युग निर्माण योजना का विधिवत उदघोष युगऋषि श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने 1958सहस्र कुण्डीय गायत्री महायज्ञ में किया | यह अवसर था जब महाकाल का संकल्प और ऋषियों की युग निर्माण योजना व्यवस्थित रूप से संसार के सामने आई |
अखण्ड ज्योति परिवार, प्रज्ञा परिवार, गायत्री परिवार रूपी संगठनों का सृजन युगऋषि ने युग निर्माण योजना को क्रियान्वित करने के लिए करा | अपनी सूक्ष्म दृष्टि से संस्कारी अात्माओं को सूत्रबद्ध कर परिवार रूपी संगठन में पिरोया, अपनत्व एवं संरक्षण दिया | गुरुसत्ता के निस्वार्थ प्रेम से जुड़े करोड़ो परिजन उनका स्नेह एवं मार्गदर्शन सतत महसूस करते हैं |
धरती पर स्वर्ग के अवतरण हेतु युग निर्माण योजना का मूल उद्देश्य आस्था संकट का निवारण है | अच्छी और बुरी अास्था से एक ही व्यक्ति कभी अच्छा और कभी बुरा कार्य करता है | अतः मनःस्थिति परिवर्तन से संसार परिवर्तन, व्यक्ति निर्माण से युग निर्माण संभव है | सुधार का आरम्भ स्वयं से होता है, किसी व्यक्ति का निर्माण करने से पूर्व स्वयं का निर्माणआवशयक है, तभी वाणी में वह सत्य-प्राण आता है जिससे किसी को प्रभावित-प्रेरित किया जा सके|
युग निर्माण के सभी सूत्रों को समझने हेतु युगऋषि ने विस्तृत रूप से अनेक पुस्तकों, वांग्मय की रचना करी, पर आज 60 वर्ष बाद जरूरी है उन सूत्रों के पुनर्लोकन की | जब तक योजना स्पष्ट ना हो, तब तक लक्ष्य हासिल करना संभव नहीं | एक नई पीढ़ी मिशन से जुड़ चुकी है जिन्होने ना गुरुदेव को देखा ना माताजी को, उनके साहित्य शरीर के दर्शन भर किए हैं | युगऋषिकी जन्मशताब्दी मनाई जा चुकी है, और पिछले 100 वर्षों में संसार में अनेक वैचारिक, सांस्कृतिक परिवर्तन हुए हैं| अतः जरूरी है युग निर्माण योजना नए जमाने के नए ढंग से समझाने की, जिससे नई पीढ़ी इसे समझे साथ ही पुराने लोगो के लिए भी आवश्यक है अपने कार्यों की पुनरलोकन करते रहने कि ताकि भूलों को सुधारा जा सके एवं खाली पड़े मोर्चो पर भी मुस्तैदीसे डटा जा सके|
युग निर्माण की आवश्यकता : सात्विक एवं तामसिक शक्तियों में सतत संघर्ष चलता रहता है, ज्यादातर सूक्ष्म लोग में चलने वाला संग्राम स्थूल लोक में भी पूर्ण असर डालता है| सतयुग में सात्विकता का वर्चस्व था, त्रेतायुग में तामसिकता का उदय होना शुरू हुआ, द्वापर में तामसिकता ने और जोर पकड़ा एवं महाभारत के बाद तामसिक शक्तियां संसार में चारो और फैल गईएवं सात्विकता सिमट कर रह गई| अाज कलियुग की स्थिति यह है कि परमाणु हथियार, जैविक हथियार, धार्मिक आतंकवाद, ग्लोबल वार्मिंग एवं मनुष्य मात्र में छाई स्वार्थपरता-नीचता इस कदर भयावह हो गई कि संसार का विनाश निश्चित है| इस भयावह स्थिति को पलटने हेतु एवं सात्विकता की पुनर्स्थापन हेतु काल के देवता महाकाल ने स्वयं दखल देते हुए युगपरिवर्तन, सतयुग के पुनर्स्थापन का संकल्प लिया है | देवात्म हिमालय के दिव्य क्षेत्र में तपरत महान ऋषिसत्ताएँ इस योजना में 'संरक्षक एवं मार्गदर्शक' की भूमिका निभा रही हैं| धरती पर पुनः सतयुग स्थापना हेतु सामान्य मनुष्यों का भी इस ईश्वरीय योजना में भागीदार होना आवश्यक है तभी सूक्ष्म के परिवर्तन स्थूल जगत में परिलक्षित होंगे| संसार को विनाश से बचाने के लिएयह नितांत अनिवार्य है |
