पंचामृत का प्रसाद
एक दैवीय योजना के अन्तर्गत तीन पुस्तकों का संकलन सम्पादन सम्भव हो सका है। विशुद्ध जनकल्याण एवं युग निर्माण का उद्देश्य लेकर पुस्तकें प्रकाशित की गयी हैं। दिसम्बर 2012 में अपना Ph.D का कार्य जमा कर जब मैंने राहत की साँस ली तो बसन्त पंचमी सन् 2013 को अन्तर में दो पुस्तकें लिखने की प्रेरणा उभरी एक मिशन के ऊपर एवं एक साधकों की समस्याओं के ऊपर। इसी बसन्त पंचमी को हमारी पहली पुस्तक का संशोधित अंक पुनः प्रकाशित हुआ था। बसन्त पंचमी 2013 से प्रारम्भ कर नौ माह के भीतर आश्विन कृष्ण त्रयोदशी संवत 2070 (अक्टूबर 2013) को यह पुस्तक प्रकाशित हुई। सामान्य ढंग से ‘तेरा तुझको अर्पण कर’ पुस्तक को सजल श्रद्धा, प्रखर प्रज्ञा, अखण्ड दीप व महाकाल मन्दिर में चढ़ा दिया है व पढ़ने के इच्छुक लोगों को दे दिया गया। गुरुद्वारे (शान्तिकुँज) से लौटकर आने पर तीसरी पुस्तक के लेखन का तीव्र प्रवाह उभरा। द्वितीय पुस्तक की प्रतिक्रियाओं से ध्यान हटाकर उस प्रवाह की ओर मोड़ा तो कलम तीव्र गति से चलने लगी। लिखते-लिखते हाथ दुखता तो साथी से लिखवाना पड़ता। भक्त हृदय पुलकित व भाव विभोर हो उठता, कष्ट सहने व कठिन परिश्रम करने के लिए उत्साह बनता रहता। वैज्ञानिक मस्तिष्क यह सब देखकर, सोचकर आश्चर्य चकित हो जाता है कि इतनी विपरीत परिस्थितियों में यह सब भी सम्भव हो रहा है। नौ माह के भीतर तीसरी पुस्तक भी तैयार होती नजर आ रही है व गायत्री जयन्ती पर इसको भी उन्हीं के चरणों में अर्पित करने का प्रयास है। बिना देव कृपा, संरक्षण, मार्गदर्शन के यह कार्य मुझ जैसे एक कम्प्यूटर के प्राचार्य के लिए असम्भव सा है। इस लेखन कार्य के लिए काॅलेज से कोई अतिरिक्त अवकाश भी नहीं लिया गया। दो वर्ष के भीतर (जून 2012 से जून 2014) पाँच ऐसे आध्यत्मिक कार्य सम्पन्न हो रहे हैं जिनसे पूरे विश्व के लोग लाभ उठा पाएँगे। इस पंचामृत के प्रसाद को ग्रहण अपने अन्दर दिव्यता का अनुभव करेंगे। इन पाँच कार्यों के अन्तर्गत तीन पुस्तकें प्रकाशित हुईं हैं व दो इसवहे चलाए जा रहे हैं।
1. सनातन धर्म का
प्रसाद (द्वितीय
संस्करण)
2. युगऋषि का जीवन
संघर्ष व हमारी भूमिका
3. साधना समर (चुनौतियाँ और
समाधान)
4. vishwamitra-spiritualrevolution.blogspot.in (हिन्दी में लगभग 400 लेख)
5. vishwamitra-spiritualtransformation.blogspot.in
(in English)
व्यक्ति के मन में यह सन्देह आना स्वाभाविक है
कि आत्म प्रशंसा के लिए यह लिखा जा रहा है। परन्तु लिखने का कारण कुछ और ही है, जिस दिन भी
अहंकार का अन्धकार आएगा, यह डोर, यह प्रवाह, यह कलम, यह व्यक्तित्व सब कुछ नष्ट हो जाएगा, इस बात से आप और
हम सब कोई भली-भाँति परिचित है। व्यक्ति अक्सर देवसत्ताओं की उपस्थिति, उनकी ड्डपा पर
सन्देह करता है, विपरीत परिस्थितियों में कैसे साधना करें, कैसे मिशन का कार्य आगे बढ़ाएँ यह प्रश्न पूछा
करता है। यदि भगवद् कृपा बनी रहे, तो विपरीत परिस्थितियों से घिरा व्यक्ति भी एक
