निःसंदेह, ज्योतिष विद्या हमारी भारतीय संस्कृति का एक उत्तम विज्ञान है। इस विज्ञान से ग्रह-नक्षत्रों की दशा और दिशा का अध्ययन करके भविष्य का आंकलन किया जा सकता है। एक कुशल ज्योतिषी इसी वैज्ञानिक पद्धति के आधार पर आपको बता सकता है कि भावी समय आपके लिए सौभाग्य के फूल पथ पर बिछाएगा या दुर्भाग्य के कंकड़-पत्थर। परन्तु जिन गत कर्म-संस्कारों से आपका यह भाग्य बना है, कोई भी ज्योतिषी या ज्योतिष विज्ञान उन कारणों को निर्मूल नहीं कर सकता है। उनको जड़ से हटाने-मिटाने का सामर्थ्य नहीं रखता। वह भाग्य की लकीरें पढ़ तो सकता है। लेकिन उन लकीरों को बदलने की ताकत नहीं रखता। इसका सामर्थ्य केवल और केवल एक पूर्ण गुरु द्वारा प्राप्त ‘ब्रह्मज्ञान’ में है। क्रियायोग द्वारा प्राप्त प्रज्ञा हमारे कर्मों को व्यवहार को और वृत्तियों को सुधारती है। उन्हें दिव्य और सकारात्मक बनाती है। यहाँ तक कि हमारे पूर्व जन्मों के संस्कारों को भी भस्मीभूत कर देती है।
इसलिए क्रियायोग की साधना करने वाले साधक को न केवल अंतरानुभूतियों से भावी अनिष्ट का सकेत मिल जाता है; अपितु गुरु-कृपा और साधना से उसके बचाव का तरीका भी मालूम हो जाता है तथा जीवन का यह अमंगल मंगल में बदल जाता है।
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