लक्ष्य: मनुष्य में देवत्व का उदय धरती पर स्वर्ग का अवतरण
कहा जा चुका है, मनुष्य ही अच्छी आस्थाओं के अंतर्गत अच्छे विचार एवं अच्छे कार्य करता है और बुरी आस्थाओं से बुरे कार्य | मनुष्य में देवता होने की एवं राक्षक होने की सारी सम्भावनाएं हैं| युग निर्माण योजना का उद्देश प्रत्येक व्यक्ति में देवत्व का उदय है जिससे तामसिकता को कोई स्थान ही ना मिले| देवता जहां रहते हैं स्वर्ग वहीं बना लेते हैं| युग परिवर्तन का यहीएकमात्र मार्ग है|
हम अपने गुण-कर्म-स्वभाव के अनुसार अच्छे या बुरे मनुष्य बनते हैं| हमारा चिंतन-चरित्र-व्यवहार हमारी चेतना का स्तर बताता है| स्वयं से तामसिकता हटा सात्विकता स्थापित करना युग निर्माण का प्रथम उद्देश्य है| यही अात्म निर्माण है, इससे कम में बात बनने वाली नहीं|
इसके लिए नित्य आत्मनिरीक्षण करना आवश्यक है| चिंतन-चरित्र-व्यवहार गुण-कर्म-स्वभाव के गहरे आत्मनिरीक्षण द्वारा हमें अपनी शुद्रताएँ दिखती है| फिर आत्मसुधार के संकल्प भरे प्रयत्नों द्वारा उन क्षुद्रताओं को दूर किया जाए| आत्म निर्माण का यही आध्यात्मिक मार्ग है|
अंतस मे सतप्रवृतियों स्थापना हेतु सर्वकालिक, सार्वभौमिक गायत्री महाशक्ति आधारिक उपासना-साधना-आराधना का अवलंबन लेने का निर्देश हमारी ऋषिसत्ताओं ने किया है|
गायत्री महामंत्र आधारित भाव भरी 'उपासना' हमारे अंतःकरण से विकारों का दुर्भावों का शमन कर सात्विकता का संचार करती है| आत्मबल प्रदान करते हुए मनुष्य को देवत्व का वरदान देती है |
सद्विचारों एवं सत्प्रवृत्तियों की 'साधना' के अंतर्गत जीवन को सही दिशा देने वाले सत्साहित्य का गहन स्वाध्याय एवं चिंतन मनन किया जाता है| आत्मशक्ति को जाग्रत करने हेतु अपनी दिनचर्या को इन्द्रियं संयम, समय संयम, अर्थ संयम, विचार संयम के प्रतिबंधों में बांधने की तपश्चर्या का अवलम्बन लिया जाता है|
स्वयं की संकीर्णता दूर करते हुए निस्वार्थ लोक सेवा में अपना समय, श्रम, पैसा दान करना 'आराधना' के अंतर्गत आता है| लोकसेवा ही ईश्वरभक्ति, इसका मंत्र है|
देखा जाता है वर्षों से पूजा-पाठ करने वाले, विभिन्न प्रकार साधनाएँ करने वाले साधक वर्षो की साधना के बाद भी तामसिकता से ग्रसित रहते हैं| उनका आध्यात्मिक विकास नहीं होता| क्रोध, आवेश, ईर्षा, द्वेष, परनिंदा इनके स्वभाव का अंग होती है| निंदा भले ही सही हो पर है तो दुर्गुण ही | साधक कच्ची मिट्टी होता है, जब किसी की सही निंदा भी करता है तो वहपरनिंदा का दुर्गुण साधक की साधना का नाश करदेता है| दुर्गुण चुम्बक समान होते हैं, यदि साधक क्रोधी हो और सोचता हो क्रोध द्वारा वह दूसरों की अनीति का विरोध करेगा तो वह क्रोध अपने अंतस में पालता है| वही क्रोध रूपी दुर्गुण अपने साथियों जैसे लालच, इर्षा, वासना को खींच लाते है| साधक की साधना का नाश होजाता है और साधक को पता भी नहीं चलता|
