Thursday, December 31, 2015

नव वर्ष की शुभ कामनाएँ

Wish You a Bright, Prosperous, Healthy and Spiritual new year 2016
दुनियाँ में जितने धर्म, सम्प्रदाय, देवता और भगवानों के प्रकार हैं उन्हें कुछ दिन मौन हो जाना चाहिये और एक नई उपासना पद्धति का प्रचलन करना चाहिए जिसमें केवल माँकी ही पूजा हो, माँ को ही भेंट चढ़ाई जाये?
माँ बच्चे को दूध ही नहीं पिलाती, पहले वह उसका रस, रक्त और हाड़-माँस से निर्माण भी करती है, पीछे उसके विकास, उसकी सुख-समृद्धि और समुन्नति के लिये अपना सब कुछ न्यौछावर कर देती है। उसकी एक ही कामना रहती है मेरे सब बच्चे परस्पर प्रेमपूर्वक रहें, मित्रता का आचरण करें, न्यायपूर्वक सम्पत्तियों का उपभोग करें, परस्पर ईर्ष्या-द्वेष का कारण न बनें। चिर शान्ति, विश्व-मैत्री और सर्वे भवन्ति सुखिनःवह आदर्श है, जिनके कारण माँ सब देवताओं से बड़ी है।
हमारी धरती ही हमारी माता है यह मानकर उसकी उपासना करें। अहंकारियों ने, दुष्ट-दुराचारियों स्वार्थी और इन्द्रिय लोलुप जनों ने मातृ-भू को कितना कलंकित किया है इस पर भावनापूर्वक विचार करते समय आंखें भर आती है। हमने अप्रत्यक्ष देवताओं को तो पूजा की पर प्रत्यक्ष देवी धरती माता के भजन का कभी ध्यान ही नहीं आया। आया होता तो आज हम अधिकार के प्रश्न पर रक्त न बहाते, स्वार्थ के लिये दूसरे भाई का खून न करते, तिजोरियाँ भरने के लिये मिलावट न करते, मिथ्या सम्मान के लिये अहंकार का प्रदर्शन न करते। संसार भर के प्राणी उसकी सन्तान-हमारे भाई हैं। यदि हमने माँ की उपासना की होती तो छल-कपट ईर्ष्या-द्वेष दम्भ, हिंसा, पाशविकता, युद्ध को प्रश्रय न देते। स्वर्ग और है भी क्या, जहाँ यह बुराइयाँ न हों वहीं तो स्वर्ग है। माँ की उपासना से स्वर्गीय आनंद की अनुभूति इसीलिये यहीं प्रत्यक्ष रूप से अभी मिलती है। इसलिये मैं कहता हूँ कि कुछ दिन और सब उपासना पद्धति बंद कर केवल माँकी मातृ-भूमि की उपासना करनी चाहिये।


-स्वामी विवेकानन्द

Saturday, December 19, 2015

NEEM KAROLI



New Pocket Book Rs 10/- Page 80

BABAJI, ACHARYAJI and ex President of India V.V. Giriji

Bharat Ratan V. V. Giri had deep faith in a saint of North India called Neem Karoli Baba. Once when he visited Baba the great saint said: Today our country lacks saints, reformers and true thinkers. Regarding himself Baba said: I carry out a few austerities but Pandit Shriram Sharma Acharya along with being a high stature personality of penance and a spiritual visionary is a saint, reformer and thinker. He writes a lot on great sacred thinking. Our country’s youth must learn a lot from him. 


Sunday, November 15, 2015

संवेदनहीन भारत की दीपावली


            21वीं सदी में लोगों ने भले ही शिक्षा, विज्ञान व समृद्धि में कितनी ही प्रगति कर ली हो परन्तु संवेदनहीनता की सभी हदें पार कर डाली हैं। धन के होने का अर्थ है उसके पास प्रकृति के सााि खिलवाड़ करने की क्षमता भी है। उसे अपने धन का उपयोग अपने अहं व मनोरंजन के लिए प्रकृति व पर्यावरण के विनाश के लिए प्रयोग करने की खुली छूट हमारे समाज, हमारे  प्रशासन ने दे रखी है। वास्तव में किसी ने सत्य कहा है-
कनक कनक ते सौ गुनी,मादकता अधिकाय।
इहि खाए बौराए दें,इहि पाए बौराए।।
दीपावली के अवसर पर जहाॅं लोगों को सरसों के तेल के दीपक जलाकर वायु प्रदूषण को समाप्त करना था वहाॅं हवा को पटाखों के द्वारा 23 गुणा अधिक जहरीला बना दिया गया। यह आंकड़ा है भारत की राजधानी दिल्ली का जहाॅं सबसे अधिक सभ्य जनता व सर्वोच्च राजनैतिक तन्त्र विराजमान है। लोग ज्यादा और महंगी पटाखेबाजी करके अपनी शान दिखाने की होड़ में यह भूल जाते हैं कि उनको इस कुकृत्यों का कितना घातक परिणाम पूरी मानव जाति को झेलना पडेगा।
            प्रशासन का निकम्मापन देखिए वह मात्र लोगों को अपिल भर कर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के बीस प्रदूषित शहर में से तेरह भारत में हैं। उस पर भी दिल्ली का नंबर सबसे पहले है फिर भी हमारी जनता और प्रशासन प्रर्यावरण के प्रति बिलकुल सजग नहीं है। क्या केवन AIIMS व अन्य बड़े अस्पताल खोलकर लोगों के स्वास्थ्य को सुधारा जा सकता है। क्या केवल विकास-विकास व आर्थिक सुधारों के दम पर लोगों को खुशहाल किया जा सकता है। नहीं इसके लिए चाहिए संवेदनशील व्यक्तित्व जिसका लोप भारत की धरती से होता चला जा रहा है। मूर्खता की हदें हमने पार कर दी हैं पर्यावरण को रोंद कर हम अपनी कब्रे खोद रहे हैं व उसको भी बड़ी शान समझ रहे हैं। क्या अंतर रह गया है एक पशु और एक मानव में। सभ्य मानव, अमीर व बड़े आदमी का दायित्व है कि लोगों के सामने एक अच्छा आदर्श प्रस्तुत करे परन्तु दुर्भाग्य है देश का कि हम सब विवेकहीनता के वशीभूत होकर भेड़चाल में चलकर कुछ भी अनर्थ करके अपने को बड़ा आदमी समझने लग जाते हैं।

विडम्बना यह भी है कि इस तरह के प्रदूषण को रोकने का जिम्मा जिन विभागों पर है वे भी अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन ईमानदारी से नहीं करते। लोगों से पटाखों पर रोक की अपील कारगर नहीं होती। इसलिए उत्पादन और आपूर्ति के स्तर पर पटाखों की घातकता पर रोक लगाई जानी चाहिए। जो रासायनिक पदार्थ सेहत पर नुकसानदायक असर डालते हैं उनके प्रयोग पर रोक तथा उनके विकल्प के उपयोग के लिए पटाखा  उत्पादकों को प्रेरित  किया जाना चाहिए। सल्फर डाईआॅक्साइड आदि अस्थमा व ब्रोंकाइटिस के रोगियों के लिए घातक साबित होता है। इसके अलावा रंगीन आतिशवाजी में प्रयोग होने वाले तांबे, बेरियम, और स्ट्रेटियंग जैसी धातुओं के उपयोग पर रोक लगनी चाहिए। ये पदार्थ प्रदूषण फैलाने में ज्यादा भूमिका  निभाते हैं। दूसरी कोशिश ध्वनि प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों पर रोक की होनी चाहिए। पश्चिम बंगाल की पहल इस दिशा में सार्थक साबित हुर्ह है। अमूमन पटाखों के शोर के स्तर के लिए कट-आॅफ 145 डेसीबल रखी गई है जो काफी ज्यादा है। पश्चिम बंगाल में इस घटाकर 90 डेसीबल किया गया है। इस प्रयास ने पटाखों से होने वाले प्रदूषण व ध्वनि प्रदूषण को कम करने में मदद की है। दरअसल यह त्योहारी प्रदूषण एक गंभीर मामला है जिसे गंभीरता से लेते हुए तत्काल कदम उठाने की जरुरत है।

