Monday, November 14, 2016

युग नायकों की समीक्षा व निवेदन

जब तक था अज्ञान का अंधेरा
गलतियाँ हुई
अब है समय भरपाई का
एक स्थान पर 24 कुण्डी यज्ञ का आयोजन हुआ। बड़े मनोयोग से गायत्री परिवार के कार्यकर्ताओं ने इसकी तैयारी की। निमन्त्रण पाकर मुझे भी यज्ञ में सम्मिलित होने का सुअवसर प्राप्त हुआ। पहले दिन कलश यात्रा थी। यह क्या यहाँ तो 24 कलश उठाने के लिए 24 महिलाएँ नहीं मिल पा रही हैं। कार्यकर्ता बेचारे शर्म के मारे पानी-पानी हुए थे। मेरी आँखों में भी आँसू थे। जहाँ कभी अश्वमेघ यज्ञ हुआ था लाखों लोग एकत्र हुए थे वहाँ आज यह स्थिति।
     दूसरे दिन उपस्थिति थोड़ा बढ़ी परन्तु आँकड़ा तीन अंको तक नहीं पहुँच पाया। अन्तिम दिन रविवार को फिर भी उपस्थिति ठीक रही।
    मेरी आत्मा में अनेक प्रश्न उभरे! क्या सन् 2000 के उपरान्त गायत्री परिवार में वृ(ि हुई अथवा गिरावट आयी। क्या हम अपनी समीक्षा करने से डरते हैं? परीक्षा के लिए कितनी तैयारी है कया विद्यार्थी को उसका आंकलन नहीं करना चाहिए?
युग निर्माण के लिए हम कितना सशक्त हैं कितने संगठित है। क्या यह समीक्षा हमारे लिए अनिवार्य नहीं है? विस्तृत समीक्षा ‘युग के विश्वामित्र का आहवान्’ पुस्तक ;लेखक डा. राजेश अग्रवालद्ध में पढ़ने को मिलती है। यहाँ पर भी कुछ चर्चा की जा रही है।
शास्त्रों के अनुसार ‘गायत्री ब्राहम्ण की कामधेनु है’ 
इसका सीधा सा अर्थ है कि गायत्री का प्रयोग यदि सतोगुणी हुआ तो वह कामधेनु के समान साधक के जीवन में फलदायी हो जाती है। थोड़ा विस्तार में चिन्तन करें तो पाँएगें कि गायत्री जप से जो ऊर्जा उत्पन्न होती है व्यक्ति का मन उसका प्रयोग तीन तरह के प्रयोजनों को पूरा करने में करता है। पहला सतोगुणी, दुसरा रजोगुणी, तीसरा तमोगुणी। आत्म-चिन्तन करें कि हमारे मन मेें किस प्रकार के भाव अधिक उठते हैं-
1. मुझे अपने गुरु का काम करना है व एक आचार्य की भूमिका निभानी है।
2. मैंने जो मंच से बोला वह मेरे गुरु की प्रेरणा थी।
3. मान-अपमान मेरे गुरु को समर्पित है।
4. जीवन की आहुति गुरु के चरणों में, कर्म खर्च में निर्वाह।
5. अपने लिए कठोर व दूसरो के लिए उदार।
6. मेरी ख्याति गायत्री परिवार में दिन रात बढ़ रही है। मैं व मेरा परिवार पूजनीय बन जाए।
7. मुझे गायत्राी परिवार में बड़ा पद प्राप्त हो। मुझे लोग मुखिया की तरह सम्मान करें।
8. मैं अपनी तप साधना से किसी का भी भला-बुरा कर सकता हूँ।
9. मैं बड़ा लेखक, वक्ता हूँ मेरे भाषण व लेखन से इतने लोग प्रभावित होते हैं।
10. मैं गायत्री परिवार में इतने लम्बे समय से जुड़ा हूँ मैंने गुरुदेव का बहुत साहित्य पढ़ा है मुझे अब कुछ और पढ़ने की आवश्यकता नहीं है।
11. उसने मेरे चरित्र पर दोष लगाया जरा मिल जाए उसकी अच्छी तरह खबर लूँगा।
12. उसने मेरा इतना नुकसान कर दिया इसका बदला मैं लेकर रहूँगा।
13. उसे पता नहीं उसने किसका अपमान किया है उसका सर्वनाश हो जाएगा।
14. बहुत अच्छा हुआ जो उसका कार्यक्रम फलाप हो गया हमसे पूछे बिना कैसे कार्य सम्पन्न हो सकता था।
15. अच्छा हुआ जो उस पर कष्ट आया, मुझे उसने परेशान कर रखा था। भविष्य में भी वह कभी सुखी नहीं रहेगा।
यह समझाने के लिए एक सैम्पल बनाया गया है जिसमंे पहले 5 विचार सतोगुणी, दूसरे 5 विचार रजोगुणी व तीसरे 5 विचार तमोगुणी प्रकृति के हैं
