Monday, June 27, 2016

युग निर्माण की योजना, एक नवीन अवलोकन



युग निर्माण योजना का विधिवत उदघोष युगऋषि श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने 1958सहस्र कुण्डीय गायत्री महायज्ञ में किया | यह अवसर था जब  महाकाल का  संकल्प और ऋषियों की युग निर्माण योजना व्यवस्थित रूप से संसार के सामने आई |

 
अखण्ड ज्योति परिवारप्रज्ञा परिवारगायत्री परिवार रूपी संगठनों का सृजन युगऋषि ने युग निर्माण योजना को क्रियान्वित करने के लिए करा | अपनी  सूक्ष्म दृष्टि से संस्कारी अात्माओं को सूत्रबद्ध  कर परिवार रूपी संगठन में पिरोयाअपनत्व एवं संरक्षण दिया | गुरुसत्ता के निस्वार्थ प्रेम से जुड़े करोड़ो परिजन उनका स्नेह एवं मार्गदर्शन सतत महसूस करते हैं |

 
धरती पर स्वर्ग के अवतरण हेतु युग निर्माण योजना का मूल उद्देश्य आस्था संकट का निवारण है | अच्छी और बुरी अास्था से  एक ही व्यक्ति कभी अच्छा और कभी बुरा कार्य करता है |  अतः मनःस्थिति परिवर्तन से संसार परिवर्तनव्यक्ति निर्माण से युग निर्माण संभव है |  सुधार का आरम्भ स्वयं से होता हैकिसी व्यक्ति का निर्माण करने से पूर्व स्वयं का निर्माणआवशयक हैतभी वाणी में वह सत्य-प्राण आता है जिससे किसी को प्रभावित-प्रेरित किया जा सके|

 
युग निर्माण के सभी सूत्रों को समझने हेतु युगऋषि ने विस्तृत रूप से अनेक पुस्तकोंवांग्मय की रचना करीपर आज 60 वर्ष बाद जरूरी है उन सूत्रों के पुनर्लोकन की | जब तक योजना स्पष्ट ना होतब तक लक्ष्य हासिल करना संभव नहीं | एक नई पीढ़ी मिशन से जुड़ चुकी है जिन्होने ना गुरुदेव को देखा ना माताजी कोउनके साहित्य शरीर के दर्शन  भर किए हैं | युगऋषिकी जन्मशताब्दी मनाई जा चुकी हैऔर पिछले 100 वर्षों में संसार में अनेक वैचारिकसांस्कृतिक परिवर्तन हुए हैंअतः जरूरी है युग निर्माण योजना नए जमाने  के नए ढंग से समझाने कीजिससे नई पीढ़ी इसे समझे साथ ही  पुराने लोगो के लिए भी आवश्यक है अपने कार्यों की पुनरलोकन करते रहने कि ताकि भूलों को सुधारा जा सके एवं खाली पड़े मोर्चो पर भी मुस्तैदीसे डटा जा सके|

 
युग निर्माण की आवश्यकता :  सात्विक एवं तामसिक शक्तियों में सतत संघर्ष चलता रहता हैज्यादातर सूक्ष्म लोग में चलने वाला संग्राम स्थूल लोक में भी पूर्ण असर डालता हैसतयुग में सात्विकता का वर्चस्व थात्रेतायुग में तामसिकता का उदय होना शुरू हुआद्वापर में तामसिकता ने और जोर पकड़ा एवं महाभारत के बाद तामसिक शक्तियां संसार में चारो और फैल गईएवं सात्विकता सिमट कर रह गईअाज कलियुग की  स्थिति यह है कि परमाणु हथियारजैविक हथियारधार्मिक आतंकवादग्लोबल वार्मिंग एवं मनुष्य मात्र में छाई स्वार्थपरता-नीचता इस कदर भयावह हो गई कि संसार का विनाश निश्चित  हैइस भयावह  स्थिति को पलटने हेतु एवं सात्विकता की  पुनर्स्थापन हेतु काल के देवता महाकाल ने स्वयं दखल देते हुए युगपरिवर्तनसतयुग के पुनर्स्थापन का संकल्प लिया है | देवात्म हिमालय के दिव्य क्षेत्र में तपरत महान ऋषिसत्ताएँ इस योजना में 'संरक्षक एवं मार्गदर्शककी भूमिका निभा रही हैंधरती पर पुनः सतयुग स्थापना हेतु सामान्य मनुष्यों का भी इस ईश्वरीय योजना में भागीदार होना आवश्यक है तभी सूक्ष्म के परिवर्तन स्थूल जगत में परिलक्षित होंगेसंसार को विनाश से बचाने के लिएयह नितांत अनिवार्य है |