गायत्री परिवार में वर्षों से साधना एवं मिशन का काम करने वाले परिजनों में अक्सर नोकझोक, द्वेष-द्वंद्व की खबर आती रहती हैं| सवाल यह है कि यदि सबने आत्मनिर्माण की साधना करी तो फिर यह दुर्गुण उनमे बाकी कैसे रह गए| यदि सब आत्मनिर्माणी साधक हैं तो फिर लड़ते क्यों है? जाहिर है आत्मनिर्माण के नाम पर माला घुमाने की एवं किताबों के पन्ने पलटने कीरस्म निभाई गई, आत्मनिरीक्षण एवं आत्मसुधार ईमानदारी से नहीं किया गया | स्वयं के निर्माण की पहली अनिवार्य शर्त ही पूरी नहीं हुई तो फिर कहाँ से होगा युग निर्माण | परिजन भ्रमित है, युगऋषि व्यथित हैं एवं युगनिर्माण अपने समय से पीछे है|
सप्त आंदोलन: साधना, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वाबलम्बन, नारी जागरण, व्यसन मुक्ति कुरूति उन्मूलन, पर्यावरण के विभिन्न रचनात्मक कार्यक्रमों द्वारा समाज सेवा करना |
युग निर्माणी परिजनों को चाहिए कि वह अपनी आत्म निर्माण साधना में 'आराधना' के अंतर्गत इन सात आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी करें| अपने समय-श्रम-अंश का एक भाग समाज सेवा में लगाना आत्म निर्माण का अनिवार्य अंग है, युग निर्माण का मार्ग है |
युग निर्माण करने का अर्थ है हमारे प्रयासों द्वारा किसी व्यक्ति, परिवार, या समाज का निर्माण होना अर्थात वहां दुष्प्रवृत्तियों का शमन हो एवं सत्प्रवृत्तियों की स्थापना हो |
निर्माण करना एक प्रक्रिया है जिसमे 4 चरण है : प्रचार, रचना, सृजन, संघर्ष
प्रचार में हम विभिन्न कार्यक्रमों द्वारा अपने संदेश को, अच्छे विचारों को लोगो तक पहुंचते हैं | इससे संस्कारी-भावनाशील व्यक्ति हमे मिलते है | उदाहरण गायत्री यज्ञ, झोला पुस्तकालय, पुस्तक मेला, बड़े आयोजन आदि |
रचना में हम इन निकल कर आए लोगो को सप्त आंदोलन में से किसी कार्यक्रम में उनकी 'रुचि-योग्यता-क्षमता' अनुसार जोड़ देते हैं| इनमें व्यक्ति धीरे धीरे सेवा एवं सुधार क्षेत्र में सक्रिय होने लगता है| उदाहरण निर्मल गंगा, वृक्षारोपण, स्वाबलम्बन आदि सप्त आंदोलन |
सृजन पूर्णतः व्यक्ति निर्माण परिवार निर्माण पर केंद्रित हैं| हमारा मूल उद्देश्य है व्यक्ति-परिवार में सतप्रवृतियों की स्थापना, अस्थाओं का सात्विक कायाकल्प | यह कार्य साधना एवं सेवा के युग्म से ही संभव है | प्रचार से मिले और रचना से जुड़े व्यक्तिओं का वैचारिक-भावनात्मक-अाध्यात्मिक विकास सृजन मे किया जाता है| शांतिकुंज का निर्माण भी इसी प्रकार के सृजन हेतुयुगऋषि ने किया जहां साधना, प्रशिक्षण, मार्गदर्शन के विविध शिविरों द्वारा युग निर्माण होता है|