अनेक साधकों की यह कुण्ठा रहती है कि इतना गायत्री जप किया फिर भी कुछ नहीं मिला। यदि हमारे मन में सतोगुणी विचारों की प्रधानता है तो ही गायत्री मन्त्र हमरे लिए कामधेनु के समान फलीभूत होने लगेगा। यह नहीं सोचना चाहिए कि रजोगुण व्यर्थ है जीवन निर्वाह के लिए रजोगुण चाहिए व सुरक्षा के लिए तमोगुण भी चाहिए। आसुरी शक्तियों से मिशन को बचाने के लिए तमोगुण भी आवश्यक है। यह खेल थोड़ा उलझा हुआ है व जो त्रिगुणतीत है वही तीनों गुणों को आवश्यकतानुसार उपयोग करने में समर्थ हैं।
संसार के अधिकतर प्राणी रजोगुण व तमोगुण की चपेट में हैं। जिसका परिणाम बड़ा ही घातक हो रहा है। सभी मिशनों की लगभग एक सी ही राम कहानी है-
इतना किया जप-तप, हाथ नहीं कुछ आया है।
लोगों को दिए उपदेश बहुत, स्वयं कुछ नहीं पाया है।।
यदि मिशनों के नामी-गिरामी कार्यकत्र्ताओं की सर्जीकल सटाइक हो जाए तो पता चलेगा कि किसी का दिल रोगी है तो किसी का पेट रोगी है तो कोई सिर दर्द व कमर दर्द से परेशान है।
धर्म-तन्त्र भी रजोगुण व तमोगुण की चपेट में है। एक ही गुरु के दो शिष्य एक-दूसरे को नीचे गिराने के लिए एक दूजे के ऊपर तन्त्र प्रयोग कर रहे हैं इससे बड़ी विडम्बना और क्या हो सकती है।
परमपूज्य गुरुदेव ने प्रारम्भ से ही मिशन को रजोगुणी लोगो से बचाकर भावनाशीलों व त्याग द्वारा पोषित किया। इसी क्रम में उन्होंने अनेक धनवानों के प्रभाव से मिशन को बचाया यह सर्वविदित है। कुछ धनवानों का उन्होंने गुप्त रूप से सहयोग लिया परन्तु उनको मिशन में कहीं भागीदारी नहीं दी। ऐसे कईं उद्योगपति हैं जो डूबती हुई स्थिति में गुरुदेव के पास आए। गुरुदेव ने उनसे धन का एक भाग युग-निर्माण के लिए मांगा परन्तु उनको मिशन की योजनाओं से अलग रखा।
आज रजोगुणी व तमोगुणी लोगो के बढ़ते प्रभाव से मिशन में गुड़-गोबर की स्थिति उत्पन्न हो गयी है। जगह-जगह बड़े-बड़े भवनों का निर्माण हुआ है परन्तु भावनाशीलों की सख्यँा घटी है। शक्तिपीठो पर झगड़े झंझट बढे़ हैं। इसी कारण नए युवा मिशन से नहीं जुड़ पाए।
जो सम्पर्क में आए स्थिति व मानसिकता देखकर भाग खड़े हुए। गायत्री परिवार के शुभ-चिन्तकों, बड़े कार्यकत्ताओं, नायकों से यह विनम्र अनुरोध है कि वो अपनी जिम्मेदारी समझें व आसुरी शक्तियों द्वारा उत्पन्न मतिभ्रम से बाहर निकलें। समुद्र मंथन की भाँति आत्म चिन्तन करें। सारी बात समझ आएगी परतें खुलती जाँएगी, अहं के असुरी मकड़ जाल से मुक्ति मिलेगी। जब बालक को प्यार की भाषा समझ नहीं आती तो दूसरी भाषा बड़ी कष्टदायी होती है। मैं अपनी कलम से इसको नहीं लिखना चाहता हूँ।
युग नायकों की मानसिकता जिस दिन सही हो जाएगी। उस दिन युग-निर्माण के उपर छाया कोहरा हटने लगेगा। एक छोटी सी कहानी के द्वारा यह समझाया जा रहा है-
यूरी गैलर- ज्ीवनहीज च्वूमत या संकल्प शक्ति से चलती घड़ियों व संकल्प शक्ति से अंकुरित हो गया।
युग नेतृत्व के लिए उदारता आवश्यक- एक बार एक राजा जो बहुत ही न्यायप्रिय था भेष बदल कर घूमा करता था। वह एक गाँव में पहुँचा वहाँ गन्ने की बहुत अच्छी फसल हुयी थी। एक बूढ़ी माता खेत की देखभाल कर रही थी। 
