Friday, November 21, 2014

संघर्ष से ही अभिष्ट की प्राप्ति सम्भव

            रोटी का स्वाद वह जानता है, जिसने परिश्रम करने के पश्चात् क्षुधार्त होकर ग्रास तोड़ा हो। धन का उपयोग वह जानता है, जिसने पसीना बहाकर कमाया हो। सफलता का मूल्यांकन वही कर सकता है, जिसने अनेक कठिनाईयों, बाधाओं और असफलताओं से संघर्ष किया हो। जो विपरीत परिस्थितियों और बाधाओं के बीच मुस्कुराते रहना और हर असफलता के बाद बड़े उत्साह से आगे बढ़ना जानता है, वस्तुतः वही विजय-लक्ष्मी का अधिकारी होता है।
            जो लोग सफलता के मार्ग में होने वाले विलम्ब की धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा नहीं कर सकते, जो लोग अभिष्ट प्राप्ति के पथ में आने वाली बाधाओं से लड़ना नहीं जानते, वे अपनी अयोग्यता और ओछेपन को बेचारे भाग्य के ऊपर थोपकर स्वयं निर्दोष बनने का उपहासप्रद प्रयत्न करते हैं। ऐसी आत्मप्रवंचना से लाभ कुछ नहीं, हानि अपार है। सबसे बड़ी हानि यह है कि अपने को अभागा मानने वाला मनुष्य आशा के प्रकाश से हाथ धो बैठता है और निराशा के अंधकार में भटकते रहने के कारण इष्ट प्राप्ति से कोसों पीछे रह जाता है।

            बाधाएॅं, कठिनाइयाॅं, आपत्तियाॅं और असफलताएॅं एक प्रकार की कसौटी हैं, जिन पर पात्र-कुपात्र की, खरे-खोटे की परख होती है। जो इस कसौटी पर खरे उतरते हैं, सफलता के अधिकारी सिद्ध होते हैं, उन्हें ही इष्ट की प्राप्ति होती है।

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