Thursday, November 5, 2015

युग के विश्वामित्र का आवाहन last page

महाकाल के संकल्प युग परिवर्तन की पूर्ति हेतु सूक्ष्म जगत् से प्रचण्ड प्रवाह  धरती पर भेजा जा रहा है। परन्तु लौकिक जगत् में गुड़ गोबर सब एक हो जाने से कोई भी महत्वपूर्ण कदम इस दिशा में आगे नहीं बढ़ रहा है।
            गुड़ गोबर एक हो जाने का अर्थ है कि इस अभियान में बहुत से ऐसे लोगों की घुसपैठ हो गई है जो युग निर्माण के नाम पर अपने अहं, स्वार्थ व महत्त्वाकांक्षाओं का ही पोषण कर रहे हैं। जो संगठन को भीतर ही भीतर खोखला कर रहा है। जैसे नेता देश सेवा के नाम पर वोट माॅंगते हैं पर इसके पश्चात् क्या-क्या नहीं करते, यह किसी से छुपा नहीं है। क्या कारण है कि पाॅंच करोड़ लोगों का एक विशाल तन्त्र समाज पर अपना कोई विशेष प्रभाव नहीं दिखा पा रहा है। जबकि आचार्य जी के अनुसार जिस दिन 24 लाख लोग कदम से कदम मिला कर इस अभियान को पूरा करने के लिए आगे बढ़ेंगे उस दिन युग निर्माण के सूर्य को चमकने से कोई नहीं रोक सकेगा।
            युग निर्माण अभियान की सफलता के लिए साहसी, तपस्वी, बुद्धिमान, जुझारू व संवेदनशील 24,000 नायकों की आवश्यकता है जो ब्रह्मकमल के रूप् में खिलकर भारत की इस धरती को अपनी सुगन्ध से सुभाषित कर सकें व देवसत्ताओं की आशाओं पर खरे उतर सकें।

             भारत की 24 करोड़ की धर्म पारायण जनता से यदि केवल 24,000 सुपात्र आत्माओं का चयन कर उनको उच्च स्तरीय साधनाओं के द्वारा पोषित कर उनका संगठन बनाकर ब्रह्मास्त्र के रूप् में प्रयोग किया जाए तो इस धरती से शीघ्र ही असुरी शक्तियों का विनाश सम्भव है। परन्तु कठिनाई यह है कि व्यक्तिगत स्वार्थों व पद-प्रतिष्ठा के मोह में फंसे महानुभावों को यह बात समझ आए कैसे। भगवान की इस इच्छा की पूर्ति के लिए जिन दिव्य आत्माओं को भीतर यह तड़प उत्पन्न हो रही है उनके आवाह्न के लिए ही यह पुस्तक युग के विश्वामित्र का आवाह्नलिखी जा रही है।
विश्वामित्र राजेश

Wednesday, October 28, 2015

एसिडिटी का घरेलू उपचार (HOME REMEDIES FOR ACIDITY)

शायद ही कोई एसिडिटी शब्द से अपरिचित होगा।आजकल की भागदौड भरी और अनियमित जीवनशैली के कारण पेट की समस्या आम हो ली है।एसिडिटी को चिकित्सकीय भाषा में गैस्ट्रोइसोफेजियल रिफलक्स डिजीज (GERD) के नाम से जाना जाता है। आयुर्वेद में इसे अम्ल पित्त कहते हैं। आज इससे हर दूसरा व्यक्ति या महिला पीडि़त है। एसिडिटी होने पर शरीर की पाचन प्रक्रिया ठीक नहीं रहती। एसिडिटी का प्रमुख लक्षण है रोगी के सीने या छाती में जलन। अनेक बार एसिडिटी की वजह से सीने में दर्द भी रहता है, मुंह में खट्टा पानी आता है। जब यह तकलीफ बार-बार होती है तो गंभीर समस्या का रूप धारण कर लेती है। एसिडिटी के कारण कई बार रोगी ऐसा महसूस करता है जैसे भोजन उसके गले में आ रहा है या कई बार डकार के साथ खाना मुँह में आ जाता है। रात्रि में सोते समय इस तरह की शिकायत ज्यादा होती है। कई बार एसिड भोजन नली से सांस की नली में भी पहुंच जाता है, जिससे मरीज को दमा या खांसी की तकलीफ भी हो सकती है। कभी-कभी मुंह में खट्टे पानी के साथ खून भी आ सकता है।एसिडिटी तभी होती है, जब पेट में एसिड का अधिक स्राव होने लगता है. जब यह स्राव तेज हो जाता है, तो हमें अंदर से ऐसा महसूस होता है कि हमारा सीना जल रहा है. ज्यादातर ऐसा तभी होता है जब हम तेज मिर्च मसाले वाला भोजन खाते हैं। 

एसिडिटी का घरेलू इलाज :
१. एसिडिटी होने पर चाय काफी का सेवन कम कर देना चाहिए। ग्रीन टी का सेवन लाभप्रद होता है। 
२. अधिक से अधिक हरी सब्जियों का खासकर जिन सब्जियों में विटामिन बी और ई हो, सेवन करना चाहिए।जैसे की सहजन, बीन्स, कद्दू, पत्ता गोभी, प्याज और गाजर। 
३. खाना खाने के बाद तरल पेय का सेवन न करें। आधे घंटे के बाद ही गुनगुना नीबू पानी पियें। 
४. खाने में केला,खीरा,,ककड़ी, तरबूज, नारियल पानी धनिये पुदीने की चटनी और बादाम की शिकंजी का सेवन करना चाहिए। 
५. सौंफ और चन्दन  का सर्बत बना कर पीने से पेट की जलन को शांत किया जा सकता है। 
६. नींबू और शहद में अदरक का रस मिलाकर पीने से, पेट की जलन शांत होती है।
७. एसिडिटी में पाइनेपल के जूस का सेवन करने से विशेष फायदा होता है क्योकि यह एंजाइम्स से भरा होता है. खाने के बाद अगर पेट अधिक भरा व भारी महसूस हो रहा है, तो आधा गिलास ताजे पाइनेपल का जूस पीएं. सारी बेचैनी और एसिडिटी खत्म हो जाएगी। 
८. ज्यादा स्मोकिंग करना और ज्यादा शराब पीने से बचना चाहिए, इसके बदले में अच्छी क्वालिटी के च्युंगम,कच्ची सौंफ  या लौंग चबाना चाहिए। 
९. दही के छाछ में भुना हुआ पिसा जीरा डाल कर सेवन करने से भी लाभ मिलता है। 
१०. मूली का नियमित सेवन करने से एसिडिटी में लाभ होता है।
११. सुबह-सुबह खाली पेट गुनगुना पानी पीने से एसिडिटी में फायदा होता है।पानी में पुदीने की कुछ पत्तियां डालकर उबाल लीजिए। हर रोज खाने के बाद इन इस पानी का सेवन कीजिए। 
१२. अदरक और परवल को मिलाकर काढा बना लीजिए। इस काढे को सुबह-शाम पीने से एसिडिटी की समस्या समाप्त होती है।
१३. दूध में मुनक्का डालकर उबालना चाहिए। उसके बाद दूध को ठंडा करके पीने से फायदा होता है और एसिडिटी ठीक होती है।
१४. एसिडिटी होने पर मुलेठी का चूर्ण या काढ़ा बनाकर उसका सेवन करना चाहिए। इससे एसिडिटी में फायदा होता है।
१५. त्रिफला चूर्ण को दूध के साथ पीने से एसिडिटी समाप्त होती है। पेट की जलन शांत होती है।
१६. शाह जीरा अम्लता निवारक होता है। डेढ लिटर पानी में २ चम्मच शाह जीरा डालें । १०-१५ मिनिट उबालें। यह काढा मामूली गरम हालत में दिन में ३ बार पीयें। एक हफ़्ते के प्रयोग से एसिडीटी नियंत्रित हो जाती है।
१७.एसिडीटी निवारण हेतु आंवला क उपयोग करना उत्तम फ़लदायी होता है।
१८.तुलसी के दो चार पत्ते दिन में कई बार चबाकर खाने से अम्लता में लाभ होता है।इसका रस निकाल कर भी थोड़ी थोड़ी मात्रा में सेवन किया जा सकता है। 
१९. हर तीन टाइम भोजन के बाद गुड जरुर खाएं। इसको मुंह में रखें और चबा चबा कर खा जाएं।
२०. एक कप पानी उबालिये और उसमें एक चम्मच सौंफ मिलाइये। इसको रातभर के लिए ढंक कर रख दीजिये और सुबह उठ कर पानी छान लीजिये। अब इसमें 1 चम्मच शहद मिलाइये और तीन टाइम भोजन के बाद इसको लीजिये।
२१.गैस से फौरन राहत के लिए 2 चम्मच ऑंवला जूस या सूखा हुआ ऑंवला पाउडर और दो चम्मच पिसी हुई मिश्री ले लें और दोनों को पानी में मिलाकर पी जाएं।
२२. २५ ग्राम धनिये की रात में पत्थर के बर्तन में भिगो दें, सुबह छान कर थोड़ा सा सुहागे की बुकनी मिलाकर कुछ दिन नियमित सेवन करें, शर्तिया लाभ मिलेगा। 



http://kumarhealth.blogspot.in/2014/11/home-remedies-for-acidity.html

Wednesday, October 7, 2015

निम्न रक्तचाप :कारण,बचाव और इलाज"