संघर्ष में सर्जन के दौरान आने वाले आंतरिक एवं बाहरी व्यवधानों का प्रतिरोध किया जाता है, एवं उन्हें रौंदते हुए आत्मकल्याण एवं लोक कल्याण के पथ पर आगे बढ़ा जाता है |
प्रचार-रचना-सृजन-संघर्ष के यह चरण युग निर्माण के रूप में तीन परिणाम लाते हैं : व्यक्ति निर्माण, परिवार निर्माण, समाज निर्माण
युगऋषि ने युग निर्माण योजना के इस स्वरूप को समझाते अनेक पुस्तकें लिखी, व्याख्यान दिए, प्रशिक्षण शिविर करे | प्रचार के निमित्त झोला पुस्तकालय, गायत्री यज्ञ का अभ्यास कराया, रचनात्मक निमित्त सप्त आंदोलनों का अभ्यास कराया, सृजन के निमित्त साधना शिविर, व्यक्तिगत परामर्श एवं व्यक्तित्व विकास शिविर कराए, सृजन निमित्त खर्चीली शादी एवं अन्यकुरूतियों के विरुद्ध धरने आंदोलन कराए | दिव्य सत्ता होते हुए भी वह मानवीय काया में प्राकृतिक नियम में बंधी थी, अपने 80 वर्ष के कार्यकाल में उन्होंने सभी 4 कार्यक्रमों का खूब अभ्यास करा दिया एवं सूक्ष्म में विलीन हो गए| वह समय युग निर्माण योजना में प्रचार का था, अतः संगठन स्तर पर गायत्री यज्ञ एवं पुस्तक प्रचार, अन्य प्रचारात्मक बड़े आयोजन अनेकों हुएएवं सफल भी हुए| 2000 के बाद से युवा पीढ़ी मिशन से जुड़नी शुरू हुई जिनमे नया जोश नई ऊर्जा थी | युग निर्माण योजना प्रचार से आगे बढ़ कर रचनात्मक चरण में पहुंच गई एवं युवा शक्ति के नियोजन से सप्त आंदोलन क्षेत्र में प्रगति हुई | अनेक प्रकार के सप्त सूत्रीय रचत्मक कार्यक्रम चलाएं जा रहे है जो कि मिशन की उपलब्धि है|
युग निर्माण योजना के सभी 4 चरणों का उद्देश है युग निर्माण अर्थात व्यक्ति-परिवार-समाज निर्माण | यह तभी संभव है जब हम प्रचार-रचना-सृजन-संघर्ष के चरण क्रमबद्ध रूप से करें वह भी निर्माण के उद्देश से | देखा जा अब युगनिर्माण में सभी प्रचार-रचना के कार्यक्रम निर्माण के उद्देश से प्रेरित न हो कर 'बड़ा आयोजना, बड़ा कार्यक्रम' की आकांक्षा से प्रेरित होते है |अतः कार्यक्रम तो हो जाता है, परन्तु उसका परिणाम 'निर्माण' न हो कर 'शून्य' भर रहजाता है| और लम्बे समय तक अगर यही भूल करी जाती रहे तो वहां आपसी मनमुटाव, विग्रह एवं राजनीति उपजने लगती है| आपसी झगड़े, मनमुटाव, परनिंदा में पड़ कर परिजन अपनी साधनात्मक बल खो देते हैं | बिना साधनात्मक बल के कार्यक्रम महज दिखावा रह जाता है, न तोउससे युग निर्माण होता है और न ही ऋषियों को संतुष्टि होती है|
सृजनात्मक कार्यक्रम के नाम पर सामूहिक साधना करा कर जिम्मेदारी पूरी कर ली जाती है, एवं दुष्प्रवृत्ति से संघर्ष के नाम पर रैली निकल दी जाती हैं| फिर हम गुरुसत्ता के सामने जा कर कहते हैं बहुत बढ़िया काम कर के आए, प्रेम की साकार मूर्ति हमारी गुरुसत्ता उसमे भी हम पर प्रसन्न हो आशीर्वाद देतें है, शाबाशी देतें है इस उम्मीद में आज नहीं तो कल बच्चा बड़ाहोगा, पूर्ण युग निर्माण को समझेगा एवं बड़ा कार्यक्रम की तारीफ नहीं अपितु कार्यक्रम से हुए युग निर्माण की उपलब्घि ले कर आएगा | कब आएगा वो दिन ?