लक्ष्यमनुष्य में देवत्व का उदय धरती पर स्वर्ग का अवतरण
कहा जा चुका हैमनुष्य ही अच्छी आस्थाओं के अंतर्गत अच्छे  विचार एवं अच्छे कार्य करता है और बुरी आस्थाओं से बुरे कार्य | मनुष्य में देवता होने की एवं राक्षक होने की सारी सम्भावनाएं हैंयुग निर्माण योजना का उद्देश प्रत्येक व्यक्ति में देवत्व का उदय है जिससे तामसिकता को कोई स्थान ही ना मिलेदेवता जहां रहते हैं स्वर्ग वहीं बना लेते हैंयुग परिवर्तन का यहीएकमात्र मार्ग है|

हम अपने गुण-कर्म-स्वभाव के अनुसार अच्छे या बुरे मनुष्य बनते हैंहमारा चिंतन-चरित्र-व्यवहार हमारी चेतना का स्तर बताता हैस्वयं से तामसिकता हटा सात्विकता स्थापित करना युग निर्माण का प्रथम उद्देश्य हैयही अात्म निर्माण हैइससे कम में बात बनने वाली नहीं|
इसके लिए नित्य आत्मनिरीक्षण करना आवश्यक हैचिंतन-चरित्र-व्यवहार गुण-कर्म-स्वभाव के गहरे आत्मनिरीक्षण द्वारा हमें अपनी शुद्रताएँ दिखती है|  फिर आत्मसुधार के संकल्प भरे प्रयत्नों द्वारा उन क्षुद्रताओं को दूर किया जाएआत्म निर्माण का यही आध्यात्मिक मार्ग है|
अंतस मे सतप्रवृतियों स्थापना हेतु  सर्वकालिकसार्वभौमिक गायत्री महाशक्ति आधारिक उपासना-साधना-आराधना का अवलंबन लेने का निर्देश हमारी ऋषिसत्ताओं ने किया है|
गायत्री महामंत्र आधारित भाव भरी 'उपासनाहमारे अंतःकरण से विकारों का दुर्भावों का शमन कर सात्विकता का संचार करती हैआत्मबल प्रदान करते हुए मनुष्य को देवत्व का वरदान देती है |
सद्विचारों एवं सत्प्रवृत्तियों की 'साधनाके अंतर्गत जीवन को सही दिशा देने वाले सत्साहित्य का गहन स्वाध्याय एवं चिंतन मनन किया जाता हैआत्मशक्ति को जाग्रत करने हेतु अपनी दिनचर्या को इन्द्रियं संयमसमय संयमअर्थ संयमविचार संयम के प्रतिबंधों में बांधने की तपश्चर्या का अवलम्बन लिया जाता है|
स्वयं की संकीर्णता दूर करते हुए निस्वार्थ लोक सेवा में अपना समयश्रमपैसा दान करना 'आराधनाके अंतर्गत आता हैलोकसेवा ही ईश्वरभक्तिइसका मंत्र है|
देखा जाता है वर्षों से पूजा-पाठ करने वालेविभिन्न प्रकार  साधनाएँ करने वाले साधक वर्षो की साधना के बाद भी तामसिकता से ग्रसित रहते हैंउनका आध्यात्मिक विकास नहीं होता|  क्रोधआवेशईर्षाद्वेषपरनिंदा इनके  स्वभाव का अंग होती हैनिंदा भले ही सही हो पर है तो दुर्गुण ही | साधक कच्ची मिट्टी होता हैजब किसी की सही निंदा भी करता है तो वहपरनिंदा का दुर्गुण साधक की साधना का नाश करदेता हैदुर्गुण चुम्बक समान होते हैंयदि साधक क्रोधी हो और सोचता हो क्रोध द्वारा वह दूसरों की अनीति का विरोध करेगा तो वह क्रोध अपने अंतस में पालता हैवही क्रोध रूपी दुर्गुण अपने साथियों जैसे लालचइर्षावासना को खींच लाते हैसाधक की साधना का नाश होजाता है और साधक को पता भी  नहीं चलता|
गायत्री परिवार में वर्षों से साधना एवं मिशन का काम करने वाले परिजनों में अक्सर नोकझोकद्वेष-द्वंद्व की  खबर आती रहती हैंसवाल यह है कि  यदि सबने आत्मनिर्माण की साधना करी तो फिर यह दुर्गुण उनमे बाकी कैसे रह गएयदि सब आत्मनिर्माणी साधक हैं तो फिर लड़ते क्यों हैजाहिर है आत्मनिर्माण के नाम पर माला घुमाने की एवं किताबों के पन्ने पलटने कीरस्म निभाई गईआत्मनिरीक्षण एवं आत्मसुधार ईमानदारी से नहीं किया गया | स्वयं के निर्माण की  पहली अनिवार्य शर्त ही पूरी नहीं हुई तो फिर कहाँ से होगा युग निर्माण | परिजन भ्रमित हैयुगऋषि व्यथित हैं एवं युगनिर्माण अपने समय से पीछे है|

