Sunday, November 15, 2015

संवेदनहीन भारत की दीपावली


            21वीं सदी में लोगों ने भले ही शिक्षा, विज्ञान व समृद्धि में कितनी ही प्रगति कर ली हो परन्तु संवेदनहीनता की सभी हदें पार कर डाली हैं। धन के होने का अर्थ है उसके पास प्रकृति के सााि खिलवाड़ करने की क्षमता भी है। उसे अपने धन का उपयोग अपने अहं व मनोरंजन के लिए प्रकृति व पर्यावरण के विनाश के लिए प्रयोग करने की खुली छूट हमारे समाज, हमारे  प्रशासन ने दे रखी है। वास्तव में किसी ने सत्य कहा है-
कनक कनक ते सौ गुनी,मादकता अधिकाय।
इहि खाए बौराए दें,इहि पाए बौराए।।
दीपावली के अवसर पर जहाॅं लोगों को सरसों के तेल के दीपक जलाकर वायु प्रदूषण को समाप्त करना था वहाॅं हवा को पटाखों के द्वारा 23 गुणा अधिक जहरीला बना दिया गया। यह आंकड़ा है भारत की राजधानी दिल्ली का जहाॅं सबसे अधिक सभ्य जनता व सर्वोच्च राजनैतिक तन्त्र विराजमान है। लोग ज्यादा और महंगी पटाखेबाजी करके अपनी शान दिखाने की होड़ में यह भूल जाते हैं कि उनको इस कुकृत्यों का कितना घातक परिणाम पूरी मानव जाति को झेलना पडेगा।
            प्रशासन का निकम्मापन देखिए वह मात्र लोगों को अपिल भर कर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के बीस प्रदूषित शहर में से तेरह भारत में हैं। उस पर भी दिल्ली का नंबर सबसे पहले है फिर भी हमारी जनता और प्रशासन प्रर्यावरण के प्रति बिलकुल सजग नहीं है। क्या केवन AIIMS व अन्य बड़े अस्पताल खोलकर लोगों के स्वास्थ्य को सुधारा जा सकता है। क्या केवल विकास-विकास व आर्थिक सुधारों के दम पर लोगों को खुशहाल किया जा सकता है। नहीं इसके लिए चाहिए संवेदनशील व्यक्तित्व जिसका लोप भारत की धरती से होता चला जा रहा है। मूर्खता की हदें हमने पार कर दी हैं पर्यावरण को रोंद कर हम अपनी कब्रे खोद रहे हैं व उसको भी बड़ी शान समझ रहे हैं। क्या अंतर रह गया है एक पशु और एक मानव में। सभ्य मानव, अमीर व बड़े आदमी का दायित्व है कि लोगों के सामने एक अच्छा आदर्श प्रस्तुत करे परन्तु दुर्भाग्य है देश का कि हम सब विवेकहीनता के वशीभूत होकर भेड़चाल में चलकर कुछ भी अनर्थ करके अपने को बड़ा आदमी समझने लग जाते हैं।

विडम्बना यह भी है कि इस तरह के प्रदूषण को रोकने का जिम्मा जिन विभागों पर है वे भी अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन ईमानदारी से नहीं करते। लोगों से पटाखों पर रोक की अपील कारगर नहीं होती। इसलिए उत्पादन और आपूर्ति के स्तर पर पटाखों की घातकता पर रोक लगाई जानी चाहिए। जो रासायनिक पदार्थ सेहत पर नुकसानदायक असर डालते हैं उनके प्रयोग पर रोक तथा उनके विकल्प के उपयोग के लिए पटाखा  उत्पादकों को प्रेरित  किया जाना चाहिए। सल्फर डाईआॅक्साइड आदि अस्थमा व ब्रोंकाइटिस के रोगियों के लिए घातक साबित होता है। इसके अलावा रंगीन आतिशवाजी में प्रयोग होने वाले तांबे, बेरियम, और स्ट्रेटियंग जैसी धातुओं के उपयोग पर रोक लगनी चाहिए। ये पदार्थ प्रदूषण फैलाने में ज्यादा भूमिका  निभाते हैं। दूसरी कोशिश ध्वनि प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों पर रोक की होनी चाहिए। पश्चिम बंगाल की पहल इस दिशा में सार्थक साबित हुर्ह है। अमूमन पटाखों के शोर के स्तर के लिए कट-आॅफ 145 डेसीबल रखी गई है जो काफी ज्यादा है। पश्चिम बंगाल में इस घटाकर 90 डेसीबल किया गया है। इस प्रयास ने पटाखों से होने वाले प्रदूषण व ध्वनि प्रदूषण को कम करने में मदद की है। दरअसल यह त्योहारी प्रदूषण एक गंभीर मामला है जिसे गंभीरता से लेते हुए तत्काल कदम उठाने की जरुरत है।

Thursday, November 5, 2015

युग के विश्वामित्र का आवाहन last page

महाकाल के संकल्प युग परिवर्तन की पूर्ति हेतु सूक्ष्म जगत् से प्रचण्ड प्रवाह  धरती पर भेजा जा रहा है। परन्तु लौकिक जगत् में गुड़ गोबर सब एक हो जाने से कोई भी महत्वपूर्ण कदम इस दिशा में आगे नहीं बढ़ रहा है।
            गुड़ गोबर एक हो जाने का अर्थ है कि इस अभियान में बहुत से ऐसे लोगों की घुसपैठ हो गई है जो युग निर्माण के नाम पर अपने अहं, स्वार्थ व महत्त्वाकांक्षाओं का ही पोषण कर रहे हैं। जो संगठन को भीतर ही भीतर खोखला कर रहा है। जैसे नेता देश सेवा के नाम पर वोट माॅंगते हैं पर इसके पश्चात् क्या-क्या नहीं करते, यह किसी से छुपा नहीं है। क्या कारण है कि पाॅंच करोड़ लोगों का एक विशाल तन्त्र समाज पर अपना कोई विशेष प्रभाव नहीं दिखा पा रहा है। जबकि आचार्य जी के अनुसार जिस दिन 24 लाख लोग कदम से कदम मिला कर इस अभियान को पूरा करने के लिए आगे बढ़ेंगे उस दिन युग निर्माण के सूर्य को चमकने से कोई नहीं रोक सकेगा।
            युग निर्माण अभियान की सफलता के लिए साहसी, तपस्वी, बुद्धिमान, जुझारू व संवेदनशील 24,000 नायकों की आवश्यकता है जो ब्रह्मकमल के रूप् में खिलकर भारत की इस धरती को अपनी सुगन्ध से सुभाषित कर सकें व देवसत्ताओं की आशाओं पर खरे उतर सकें।

             भारत की 24 करोड़ की धर्म पारायण जनता से यदि केवल 24,000 सुपात्र आत्माओं का चयन कर उनको उच्च स्तरीय साधनाओं के द्वारा पोषित कर उनका संगठन बनाकर ब्रह्मास्त्र के रूप् में प्रयोग किया जाए तो इस धरती से शीघ्र ही असुरी शक्तियों का विनाश सम्भव है। परन्तु कठिनाई यह है कि व्यक्तिगत स्वार्थों व पद-प्रतिष्ठा के मोह में फंसे महानुभावों को यह बात समझ आए कैसे। भगवान की इस इच्छा की पूर्ति के लिए जिन दिव्य आत्माओं को भीतर यह तड़प उत्पन्न हो रही है उनके आवाह्न के लिए ही यह पुस्तक युग के विश्वामित्र का आवाह्नलिखी जा रही है।
विश्वामित्र राजेश