कब्ज क्या हैः-
कब्ज को सब रोगों की जननी कहा जाता है। हम जो भोजन करते
हैं वह पचकर शरीर से मिलकर आत्मसात् होता रहता है, परंतु भोजन पचने के बाद जो भाग शरीर
से मिलकर तद्रूप नहीं बन सकता वह शरीर के लिए अनुपयोगी व विजातीय द्रव्य है, जिसे शारीर बाहर निकालने का प्रयत्न
करता है। यही प्रक्रिया निष्कासन व बहिष्करण क्रिया कहलाती है। यह स्वाभाविक न हो, रूकावट हो, शौच जाने भी पाखाना न हो तों उसे
मलावरोध,
कोष्ठबद्धता या
कब्ज कहते हैं।
जाने-माने प्राकृृतिक चिकित्सक बर्नर मैंकफेडन के अनुसार
दुनिया में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति मिले जो कब्ज रोग का शिकार न हो इसलिए डाॅक्टर
की मान्यता है कि यदि शत-प्रतिशत नहीं तों ९९ः लोग आजकल जरूर ही कब्ज के रोगी हैं।
कब्ज के रोगी को पाखाना साफ ना होने के साथ-साथ अनेक
परेशानियाॅं देखने को मिलती हैं। हमेशा आलस, सिरदर्द, अनिद्रा, भूख की कमी, भोजन में अरूचि, निराशा, खट्टी डकारें, पेट दर्द, त्वचा संबंधी विकार, मुॅंह और साॅंस में बदबू, स्फूर्ति और शक्ति का ह्यास, मन में चिंता, खिन्नता, स्मरणशक्ति की कमी आदि लक्षण बने रहते
हैं। अंत में कब्ज के कारण अनेकानेक रोग जैसे बावासीर, संग्रहणी, पेचिस, मधुमेह, रक्ताल्पता, अतिसार, वातरोग एवं कई प्रकार के मानसिक रोग
उत्पन्न होते हैं। बहुत ही कम रोग हैं जो कब्ज के कारण नहीं उत्पन्न नहीं होते हों
इसलिए कब्ज को सभी रोगों की जननी कहा जा सकता है (आरोग्य मंदिर गोरखपुर के
संस्थापक डाॅ. विठ्ठलदास मोदी के अनुसार तों कब्ज सब रोगों की नानी है) आयुर्वेद
में सभी रोगों का कारण कब्ज अर्थात कुपित मल ही बताया है।- “ सर्वेषामेव रोगानां
निदानं कुपितामलाः। ”
एक बार अमेरिका के कई डाॅक्टरों ने विभिन्न रोगों से भरे
हुए रोगियों की २८४ लााशों की परीक्षा की थी। पता चला कि उन लाशों में से २५६
लाशों की बड़ी आंतें सड़े हुए मल से भी पड़ी थीं। उनमें से किसी की तों बड़ी आॅंत मल
से ठसाठस भरकर फूल उठने कारण दोहरी अथवा दोगुनी हो गई थी। परीक्षा करके देखा गया
तों उनमें से अधिकांश की आॅंतों के भीतर मल सूखकर आॅंत की दीवारों में स्लेट पत्थर
की तरह कठोर होकर चिपक गया था, किंतु आश्चर्य की बात यह है कि मृत्यु के पहले इन सब
रोगियों का दैनिक मलत्याग बंद नहीं हुआ था। डाॅक्टरों ने उनके आच्छादित कठोर
दीवारों को छुरी से तराशा और देखा कि उसके अंदर विभिन्न प्रकार के छोटे-छोटे कीड़े
अपना घर बनाए निवास कर रहे ळें। किसी-किसी में कीड़ों के अंडों के समूह पाए गए और
किसी-किसी की आॅतों में उन कीड़ों ने अपना घर बनाकर आॅंतों की दीवार में घाव पैदा
कर दिए हैं। कब्ज की जिस भयानक अवस्था का पता डाॅक्टरों ने उर्पयुक्त प्रकार की
