शाप दे दिया- 'मूर्ख स्त्री तेरा पति सूर्योदय होते ही मर जाएगा।'
ऋषि के शाप को सुनकर शांडिली बोली- 'महाराज, भूल से मेरे पति का पैर आपको लगा, जानबूझकर आपका अपमान नहीं किया, फिर भी आपने शाप दिया।
मैं शाप देती हूँ कि जब तक मैं न कहूँ तब तक सूर्य ही उदय न हो।'
माण्डव्य आश्चर्य में पड़ गये। उन्होंने कहा- 'तुम इतनी बड़ी तपस्विनी हो कि सूर्य की गति को रोक सकती हो'?
शांडिनी बोली- 'मैं तो भगवती की शरणागत हूँ, वही मेरे पतिव्रत धर्म की रक्षा करेंगी'।
उसकी बात निष्फल नहीं रही। सूर्य अगली सुबह से लेकर दस दिन तक नहीं निकले। ब्रह्मांड संकट में आ गया। देवताओं को बड़ी चिंता हुई।
वे अनुसूया जी के पास पहुँचे। अनुसूया जी सबसे बड़ी पतिव्रता स्त्री थीं। उनका प्रभाव देवों से भी अधिक था।
देवों ने कहा- 'माता, एक पतिव्रता के प्रभाव के कारण संसार में संकट आ गया है। आपसे ज्यादा योग्य संसार में कोई और स्त्री नहीं होगी जो एक पतिव्रता शांडिली को समझाकर उसका क्रोध शांत कर सके'।
अनुसूयाजी शांडिनी के पास पहुँची और उसके कारण उत्पन्न हुए संकट का प्रभाव बताकर वचन वापस लेने का अनुरोध किया।
अनुसूयाजी ने कहा, 'तुम्हारे पति की मृत्यु के बाद उन्हें फिर से जीवित और स्वस्थ करने का मैं वचन देती हूँ'। शांडिनी को भरोसा हो गया, उसने अपना वचन वापस ले लिया और सूर्य की गति को की अनुमति दे दी।
सूर्योदय के साथ ही माण्डव्य के शाप के कारण उसका पति मर गया। अनुसूयाजी ने सूर्य का आह्वान करते हुए कहा- 'मेरे पतिव्रत में यदि शक्ति है तो आप इस मृत पुरुष को पुनः जीवन, स्वास्थ्य और सौ वर्ष तक सुखद गृहस्थ जीवन का आशीर्वाद करें'।
माण्डव्य ने इसे अपने अहं का प्रश्न बना लिया और बोले- मेरे शाप को कोई काट नहीं सकता। इसे जीवित करने का प्रयास करना व्यर्थ है।
अनुसूयाजी ने भगवती का स्मरण किया- 'माता मेरी लाज रखकर माण्डव्य का अहंकार चूर करें'। अनुसूया माता की स्तुति करने लगीं। माता वहाँ प्रकट हुईं और कौशिक को जीवन और स्वास्थ्य प्रदान किया। माण्डव्य का अहंकार समाप्त हो गया।
माण्डव्य बोले- 'आज मैंने दो पतिव्रता नारियों की शक्ति देख ली। पतिव्रता स्त्रियों में स्वयं भगवती का वास हो जाता है।
हे भगवती, मैं अपनी शक्तियों के अनुचित प्रयोग के लिए क्षमा माँगता हूँ।' माता ने माण्डव्य को क्षमा कर दिया। माण्डव्य तप के लिए चले गए।

देश भक्ति

 एक बार महाराणा प्रताप पुंगा की पहाड़ी बस्ती में रुके हुए थे। बस्ती के भील बारी बारी से प्रतिदिन राणा प्रताप के लिए भोजन पहुँचाया करते थे।