निम्न रक्तचाप :कारण,बचाव और इलाज"

हमारे गलत खान पान  और रहन सहन के कारण हम लोग लो ब्लड प्रेशर के शिकार हो जाते हैं। आज हम इसी विषय पर विस्तृत चर्चा करते हैं। हमारे दिल से सारे शरीर को साफ खून की सप्लाई लगातार होती रहती है। अलग-अलग अंगों को होने वाली यह सप्लाई आर्टरीज (धमनियों) के जरिए होती है। ब्लड को प्रेशर से सारे शरीर तक पहुंचाने के लिए दिल लगातार सिकुड़ता और वापस नॉर्मल होता रहता है - एक मिनट में आमतौर पर 60 से 70 बार। जब दिल सिकुड़ता है तो खून अधिकतम दबाव के साथ आर्टरीज में जाता है। इसे सिस्टोलिक प्रेशर कहते हैं। जब दिल सिकुड़ने के बाद वापस अपनी नॉर्मल स्थिति में आता है तो खून का दबाव आर्टरीज में तो बना रहता है, पर वह न्यूनतम होता है। इसे डायास्टोलिक प्रेशर कहते हैं। इन दोनों मापों - डायास्टोलिक और सिस्टोलिक को ब्लड प्रेशर कहते हैं। ब्लड प्रेशर दिन भर एक-सा नहीं रहता। जब हम सोकर उठते हैं तो अमूमन यह कम होता है। जब हम शारीरिक मेहनत का कुछ काम करते हैं जैसे तेज चलना, दौड़ना या टेंशन, तो यह बढ़ जाता है। बीपी मिलीमीटर्स ऑफ मरकरी (एमएमएचजी) में नापा जाता है।
                              दरअसल निम्न रक्तचाप में रक्त का प्रवाह बहुत धीमा पड़ जाता है अर्थात् ऊ पर का रक्तचाप सामान्य से घटकर 90 अथवा 100 रह जाए तथा नीचे का रक्चाप 80 से घटकर 60 रह जाए, ऐसी स्थिति को निम्न रक्तचाप कहते है। दौर्बल्य, उपवास, भोजन तथा जल की कमी, अधिक शारीरिक तथा मानसिक परिश्रम, मानसिक आघात तथा अधिक रक्त बहने की दशा में यह रोग हो जाता है। निम्न रक्तचाप में नब्ज धीमी पड़ जाती है, थोड़ा सा परिश्रम करने पर रोगी थक जाता है। शरीर का दुर्बल होना, आलस्य अनुत्साह, शक्ति का घटते जाना, बातें भूल जाना, मस्तिष्क अवसाद, विस्मृति, थोड़ी सी मेहनत में ही चिड़चिड़ाहट, सिर दर्द, सिर चकराना आदि इसके लक्षण होते है।

प्रमुख कारण

* अधिक मानसिक चिंतन।
* अधिक शोक।
* अधिक क्रोध।
* आहार का असंतुलन होना।
* बहुत अधिक मोटापा।
* पानी या खून की कमी।
* उलटियां, डेंगू-मलेरिया, हार्ट प्रॉब्लम, सदमे, इन्फेक्शन, ज्यादा मोशन आने।
* अचानक सदमा लगना, कोई भयावह दृश्य देखने या खबर सुनने से भी लो बीपी हो सकता है।

प्रमुख लक्षण
* चेहरे पर फीकापन।
* आंखों का लाल हो जाना।
* नाड़ी की गति धीमी होना।
* प्यास लगना और तेज रफ्तार से आधी-अधूरी सांसें आना।
* निराशा या डिप्रेशन
* धुंधला दिखाई देना
* थकान, कमजोरी, चक्कर आना
* निम्न रक्तचाप में शारीरिक निर्बलता का अधिक अनुभव होता है।
* रक्त की अत्यधिक कमी के कारण निम्न रक्तचाप की उत्पत्ति होती है, इसलिए रोगी चलने-फिरने में बहुत कठिनाई अनुभव करता है।
* सीढ़ियां चढ़ने में बहुत परेशानी होती है।
* हृदय जोरों से धड़कता है और सारा शरीर पसीने से भीग जाता है।
* पुरुषों में नपुंसकता के लक्षण उत्पन्न होते है। जबकि स्त्रियों में काम-इच्छा की उत्पत्ति नहीं होती है। ऐसे में स्त्री-पुरुष का यौन आनंद नष्ट हो जाता है।
* निम्न रक्तचाप के कारण रोगी को भूख नहीं लगती, क्योंकि भोजन के प्रति अरुचि हो जाती है।
* स्वादिष्ट पकवानों की सुगंध भी रोगी को आकर्षित नहीं कर पाती। भूख नष्ट हो जाती है।
* सोफे या बिस्तर से उठाकर खड़े होने पर नेत्रों के आगे अंधेरा छा जाता है और सिर चकराने लगता है।
* सिरदर्द भी होता है।
* रोगी को अधिक प्यास लगती हैं।
* निम्न रक्तचाप की विकृति पर पड़े रहना चाहता है। किसी काम को करने की इच्छा नहीं होती है।

खानपान- 
* पालक, मेथी, घीया, टिंडा व हरी सब्जियां लें।
* अनार, अमरूद, सेब, केला, चीकू व अंगूर खाएं।
* कॉलेस्ट्रॉल बढ़ा हुआ न हो तो थोड़ा-बहुत घी, मक्खन व मलाई खाएं।
* केसर, दही, दूध और दूध से बने पदार्थ खाएं।
* सेंधा नमक का इस्तेमाल करें।
* सेब, गाजर या बेल का मुरब्बा चांदी का वर्क लगाकर खाएं।
* दिन व रात में अधिक पानी पीना चाहिए। कम से कम डेढ़ से दो लीटर पानी जरूर पीएं

* तुलसी, काली मिर्च, लौग और इलायची की चाय बनाकर पीएं। मात्रा सबकी एक-एक ग्राम। इसे छानकर गर्म ही पीना चाहिये। इसे रोज़ाना दिन में 1 बार पीने से निम्न रक्तचाप यानि Low Blood Pressure बहुत ही जल्दी ठीक हो जाता है। 
* राई तथा सौठ के चूर्ण को बराबर मात्रा में लेकर पानी में मिलाएं और पैर के तलवों पर लगाएं। प्रतिदिन सब्जी में लहसून का छौक (तड़का) लेने से निम्न रक्तचाप में तत्काल लाभ होता है।
* देशी गुड़ हर रोज 50 ग्राम की मात्रा में खाएं या २५ ग्राम गुड एक गिलास पानी में घोल कर उसमे थोड़ा  नीबू का रस और नमक मिला कर दिन में दो बार सेवन करे। 
* सेब, पपीता, अंजीर, आम आदि का अधिक सेवन करें।
* प्रतिदिन गाजर के एक गिलास रस में 10 ग्राम शहद मिलाकर पीएं। यह प्रयोग 30 दिनों तक करें।
* पुदीने की चटनी या रस में सेंधा नमक, काली मिर्च, किशमिश डालकर सेवन करें।
* प्रातः बासी मुंह सेब का मुरब्बा चांदी के वर्क के साथ खाएं।
* हींग के सेवन से रक्त जम नहीं पाता अर्थात् रक्त संचार ठीक रहता है। इसलिए निम्न रतचाप ठीक रहता है। इसलिए निम्न रतचाप में हींग का सेवन करें।
* भोजन के बाद आधा कप नारंगी पानी अवश्य पीएं।