सप्त आंदोलनसाधनाशिक्षास्वास्थ्यस्वाबलम्बननारी जागरणव्यसन मुक्ति कुरूति उन्मूलनपर्यावरण  के विभिन्न रचनात्मक कार्यक्रमों द्वारा समाज  सेवा करना |
युग निर्माणी परिजनों को चाहिए कि वह अपनी आत्म निर्माण साधना में 'आराधनाके अंतर्गत इन सात आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी करेंअपने समय-श्रम-अंश का एक भाग समाज सेवा में लगाना आत्म निर्माण का अनिवार्य अंग हैयुग निर्माण का मार्ग है |
युग निर्माण करने का अर्थ है हमारे प्रयासों द्वारा किसी व्यक्तिपरिवारया समाज का निर्माण होना अर्थात वहां दुष्प्रवृत्तियों का शमन हो एवं सत्प्रवृत्तियों की स्थापना हो  |
निर्माण करना एक प्रक्रिया है जिसमे 4 चरण  है : प्रचाररचनासृजनसंघर्ष
प्रचार में हम विभिन्न कार्यक्रमों द्वारा अपने संदेश कोअच्छे विचारों को लोगो तक पहुंचते हैं | इससे संस्कारी-भावनाशील व्यक्ति हमे मिलते है | उदाहरण गायत्री यज्ञझोला पुस्तकालय,  पुस्तक मेलाबड़े आयोजन आदि |
रचना में हम इन निकल कर आए लोगो को सप्त आंदोलन में से किसी कार्यक्रम में उनकी 'रुचि-योग्यता-क्षमताअनुसार जोड़ देते हैंइनमें व्यक्ति धीरे धीरे सेवा एवं सुधार क्षेत्र में सक्रिय होने लगता हैउदाहरण  निर्मल गंगावृक्षारोपणस्वाबलम्बन आदि सप्त आंदोलन |
सृजन पूर्णतः व्यक्ति निर्माण परिवार निर्माण पर केंद्रित हैंहमारा मूल उद्देश्य है व्यक्ति-परिवार में सतप्रवृतियों की स्थापनाअस्थाओं का सात्विक कायाकल्प | यह कार्य साधना एवं सेवा के युग्म से ही संभव है | प्रचार से मिले और रचना से  जुड़े व्यक्तिओं का वैचारिक-भावनात्मक-अाध्यात्मिक विकास सृजन मे किया जाता हैशांतिकुंज का निर्माण भी इसी प्रकार के सृजन हेतुयुगऋषि ने किया जहां साधनाप्रशिक्षणमार्गदर्शन के विविध शिविरों द्वारा युग निर्माण होता है|
संघर्ष में सर्जन के दौरान आने वाले आंतरिक एवं बाहरी व्यवधानों का प्रतिरोध किया जाता हैएवं उन्हें रौंदते हुए आत्मकल्याण एवं लोक कल्याण के पथ पर आगे बढ़ा जाता है |
प्रचार-रचना-सृजन-संघर्ष के यह चरण युग निर्माण के रूप में तीन परिणाम लाते हैं : व्यक्ति निर्माणपरिवार निर्माणसमाज निर्माण
युगऋषि ने  युग निर्माण योजना के इस स्वरूप को समझाते अनेक पुस्तकें लिखीव्याख्यान दिएप्रशिक्षण शिविर करे | प्रचार के निमित्त झोला पुस्तकालयगायत्री यज्ञ का अभ्यास कराया,  रचनात्मक निमित्त सप्त आंदोलनों का अभ्यास करायासृजन के निमित्त साधना शिविरव्यक्तिगत परामर्श एवं व्यक्तित्व विकास शिविर कराएसृजन निमित्त खर्चीली शादी एवं अन्यकुरूतियों के विरुद्ध धरने आंदोलन कराए | दिव्य सत्ता होते हुए भी वह मानवीय काया में प्राकृतिक नियम में बंधी थीअपने 80 वर्ष के कार्यकाल में उन्होंने सभी 4 कार्यक्रमों का खूब अभ्यास करा दिया एवं सूक्ष्म में विलीन हो गएवह समय युग निर्माण योजना में प्रचार का थाअतः संगठन स्तर पर गायत्री यज्ञ एवं पुस्तक प्रचारअन्य प्रचारात्मक बड़े आयोजन अनेकों हुएएवं सफल भी हुए| 2000 के बाद से युवा पीढ़ी मिशन से जुड़नी शुरू हुई जिनमे नया जोश नई ऊर्जा थी | युग निर्माण योजना प्रचार से आगे बढ़ कर रचनात्मक चरण में पहुंच गई एवं युवा  शक्ति के नियोजन से सप्त आंदोलन क्षेत्र में प्रगति हुई | अनेक प्रकार के सप्त सूत्रीय रचत्मक कार्यक्रम चलाएं जा रहे है जो कि मिशन की उपलब्धि है|

