भ्रष्ट्राचारियों और राष्ट्रद्रोहियों के साथ कैसा बर्ताव होना चाहिए, उसका उदाहरण हमारे इतिहास में घटी एक घटना से मिलता है।
यह सजा भी किसी राजा या सरकार द्वारा नही बल्कि उसके परिजन द्वारा ही दी गई।
ई.सन 1311 में जालौर दुर्ग के गुप्त भेद अल्लाउद्दीन खिलजी को बताने के फलस्वरूप पारितोषिक स्वरूप मिला धन लेकर विका दहिया खुशी खुशी अपने घर लौट रहा था। इतना धन उसने पहली बार ही देखा था। चलते चलते रास्ते में सोच रहा था कि युद्ध समाप्ति के बाद इस धन से एक आलिशान हवेली बनाकर आराम से
रहेगा। हवेली के आगे घोड़े बंधे होंगे, नौकर चाकर होंगे।
उसकी पत्नी हीरादे सोने चांदी के गहनों से लदी रहेगी। अलाउद्दीन द्वारा जालौर किले में तैनात सूबेदार के दरबार में उसकी बड़ी हैसियत समझी जायेगी।
घर पहुंचकर कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए धन की गठरी अपनी पत्नी हीरादे को सौंपने हेतु बढाई।
अपने पति के हाथों में इतना धन व पति के चेहरे व हावभाव को देखते ही हीरादे को अल्लाउद्दीन खिलजी की जालौर युद्ध से निराश होकर दिल्ली लौटती फौज का अचानक जालौर की तरफ वापस मुड़ने का राज समझ आ गया।
वह समझ गयी कि उसके पति विका दहिया ने जालौर दुर्ग के असुरक्षित हिस्से का राज अल्लाउद्दीन की फौज को बताकर अपने वतन जालौर व अपने पालक राजा कान्हड़ देव सोनगरा चौहान के साथ गद्दारी की है। यह धन उसे इसी गद्दारी के पारितोषिक स्वरूप प्राप्त हुआ है।
उसने तुरंत अपने पति से पुछा- क्या यह धन आपको अल्लाउद्दीन की सेना को जालौर किले का कोई गुप्त भेद देने के बदले मिला है?
विका ने अपने मुंह पर कुटिल मुस्कान बिखेर कर व खुशी से अपनी मुंडी ऊपर नीचे कर हीरादे के आगे स्वीकारोक्ति कर जबाब दे दिया।
उसे तत्काल समझ आ गया कि उसका पति भ्रष्ट्राचारी है। उसके पति ने अपनी मातृभूमि के लिए गद्दारी की है और अपने उस राजा के साथ विश्वासघात किया है। हीरादे आग बबूला हो उठी और क्रोद्ध से भरकर अपने पति को धिक्कारते हुए दहाड़ उठी- अरे! गद्दार आज विपदा के समय दुश्मन को किले की गुप्त जानकारी देकर अपने देश के साथ गद्दारी करते हुए तुझे शर्म नहीं आई?
क्या तुम्हें ऐसा करने के लिए ही तुम्हारी माँ ने जन्म दिया था?
अपनी माँ का दूध लजाते हुए तुझे जरा सी भी शर्म नहीं आई?
क्या तुम एक क्षत्रिय होने के बावजूद क्षत्रिय द्वारा निभाये जाने वाले राष्ट्रधर्म को भूल गए?
विका दहिया ने हीरादे को समझाने का प्रयास किया हीरादे जैसी देशभक्त क्षत्रिय नारी उसके बहकावे में कैसे आ सकती थी?