लाशों को चीरकर लगाया। वह हममें से कितने ही जीवित व्यक्तियों की अवस्था से भिन्न
नहीं हैं। अतः रोज-रोज थोड़ा मल निकलने में
ही हमें उस धोखे में न रहना चाहिए कि आॅत दूषित मल से भरी नहीं है।
कब्ज के प्रमुख कारणः-
(१) अहितकर
भोजनः- आधुनिक जीवन शौली की अंधी दौड़ में चीनी, चाय, काॅफी, नशे की चीजें, मसाले, तले-भुने खाद्य, मैदा से बनी चीजें, गरिष्ठ भोजन, फास्टफूड, ब्रेड, बिस्किट, बरगर, चाउमीन, पेस्टी, पेटीज आदि का प्रचलन इस रोग का कारण
है। आजकल चोकर निकाले आटे की रोटी, कण निकाले हुए चावल का माॅड रहित भात, बिना छिलके की दाल एवं सब्जियाॅं
सभ्यता की पहचान बन जाने के कारण कब्ज हो जाना स्वाभाविक ही है।
(२) अनियमित
भोजन क्रमः- प्रकृति का नियम है कि जब भूख लगे तब भोजन करें, जब प्यास लग तब पानी पीएॅं। भोजन करते
समय पानी पीते रहने की आदत गलत है, इससे पाचक रसे अपना कार्य सही ढंग से नहीं कर पाते, आमाश्य का आवश्यक तापक्रम भी गड़बड़ा
जाने से पाचन क्रिया बाधित होती है। भोजन के डेढ़-दो घंटे बाद पानी पीना चाहिए।
भोजन करते समय चित्त प्रसन्न रखें। मन तनाव, चिंता, भय, क्रोध, आवेश अदि तिव्रमनोेवेग से ग्रस्त हो, तब भोजन न करें तों ही अच्छा है। ऐसे
समय में किया गया भोजन ठीक तरह नहीं पचता
है। भोजन करतें समय खूग चबा-चबाकर भोजन को
पानी की तरह पतला बनाकर ही निगलें, इस नियम पालन से आॅतों की सर्पिल गति (पंरिस्टाल्टिक
मूवमेंट) सुचारू रूप से चलती हैए जिससे कब्ज नहीं होता है तथा मुॅंह में स्थित लार
ग्रंथियों से पाचक-रस निकलकर भोजन से मिलकर पाचन में सहायक होता है।
(३) शौच
रोकनाः- शौच नियमित समय पर ही जाना चाहिए। शौच की इच्छा होने पर रोकना नहीं चाहिए।
मल एवं मूत्र के वेग को रोकने से कई व्याधियाॅं जन्म लेती हैं। पखाने की शंका हो
तब भी तुरंत जाना चाहिए। यह स्मरणीय तथ्य है कि शौच की इच्छा होने पर बार-बार
उपेक्षा करने से नाड़ी मस्तिष्क को आदत पड़ जाती है कि वह मलाश्य को मल निष्कासन की
आज्ञा संबंधित नाड़ियों द्वारा न भेजे, फलतः कब्ज की स्थिति बन जाती है।
(४) अन्य
कारणः- व्यायाम एवं श्रम का अभाव भी इस रोग को जन्म देता है। नशीली वस्तुएॅं-
तंबाकू,
बीड़ी, सिगरेट, चाय, काॅफी, अफीम, चरस तथा शराब आदि उत्तेजक पदार्थ होने
के कारण शरी की नस-नाड़ियों को कमजारे कर देते हैं। इसलिए इनसे कब्ज होता है। देर
रात तक जागने से अपर्याप्त निद्रा का प्रभाव बड़ी आॅंत पर पड़ता है, जिससे कब्ज होता है।
भोजन में सलाद, छिलकायुक्त अनाज, चोकरयुक्त आटे की रोटी न होने के कारण
कब्ज होता है। मानसिक असंतुलन, अवसाद आदि मानसिक रोगी को भी कब्ज होती है।
प्रकृति ने पेड़ों पर लगने वाली मिठाइयाॅं दी हैं, जैसे-खजूर, मुनक्का, किशमिश, छुआरा, केला, चीकू, पपीता, आम आदि। ये स्वास्थ्य के लिए अत्याधिक