    
युग निर्माण योजना के सभी 4 चरणों का उद्देश है युग निर्माण अर्थात व्यक्ति-परिवार-समाज निर्माण | यह तभी संभव है जब  हम प्रचार-रचना-सृजन-संघर्ष  के चरण क्रमबद्ध रूप से करें वह भी निर्माण के उद्देश से | देखा जा अब युगनिर्माण में सभी प्रचार-रचना के कार्यक्रम निर्माण के उद्देश से प्रेरित  हो कर 'बड़ा आयोजनाबड़ा कार्यक्रमकी आकांक्षा से प्रेरित होते है |अतः कार्यक्रम तो हो जाता हैपरन्तु उसका परिणाम 'निर्माण हो कर 'शून्यभर रहजाता हैऔर लम्बे समय तक अगर यही भूल करी जाती रहे तो वहां आपसी मनमुटावविग्रह एवं राजनीति उपजने लगती हैआपसी झगड़ेमनमुटावपरनिंदा में पड़  कर परिजन अपनी साधनात्मक बल खो देते हैं | बिना साधनात्मक बल के कार्यक्रम महज दिखावा रह जाता है तोउससे युग निर्माण होता है और  ही ऋषियों को संतुष्टि होती है|

  
सृजनात्मक कार्यक्रम के नाम पर  सामूहिक साधना करा कर जिम्मेदारी पूरी कर ली जाती हैएवं दुष्प्रवृत्ति से संघर्ष के नाम पर रैली निकल दी जाती हैंफिर हम गुरुसत्ता के सामने जा कर कहते हैं बहुत बढ़िया काम कर के आएप्रेम की साकार मूर्ति हमारी गुरुसत्ता उसमे भी हम पर प्रसन्न हो आशीर्वाद देतें  हैशाबाशी देतें है इस उम्मीद में आज नहीं तो कल बच्चा बड़ाहोगापूर्ण युग निर्माण को समझेगा एवं बड़ा कार्यक्रम की तारीफ नहीं अपितु कार्यक्रम से हुए युग निर्माण की उपलब्घि ले कर आएगा | कब आएगा वो दिन ?