प्रचार-रचना-संघर्ष सभी का एक ही उद्देश है सृजन, युग निर्माण का सृजन, व्यक्ति-परिवार-समाज के निर्माण का सृजन इससे कम कुछ नहीं | होना यह चाहिए जिस क्षेत्र में युग निर्माण योजना पर कार्य करा जा रहा हो , वहां चारों कार्यक्रमों की विशेषज्ञ टीमें हो | विशेषज्ञ अन्य परिजनों के सहयोग से चरण बद्ध रूप में युग निर्माण करें |
- प्रचार के विशेषज्ञ अपने क्षेत्र के हालत अनुसार विभिन्न कार्यक्रमों द्वारा युगनिर्माण विचारधारा का प्रचार करें |
- रचना के विशेषज्ञ प्रचार से आए लोगो को उनके रुचि-क्षमता-कौशल अनुसार किसी रचनात्मक कार्य में निजोयन करें|
- सृजन के विशेषज्ञ लोग वह लाग हो जो आत्म निर्माण के पथ पर वरिष्ठ हो एवं किसी का वैचारिक, भावनात्मक, आध्यात्मिक मार्गदर्शन करने में समर्थ हों | ऐसे विशेषज्ञ रचना-प्रचार से जुड़े व्यक्तियों को आत्म साधना का महत्व समझाएं एवं साधना कराएं| उनके मनोवैज्ञानिक संरचना समझते हुए उनके मानसिक-भावनात्मक-पारिवारिक द्वन्दों को शांत करें एवं देवत्वप्राप्त करने की दिशा में मार्गदर्शन करें|
- संघर्ष के विशेषज्ञ अपने क्षेत्र में पैर पसार रही कुरूतियों के विरूद्ध नियमित विरोध प्रदर्शन एवं जन जागरण करें, ध्यान रखें संघर्ष व्यक्ति के विरुद्ध नहीं दुष्प्रवृत्तियों के विरुद्ध ही किया जाए |
यदि हमारे परिजन उपयुक्त योजना अनुसार टीम वर्क करते हुए चरण बद्ध हो काम करें, तो उन्हें पूर्ण युगनिर्माण में आशातीत सफलता मिलेगी| युग निर्माण सवर्प्रथम वही होगा, उनके क्षेत्र में सतयुगी वातावरण बनेगा एव वह क्षेत्र अन्य लोगो के लिए मिसाल बन जाएगा | प्रस्तुत समय रचनात्मक से आगे बढ़ सृजनात्मक एवं संघर्षात्मक का है, बड़े काम के लिए बड़ाव्यक्तित्व चाहिए| संस्कारी आत्माओं की हमारे परिवार में कमी नहीं, कमी है उनके सही मार्गदर्शन की और स्वयं उन आत्माओं को भी संकीर्णता तोड़ विवेक एवं ज्ञान अनुसार चलने की | देवात्मा हिमालय की महान ऋषिसत्ताएं अपने दिव्य मार्गदर्शन द्वारा ऐसी संस्कारवान आत्माओं को पुकार रही हैं एवं उन्हें आत्म जागरण का दिव्य वरदान देने को आकुल हैं| आवशक्ता हैकी हम युगऋषि द्वारा दिखाए गए पथ पर दृढ़ता पूर्वक चले, सब कुछ वह लिख कर गए है, उसे पढ़े, युगऋषि के सिद्धांतों के विरुद्ध ना तो स्वयं चले ना ऐसे काम का सहयोग करें| अन्यों का हम सम्मान करें परम हमारी श्रृद्धा का केंद्र सिर्फ गुरुसत्ता रहें| आत्म निर्माण ही युग निर्माण की कुंजी है इस वाक्य को अपने जीवन में सत्य कर के दिखाएँ |
Author
Ankur Saxena