इसी कड़ी में आज दुद्धा की बारी थी। लेकिन उसके घर में अन्न का दाना भी नहीं था।
दुद्धा की मांँ पड़ोस से आटा मांँगकर ले आई और रोटियाँ बनाकर दुद्धा को देते हुए बोली, "ले! यह पोटली महाराणा को दे आ।"
दुद्धा ने खुशी खुशी पोटली उठाई और पहाड़ी पर दौड़ते भागते रास्ता नापने लगा।
घेराबंदी किए बैठे अकबर के सैनिकों को दुद्धा को देखकर शंका हुई।
एक ने आवाज लगाकर पूछा, "क्यों रे! इतनी जल्दी जल्दी कहाँ भागा जा रहा है?"
दुद्धा ने बिना कोई जवाब दिये, अपनी चाल बढ़ा दी। मुगल सैनिक उसे पकड़ने के लिये उसके पीछे भागने लगा, लेकिन उस चपल चंचल बालक का पीछा वह जिरह बख्तर में कसा सैनिक नहीं कर पा रहा था।
दौड़ते दौड़ते वह एक चट्टान से टकराया और गिर पड़ा, इस क्रोध में उसने अपनी तलवार चला दी।
तलवार के वार से बालक की नन्हीं कलाई कटकर गिर गई। खून फूट कर बह निकला, लेकिन उस बालक का जिगर देखिये, नीचे गिर पड़ी रोटी की पोटली उसने दूसरे हाथ से उठाई और फिर सरपट दौड़ने लगा। बस, उसे तो एक ही धुन थी, कैसे भी करके राणा तक रोटियाँ पहुँचानी हैं।
रक्त बहुत बह चुका था, अब दुद्धा की आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा।
उसने चाल और तेज कर दी, जंगल की झाड़ियों में गायब हो गया। सैनिक हक्के बक्के रह गये कि कौन था यह बालक?
जिस गुफा में राणा परिवार समेत थे, वहांँ पहुंँचकर दुद्धा चकराकर गिर पड़ा। उसने एक बार और शक्ति बटोरी और आवाज लगा दी, "राणाजी !"
आवाज सुनकर महाराणा बाहर आये, एक कटी कलाई और एक हाथ में रोटी की पोटली लिये खून से लथपथ 12 साल का बालक युद्धभूमि के किसी भैरव से कम नहीं लग रहा था।
राणा ने उसका सिर गोद में ले लिया और पानी के छींटे मारकर होश में ले आए, टूटे शब्दों में दुद्धा ने इतना ही कहा, "राणाजी!... ये... रोटियाँ... मांँ ने... भेजी हैं।"
फौलादी प्रण और तन वाले राणा की आंँखों से शोक का झरना फूट पड़ा। वह बस इतना ही कह सके, "बेटा, तुम्हें इतने बड़े संकट में पड़ने की कहा जरूरत थी? "
वीर दुद्धा ने कहा, "अन्नदाता!... आप तो पूरे परिवार के साथ... संकट में हैं... माँ कहती है आप चाहते तो अकबर से समझौता कर आराम से रह सकते थे... पर आपने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिये... कितना बड़ा... त्याग किया उसके आगे मेरा त्याग तो कुछ नही है...।"
इतना कह कर वीरगति को प्राप्त हो गया दुद्धा।
राणा जी की आँखों मेंं आंँसू थे। मन में कहने लगे... "धन्य है तेरी देशभक्ति, तू अमर रहेगा, मेरे बालक। तू अमर रहेगा।"
अरावली की चट्टानों पर वीरता की यह कहानी आज भी देशभक्ति का उदाहरण बनकर बिखरी हुई है।

