From my book "स्वस्थ भारत "
आधुनिक जीवन
शैली - जिसमें व्यक्ति आराम परक जीवन जीना चाहता है, सभी काम मशीनों के द्वारा करता है, खाओ पीओ और मौज करो की इच्छा रखता है, इस प्रकार के जटिल रोगों को जन्म दे रही हैं।
लक्ष्णः
1. हाथ
पैरों में सुन्नपन्न (Numbness) होना,
सोते समय यदि हाथ अथवा पैर सोने लगे, सोते हुए हाथ थोड़ा दबते ही सुन्न होने लगते हैं, कई बार एक हाथ सुन्न होता है, दूसरे हाथ से उसको उठाकर करवट बदलनी पड़ती है।
2. हाथों
की पकड़ ढीली होना, अथवा पैरों
से सीढ़ी चढ़ते हुए घुटने से नीचे के हिस्सों में खिचांव आना।
3. गर्दन
के आस-पास के हिस्सों में ताकत की कमी महसूस देना।
4. गर्दन
को आगे-पीछे, दाॅंयी-बाॅंयी ओर घुमाने
में दर्द होना।
5. शरीर
के दाॅंये अथवा बाॅंये हिस्से में दर्द के वेग आना।
6. याददाश्त
का कम होते चले जाना।
7. चलने
का सन्तुलन बिगड़ना।
8. हाथ-पैरों
में कम्पन्न रहना।
9. माॅंसपेशियों
में ऐठन विशेषकर जाॅंघ (Thigh) व
घुटनों के नीचे (Calf) में Muscle Cramp होना।
10. शरीर
में लेटते हुए साॅंय-साॅंय अथवा धक-धक की आवाज रहना।
11. कोई
भी कार्य करते हुए आत्मविश्वास का अभाव अथवा भय की उत्पत्ति होना। इनको (Psychoromatic Disease) भी कहा जाता है।
12. अनावश्यक
हृदय की धड़कन बढ़ी हुई रहना।
13. शरीर
में सुईंया सी चुभती प्रतीत होना।
14. शरीर
के कभी किसी भाग में कभी किसी भाग में जैसे आॅंख, जबड़े, कान
आदि में कच्चापन अथवा Paralytic Symptoms उत्पन्न होना।
15. सर्दी
अथवा गर्मी का शरीर पर अधिक असर होना अर्थात सहन करने में कठिनाई प्रतीत होना।
16. एक
बार यदि शरीर आराम की अवस्था में आ जाए तो कोई भी कार्य करने की इच्छा न होना
अर्थात् उठने चलने में कष्ट प्रतीत होना।
17. कार्य
करते समय सामान्य रहकर उत्तेजना (Anxiety) चिड़चिड़ापन (Irritation) अथवा निराशा (Depression) वाली स्थिति बने रहना।
18. रात्रि
में बैचेनी बने रहना, छः-सात
घण्टे की पर्याप्त निद्रा न ले पाना।
19. कार्य
करते हुए शीघ्र ही थकान का अनुभव होना। पसीना अधिक आने की प्रवृत्ति होना।
20. किसी
भी अंग में फड़फड़ाहट होते रहना।
21. मानसिक
कार्य करते ही दिमाग पर एक प्रकार का बोझ प्रतीत होना, मानसिक क्षमता का हृास होना।
22. रात
को सोते समय पैरों में नस चढ़ना अर्थात् अचानक कुछ मिनटों के लिए तेज दर्द से आहत
होना।
23. शरीर
गिरा गिरा सा रहना, मानसिक
दृढ़ता का अभाव प्रतीत होना।
24. शरीर
में पैरों के तलवों में जलन रहना या हाथ-पैर ठण्डे रहना।
Neuromuscular disease
(1.) Nervousness- व्यक्ति अपने भीतर घबराहट, बैचेनी, बार-बार प्यास का अनुभव करता
है| किसी interview को देने, अपरिचित व्यक्तियों से मिलने, भाषण देने आदि में थोडा
ह्रदय की धड़कन बढती हा नींद ठीक प्रकार से नहीं आती व रक्तचाप असामन्य रहता है|
इसके लिए व्यक्ति के ह्रदय व मस्तिष्क को बल देने वाले पोषक पदार्थ (nervine
tonic) का सेवन करना चाहिए तथा अपने भीतर अद्यात्मिक दृष्टिकोण का विकास करना