आंवले के 2 ग्राम रस में 10 ग्राम शहद मिलाकर कुछ दिन प्रातःकाल सेवन करने से लो ब्लड प्रेशर दूर करने में मदद मिलती है।
लो ब्लड प्रेशर को सामान्य बनाये रखने में चुकंदर रस काफी कारगर होता है। रोजाना यह जूस सुबह-शाम पीना चाहिए। इससे हफ्ते भर में आप अपने ब्लड प्रेशर में सुधार पाएंगे।
जटामानसी, कपूर और दालचीनी को समान मात्रा में लेकर मिश्रण बना लेँ और तीन-तीन ग्राम की मात्रा मेँ सुबह-शाम गर्म पानी से सेवन करें। कुछ ही दिन मेँ आपके ब्लड प्रेशर में सुधार हो जायेगा।
रात्रि में 2-3 छुहारे दूध में उबालकर पीने या खजूर खाकर दूध पीते रहने से निम्न रक्तचाप में सुधार होता है।
अदरक के बारीक कटे हुए टुकडों में नींबू का रस व सेंधा नमक मिलाकर रख लें। इसे भोजन से पहले थोडी-थोडी मात्रा में दिन में कई बार खाते रहने से यह रोग दूर होता है।
200 ग्राम मट्ठे मे नमक, भुना हुआ जीरा व थोडी सी भुनी हुई हींग मिलाकर प्रतिदिन पीते रहने से इस समस्या के निदान में पर्याप्त मदद मिलती है।
200 ग्राम टमाटर के रस में थोडी सी काली मिर्च व नमक मिलाकर पीना लाभदायक होता है। उच्च रक्तचाप में जहां नमक के सेवन से रोगी को हानि होती है, वहीं निम्न रक्तचाप के रोगियों को नमक के सेवन से लाभ होता है।
गाजर के 200 ग्राम रस में पालक का 50 ग्राम रस मिलाकर पीना भी निम्न रक्तचाप के रोगियों के लिये लाभदायक रहता है।
दूध में दो-तीन छुहारे देर तक उबलकर सेवन करने से शक्ति बढ़ने पर निम्न रक्तचाप का निवारण हाता है।

रात को बादाम की तीन-चार गिरी जल में डालकर रखें। प्रातः उठकर गिरी को पीसकर मिस्री और मक्खन के साथ खायें और ऊपर से दूध पीने से निम्न रक्तचाप नष्ट होता 


है।
* रोगी का एक साथ अधिक मात्रा में भोजन नहीं करना चाहिए। थोड़ी-थोड़ी मात्रा में दिन में कई बार भोजन करना चाहिए।
* 1/4 चम्मच हल्दी पाउडर, 1/4 चम्मच धनिया पाउडर, 1 चुटकी अदरक का पाउडर या पिसी हुई सौंठ, 1 चुटकी इलायची पाउडर और 2 चम्मच चीनी मिला लीजिये। 1 पैन में 1 कप दूध और 1/2 कप पानी और यह मिश्रण डालकर चाय की तरह उबाल लीजिये,फिर इसे छान लीजिये। इसे गर्म ही पीना चाहिये। इसे रोज़ाना दिन में 1 बार पीने से कुछ ही समय में Low Blood Pressure यानि निम्न रक्तचाप ठीक हो जाता है। 
बचाव और इलाज-
स्मोकिंग से परहेज करें, एक्टिव रहें और ज्यादा टेंशन न करें तो लो बीपी से बचा जा सकता है।

ऐलोपैथी
ऐलोपैथिक डॉक्टर लो बीपी को एक बीमारी न मानकर दूसरी बीमारियों का लक्षण या परिणाम मानते हैं, इसलिए बिना जांच वे कोई भी दवा नहीं खाने की सलाह देते हैं।

होम्योपैथी
होम्योपैथी में अलग-अलग वजहों से होने वाले लो बीपी के लिए अलग-अलग दवाइयां हैं :
1. एक्सिडेंट, ऑपरेशन या महिलाओं में डिलिवरी या पीरियड्स के दौरान ज्यादा खून बह जाने से होने वाले लो ब्लड प्रेशर के लिए चाइना-30 की पांच-पांच गोलियां दिन में चार बार तीन-चार दिन तक लें।



2. किसी भी प्रकार का सदमा लगने से होने वाले लो ब्लड प्रेशर में एकोनाइट-30 या इग्नीशिया-30 या मॉसकस-30 की पांच-पांच गोलियां दिन में चार बार या कालीफॉस-6 एक्स की चार-चार गोलियां चार बार लें।



3. अगर अक्सर लो ब्लड प्रेशर रहता हो तो आर्सेनिक एल्बम-30 या जेल्सिमियम-30 या फॉसफोरिक एसिड-30 की पांच-पांच गोलियां दिन में चार बार लें।

आयुर्वेद

इनमें से कोई एक उपाय करें :
1. सिद्धमकरध्वज की खुराक मरीज की हालत के मुताबिक वैद्य से बनवाकर लें।
2. वृह्दवातचिंतामणि रस की आधी-आधी गोली सुबह-शाम दूध से लें।
योगेंद्र रस की आधी गोली पानी से दिन में एक बार लें।
(सिद्धमकरध्वज, वृह्दवातचिंतामणि रस व योगेंद रस, ये तीनों दवाएं बहुत ज्यादा बीपी लो होने पर सिर्फ वैद्य की देखरेख में ही लेनी चाहिए।)
3. मकरध्वज की एक गोली रोज लें।
4. कपूरादि चूर्ण एक छोटी चम्मच सुबह-शाम पानी से कुछ दिन तक लगातार लें। इसे शुगर के मरीज भी ले सकते हैं।
5. हरगौरी रस एक रत्ती सुबह-शाम शहद से लें।
6. मृगांग पोटली रस पाउडर की एक रत्ती सुबह-शाम पानी से लें। शुगर वाले भी सकते हैं। दिल के लिए अच्छा है और ताकत भी देता है।
7. चार रत्ती या आधा छोटा चम्मच अश्वगंधा चूर्ण या दो रत्ती ताप्यादि लौह या दो रत्ती प्रवाल पिष्टी (प्रवाल पिष्टी कैल्शियम बढ़ाती है) या चार रत्ती
8. आंवला चूर्ण या कामदुधा रस की गोली दो रत्ती पानी से लें।
9. दो चम्मच अश्वगंधारिष्ट बराबर पानी मिला कर सुबह-शाम लें।
10. दो छोटी चम्मच बलारिष्ट या अर्जुनारिष्ट आधे कप पानी से लें।
11. शुगर के मरीज अर्जुन की छाल का दो चम्मच चूर्ण पानी में उबाल लें। फिर छानकर पीएं।
12. शुगर के मरीज अश्वगंधा का पाउडर आधा छोटा चम्मच पाउडर पानी से लें या एक-एक गोली सुबह-शाम लें।

नुस्खे

1. रात को पांच बादाम भिगोकर सुबह खाली पेट एक बादाम व एक काली मिर्च लेकर दो से तीन मिनट तक चबाकर खाएं। बाकी बादामों को भी इसी तरह खाएं। 15-20 मिनट बाद नाश्ता कर सकते हैं।

2. चाय-कॉफी ले सकते हैं। इनसे बीपी बढ़ता है। नमक-चीनी का घोल या इलेक्ट्रॉल पाउडर का घोल भी ले सकते हैं।

3. हल्दी का आधा चम्मच पाउडर दूध के साथ दिन में किसी भी वक्त लें। इससे आराम मिलता है। ठीक होने पर छोड़ दें। इसे किसी भी मौसम में ले सकते हैं।

4. छिले हुए चार बादाम, एक चम्मच शहद और एक चम्मच मिश्री को एक साथ पीस लें। सुबह-शाम इस पेस्ट को खाएं।