मुसाफिर के भेष में राजा ने बूढ़ी माता से उसकी फसल के विषय में पूछताछ की। माता ने पहले तो मुसाफिर को गन्ने का रस पिलाया। मुसाफिर उसके अतिथि सत्कार से बहुत प्रसन्न हुआ। ऐसा रस उसने कभी नहीं पिया था। माता ने अतिथि को बताया कि राज्य का स्वामी बहुत ही श्रेष्ठ व्यक्ति है उसी के प्रताप से गाँव-खेत हरे भरे रहते हैं।
अब राजा को यह लगा कि जब उसके प्रताप से खेती हरी-भरी है तो इसका एक भाग उसके राज कोष को मिलना चाहिए। राजा ने अब प्रजा पर कर लगा दिया। राज कोष भरता रहा व राजा खुब प्रसन्न हुआ। इस प्रकार जीन वर्ष बीत गए। राजा एक बार वेश बदलकर प्रजा का हाल जानने के लिए निकला व उसी स्थान पर पहुँचा।
बूढ़ी माता ने पुनः दो गन्नें तोड़े व रस निकाला। गिलास इस बार आधा भरा था। राजा ने रस पिया तो उतना स्वादिष्ट भी नहीं लगा। मुसाफिर के भेष में राजा ने पूछा कि पहले तो गन्ने से अधिक रस निकलता था अब कम क्यों? इस पर बूढ़ी माता ने बड़ा सुन्दर उत्तर दिया-
‘‘जब से राजा दया हीन हुआ है यह धरती भी रस हीन हो गयी है।’’
राजा यह उत्तर सुनकर भौचक्का रह गया उसे अपनी गलती पर भारी पश्चाताप हुआ व उसने तुरन्त कर वापिस दिए।
आज भी समाज की यही विडम्बना है। अनेक मिशनों के पास भारी सम्पत्ति है धन-दौलत है परन्तु कार्यकत्र्ताओं में असन्तोंष है।
रजोगुणी व्यक्तित्वों का सहयोग मिशन को अवश्य लेना चाहिए परन्तु युक्तिपूर्वक उनके हाथ में मिशन की कमान न सौंपे। वर्षों पुरानी बात है हमारे छप्ज् में स्वदेशी पर एक बड़ा आयोजन हुआ। एक बड़े उद्योगपति को उसका मुख्य अतिथि बनाया गया जिससे कार्यक्रम का खर्च निकल आए। मैं भी कार्यक्रम के आयोजको में से एक था। मुख्य अतिथि का भाषण हुआ स्वदेशी की जोरदार वकालत हुई परन्तु छप्ज् के एक विद्यार्थी ने खड़े होकर मुख्य अतिथि से प्रश्न किया ‘‘ ैपत आप जिस गाड़ी में आए हैं वह तो विदेशी कम्पनी की है व यहाँ स्वदेशी की वकालत कर रहे हैं।’’ मुख्य अतिथि का तो मानो खू नही सूख गया व कार्यक्रम प्राणहीन सा नजर आने लगा। हमारी एक मुर्खता ने 15 दिन की मेहनत पर पानी फेर दिया।
इस प्रकार नायकों की त्रुटियाँ, अविवेकपूर्ण निर्णय, व्यक्तित्व की खामियाँ युग-निर्माण की गाड़ी में बैक गियर लगा देती है। युग-निर्माण में सुलझें हुए नायकों की भर्ती आवश्यक है। अच्छा तो यही है कि जो स्वयं को इस लायक नहीं समझते या जिनसे यह पवित्र प्लेटफार्म दूषित हो रहा है वो स्वयं को शीघ्र परिवर्तित कर लें या इसको छोड़ दें। उचित व समर्थ लोगों को सौंपने का प्रयास करें। इससे उनका सम्मान भी बना रहेगा एव वो विपत्तियों से भी बचे रहेंगे। युग-निर्माण में विलम्ब देवशक्तियाँ सहन नहीं करेंगी।
युग-नायको से विनम्र अनुरोध है कि वो अपने व्यक्तित्व को इस लायक बनाएँ कि एक श्रेष्ठ आचार्य के रूप में जनता उसका सम्मान करे। गलतियाँ आगे और नहीं सही जा सकती हैं। अब तो भरपाई का समय है जो पुरानी त्रुटियाँ हुई हैं ईमानदारी से उनकी भरपाई होनी चाहिए।
युग-निर्माण की टेन जितना लेट चल रही ह ैअब उसके सुपर-फास्ट गति से दौड़ने का समय आ गया है।
लेखक का विनम्र अनुरोध है व युगऋषि की चेतावनी।
पहले तो जन सामान्य को चेतावनी दी जाती थी अब पाँच करोड़ के विशाल गायत्री परिवार के लिए भी चेतावनी जारी हो चुकी है। युग-निर्माण की चुनौती के लिए एक-एक कदम सोच समझकर रखें जो कि हमारे गुरु को प्रसन्नता प्रदान कर सके।
विश्वामित्र राजेश।


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