  
प्रचार-रचना-संघर्ष सभी का एक ही उद्देश है सृजनयुग निर्माण का सृजनव्यक्ति-परिवार-समाज के निर्माण का सृजन इससे कम कुछ नहीं | होना यह चाहिए जिस क्षेत्र में युग निर्माण योजना पर कार्य करा जा रहा हो , वहां चारों कार्यक्रमों की विशेषज्ञ टीमें हो | विशेषज्ञ अन्य परिजनों के सहयोग से चरण बद्ध  रूप में युग निर्माण करें | 
  • प्रचार के विशेषज्ञ अपने क्षेत्र के हालत अनुसार विभिन्न कार्यक्रमों द्वारा युगनिर्माण विचारधारा का प्रचार करें | 
  • रचना के विशेषज्ञ प्रचार से आए लोगो को उनके रुचि-क्षमता-कौशल अनुसार किसी रचनात्मक कार्य में निजोयन करें|
  • सृजन के विशेषज्ञ लोग वह लाग हो जो आत्म निर्माण के पथ पर वरिष्ठ हो एवं किसी का वैचारिकभावनात्मकआध्यात्मिक मार्गदर्शन करने में समर्थ हों | ऐसे विशेषज्ञ रचना-प्रचार से जुड़े व्यक्तियों को आत्म साधना  का महत्व समझाएं एवं साधना कराएंउनके मनोवैज्ञानिक संरचना समझते हुए उनके मानसिक-भावनात्मक-पारिवारिक द्वन्दों को शांत करें एवं देवत्वप्राप्त करने की दिशा में मार्गदर्शन करें|
  • संघर्ष  के विशेषज्ञ अपने क्षेत्र में पैर पसार रही कुरूतियों के विरूद्ध नियमित विरोध प्रदर्शन एवं जन जागरण करेंध्यान रखें संघर्ष व्यक्ति के विरुद्ध नहीं दुष्प्रवृत्तियों के विरुद्ध ही किया जाए |

    
यदि हमारे परिजन उपयुक्त योजना अनुसार टीम वर्क करते हुए चरण बद्ध हो काम करेंतो उन्हें पूर्ण युगनिर्माण में आशातीत सफलता मिलेगी|  युग निर्माण सवर्प्रथम वही होगाउनके क्षेत्र में सतयुगी वातावरण बनेगा एव वह क्षेत्र अन्य लोगो के  लिए मिसाल बन जाएगा |  प्रस्तुत समय रचनात्मक से आगे बढ़ सृजनात्मक एवं संघर्षात्मक का हैबड़े काम के लिए  बड़ाव्यक्तित्व चाहिए|  संस्कारी आत्माओं की हमारे परिवार में कमी नहींकमी है उनके सही मार्गदर्शन की और स्वयं उन आत्माओं को भी संकीर्णता तोड़ विवेक एवं ज्ञान अनुसार चलने की | देवात्मा हिमालय की महान ऋषिसत्ताएं  अपने दिव्य मार्गदर्शन द्वारा ऐसी संस्कारवान आत्माओं को पुकार रही हैं एवं उन्हें आत्म जागरण का दिव्य वरदान देने को आकुल हैंआवशक्ता हैकी हम युगऋषि द्वारा दिखाए गए पथ पर दृढ़ता पूर्वक चलेसब कुछ वह लिख कर गए हैउसे पढ़ेयुगऋषि के सिद्धांतों के विरुद्ध ना तो स्वयं चले ना ऐसे काम का सहयोग करेंअन्यों का हम सम्मान करें परम हमारी श्रृद्धा का केंद्र सिर्फ गुरुसत्ता रहें|  आत्म निर्माण ही युग निर्माण की कुंजी है इस वाक्य को अपने जीवन में सत्य कर के दिखाएँ |


 Author
Ankur Saxena

No comments:

Post a Comment