रक्षा कवच के अन्दर सुरक्षित रहता है व कार्य आगे बढ़ता रहता है। दो वर्ष के भीतर
पूर्ण होने वाले इन पाँच कार्यों का विवरण इसका प्रमाण है। क्षेत्रों में रह रहें
साधकों का आत्मबल मनोबल ढृढ़ रहे एवं विपरीत परिस्थितियों में भी वह लक्ष्य की ओर
बढ़ने का संकल्प व साहस जिन्दा रखे, इस हेतु इन कार्यों का उदाहरण दिया गया है। मेरे
हिसाब से इस प्रकार के प्रयास विभिन्न दिशाओं में दूसरे व्यक्तियों (teams) के
द्वारा भी हो रहे है। यदि उनको भी सामने लाया जाए तो लोगों को प्रोत्साहन मिलेगा, उत्साहवर्धन
होगा व निराशा का दौर समाप्त होगा। लोग ऊँची-ऊँची छलांगे लगाने का प्रयास करेंगे।
मुझे नहीं मालूम कि भविष्य में देवसत्ताएँ किससे
क्या कार्य कराएँगी? ऊपर से उतरते तीव्र दिव्य प्रवाह को अनुभव तो
बहुत करते हैं परन्तु उसका सदुपयोग, नियन्त्रण कम ही कर पाते हैं, छोटी-मोटी
उपलब्धियों में ही व्यक्ति में भटकाव के दौर प्रारम्भ होने लगते हैं। स्वामी
विवेकानन्द जी से 7 वर्ष (सन् 1893 से 1899 तक) अमेरिका व पश्चिमी देशों में संस्कृति का प्रचार कराया, उनके गुरुभाई स्वामी अभदेानन्द जी ने 25 वर्ष तक (सन् 1896 से 1930 तक) पश्चिम
में कमान सम्भाली, जैसे ही उनका कार्यकाल पूर्ण होने को आया स्वामी
योगानन्द जी को अमेरिका भेजा गया जिन्होंने 30 वर्ष (सन् 1921 से 1950) तक वहाँ रहकर योग साधनाओं का परचम लहराया।
ऐसा प्रतीत होता है कि महाकाल को भविष्य में भी अमेरिकावासियों से बहुत अपेक्षाएँ
हैं
यह न सोचा जाए कि मैने यह पुस्तक लिखी तो मैं ही
श्रेष्ठ साधक हूँ। मैने अनेक उभरते हुए साधक देख रहा हूँ जो मुझसे कहीं ज्यादा
सशक्त हैं परन्तु देवात्मा हिमालय अभी
उनके नाम गुप्त रखना चाहता है क्योंकि जब तक वह साधना से सिद्धि न मिल जाए साधक की प्रसिद्धि उसके लिए बाधक बनती है।
अच्छा यह होता कि कोई तन्त्र इस पुस्तक का
अधिग्रहण कर लेता व लेखक के रूप में मुझे
अपना नाम न देना पड़ता। छपवाने, रखने, वितरण के कष्टदायक व समय नष्ट करने वाले कार्यों
से बचकर अधिकाँश समय साधना के गूढ़ रहस्यों को खोजने में ही लगाता। परन्तु समय की
माँग के अनुसार यह सब कार्य मुझसे ही देवशक्तियों द्वारा सम्पन्न कराया जा रहा है।
आने वाले समय में यदि कुछ उच्चस्तरीय साधकों की कमेटी बने व उनके अनुभवों के
द्वारा इस पुस्तक का गठन हो तो सोने पर सुहागा हो जाए।
समय-समय पर देवसत्ताओं की प्रेरणा से अनेक उच्च
व्यक्तित्वों ने पुस्तकों के लेखन भाषा-शोधन, मुद्रण व वितरण में अपना अमूल्य सहयोग दिया है, जिस कारण पुस्तक
आपके हाथ तक पहुँची है। नींव की ईटों पर ही सुन्दर भवन का निर्माण सम्भव हो सका
है। देवसत्ताएँ हम सभी को इसी प्रकार अच्छे कार्यों के लिए प्रेरित करती रहें व
जीवन का सदुपयोग होता रहे यही उनसे प्रार्थना है। पुस्तकों की संक्षिप्त जानकारी
नीचे दी जा रही है
1. सनातन धर्म का प्रसाद
यह पुस्तक जीवन निर्माण के सूत्रों का अच्छा
