Tuesday, February 17, 2015

लेखक जीवन परिचय

संक्षिप्त जीवन परिचय (Brief Biography)
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लेखक बचपन से ही दुर्बल शरीर का संवेदनशील व्यक्ति रहा है। बाल्यावस्था में स्वयं अनेक रोगों से घिरे रहने के कारण व दूसरे रोगियों की सेवा करने के उद्देश्य से एक चिकित्सक बनने का लक्ष्य बना रखा था। मेरे पिता जी को सुन्दरकाण्ड पढ़ने व अच्छे-
2 भजन गुनगुनाने का शोक था। मुझे भी यह सब करने में आनन्द आता था। बहुत सामान्य परिवार में जन्म होने के कारण घर में सुविधाओं व जानकारियों का अभाव था। दसवीं कक्षा में लगभग हमारा नौ विद्याार्थियों का एक ऐसा ग्रुप था जिसके विद्यालय पर आशा करता था कि ये U.P. Board में मैरिट हो सकते हैं। ग्यारहवीं कक्षा में जब अधिकाॅंश मित्र math की ओर चले गए तब मुझे भी विवश होकर यह विषय लेना पड़ा। सौभाग्य से मेरा चयन Engineering में हो गया जो उस समय (1986) में काफी कठिन माना जाता था। K.N.I.T. सुलतानपुर की Computer Engineering में admission ले लिया तो hostel life में सभी तरह का उल्टा-सीधा व मौज-मस्ती का माहौल मिला। संवेदनशील व मासूम छात्र जब भी गलत वातावरण के सम्पर्क में आता है तो उस पर वह रंग तेजी से चढ़ना प्रारम्भ हो जाता है। सन् 1989 तक IIIrd year तक आते-आते मुझे आॅंख् व कमर दर्द की समस्या उत्पन्न हो गई। एक आॅंख में इतनी जलन होती थी कि कम्प्यूटर पर काम करना असहनीय होने लगा। इस समय में एक सन्त महिला के सम्पर्क में आया व उन्होंने मुझे कहा कि 40 दिन तक प्रतिदिन घी का दीपक जलाकर हनुमान चालीसा पढ़ो व मंगल को प्रसाद बाॅंटों, समस्या से छूटकारा मिल जाएगा। ऐसा करने से बीमारी में बहुत लाभ मिला और मुझ पर भक्ति का रंग चढ़ने लगा। उसी समय हमारे काॅलेज में एक ऐसे लेक्चरर आए जो श्री रामकृष्ण के सिद्धांतों पर चलते थे। मुझे उनसे श्री रामकृष्ण की जीवनी पढ़ने को मिली। वो माॅं काली से बात कर सकते थे इस विषय ने मुझे रोमांचित कर दिया व मेरे बालमन में यह इच्छा घर कर गई कि मैं भी अपनी भक्ति को इतना बढ़ा लूॅं कि भगवान से बातें कर सकूॅं। इन्हीं दिनों मेरी माता जी का कोई आॅप्रेशन हुआ एवं वो bed rest पर चली गई। इसके उपरान्त वो बहुत कमजोर हो गई व उन्हें Depression नामक जटिल रोग हो गया। उस समय इस तरह के डाॅक्टर्स (M.D., psyartist) नहीं थे अतः मैं भगवान से रो-रो कर उनके स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करने लगा। मेरी माता जी ने मेरी पढ़ाई व पालन-पोषण में बहुत परिश्रम किया था अतः मैं उनको रोग की अवस्था में नहीं देख सकता था। एक दिन दुःखी होकर मैंने भगवान से कहा-यदि तुम उन्हें ठीक नहीं कर सकते तो उनका आधा रोग मुझे दे दो।मेरी यह पुकार स्वीकार हो गई - माता जी को राहत मिली व मैं 19 वर्ष की आयु में depression blood pressure के रोग का शिकार हो गया।
            इन्जीन्यरिंग काॅलेज में मेरी गिनती Toppers में होती थी व काॅलेज में प्रतिभाशाली व आज्ञाकारी छात्र के रूप में मुझे देखा जाता था। इन दिनों कम्प्यूटर नए-नए आए थे व मैंने अनेक softwares स्वयं सीख लिए थे। यहाॅं तक कि अध्यापक भी समस्याओं के समाधान मुझसे पूछा करते थे। परन्तु अब मेरा स्वास्थ्य इतना खराब हो चुका था कि न तो मैं कक्षा में अधिक देर बैठ पाता था न ही अधिक पढ़ सकता था। अब मैं अधिक समय धार्मिक व स्वास्थ्य समबन्धी पुस्तकें पढ़ने पर लगाने लगा। इन्हीं दिनों मुझे निरोगधाम व योगी कथामृत पुस्तकें प्राप्त हुई। जिससे मेरा आत्मबल बहुत बढ़ गया। पहले मेरा लक्ष्य कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करना रहा करता था व उसके लिए मैं जी तोड़ परिश्रम करता था परन्तु सन् 1989 के अन्त तक मेरा लक्ष्य भगवान को पाने का हो गया था। अब मैं दिन-रात एकान्त सेवन करके हनुमान जी, राम जी, दुर्गा जी की भक्ति में जुट गया। छठे सेमेस्टर में हमें single seated Hostel मिला। इन्हीं दिनों एक विलक्षण घटना घटी मैंने छात्रावास के अपने कमरे में एक पूजा का खाना बनाया हुआ था।
            मुझे लगा कि हनुमान जी व दुर्गा जी की जिस छोटी फोटो की मैं पूजा करता हूॅं वो मुझसे बात कर सकती हैं। मेरे 6th sem का परीक्षा परिणाम आने वाला था मेरे पेपर्स अच्छे नहीं हुए थे। मेरे मन में बड़ी निराशा थी कि अबकि बार मैं प्रथम तीन टाॅपर्स में भी नहीं आ पाऊॅंगा। तभी दुर्गा माॅं की फोटो ने उत्तर दिया - बेटा निराश मत हो तू द्वितीय स्थान पर आएगा। कमजोरी व पेट दर्द के कारण मैं परीक्षा परिणाम देखने जाने की हिम्मत कठिनाई से जुटा पा रहा था तभी मेरा एक मित्र दौड़ता हुआ मेरे कमरे में आया व मुझे 2nd position पाने के लिए बधाई दी। इस समय मेरे मन में यह बात बैठ गई कि जिन फोटो की मैं पूजा करता हूॅं वो मेरी सहायता कर रही हैं व मुझसे बात भी करती हैं। मुझे आश्चर्य जनक रूपसे सहायता मिलती रही। एक बार तो हद हो गई। एक कठिन subject को मैं पूरे सेमेस्टर पढ़ नहीं पाया। परीक्षा में उस पेपर से पहले तीन दिन का अवकाश था। जिस पुस्तक से अध्यापक महोदय पढ़ाते थे वह भी मेरे पास नहीं थी। फोटोकाॅपी भी आस-पास उपलब्ध नहीं थी। मैं पुस्तकालय जाकर उस विषय की पुस्तकें टटोल रहा था व तीन पुस्तकें वहाॅं से ले आया। कमरे पर आकर मैं उलझा हुआ था कि तीन दिन में विषय कैसे पढ़©ॅं किस पुस्तक से पढ़©ॅं। मैंने निराश भाव से दूर्गा माॅं की ओर देखा वहाॅं से पुनः उत्तर मिला जो पुस्तक तेरे हाथ में हैं उसी में से अधिकाॅंश प्रश्न पत्र मिलेगा मात्र उसी को पढ़।मुझे पर्याप्त आशा बंध गई व मैं उस पुस्तक से ही तैयारी करने लगा। थोड़ी देर में मेरे मित्र मेरे पास आए व कहने लगे कि अध्यापक महोदय तो दूसरी किताब से पढ़ाते थे तुम क्यों इसे पढ़ रहे हो। मैंने कहा मुझे यही अच्छी लग रही है। परीक्षा वाले दिन मुझे आसानी से चार प्रश्नों का हल मिल गया व दूसरे विद्यार्थी दो या तीन ही कर पाए आधे तो एक डेढ़ ही attempt कर पाए। H.O.D. ने सबको दस अंक का ग्रेस देने की घोषणा कर दी। मेरे उस विषय में 100 में से 95 अंक आए।