आज की कहानी: कीमत

 एक कुम्हार को अपने गधे को लेकर रास्ते पर चलते समय, अपनी मटकियां बेच कर बाजार से लौटते समय, एक हीरा पड़ा मिल गया। बड़ा हीरा! उठा लिया सोच कर कि चमकदार पत्थर है, बच्चे खेलेंगे। फिर राह में ख्याल आया उसे कि बच्चे कहीं गंवा देंगे, यहां-वहां खो देंगे, अच्छा हो गधे के गले में लटका दूं। गधे के लिए आभूषण हो जाएगा।
कुम्हार के हाथ हीरा पड़े तो गधे के गले में लटकेगा ही, और जाएगा कहां! उसने गधे के गले में हीरा लटका दिया। एक जौहरी अपने घोड़े पर सवार आता था। देख कर चैंक गया। बहुत हीरे उसने देखे थे, पर ऐसा हीरा नहीं देखा था। और गधे के गले में लटका! रोक लिया घोड़ा।
समझ गया कि इस मूढ़ को कुछ पता नहीं है। इसलिए नहीं कहा कि इस हीरे का कितना दाम; कहा कि इस पत्थर का क्या लेगा? कुम्हार ने बहुत सोचा-विचारा, बहुत हिम्मत करके कहा कि आठ आने दे दें। जौहरी तो बिल्कुल समझ गया कि इसे कुछ भी पता नहीं है।
आठ आने में करोड़ों का हीरा बेच रहा है! मगर जौहरी को भी कंजूसी पकड़ी। उसने सोचा: चार आने लेगा? चार आने में देगा? आठ आने, शर्म नहीं आती इस पत्थर के मांगते। कुम्हार ने कहा कि फिर रहने दो। फिर गधे के गले में ही ठीक। चार आने के पीछे कौन उसके गले में पहनाए हुए पत्थर को उतारे!
जौहरी यह सोच कर आगे बढ़ गया कि और दो आने लेगा, ज्यादा से ज्यादा; या आगे बढ़ जाऊं तो शायद चार आने में ही दे दे। मगर उसके पीछे ही एक और जौहरी आ गया। और उसने एक रुपये में वह पत्थर खरीद लिया।
जब तक पहला जौहरी वापस लौटा, सौदा हो चुका था। पहले जौहरी ने कहा: अरे मूर्ख, अरे पागल कुम्हार! तुझे पता है तूने क्या किया? करोड़ों की चीज एक रुपये में बेच दी!
वह कुम्हार हंसने लगा। उसने कहा: मैं तो कुम्हार हूँ, मुझे तो पता नहीं कि करोड़ों का था हीरा। मैंने तो सोचा एक रुपया मिलता है, यही क्या कम है! महीने भर की मजदूरी हो गई। मगर तुम्हारे लिए क्या कहूँ, तुम तो जौहरी हो, तुम आठ आने में न ले सके।
करोड़ों तुमने गंवाए हैं, मैंने नहीं गंवाए। मुझे तो पता ही नहीं था।
तुम्हें भी पता नहीं है कि तुम कितना गंवा रहे हो! और वो लोग जो तुम्हे जानते है पर लालच या अहंकार के कारण सस्ते में सौदा करना चाहते हैं, वो तुमसे भी ज्यादा वे गंवा रहे हैं। तुम तो नहीं जानते कि तुम क्या गंवा रहे हो, वो तो जानते है तुम्हारी कीमत, कम से कम उन्हें तो बोध होना चाहिए।
कुम्हार तो मुर्ख है ही, पर उसकी मूर्खता अज्ञानता के कारण है.. पर जौहरी... वो तो महामूर्ख निकला..

चेतना का दिव्य प्रवाह भाग - 69

जिसने सुख प्राप्ति का विज्ञान जान लिया, वही संसार में सुखी हो सकता है ।

संसार में मानव दुःखों में तब पड़ता है जब वह सुखों के लिए हर पल बेचैन होकर उनके पीछे दौड़ता है, ऋषियों ने मनुष्य के, सुखी होने का, ज्ञान विज्ञान तथा जो रहस्य बताया है वह है तप का मार्ग ।

 शास्त्रों में लिखा है जो तप नहीं करता वह सुख प्राप्त नहीं कर सकता है यह इस संसार का एकदम कटु सत्य है, संसार में तप का सबसे बड़ा देवता सूर्य है जो व्यक्ति सूर्य की ओर चलता है उसकी छाया उसके पीछे दौड़ती है और जो सूर्य को पीठ दिखा करके, उससे कतरा करके, उससे बचकर के चलता है उसकी छाया उसके आगे दौड़ती है । इस संसार में सुख भी एक छाया की तरह है जो इसे पकड़ने का यत्न करता है उससे वह दूर चली जाती है, जो सुखों का त्याग कर देता है उसके पीछे सुख जबरदस्ती दौड़े चले आते हैं ।

वृक्षों की शीतल छाया का सुख उस व्यक्ति को मिलता है जो कड़ी धूप में तपता है, श्रम करता है ।

🔅भोजन का सुख उस व्यक्ति को मिलता है जो कड़ी मेहनत करने के बाद भोजन ग्रहण करता है ।

