Monday, March 14, 2022

शिलाजीत से ज्यादा शक्तिशाली आयुर्वेदिक औषधियां

 

शिलाजीत से ज्यादा शक्तिशाली आयुर्वेदिक औषधियां कौन-कौन सी हैं?

यकीनन शिलाजीत में आयुर्वेदिक रसशास्त्र के सभी गुण मौजूद हैं लेकिन रसों का राजा पारद है जिसे रसेन्द्र कहा जाता है और आदि वैद्यराज गुरु के समान माना जाता है। जब कोई औषधि काम न करे तो पारद मरणासन्न रोगी को मृत्यु से छीन कर पुनः तरुण समान कर देता है ऐसा शास्त्रोक्त है।

पारे को आदि शिव का अंश माना जाता है। यहां तक ज्योतिष शास्त्र में पारद शिवलिंग के दर्शन और पूजन से किस्मत बदलने का दावा किया जाता है। इससे कोई भी पारद की औषधीय महिमा का सहज अंदाज़ा लगा सकता है। लेकिन पारा विष है और औषधीय गुणों की प्राप्ति के लिए इसे मारण और शोधन की अवश्यकता होती है जो कि शास्त्रानुसार बहुत कठिन है। अफसोस और दुर्भाग्य है कि सुविधा की तलाश में हमने पारे के शोधन की पांच में से चार विधियां खो दीं। हम अपनी प्राचीन दुर्लभ अद्वितीय विरासत को बचा भी नहीं पाए।

खैर रसराज रसेन्द्र अथवा पारद के बाद रसशास्त्र में रसों का वर्गीकरण किया गया है जिसे मैं यहां कहता हूं।

  1. आठ महारस: इसमें अभ्रक सर्वश्रेष्ठ है और महारासों में इष्ट है। इसे शक्ति स्वरूपा देवी पार्वती का अंश माना जाता है। पारद को मारण, शोधन और धारण करने की शक्ति अभ्रक में ही निहित है। महारसों में शिलाजीत को पांचवें स्थान पर रखा गया है।
  2. आठ उपरस - इस वर्ग का राजा गन्धक है और उपरसों में सर्वश्रेष्ठ है। कहा जाता हैं कि समुद्र मंथन में निकले अमृत कलश के साथ चिपका हुआ निकला था जिसे देव और असुरों ने मानवजाति के कल्याण हेतु पृथ्वी पर भेज दिया
  3. साधारण रस वर्ग में आठ औषधीय द्रव्यों कम्पिल्लकगौरीपाषाण अर्थात आर्सेनिक, नौसादरकपर्द अर्थात कौड़ी, अग्निजार (एम्बरग्रीस), गिरिसिन्दूरहिंगुल (सिनाबर) और मृददारश्रृंग (सफेदा) को रखा गया है। इसमें कम्पिल्लक अर्थात कमीला सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है।
  4. धातुओं में स्वर्ण धातु को, रत्नों में माणिक्य को, उपरत्नों में वैक्रान्त को, विषों में सर्पविष और उपविषों में धतूरा को सर्वोत्तम माना गया है।

अब आप स्वयं अपने विवेक से शिलाजीत की सर्वश्रेष्ठता का अंदाजा लगा सकते हैं। लेकिन उससे पहले मैं यहां तीन महत्वपूर्ण बातें जरूर कहना चाहूगा:

  • शरीर को निरोग और सुदृढ़ बनाने के लिए शिलाजीत सर्वोत्तम रसायन है।
    • रसोपरस-सूतेन्द्र रत्न-लोहेषु ये गुणाः। वसन्ति ते‌ शिलाधातौ जरा-मृत्यु-जिगीषया॥
      • अर्थात अभ्रक आदि महारस, गंधक आदि उपरस, पारद, माणिक्य आदि रत्न सुवर्ण आदि धातुओं में जरा (बुढ़ापा), मृत्यु रोग समुदाय को जीतने के जो गुण हैं वे सब शिलाजीत में भी हैं!
  • अश्वगंधा, सतावरी, ब्राह्मी, गिलोय, तुलसी, आदि आदि औषधियां महान और दिव्य है, प्रकृति का वरदान हैं लेकिन शिलाजीत से इनकी तुलना निरर्थक और सूरज को दिया दिखाने के समान है।
  • रसशास्त्र में ज्यादातर रसायन/औषधियां प्राकृतिक रूप से विषाक्त होती हैं इसलिए इनका शोधन बहुत जरूरी होता है अन्यथा ये जीवनदायी औषधियां जीवन छीन लेने में जरा भी चूक नहीं करती। इसलिए इनके सेवन के लिए चिकित्सकीय परामर्श जरूरी है

इति!

©Ashwani Kumar @प्राचीन आयुर्वेद

निरोगी जीवन की शुभकामनाओं के साथ, जाने से पहले मैं प्रश्न पूछने के लिए आभार व्यक्त करता हूं और धैर्य पूर्वक उत्तर को अंत तक पढ़ने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद कहता हूं! 🙏

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