चाहिए| सम भाव, समर्पण का विकास कर व्यक्तिगत अंह से बचना चाहिए| उदाहरण के लिए
यदि व्यक्ति मंच पर भाषण देता है तो यह भाव न लाए कि वह कितना अच्छा बोल सकता है
अपितु इस भाव से प्रवचन करे कि भगवान उसके माध्यम से बच्चो को क्या संदेश देना
चाहते है? भविष्य के प्रति भय, महत्वाकांक्षा इत्यादि व्यक्ति में यह रोग पैदा
करते है|
(2.) Neuralgia - इसमें व्यक्ति को
शारीर के किसी भाग में तेज अथवा हलके दर्द का अनुभव होता है|जैसे जब चेहरे का
तान्त्रिक तन्त्र (Facial Nervous) रुग्ण हो जाता है तो इस रोग को triglminal
neuralgia कहते है| इसमें व्यक्ति के चेहरे में किसी एक और अथवा पुरे चेहरे जैसे
जबड़े, बाल, आंखे के आस-पास एल प्रकार का खिंचाव महसूस होता है| कुछ मनोवैज्ञानिक
को ने पाया कि यह रोग उनको अधिक होता है जो दुसरो की ख़ुशी से परेशान होते है| इस
रोग का व्यक्ति यदि हसना भी चाहता है तो भी पीड़ा से कराह उड़ता है| अर्थात प्रकृति
दुसरो की ख़ुशी छिनने वालो की ख़ुशी छिन्न लेती है| अंग्रेजी चिकित्सक इसको Nervous
व muscular को relax करने वाली दवाएं जैसे Pregabalin, Migorill, Gabapentin इत्यादि देते है|
(3.) Parkinson(कम्पवात)- इसमें व्यक्ति के हाथ पैरों में कम्पन होता है| जब
व्यक्ति आराम करता है तो हाथ पैर हिलाने लगता है| जब काम में लग जाता है तब ऐसी
कठिनाई कम आती है| इसके L-dopa दिया जाता है| कृत्रिम विधि से तैयार किया हुआ यह
chennal कम ही लोगो के शरीर स्वीकार करता है| आयुर्वैदिक जड़ी कोंच के बीजों
(कपिकच्छु) में यह रसायन मिलता है| अंत: यह औषधि इस रोग में लाभकारी है| इसके लिए
कोंच के बीजों को गर्म पानी में मंद आंच पर थोड़ी देर पकायें फिर छिलका उतार कर
प्रति व्यक्ति 5 से 10 बीजों को दूध में खीर बना ले| साथ में दलिया अथवा अंकुरित
गेंहू भी पकाया जा सकता है| खीर में थोडा गाय का घी अवश्य मिलाएं अन्यथा चूर्ण की
अवस्था अथवा कोंच पाक भी लाभदायक है| यह समस्त तान्त्रिक तन्त्र व मासपेशियों के लिए
बलदायक है|
(4.) Alzheimer- इसमें व्यक्ति की यादगार कम होती चली जाती है|
न्यूरो मस्कुलर रोगों की चपेट में बहुत बड़े-बड़े व्यक्ति भी आए है| इस युग के
जाने-माने भौतिक शास्त्र के वैज्ञानिक प्रो. स्टीफन हाकिन्स इसी से सम्बन्धित एक
भयानक रोग से युवावस्था में ही पीड़ित हो गए व उनका सारा शरीर लकवाग्रस्त हो गया
था| परन्तु उन्होंने हिम्मत नहीं हारी व कठोर संघर्ष के द्वारा अपनी शोधों
(Researches) को जारी रखा आज भी वो 65 वर्ष की उम्र में अपनी जीवन रक्षा के
साथ-साथ विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान कर रहे है| उनकी उपलब्धियों के
आधार पर उनको न्यूटन व आइंस्टाइन जैसे महान वैज्ञानिकों की क्ष्रेणी में माना जाता
है|
इसी प्रकार कोटा राजस्थान के सर्वप्रथम IIT की कोचिंग का प्रारम्भ करने वाले
बंसल साहब इस रोग से इतने लाचार है कि अपने शरीर की मख्खी भी उड़ाने में असमर्थ है|