5. गाय या बकरी का एक पाव दूध, दो चम्मच गाय का घी, काली मिर्च के 10 दाने और 10 ग्राम मिश्री को उबालकर इसमें एक चम्मच शहद मिलाकर सुबह-शाम पीएं। शुगर के मरीज मिश्री व शहद न लें।

6. मक्खन एक चम्मच, मिश्री स्वादानुसार और एक चांदी का वर्क मिलाकर सुबह-शाम कुछ दिन सेवन करें।

7. हर रोज गाय के दूध के साथ एक-दो सिंघाड़े खाएं।

8. दूध व चावल की खीर में छोटी इलायची, चिरौंजी, बादाम व केसर डालकर खाएं।

9. पका हुआ शरीफा और सीताफल का सेवन करने से भी फायदा होता है।

10. काले चने 20-25 ग्राम और 10 नग किशमिश रात को पानी में भिगो दें। सुबह शौच के बाद खाली पेट इस पानी को पीकर चने व किशमिश खा लें। आधे घंटे बाद चाय पी सकते हैं। शुगर के मरीज बिना किशमिश के चने खाएं व पानी पीएं।

11. सात-आठ गिरी मुनक्का व बादाम मिलाकर रोज खाएं।

12. रात को दो-तीन अंजीर भिगोकर सुबह खाएं। शुगर के मरीज सिर्फ एक अंजीर भिगोकर लें।

13. एक बड़ी इलायची व पुदीने के थोड़े-से पत्तों को उबाल कर उसका पानी पीएं। चाय में डालकर भी पी सकते हैं।

नेचरोपैथी

तौलिया या किसी और कपड़े को सादे पानी में भिगोकर निचोड़ लें। चार उंगल चौड़ी पट्टी बनाएं। चटाई बिछाकर उस पर पट्टी फैला दें और खुद उस पर लेट जाएं। 10 मिनट तक लेटे रहें। ध्यान रहे कि पट्टी उतनी ही चौड़ी हो, जो रीढ़ की हड्डी को ही लंबाई में कवर करे, पूरी कमर को नहीं। यह लो व हाई बीपी, दोनों में फायदेमंद है। इससे थोड़ी देर में ही बीपी सामान्य हो जाएगा। इसे दिन या रात में किसी भी वक्त कर सकते हैं लेकिन सोते वक्त करना बेहतर है। लगातार 45 दिन करें।
योग

1. लो बीपी में ये आसन व क्रियाएं फायदेमंद हैं।
2 . अनुलोम-विलोम, भस्त्रिका व उज्जायी प्राणायाम करें। 3. कपालभाति क्रिया, उत्तानपादासन, कटिचक्रासन, पवनमुक्तासन, नौकासन, मंडूकासन और लेटकर साइकिलिंग करें।