लाभकरी हैं। पचने में अत्यंत सरल हैं। शरीर का पाचनतंत्र सशक्त बनाता है। नई शक्ति
देने वाले गुण फलों में मौजूद हैं। इन्हें छोड़कर कृत्रिम रंग-बिरंगी मिठाइयाॅं
खाएॅंगे तों कब्ज तों होगी ही। अपनी गलतियाूं को सुधारना होगा। प्रकृति की शरण में
पहुॅंचकर ही सच्चा आरोग्य प्राप्त किया जा सकता है।
दूध को कई बार उबालने या अधिक उबालने से वह कब्जकारक हो
जाता है। अतः दूध हल्का एक उबाल का ही लें। दूध पीते समय एक गिलास दूध को पाॅंच
मिनल में धीरे-धीरे पीने का नियम आवश्यक याद रखा जाना चाहिए।
कब्ज निवारण के उपायः-
(१) कड़ी भूख लगने पर भोजन करें। भोजन
में कच्ची सब्जियाॅं (सलाद) तथा छिलकेयुक्त दाल, चोकरयुक्त आटा की रोटी हो।
(२) भोजन करते समय मन को शांत रखें
धीरे-धीरे ठीक तरह चबाकर आधा घंटे में भोजन करें। शाम का भोजन सूर्यास्त से पूर्व
कर लेना चाहिए।
(३) स्वाद के नाम पर आचार, मिर्च-मसालों से बचें। ताजी चटनी ले
सकते हैं।
(४) प्रातः काल उठकर पानी पीना तथा
सोते समय पानी पीने का क्रम अवश्य बना लें।
(५) भोजन के एक घंटे पूर्व तथा भोजन के
दो घंटे बाद पर्याप्त पानी पीते रहें।
(६) भोजन के तत्काल बाद वज्रासन की
स्थिति में १० मिनट अनिवार्य रूप से बैठना चाहिए। भोजन करने के तत्काल बाद भाग-दौड़
करने से पाचन गड़बड़ा जाता है।
(७) फास्ट फूड, जंग फूड, मैदा, चीनी एवं मिठाइयों से बचें।
(८) अमरूद, नाशपाती, सेब, संतरा, पपीता, मौसमी आदि फल तथा गाजर, मूली, टमाटर, पŸाागोभी, चुकंदर, खीरा, ककड़ी आदि की सलाद को भोजन में
सम्मिलित करें। पक्का बेलफल पेट रोगों में बड़ा लाभकारी है।
(९) सूर्यभेदी प्राणायाम, सर्वांगासन, मत्स्यासन, भुजंगासन, योगमुद्रा, हलासन, पश्चिमोŸाासन तथा नौली आदि यौगिक क्रियाएॅं
पाचन संस्थान को सुदृढ़ बनाती हैं।
(१०) इन क्रियाओं को प्रातः नित्य
अपनाएॅं। आॅंतों की स्वाभाविक शक्ति लौैटाने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा का निम्न
सरल क्रम अपनाना चाहिए।
(११) प्रातः ४.४५ बजे जागरण तथा आधा
नींबू एक-डेढ़ गिलास पानी में निचोड़कर पीएॅं,
शौच जाएॅं।
(१२) तत्पशचात् १० मिनट कटि स्नान लेकर
खुली हवा में टहलने निकल जाएॅं। लगभग ४-५ किलोमिटर अवश्य टहलें। कमजोरी हो तों अपनी
क्षमतानुसार टहलें या लेटकर विश्राम करें। टहलने के बाद कुछ योगासन-व्यायाम करें।
फिर ठंडे पानी से हाथ से रगड़कर स्नान करें।
(१३) उपासना, ध्यान आदि के बाद नाश्ता करें।
नाश्तें में २५० ग्राम ताजे फल, ५० ग्राम किशमिश या मुनक्के पानी में रातभर भिगोए हुए
तथा ४० ग्राम अंकुरित अन्न खूब चबाकर खाएॅं।
(१४) प्रातः ७ बजे पेडू पर मिट्टी की
पट्टी (२० मिनट) इसके बाद एनिमा लेकर कोष्ठ साफ करें।
(१५) दोपहर ११ बजे भोजन- २ या ३ गेहॅंू