🔅 नींद का सुख उस व्यक्ति को मिलता है जो कठोर परिश्रम से शरीर को थका देता है ।

🔅स्वाद का सुख उस व्यक्ति को मिलता है जो कड़ी भूख लगने पर कुछ ग्रहण करता है ।

🔅 धन का सुख उस व्यक्ति को मिलता है जो कठोर परिश्रम और ईमानदारी से कमाता है ।

🔅 सेवा का सुख उसे ही मिलता है जो निस्वार्थ भाव से सब की सेवा व सहायता करता है ।

🔅स्वास्थ्य का सुख उस व्यक्ति को मिलता है जो अपनी इंद्रियों पर संयम रखता है ।

🔅 सद्भाव व प्रेम का सुख उसे मिलता है जो विनम्र होता है ।

🔅धर्म का सुख उसे मिलता है जो आदर्शों व सिद्धांतों की रक्षा के लिए अपने हितों का त्याग कर देता है ।

🔅 आत्मा का सुख उसे मिलता है जो नीति पर चलते हुए असफलताओं को शिरोधार्य कर लेते है ।

🔅परमात्मा का सुख उसे मिलता है जो संसार के सारे प्राणियों में अपनी ही आत्मा का दर्शन करता है या ईश्वर का दर्शन करता है ।

🔅 जन सहयोग का सुख उसे मिलता है जो निस्वार्थ भाव से अपना सर्वस्व विश्व मानवता के हित में समर्पित कर देता है ।

🔅स्वतंत्रता का सुख उसे मिलता है जो अपनी आत्म पुकार का अनुसरण करता है तथा स्वतंत्र चिंतन के आधार पर युग धर्म को पहचान कर अपने जीवन के पथ का निर्धारण करता है ।

🔅 ईश कृपा तथा गुरु कृपा का सुख उसे मिलता है जो नैतिक मूल्यों ,आदर्शों व सिद्धांतों से समझौता नहीं करता बल्कि इनकी रक्षा के लिए अपना सर्वस्व त्याग देने को कृत संकल्पित हो जाता है तथा असूरता से संघर्ष का पथ अपनाता है । संसार में सुख प्राप्ति का यही शाश्वत मार्ग है जिन्होंने इस मार्ग को अपनाया, इन सिद्धांतों को अपनाया, वे ही संसार में सुखी हो सकते हैं बाकी संसार जिन साधन सुविधाओं को, आराम तलबी को, भोगों को, सुख का आधार समझता है वह महान मूर्ख और अज्ञानी है क्योंकि ये सब मानव को दारुण दुख देने वाले होते हैं ।

🙏 रामकुमार शर्मा 📞9451911234

🌎 *युग विद्या विस्तार योजना* 

( मानवीय संस्कृति पर आधारित एक समग्र शिक्षण योजना) 

विद्या विस्तार राष्ट्रीय ट्रस्ट, दिल्ली (भारतवर्ष)

Monday, October 9, 2023

Control of Mind and Senses

एक राजा का जन्मदिन था। सुबह जब वह घूमने निकला, तो उसने तय किया कि वह रास्ते मे मिलने वाले पहले व्यक्ति को पूरी तरह खुश व संतुष्ट करेगा।

उसे एक भिखारी मिला। भिखारी ने राजा से भीख मांगी, तो राजा ने भिखारी की तरफ एक तांबे का सिक्का उछाल दिया।

सिक्का भिखारी के हाथ से छूट कर नाली में जा गिरा। भिखारी नाली में हाथ डाल तांबे का सिक्का ढूंढ़ने लगा।

राजा ने उसे बुला कर दूसरा तांबे का सिक्का दिया। भिखारी ने खुश होकर वह सिक्का अपनी जेब में रख लिया और वापस जाकर नाली में गिरा सिक्का ढूंढ़ने लगा।

राजा को लगा की भिखारी बहुत गरीब है, उसने भिखारी को चांदी का एक सिक्का दिया।

भिखारी राजा की जय जयकार करता फिर नाली में सिक्का ढूंढ़ने लगा।

राजा ने अब भिखारी को एक सोने का सिक्का दिया।

भिखारी खुशी से झूम उठा और वापस भाग कर अपना हाथ नाली की तरफ बढ़ाने लगा।

राजा को बहुत खराब लगा। उसे खुद से तय की गयी बात याद आ गयी कि पहले मिलने वाले व्यक्ति को आज खुश एवं संतुष्ट करना है।

उसने भिखारी को बुलाया और कहा कि मैं तुम्हें अपना आधा राज-पाट देता हूं, अब तो खुश व संतुष्ट हो ?