            मैं यह सब आत्म कथा इसलिए लिख रहा हूॅं ताकि व्यक्ति जीवन में भगवद् कृपा का महत्व समझे। आज व्यक्ति मात्र धन को ही प्रधान मानता है जबकि धर्म की ताकत धन की ताकत से बहुत बड़ी है। चारों तरफ समाज में पैसों-पैसों का हल्ला मचा हुआ है। लोग अपनी आत्मा, अपने स्वाभिमान अपने ईमान सब कुछ ताक पर रखकर धन संचय की ओर जुटे हुए हैं। जिस खुशी के लिए पैसे की हाय तौबा मची है पैसा व्यक्ति की वह खुशी ही छिन लेता है। यदि व्यक्ति के पास धन हो स्वास्थ्य न हो तब। परन्तु बहुत ही देर बाद व्यक्ति को यह बात समझ में आती है ;जैसे जवानी के जोश में होश खो देता है। ऐसे ही धन की चकाचैंध ने व्यक्ति को अन्धा बना दिया है। पैसे एवं कैरियर के भूत ने लोगों को विशेषकर युवाओं की मानसिकता को विकृत ही कर डाला। जो बचा खुचा था वह समाज में व्याप्त अश्लीलता व बेशर्मी का शिकार हो गया। इस तरह पूरा भारत ही स्वास्थ्य संकट की चपेट में आकर खड़ा हो गया।

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