के चोकरदार आटे की रोटी, सब्जी, ३५० ग्राम हरी सब्जी बिना मिर्च-मसाले की १५० ग्राम सलाद
तथा १०० ग्राम ताजी दहीं लें।
(१६) अपराहृ २ बजे- मौसम के अनुसार
उपलब्ध किसी एक फल का रस २५० ग्राम या गाजर का जूस या सब्जियों का सूप।
(१७) शाम का भोजन-दोपहर की तरह। यदि इस
भोजन क्रम से भी लाभ न हो तों ३ दिन फलाहार दिन में ३-३ घंटे के अंतर से २५० ग्राम
ताजे फल लें। यदि फल उपलब्ध नहीं हों तब २५०-२५० ग्राम उबली सब्जी ले सकते हैं।
तीन दिन रसाहार-रसाहार में फलों का रस ३-३ घंटे के अंतर से २५० ग्राम लें। (यदि फल
उपलब्ध न हों तों हरी सब्जियों का सूप बनाकर ले सकते हैं।) तीन दिन का उपवास-उपवास
में मात्र नींबू का रस मिलाकर पानी पीते रहें। दिनभर में ४ नींबू ले सकते हैं।
शुद्ध शहद २-२ चम्मच तथा आधा नींबू एक गिलास पानी में लेते रहिए। दिनभर में साढ़े
तीन-चार लीटर पानी अवश्य पीएॅं। अब उपवास के बाद रसाहार फिर फलाहार १-१ दिना
अपनाकर भोजन का क्रम अपनाना चाहिए। भोजन में धीरे-धीरे पूर्णाहार लेना चाहिए। पहले
दिन १ रोटी दूसरे दिन २ रोटी तीसरे दिन ३ रोटी लेकर पूर्ण भोजन क्रम अपनाना चाहिए। आॅंतों को एकदम बोझ डालने से उपवास का
लाभ नहीं मिलता। अभी अल्पकालीन तीन दिन उपवास का क्रम ही बताया जा रहा है। घर में
रहकर लंबे उपवास नहीं किए जा सकते उसके लिए प्राकृतिक चिकित्सालय में रहकर उचित
देखरेख में १५ दिन का उपवास कर सकते हैं। रसादार, फलाहार, उपवास में नित्य मिट्टी की पट्टी देने
के बाद एनिमा लेना अनिवार्य है। एनिमा द्वारा आॅंतों में स्थित मल एवं विष बाहर
निकलता है। यदि मिट्टी की पट्टी न उपलब्ध हो सके तों एक सूती तौलिया को चार परत कर
लें,
ठंडे पानी में
भिगोकर पेट पर रखें। इससे ठंडक पहुॅंचाकर आॅंतों की क्रियाशीलता व शक्ति बढ़ाई जा
सकती है। १०-१५ मिनट तक बदल-बदलकर ठंडी तौलिया पेट पर रखें। रात को सोते समय पेट
को ठंडे पानी से भीगी सूती पट्टी की लपेट देकर ऊपर से ऊनी कपड़े की पट्टी लपेट दें।
(२) एनिमा केवल हल्के गरम पानी (शरीर
के तापमान का) लिया जाता है। एनिमा पात्र में एक लीटर लगभग पानी लें तथा एनिमा के
नाॅजल में रबर की नली (केथेटर) लगा लें, जिससे एनिमा लेते समय मलद्वार में खरोंच का खतास न रहे।
केथेटर मेडिकल स्टोरों में उपलब्ध रहता है। एनिमा में साबुन का पानी या ग्लिसरीन
का एनिमा नुकसानदायक है। पानी में नींबू का रस मिला सकते हैं।
(३) एनिमा उपचार काल में नित्य लेते
रहें,
परंतु हमेशा
लेते रहने की आदत न डालें। यह शरीर शोधन के लिए उपयोगी हैं तथा यौगिक बस्तिक्रिया का
सरल विकल्प है।
(४)) त्रिफला चूर्ण एक तोला लगभग, नींबू रस मिले जल से प्रातः लें केवल
पांच सात दिन ताकि पुराना जमा मल एक बार साफ हो जाए। लम्बे समय तक प्रयोग न करें।