भिखारी बोला, मैं खुश और संतुष्ट तभी हो सकूंगा जब नाली में गिरा तांबे का सिक्का मुझे मिल जायेगा।

हमारा हाल भी उस भिखारी जैसा ही है। हमें भगवान ने आध्यात्मिकता रूपी अनमोल खजाना दिया है और हम उसे भूलकर संसार रूपी नाली में तांबे के सिक्के निकालने के लिए जीवन गंवाते जा रहे है।

व्यक्ति के गलत संस्कार (Traits) उसको नाली अथवा कीचड़ की गंदगी में जाने के लिए विवश कर देते हैं। एक बार एक संत भ्रमण कर रहे थे। उन्हें गंदगी से लिपटा एक छोटा-प्यारा सुअर का बच्चा दिखा। वो उस बच्चे को उठा कर अपनी कुटिया में ले गए। उसको नहलाकर साफ-सुथरा किया व खाने के लिए अच्छी-अच्छी चीजें दी। फिर पास ही रस्सी से बाँध दिया। एक बार जब उसकी रस्सी ढीली हुई तो वह छुड़ाकर वापिस कीचड़ में जा घुसा। मानव की भी यही कहानी है। अपने मन को समझा-बुझाकर वह उच्च आनन्द की ओर उठाता है। परन्तु मौका मिलते ही यह मन वापिस बुराईयों में डूब जाता है व सारा प्रयत्न व्यर्थ हो जाता है। फिर किस प्रकार इस मन को नियन्त्रित (Control)  किया जाए। इस विषय पर हमारे शास्त्रों में बहुत प्रकाश डाला गया। 

Wednesday, October 4, 2023

हिंदू समाज की विडम्बना

भारतीय हिन्दू समाज परिस्थितियोंवश, मजबूरीवश संस्कारविहीन होता चला गया व उसमें समय के साथ-साथ ये तीन दुर्गुण पनपते चले गए। 

1. स्वार्थ कूट-कूट कर भरता चला गया। 

2. चापलूसी का भाव आता गया। 

3. अंधभक्ति अथवा अंधश्रद्धा पनपती चली गयी। 

इन तीन दुर्गणों ने हिन्दू समाज की कमर तोड़ कर रख दी। दुर्गुणों के द्वारा जब दुर्बलता एवं गन्दगी बढ़ती जाती है तो समाज कायर एवं वीर्यहीन (निस्तेज) होता चला जाता है। ऐसे समाज पर रोग के कीटाणु एवं विकृतियाँ हावी होती चलती है। हम दोष भले ही रोग को दे लें कि रोग फैल गया परन्तु मल तो (Toxins) हमारे शरीर में ही जमा हो गया था। जिसको हमने समय रहते नहीं शोधन किया। ऐसे ही जो भी समाज अथवा मिशन विकृतियाँ अपना लेता है समय के साथ उसके पतन को कोई नहीं रोक सकता। हम अपना उद्देश्य क्यों नहीं हासिल कर पा रहे क्योंकि हमारा जीवन दुर्बलताओं से पूर्ण है। जिस वजह से हमारी इच्छा शक्ति कम होती गयी। ज्ञान व शक्ति दोनों की उपासना करिए। गायत्री व सावित्री दोनों का आह्वान करिए।  अपना कठोर आत्म विश्लेषण करिए। अन्यथा परिवार, समाज, राष्ट्र व पूरी मानवता पर आज विनाश के संकट मंडरा रहे हैं। जिसके पास प्रज्ञा (Yogic Widom) होगी वही सुखी व स्वस्थ रहेगा अन्यथा खून के आँसू रोएगा। कोई आचार्य देव दानव उसको बचा नहीं पाएगा। 

बाबरी गिरते ही शाम तक UP सरकार गिरी और 2017 तक UP मे बहुमत नहीं मिला व उसी दिन 4 BJP शासित राज्यों मे कॉंग्रेस ने राष्ट्रपति शासन लगाया