संग्रह है। एक सामान्य व्यक्ति को सुखी जीवन जीने के लिए धर्म संस्कृति अध्यात्म
व साधना के नियमों की जो मूलभूत जानकारी चाहिए वह इस पुस्तक में उपलब्ध है। इस
पुस्तक को विद्यार्थियों, युवाओं, गृहस्थ लोगों एवं धर्म प्रेमियों द्वारा बहुत
पसन्द किया गया है। 5,000 से अधिक पुस्तकें छपवायी जा चुकी हैं। यह
पुस्तक लगभग 340 पृष्ठ की है व मूल्य 50 रू है।
2. युगऋषि का जीवन संघर्ष व हमारी भूमिका
जिन व्यक्तियों की समाज सुधार, राष्ट्र निर्माण
व लोक सेवा में रुचि है उनके लिए यह पुस्तक रुचिकर है। यद्यपि यह पुस्तक विशेष रूप
से गायत्री परिवार के परिजनों के लिए लिखी गयी है। एक मिशन को कैसे आगे बढ़ाना
चाहिए एवं इसमें क्या-क्या कठिनाइयाँ आ सकती है। इस प्रकार की सामग्री भी लिखी गयी
है। देवसत्ताओं की राष्ट्र के जीवन्त व जागरूक नागरिकों से क्या अपेक्षा है व हम
स्वयं को एक आदर्श लोकसेवी के रूप में कैसे विकसित करें, यही विवेचन
मूलतः किया गया है। यह पुस्तक अभी अक्टूबर 2013 में प्रकाशित हुई है एवं लगभग एक हजार पुस्तकें
वितरित हो चुकी हैं। यह पुस्तक 225 पृष्ठ की है व मूल्य 24 रूपये है।
3. साधना समर
साधना के द्वारा आत्म ज्ञान को जिन्होंने अपना
जीवन लक्ष्य बनाया है तो यह पुस्तक अवश्य पढें। उच्चस्तरीय साधनाओं की ओर कैसे
बढ़ा जाए क्या-क्या सावधानियाँ रखी जाएँ व विघ्न बाधाओं को कैसे पार किया जाए यही
विवेचन मूल रूप से पुस्तक में किया गया है। बहुत से लोग ऐसे हैं जिन्होंने साधना
के लिए गम्भीर प्रयास किए या तो कोई सफलता नहीं मिल पाई या फिर प्रारम्भ में कुछ
अच्छी अनुभूतियाँ हुई परन्तु बाद में कठिनाई में उलझकर भयभीत हो गए। ऐसे साधकों के
लिए यह अमृत संजीवनी है। 400 पृष्ठों की इस पुस्तक का प्रथम संस्करण
प्रकाशित हुआ है मूल्य 100 रूपये है। साधकों के अनुभवों व मार्गदर्शन से
अभी इस पुस्तक का विस्तार करने की आवश्यकता प्रतीत हो रही है। इस विषय में शोध
कार्य जारी है। एक लाख उभरते साधकों तक पुस्तक पहुँचाने की योजना है।
नोटः- जिस पुस्तक पर अनुदान उपलब्ध हो जाता है
उसका मूल्य उसी अनुसार, कम कर दिया जाता है इसी कारण प्रथम दो पुस्तकों
का मूल्य लागत से कुछ कम है। भावनाशील व समर्थ परिजनों से सहयोग व मार्गदर्शन
अपेक्षित है।
Golden opportunity
The English translation of this hard one or two volunteers are
required. There is a golden opportunity for them who have spiritual background
and want to do sth useful for the humanity. Financial support is also
available. If person wants soon financial help it may be provided in the form
of monthly salary. The only condition is that the person should have a passion
for the spirituality and a good knowledge of English and Hind language. Those
who are interested kindly contact to the author by mail.
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