With Thanks from:
http://kumarhealth.blogspot.in/2013/07/blog-post_17.html





Sunday, September 20, 2015

108 Golden Rules of Health

           From my book "100 Golden Rules for Health" cost Rs 12/- each  postal charge extra mail at rkavishwamitra@gmail.com or phone on 09354761220 (Vishal) or 09466213501 (Rasika Mittal). English Translation of the book is urgently required. Name of the translator would be mentioned on the book. Payment can be given to professionals.
       Due to financial constraints it is being difficult to add more articles for one year. Kindly send Rs 100/- (or more) to get soft copy of the book and other health related wonderful material. Annual membership of  स्वस्थ भारत अभियान is Rs 500/-। Money would be used for the research work of an extra ordinary book "स्वस्थ भारत " to be published in 2016. Free consultation for various diseases would be given by Dr. R. K. AGGARWAL. 
                   जिन नियमों को अपनाकर व्यक्ति स्वस्थ जीवन जी पाए उनकी जानकारी व वैज्ञानिक विवेचन नीचे दिया जा रहा है। अच्छा तैराक वह होता है जिसे नदी ष्ेऽ सभी भंवरों की जानकारी होती है न कि वह जो भंवर में फंस जाए। यह संसार भी एक भवसागर है जिसमें अनेक भंवर होते हैं। यदि एक बार व्यक्ति भंवर में फंस जाए तो निकलने में काफी कठिनाई होती हैप्राण जाने का भय भी रहता है। इसी प्रकार यदि व्यक्ति किसी गम्भीर रोग ष्ेऽ चंगुल में फंस जाए तो बहुत दर्द सहना पड़ता है व प्राण जाने का खतरा भी मंडराता रहता है। इसीलिए समझदारी इसी में है कि हम यथा सम्भव स्वास्थ्य ष्ेऽ स्वर्णिम सूत्रों का विस्तृत अध्ययन व पालन करने का प्रयास अवश्य करें। स्वास्थ्य के सूत्रों को पाठकों को अपनी प्रकृति के अनुसार ग्रहण करना चाहिए। स्वस्थ व्यक्ति के लिए सूत्र अलग हैं व रोगी के लिए अलग। उदाहरण के लिए शीतल जल में स्नान से बहुत लाभ होता है परन्तु यदि ज्वर पीडि़त व्यक्ति ठण्डे जल से नहा ले तो हानि भी हो सकती है। इसी प्रकार घी खाने से व्यक्ति हष्ट-पुष्ट बनता है परन्तु जिसका हाजमा कमजोर है वह यदि घी खा ले तो पेट दर्द अथवा दस्त से पीडि़त हो सकता है। अतः पाठकों से विनम्र निवेदन है कि विवेक का प्रयोग करते हुए अथवा किसी उत्तम वैद्य के परामर्श से साथ ही सूत्रों का लाभ उठाएॅं। ये सूत्र निम्नलिखित हैं।
1. भूख व भोजन
     अच्छे स्वास्थ्य ष्ेऽ लिए यह आवश्यक है कि उचित भूख लगने पर ही भोजन किया जाए। ऐसा क्यों करेंकारण यह है कि जो भोजन हम करते हैं उसका परिपाक आमाशय में होता है। यदि भूख ठीक न हो तो आमाशय ष्ेऽ द्वारा भोजन ठीक से नहीं पकता अथवा पचता। इस कारण भोजन से जो रस उत्पन्न होते हैं वो दूषित रहते हैं। ये रस व्यक्ति में रोग उत्पन्न करते हैं व स्वास्थ्य खराब करते हैं। इस समस्या ष्ेऽ आयुर्वेद में आमवात कहा जाता है। किसी ने सत्य ही कहा है-
   ”आम कर दे काम तमाम
यह आमवात ही सन्धिवात का मूल कारण होता है।
         परन्तु आज विडम्बना यह है कि व्यक्ति को खुलकर भूख लगना ही भूख लगना ही बंद हो गया है प्राष्ृऽतिक भूख व्यक्ति को लग नहीं पा रही है। बस दो या तीन समय भोजन सामने देख व्यक्ति भोजन कर डालता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति भूख से कम खाए। भोजन पेट की भूख से तीन चैथाई करें। एक चैथाई पेट खाली रखें। जब पेट भरने लगे अथवा डकार आ जाए तो भोजन करना बन्द कर दें। ठूस-ठूस कर खाने से शरीर भारी हो जाता है। भूख से अधिक खाने पर पाचन तन्त्र पर एक दबाव बनता है। पेटआमाशयआॅंतें मिलकर पाचन तन्त्र बनता हैइसमें फूलने सिकुड़ने की क्रिया होती रहती हैऔर उलट पुलट के जिए जगह की गुंजाईश रखे जाने की आवश्यकता पड़ती है। इस सारे विभाग में ठूॅंस-ठूॅंस कर भरा जाए और कसी हुई स्थिति में रखा जाएतो स्वभावतः पाचन में बाधा पड़ेगीअवयवों पर अनावश्यक दबाव-खिंचाव रहने से उनकी कार्यक्षमता में घटोतरी होती जाएगी। उन अंगों से पाचन के निमित्त जो रासायनिक स्त्राव होते हैंउनकी मात्रा न्यून रहेगी और सदा हल्की-भारी कब्ज बनी रहेगी।
 आहार के सम्बन्ध में यह विशेष उल्लेखनीय है कि सच्ची एवं परिपक्व भूख लगने पर ही खाना खाएॅं। रुस के स्वास्थ्य विशेषज्ञ ब्लाडीमार कोरेचोवस्को का मत है - भूख से जितना अधिक खाते हैंसमझना चाहिए कि उतना ही विष खाते हैं।
            बच्चों ष्ेऽ लिए भोजन में कोई नियम नहीं रखने चाहिए। जब इच्छा हो खाएॅं। युवाओं ष्ेऽ पौष्टिक भोजन नियमानुसार करना चाहिए व प्रौढ़ भोजन सन्तुलित करें।
अपवाद ;म्गबमचजपवदेद्धः
 बहुत से व्यक्ति डायबिटिज व अन्य घातक रोगों ष्ेऽ चंगुल में फंस कर बहुत कमजोर हो गए हैं। ऐसे लोगों को यह सुझाव दिया जाता है कि हर दो तीन घण्टें में ष्ुऽछ न ष्ुऽछ खाते रहें अन्यथा बहुत दुर्बलता अथवा अम्लता ;।बपकपजलद्ध बनने लगेगी।
2. भोजन का समय
            दो समय भोजन काना अच्छा होता है। भोजन करने का सबसे अच्छा समय प्रातः 8 से 10 बजे व सांय 5 से 7 बजे ष्ेऽ बीच है। यदि कोई भारी खाद्य पदार्थ लेना है तो प्रातः ष्ेऽ भोजन में ही लेंक्योंकि पाचन क्षमता सूर्य से प्रभावित होती है। 12 बजे ष्ेऽ आस-पास पाचन क्षमता सर्वाधिक होती हैअतः 10 बजे तक किया गया भोजन बहुत अच्छे से पच जाता है। अन्न वाले खाद्य पदार्थ दो बार से अधिक न लें। परन्तु आवश्यकतानुसार तीन बार भी भोजन किया जा सकता है। सांयकाल भोजन हल्का करें। भोजन का पाचन सूर्य पर निर्भर करता है। सूर्य की ऊष्मा से नाभिचक्र अधिक सक्रिय होता है। भोजन पचाने में लगी अग्नि को जठराग्नि कहा जाता है जिसका नियंत्रण नाभि चक्र से होता है। जिनका नाभि चक्र सुस्त हो जाता हैकितना भी चूर्ण चटनी खा लें भोजन ठीक से नहीं पच पाता। गायत्री का देवता सविता ;सूर्यद्ध है अतः नाभि चक्र को मजबूती ष्ेऽ लिए गायत्री मंत्र का आधा घण्टा जप अवश्य करें। दो ठोस आहारों के बीच 6 घण्टें का अन्तर रखें। 3 घण्टें से पहले ठोस आहार न लें। अन्यथा अपच होगा जैसे हाण्डी में यदि कोई दाल पकाने के लिए रखी जाए उसके थोड़ी देर बाद दूसरी दाल डाल दी जाए तो यह सब कच्चा पक्का हो जाएगा। बार-बार खाने से भी यह स्थिति उत्पन्न होती है। भोजन के पश्चात् 6 घण्टें से अधिक भूखे न रहें। इससे भी अम्लता इत्यादि बढ़ने का खतरा रहता है।
3. भोजन की प्रकृति
            रोटी ष्ेऽ लिए मोटा प्रयोग करें यह आॅंतों में नहीं चिपष्ेऽगा। मैदा अथवा बारीक आटा आॅंतों में चिपक कर सड़ता है जिससे आॅंतों ष्ेऽ संक्रमण ;इन्फेक्शनद्ध का खतरा बढ़ जाता है।  साबूत दालें भिगोकर अंष्ुऽरित कर खाएॅं। भोजन का जरूरत से ज्यादा पकाएॅं नहीं। भोजन ष्ेऽ विषय में कहा जाता है - हितभुक, )तभुक मितभुक हितभुक का अर्थ है वह भोजन करें तो हितकारी हो।   जैसे दूध ष्ेऽ साथ मूली व दही ष्ेऽ साथ खीर लेना अहितकारी है परन्तु ष्ेऽले ष्ेऽ साथ छोटी इलाइची एवं चावल ष्ेऽ साथ नारियल की गिरी लाभप्रद है )तभुक का अर्थ है भोजन )तु ष्ेऽ अनुष्ूऽल हो उदाहरण ष्ेऽ लिए ग्रीष्म )तु में आटे में गेहूॅं ष्ेऽ साथ जौ पिसवाना लाभप्रद रहता है क्योंकि जौ की प्रष्ृऽति शीतल होती है परन्तु वर्षा )तु में गेहूॅं ष्ेऽ साथ चना पिसवाना आवश्यक है वर्षा )तु में वात ष्ुऽपित होता है जिसको रोकने ष्ेऽ लिए चना बहुत लाभप्रद रहता है। अन्यथा व्यक्ति कमर दर्द व अन्य पीड़ाओं से ग्रस्त हो सकता है। अन्तिम मितभुक का अर्थ है भूख से कम भोजन करें। पेट को ठूॅंस-ठूॅंस कर न भरें।
4. भोजन के समय की स्थिति
भोजन से पूर्व अपनी मानसिक स्थिति शान्त कर लें। भोजन शान्त मन से चबा-चबा कर व स्वाद ले-लेकर करें। यदि भोजन में रस आए तो वह शरीर को लगता है अन्यथा खाया-पीया व बेकार निकल गया तथा पचने में मेहनत और खराब हो गई। भोजन करते हुए किसी भी प्रकार ष्ेऽ तनावआवेशभयचिन्ता ष्ेऽ विचारों से ग्रस्त न हों। भोजन ईश्वर का प्रसाद मानकर प्रसन्न मन से करें। भोजन को खूब चबा-चबा कर खाना चाहिए। आचार्य भाव मिश्र कहते हैंः-
ईष्र्याभयक्रोध् समन्वितेनलुब्धेन रुग् दैन्यनिपीडितिेन।
विद्वेष युक्तेन च सेव्यमानअन्नं न सम्यष््ऽ परिपाकमेतिû
      अर्थात् भोजन ष्ेऽ समय ईष्र्याभयक्रोधलोभरोगदीनता का भावविद्वेष रखने से खाया हुआ अन्न भली-भाँति नहीं पचता हैजिससे रस रक्तादि की उत्पत्ति भी ठीक प्रकार शु( रूप से नहीं होती है। अतः सुखपूर्वक बैठकर प्रसन्नता से धीरे-धीरे खूब चबा-चबा कर भोजन करना चाहिए।
भोजन ष्ेऽ समय कोई अन्य काम जैसे पुस्तक पढ़नाटीवी देखना न करें। भोजन को सही से चबाने पर उसमें पाचक रसों का समावेश उपयुक्त मात्रा में होता है। यदि जल्दी जल्दी में भोजन को पेट की भट्टी में झोंक दिया जाए तो इसका परिणाम अपचदस्त तथा गैस उत्पति के रूपमें अनुभव किया जा सकता है। जो लोग अप्रसन्न मन से भोजन करते हैं उनके शरीर में कीटोन्स ;विषाक्त तत्वद्ध बढ़ने लगते हैं। अतः जो भी भोजन ग्रहण करें प्रसन्न मन से भगवान् को धन्यवाद देना न भूलें।