मोदी जी और योगी जी खुल कर क्यों नहीं बोलते आज उसका उत्तर इस पोस्ट से मिल जाएगा । जिसके लिए हम उनके आभारी हैं । हिन्दुओं की कायरता के कारण ही मोदी जी और योगी जी खुल कर नहीं बोलते हैं वो जानते हैं कि हिन्दू पैर पर कुल्हाड़ी नहीं मारता बल्कि कुल्हाड़ी पर अपना सिर ही मार लेता है ।

नब्बे के दशक में कल्याण सिंह पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री बने, भाजपा ने अयोध्या में राम मंदिर को लेकर पूरे भारत में रथ यात्राएं निकाली थी ।

उत्तर प्रदेश की जनता ने पूर्ण बहुमत के साथ कल्याण सिंह को उत्तर प्रदेश की सत्ता दी; यानी खुल के कहा की जाओ मंदिर बनाओ ।

कल्याण सिंह बहुत भावुक नेता थे, सरकार बनने के बाद तुरन्त विश्व हिन्दू परिषद को बाबरी मस्जिद से सटी जमीन कार सेवा के लिए दे दी, संघ के हज़ारों कार सेवक साधू संत दिन रात उस जमीन को समतल बनाने में लगे रहते थे।

सुप्रीम कोर्ट ये सब देख के बहुत परेशान था, सर्वोच्च न्यायालय ने कल्याण सिंह से साफ़ कह दिया की आपको पक्का यकीन हैं ना की ये हाफ पैंट पहने लोग सिर्फ यहाँ की जमीन समतल करने आये हैं ?

मतलब की अगर आपके लोगों ने बाबरी मस्जिद को हाथ लगाया तो अच्छा नहीं होगा । कल्याण सिंह ने मिलार्ड को समझाया और बाकायदा लिख के एक हलफनामा दिया की हम लोग सब कुछ करेंगे लेकिन मस्जिद को हाथ नहीं लगायेंगे ।

तो साहब अयोध्या में कार सेवा के लिए दिन रखा गया 6 दिसंबर 1992 और केंद्र की कांग्रेसी सरकार से कहा कि केवल 2 लाख लोग आयेंगे कार सेवा के लिए लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने 5 लाख लोगों को कार सेवा के लिए बुला लिया प्रशासन को ख़ास हिदायत थी की भीड़ कितनी भी उग्र हो कोई गोली लाठी नहीं चलाएगा ।

5 लाख लोग एक जगह जुट गए जय श्री राम और मदिर वहीं बनायेंगे के नारे लगने लगे । लोगों को जोश आ गया और लोग गुम्बद पर चढ़ गए 5 घंटे में उस 400 साल पुरानी मस्जिद का अता पता नहीं था, ऐसा काम कर दिया एक एक ईंट कार सेवकों ने उखाड़ दी । केंद्र सरकार के गृह मंत्री का फोन कल्याण सिंह के C.M. ऑफिस में आया, गृह मंत्री ने कल्याण सिंह से पूछा ये सब कैसे हुआ ?

कल्याण सिंह ने कहा की "जो होना था वो हो गया अब क्या कर सकते हैं" ? एक गुम्बद और बचा है कार सेवक उसी को तोड़ रहे हैं, लेकिन आप जान लीजिये कि मै गोली नहीं चलाऊंगा (ये वाकया खुद कल्याण सिंह ने एक भाषण में बताया है) उधर सुप्रीम कोर्ट में मिलॉर्ड कल्याण सिंह से बहुत नाराज थे ।

6 दिसंबर की शाम कल्याण सिंह ने इस्तीफा दे दिया और उधर काँग्रेस ने भाजपा की 4 राज्य की सरकार को बर्खास्त कर दिया, कल्याण सिंह को एक दिन की जेल हो गयी, केंद्र में नरसिम्हा राव जी सरकार थी; तुरंत में एक झटके से देश के 4 राज्यों में बीजेपी की सरकारों को बर्खास्त कर दिया गया ।