पति पत्नी के बीच इसी बात पर बहस बढ़ गयी। विका दहिया की हीरादे को समझाने की हर कोशिश ने उसके क्रोध को और ज्यादा भड़काने का ही कार्य किया।
हीरादे पति की इस गद्दारी से बहुत दुखी व क्रोधित हुई। उसे अपने आपको ऐसे गद्दार पति की पत्नी मानते हुए शर्म महसूस होने लगी।
उसने मन में सोचा कि युद्ध के बाद उसे एक गद्दार व देशद्रोही की बीबी होने के ताने सुनने पड़ेंगे। इन्ही विचारों के साथ किले की सुरक्षा की गोपनीयता दुश्मन को पता चलने के बाद युद्ध के होने वाले संभावित परिणाम और जालौर दुर्ग में युद्ध से पहले होने वाले जौहर के दृश्य उसके मन मष्तिष्क में चलचित्र की भांति चलने लगे। जालौर दुर्ग की रानियों व अन्य महिलाओं द्वारा युद्ध में हारने की आशंका के चलते अपने सतीत्व की रक्षा के लिए जौहर की धधकती ज्वाला में कूदने के दृश्य, छोटे छोटे बच्चों के रोने कलपने के दृश्य।
उसे उन योद्धाओं के चेहरे के भाव, जिनकी पत्नियां उनकी आँखों के सामने जौहर चिता पर चढ़ अपने आपको पवित्र अग्नि के हवाले करने वाली थी, स्पष्ट दिख रहे थे। साथ ही दिख रहा था जालौर के रणबांकुरों द्वारा किया जाने वाले शाके का दृश्य जिसमें जालौर के रणबांकुरे दुश्मन से अपने रक्त के आखिरी कतरे तक लोहा लेते लेते कट मरते हुए मातृभूमि की रक्षार्थ शहीद हो रहे थे।
एक तरफ उसे जालौर के राष्ट्रभक्त वीर स्वातंत्र्य की बलि वेदी पर अपने प्राणों की आहुति देकर स्वर्ग गमन करते नजर आ रहे थे तो दूसरी और उसकी आँखों के आगे उसका भ्रष्ट्राचारी राष्ट्रद्रोही पति खड़ा था।
ऐसे दृश्यों के मन आते ही हीरादे विचलित व व्यथित हो गई। उन वीभत्स दृश्यों के पीछे सिर्फ उसे अपने पति की गद्दारी नजर आ रही थी। उसकी नजर में सिर्फ और सिर्फ उसका पति ही इस सबका जिम्मेदार था।
हीरादे की नजर में पति द्वारा किया गया यह एक ऐसा जघन्य अपराध था जिसका दंड उसी वक्त देना आवश्यक था। उसने मन ही मन अपने गद्दार पति को इस गद्दारी का दंड देने का निश्चय किया।
उसके सामने एक तरफ उसका सुहाग था तो दूसरी तरफ देश के साथ अपनी मातृभूमि के साथ गद्दारी करने वाला गद्दार पति। उसे एक तरफ देश के गद्दार को मारकर उसे सजा देने का कर्तव्य था तो दूसरी और उसका अपना उजड़ता सुहाग।
आखिर उस देशभक्त वीरांगना ने तय किया कि- "अपनी मातृभूमि की सुरक्षा के लिए यदि उसका सुहाग खतरा बना है तो ऐसे अपराध व दरिंदगी के लिए उसकी भी हत्या कर देनी चाहिए। गद्दारों के लिए यही एक मात्र सजा है।"
मन में उठते ऐसे अनेक विचारों ने हीरादे के रोष को और भड़का दिया उसका शरीर क्रोध के मारे कांप रहा था। उसके हाथ देशद्रोही को सजा देने के लिए तड़प उठे। हीरादे ने आव देखा न ताव पास ही रखी तलवार उठाकर एक झटके में अपने गद्दार और देशद्रोही पति का सिर काट डाला।
हीरादे के एक ही वार से विका दहिया का सिर कट कर लुढक गया।
वह एक हाथ में नंगी तलवार व दुसरे हाथ में अपने गद्दार पति का कटा मस्तक लेकर अपने राजा कान्हड़ देव के समक्ष उपस्थित हुई और अपने पति द्वारा गद्दारी किये जाने व उसे उचित सजा दिए जाने की जानकारी दी।
कान्हड़ देव ने इस राष्ट्रभक्त वीरांगना को नमन किया और हीरादे जैसी वीरांगनाओं पर गर्व करते हुए अल्लाउद्दीन की सेना से आज निर्णायक युद्द के लिए चल पड़े।
हीरादे अनायास ही अपने पति के बारे में बुदबुदा उठी-
"हिरादेवी भणइ चण्डाल सूं मुख देखाड्यूं काळ"
अर्थात्- विधाता आज कैसा दिन दिखाया है कि इस चण्डाल का मुंह देखना पड़ा।
इस तरह एक देशभक्त वीरांगना अपने पति को भी देशद्रोह व भ्रष्टाचार का दंड देने से नहीं चूकी।
देशभक्ति के ऐसे उदाहरण विरले ही मिलते है जब एक पत्नी ने देशद्रोह के लिए अपने पति को मौत के घाट उतार कर अपना सुहाग उजाड़ा हो। देश के ही क्या दुनियां के इतिहास में राष्ट्रभक्ति का ऐसा अतुलनीय अनूठा उदाहरण कहीं नहीं मिल सकता।
काश आज हमारे देश में भ्रष्ट्राचार में लिप्त बड़े बड़े अधिकारियों, नेताओं व मंत्रियों की पत्नियाँ भी हीरादे जैसी देशभक्त नारी से सीख ले अपने भ्रष्ट पतियों का भले सिर कलम न करें पर उन्हें धिक्कार कर बुरे कर्मों से तो रोक सकती ही है।