5.  दिन में भोजन के पश्चात् थोड़ी देर विश्राम एवं सांयकाल लगभग 100-200 कदम अवश्य चलें।
6. भोजन ष्ेऽ पश्चात् एक घण्टे तक जल न पीएँ। यदि आवश्यकता लगे तो भोजन ष्ेऽ बीच अल्पमात्रा में पानी पीएँक्योंकि अधिक जल पीने से पाचक रस मन्द हो जाते हैं।
7. सप्ताह में एक दिन इच्छानुसार स्वादिष्ट भोजन कर सकते हैं। पाँच दिन सामान्य भोजन करें व एक दिन व्रत अवश्य करें। सामान्य भोजन में मिर्च मसालों का प्रयोग कम से कम करें।
8. घी का सेवन वही करें जो शारीरिक कार्य अधिक करते हैं। मानसिक कार्य करने वाले घी का सेवन अल्प मात्रा में ही करें। पित्त प्रकृति वालों के लिए घी का प्रयोग लाभप्रद होता है।
9. दूध या पेय पदार्थों को जल्दी-जल्दी नहीं गटकना चाहिए। धीरे-धीरे चूस-चूस कर पीना चाहिए। पेय पदार्थों का तापक्रम न तो अधिक गर्म हो न ही अधिक शीतल।
10. घी में तले हुए आलूचिप्स आदि का प्रयोग कम से कम करना चाहिए। तलने ष्ेऽ स्थान पर भाप द्वारा पकाना कहीं अधिक गुणकारी व सुपाच्य होता है।
11. क्या खायाकितना खायायह महत्वपूर्ण नहीं हैबल्कि कितना पचाया यह महत्वपूर्ण है।
12. भोजन जीवन का साधन मात्र है। शु(सात्विक व स्वच्छ भोजन से ही जीवन अच्छा हो सकता है।
13. इतना मत खाओ कि तुम्हारा शरीर आलसी हो जाए।
14. दिनान्ते च पिवेद् दुग्धं निशान्ते च जलं पिबेत्।
भोजनान्ते पिवेत् तक्रं वैद्यस्य किं प्रयोजनम्û
            यदि रात्रि ष्ेऽ शयन से पूर्व दुग्धप्रातःकाल उठकर जल ;उषापानद्ध और भोजन ष्ेऽ बाद तक्र ;मट्ठाद्ध पिएँ तो जीवन में वैद्य की आवश्यकता ही क्यों पड़े?
15. दीर्घ आयु के लिए भोजन का क्षारीय होना आवश्यक है। क्षार व अम्ल का अनुपात 31 होनी चाहिए। जो लोग अम्लीय भोजन करते हैं उसमें उनको रक्त-विकार अधिक तंग करते हैं। कुछ शोधों के निष्कर्ष यह भी बताते हैं कि भोजन में क्षार तत्व बढ़ाकर हृदय की धमनियों के इसवबांहम भी खोलें जा सकते हैं। भोजन में अम्लीय पदार्थों की मात्रा कम रखें। 
            स्वस्थ रहने के लिए रक्त की क्षारीयता 80 प्रतिशत तथा अम्लता 20 प्रतिशत होनी चाहिए। यह सन्तुलन बना रहता हैतब तक रोगों का भय नहीं रहता है। आज की पश्चिम जीवनशैली को अपनाकर हमारे देश में अस्पताल और डाॅक्टर दोनों बढ़ने पर तथा नई-नई दवाओं का आविष्कार होने पर भी रोग और रोगी दोनों ही घटने का नाम नहीं ले रहे हैं। आवश्यकता है क्षारीयता प्रदान करने वाले खाद्यों का उत्पादन भी बढ़ाया जाए और जीवनशैली में भी लाया जाए। रक्त को क्षारीयता प्रदान करने वाले खाद्यों में चोकर युक्त आटे की रोटीअंकुरित अनाजमूलीगाजरटमाटर, पत्तागोभीहरा धनियामेथीपालकबथुआचने इत्यादि शाक-सब्जीसलाद तथा सभी ताजे पके हुए मीठे फल लेने चाहिए। सभी फल एवं हरी सब्जियों का प्रयोग करें। अंकुरित मूॅंगअंकुरित चनाअंकुरित सोयाबीन इत्यादि का भरपूर प्रयोग करें। मैदाबेसनबिना छिलके की दालें एवं सफेद चीनीसफेद नमकतेलशराबचायकाॅफीकोल्ड-ड्रिंक्स जैसे बोतलबंद पेयबिस्कुटब्रैड आचारचाटकचैड़ीसमौसानमकीन एवं पराठेंपूड़ी आदि खून में अम्लता बढ़ाकर रोग पैदा करते हैं अतः स्वास्थ्य रक्षा के लिए अपने दैनिक भोजन में अधिकाधिक फल तथा हरी सब्जियों को स्थान देना चाहिए।
16. तीन सफेद विषों का प्रयोग कम से कम करें - सफेद नमकसफेद चीनी व सफेद मैदा।
17. फल सब्जियों में ।दजपवगपकंदजे पर्याप्त मात्रा में होते हैं। इनका प्रयोग लाभप्रद रहता है।
18. कभी-कभी बादाम व अखरोट का भिगोकर सेवन करते रहें। इससे जोड़ों की ग्रीस अर्थात् ताकत बनी रहती है अखरोट में व्उमहं3होता है जो सेहत के लिए जरुरी है।
19. जितना सम्भव हो जीवित आहार लें। अधिक तला भुना पदार्थ व जंक फूड मृत आहारों की श्रेणी में आते हैं।
20. गेहूॅंचावल थोड़ा पुराना प्रयोग करें।
21. घर में फ्रिज में कम से कम सामान रखने का प्रयास करें। पुराना बारीक आटा व सब्जी का प्रयोग जोड़ों के दर्द को आमन्त्रित करता है।
22. भोजन के उपरान्त वज्रासन में बैठना बहुत लाभकारी होता है। भोजन करने के पश्चात् एक दम न सोएॅं न दिन मेंन रात में।दिन में भोजन के पश्चात् थोड़ी देर विश्राम व सांयकाल लगभग 100-200 कदम अवश्य चलें।
23. भोजन के पश्चात् दाई साॅंस चलाना अच्छा होता है। इससे जठाराग्नि तीव्र होती है व पाचन में मदद मिलती है।
24. पानी सदा बैठकर धीरे-धीरे पिएॅंएकदम न गटकें। जल पर्याप्त मात्रा में पिएॅं अन्यथा भ्पही ठच् शिकार हो जाएॅंगे। सामान्य परिस्थितियों में जल इतना पीएॅं कि 24 घण्टें में 6 बार मूत्र त्याग हो जाए। मूत्र त्याग करते समय अपने दाॅंत बीच कर रखें।
नियमित दिनचर्याः
            अधिकांश व्यक्ति अपनी जीवन-शैली को अस्त-व्यस्त रखते हैं इस कारण रोगों की चपेट में आने लगते हैं। रोगी होने पर एलोपैथी अथवा अन्य चिकित्सकों से इलाज कराते हैंपरन्तु जीवन-चर्या को ठीक करने की ओर ध्यान नहीं देते। इस कारण रोग जिद्दी ;बीतवदपबद्ध होने लग जाते हैं। जब रोग घातक स्थिति तक पहुॅंच जाता है तभी आॅंख खुलती है व रोग ष्ेऽ निवारण ष्ेऽ लिए बहुत परेशानी उठानी पड़ती है। यदि हम पहले से ही सचेत रहकर अपनी जीवनचर्या पर नियन्त्रण रखें तो हम )षियों ष्ेऽ अनुसार जीवेम शरदः शतम्’ अर्थात् 100 वर्ष तक स्वस्थ जीवन जी सकते हैं। इसष्ेऽ लिए हमें निम्न सूत्रों को जीवन में अपनाना होगा।
25.  प्रातःकाल सूर्योदय से दो घण्टा पूर्व अवश्य उठें। )षियों ने इसे ब्रह्ममुहूत्र्त की संज्ञा दी है। इस समय की वायु में जीवनी शक्ति सर्वाधिक होती है। वैज्ञानिकों ने शोध किया है कि पेड़-पौधों की वृ(ि इस समय व संधिकाल ;दिन-रात ष्ेऽ मिलने का समयद्ध में सबसे अधिक होती है।
26.  प्रातः उठने ष्ेऽ पश्चात् ऊषा पान ;जलपानद्ध करें। यह जल ताजा पी सकते हैं। यदि रात को ताम्र पात्र में जल भरकर रख दें वह पीना अधिक लाभप्रद है। ताम्र पात्र को विद्युत रोधी लकड़ीरबड़प्लास्टिक ष्ेऽ ऊपर रखें इससे पानी में ऊर्जा निहित हो जाती है। यदि सीधा जमीन या स्लैब आदि पर रख दें तो यह ऊर्जा जमीन में चली जाती है। शीत )तु में जल को हल्का गर्म करष्ेऽ पीयें व ग्रीष्म )तु में सादा ;अधिक ठण्डा न होद्ध लें। जल की मात्रा इच्छानुसार लें। जितना पीना आपको अच्छा लगे- आधा किलोएक किलोसवा किलो उतना पी लें। जोर-जबरदस्ती न करें। कई बार अधिक पानी-पीने ष्ेऽ चक्कर में हृदय की धड़कन बढ़ती है या पेट में दर्द आदि महसूस देता हैअतः जितना बर्दाश्त हो उतना ही पानी पिया जाए।
27.  जल पीकर थोड़ा टहलने ष्ेऽ पश्चात् शौच ष्ेऽ लिए जाएँ। मल-मूत्र त्यागते समय दाँत थोड़ा भींचकर रखे व मुँह बंद रखें। मल-मूत्र त्याग बैठकर ही करना उचित होता है।
28.  मंजन जलपान करने से पहले भी कर सकते हैं व शौच जाने ष्ेऽ बाद भी। ब्रश से ऊपर-नीचे करष्ेऽ मंजन करें। सीधा-सीधा न करें। यदि अंगुली का प्रयोग करना हो तो पहली अंगुली तर्जनी का प्रयोग न करें। अनामिका ;त्पदह थ्पदहमतद्ध अंगुली का प्रयोग करेंक्योंकि तर्जनी अंगुली से कभी-कभी ;मनः स्थिति ष्ेऽ अनुसारद्ध हानिकारक तरंगें निकलती हैं जो दाँतोंमसूड़ों ष्ेऽ लिए हानिकारक हो सकती है। कभी-कभी नीम की मुलायम दातुन का प्रयोग अवश्य करें। इससे दाँतों ष्ेऽ कीटाणु मर जाते हैं यदि नीम की दातुन से थोड़ा-बहुत रक्त भी आए तो चिन्ता न करें। धीरे-धीरे करष्ेऽ ठीक हो जाएगा। ष्ुऽछ देर नीम की दातुन करते हुए रस चूसते रहें उसष्ेऽ पश्चात् थोड़ा-सा रस पी लें। यह पेट ष्ेऽ कीटाणु मार देता है। यदि पायरिया ष्ेऽ कारण दाँतों से रक्त अधिक आए तो बबूल की दातुन का प्रयोग करें वह काफी नरम व दाँतों को मजबूती प्रदान करने वाली होती है। मंजन दोनों समय करना अच्छा रहता है- प्रातःकाल व रात्रि सोने से पूर्व। परन्तु दोनों समय ब्रश न करें। एक समय ब्रश व एक समय अंगुलि से मंजन करें। अधिक ब्रश करने से दाँत व मसूढ़े कमजोर होने का भय बना रहता है। मंजन करने ष्ेऽ पश्चात् दो अंगुलि जीभ पर रगड़कर जीभ व हलक साफ करें। हल्की उल्टी का अनुभव होने से गन्दा पानी आँखनाकगले से निकल आता है। इससे टान्सिलस की शिकायत नहीं होती।
29.  स्नान ताजे जल से करेंगर्म जल से नहीं। ताजे जल का अर्थ है जल का तापक्रम शरीर ष्ेऽ तापक्रम से कम रहना चाहिए। छोटे बच्चों ;5 वर्ष से कमद्ध ष्ेऽ लिए अधिक ठण्डा जल नहीं लेना चाहिए। शरद् )तु में भी जल का तापक्रम शरीर ष्ेऽ तापक्रम से कम ही होना चाहिएपरन्तु बच्चोंवृ(ों व रोगियों को गुनगुने जल से स्नान करना चाहिए। स्नान सूर्योदय से पूर्व अवश्य कर लेना चाहिए। रात्रि में पाचन तन्त्र ष्ेऽ क्रियाशील रहने से शरीर में एक प्रकार की ऊष्मा ;ीमंजद्ध बनती है जो शीतल जल में स्नान करने से शांत हो जाती हैपरन्तु यदि सूर्योदय से पूर्व स्नान नहीं किया गया तो सूर्य की किरणों ष्ेऽ प्रभाव से यह ऊष्मा और बढ़ जाती है तथा सबसे अधिक हानि पाचन तन्त्र को ही पहुँचाती है।
30. स्नान ष्ेऽ पश्चात् भ्रमण ;तेज चाल सेद्धयोगासनप्राणायामध्यानपूजा का क्रम बनाना चाहिए। इसष्ेऽ लिए प्रतिदिन आधा से एक घण्टा समय अवश्य निकालना चाहिए। बच्चों को भी मंदिर में हाथ जोड़नेचालीसा आदि पढ़ने का अभ्यास अवश्य कराना चाहिए।