उत्तर प्रदेश में दुबारा चुनाव हुए, बीजेपी को यही लगा की हिन्दुओं के लिए इतनी बड़ी कुर्बानी देने के बाद उत्तर प्रदेश की जनता उन्हें फिर से चुनेगी लेकिन हुआ उलटा ।

बीजेपी उत्तर प्रदेश चुनाव हार गयी और फिर 2017 तक उसे पूर्ण बहुमत ही नहीं मिला । कल्याण सिंह जैसे बड़े और साहसिक फैसले लेने वाले नेता का कैरियर बाबरी मस्जिद विध्वंश ने खत्म कर दिया,

400 साल से खड़ी किसी मस्जिद को 5 लाख की भीड़ से गिरवाने के लिए 56 इंच का सीना चाहिए होता है जो वाकई में कल्याण सिंह के पास था ।

आज हम कहते हैं की मोदी और योगी हिंदुओं के पक्ष में खुल के नहीं बोलते ना ही खुल के मुसलमानों का विरोध करते हैं, क्यों करें वो ये सब खुल के ? ताकि उनका भी राजनैतिक कैरियर खत्म हो जाये ।

आप बताइये कि ऐसे स्वार्थी हिन्दू समाज के पक्ष में मोदी जी और योगी जी जैसे लोग खुल के कैसे बोलें क्या बोले और कहाँ तक इनके लिए लड़े ?

सोच समझकर ही वोटिंग करें

एक बार एक वोटर लाइन में ही मर गया। मृत्यु उपरान्त वो ऊपर यमराज के दरबार में पहुंचा। वहां चित्रगुप्त उसके कर्मो का खाता खोले बैठा था।

उसके कर्मो का खाता देखने के बाद चित्रगुप्त ने यमराज से कहा श्रीमान ये तो 50, 50 का मामला है। पलड़ा दोनों तरफ बिलकुल बराबर है। ऐसी स्थिति पहली बार हुई है। आप आदेश दें कि क्या किया जाए। इसे कहां भेजा जाए। स्वर्ग या नर्क

यमराज- ऐसी स्थिति में निर्णय लेने का अधिकार इसी का है। जो भी ये चुनना चाहे।

उन्होंने उसे एक दूत के साथ एक दिन नर्क और स्वर्ग में बिताने के लिए भेज दिया।

पहले दिन नर्क में पहुंचते ही उसने खुद को एक गोल्फ कोर्स में पाया। चारो तरफ हरियाली , खूबसूरत दृश्यावली के बीच उसे दूर एक छोटा सा एक क्लब नजर आया। वहां पहुंचते ही उसे उसके सभी पुराने मित्र मिल गए । जो सभी बेहद खुश और मजे ले रहे थे। मित्रों के साथ दिन भर उसने ढेर सारा आनंद उठाया, अच्छा खाना खाया थोड़ी बढ़िया शराब भी पी।

आखिर उनसे विदा लेकर वो दूत के साथ स्वर्ग में पहुंचा। वहां सभी संत टाइप के संतुष्ट व्यक्ति भजन कीर्तन में लीन थे। दिन बीतता दिखा नहीं उसे। आखिर उसका जाने का समय हो गया।

दूत के साथ वो यमराज के पास पहुंचा।

यमराज ने उसका निर्णय जानना चाहा।

उसने कहा - महाराज स्वर्ग बहुत अच्छा है। वहां शान्ति भी है। लेकिन मैं तो नर्क में ही रहना चाहूंगा। असल आनंद वही पर है।

यमराज ने दूत को उसे नर्क में छोड़ कर आने के लिए कहा।

नर्क के द्वार के अंदर घुसते ही वो चौंक गया। चारों तरफ उजाड़ बियाबान रेगिस्तान नजर आ रहा था। और उसके सभी मित्र फटेहाल अवस्था में वहां बिखरे पड़े कूड़े करकट में अपना भोजन तलाश रहे थे।

उसने दूत से कहा- ये क्या कल तो यहां दूसरा ही दृश्य था।

दूत ने हँसते हुए कहा - कभी पृथ्वी पर चुनाव प्रचार नही देखा क्या?? कल अभियान का दिन था। तुम्हे लुभाने का दिन था। तुम्हे फसाने का दिन था।

आज तो तुम अपना वोट दे चुके हो।