 शारीरिक श्रम व व्यायाम

31. स्वस्थ व्यक्ति प्रतिदिन इतना श्रम अवश्य करें कि उसष्ेऽ शरीर से पसीना निकलता रहे। इससे खून की सफाई हो जाती है। जो व्यक्ति पर्याप्त मेहनत नहीं करता उसको व्यायामयोगासन अथवा प्रातः सांय तीन चार कि.मी. पैदल चलना चाहिए।
32. हमारा सम्पूर्ण शरीर माॅंसपेशियों का बना है। माॅंसपेशियों की ताकत बनाए रखने ष्ेऽ लिए उचित शारीरिक श्रम अथवा व्यायाम अनिवार्य है।
 33. चीन ष्ेऽ लोग स्वस्थ व ताकतवर होते हैं क्योंकि वो साइकिलों का प्रयोग खूब करते हैं। पहले महिलाएॅं घर का कार्य स्वयं करती थी इससे बहुत स्वस्थ रहती थीपरन्तु आज ष्ेऽ मशीनी युग ने हमारी माता-बहनों का स्वास्थ्य चैपट कर दिया है। यह हमारे सामने प्रत्यक्ष है कि बागडि़यों व पहाड़ी महिलाओं को प्रसव में बहुत कम कष्ट होता है। उनष्ेऽ यहाॅं आराम से घर पर ही बच्चे पैदा हो जाते हैं क्योंकि वो मेहनत बहुत करती हैं।
34. शारीरिक श्रम व्यक्ति अपनी सामथ्र्य ष्ेऽ अनुसार करें। यदि रोगी व दुर्बल व्यक्ति अधिक मेहनत कर लेगा तो उसे लाभ ष्ेऽ स्थान पर हानि भी हो सकती है। इस स्थिति में पैदल चलना बहुत लाभप्रद रहता है।
35. समाज में ष्ुऽछ अच्छी परिपाटियाॅं अवश्य चलें। जैसे प्रातः अथवा सांय पूरा परिवार मिलकर स्वयं लघु वाटिका चलाए ष्ुऽछ फलफूलसब्जियाॅं उगाए। इससे परिवार को अच्छी सब्जियाॅं मिलेंगी व शारीरिक श्रम भी होगा।
36.  इन्द्रिय संयम - इस नियम ष्ेऽ अन्तर्गत जीभ व जननेन्द्रिय का संयम आता है। जिह्वा संयम ष्ेऽ लिए सप्ताह में एक दिन अस्वाद व्रत अर्थात् बिना नमक मिर्च मसालों का अस्वाद भोजन करें। जननेन्द्रिय संयम ष्ेऽ लिए अश्लील वातावरण से बचने का प्रयास करें। गलत वातावरण बड़े-बड़े जितेन्द्रिय का भी पतन कर देता है।
            विवाहित व्यक्ति भी गृहस्थ जीवन में मर्यादानुसार ही सम्भोग करें। 25 से 35 वर्ष तक ष्ेऽ गृहस्थी हफ्तेदो हफ्ते में एक बार, 35 से 45 वर्ष की आयु तक ष्ेऽ गृहस्थी तीन चार सप्ताह में एक बार व इससे ऊपर दो चार माह में एक बार ही मिलें। महिलाओं ष्ेऽ )तुकाल में यह वर्जित है क्योंकि इस समय प्रष्ृऽति अनुष्ूऽल नहीं होती।
37. आहारनिद्रा व ब्रह्मचर्य इन तीनों बातों से स्वास्थ्य पर बहुत प्रभाव पड़ता है। आहार में मांसअण्डाशराबमिर्च-मसाले व अधिक नमक से बचना चाहिए। निद्रा छः से आठ घण्टे ष्ेऽ बीच लेनी चाहिए व अश्लील चिन्तन से बचना ही ब्रह्मचर्य है।
38. जीवन आवेश रहित होना चाहिए। ईष्र्या-द्वेषबात-बात पर उत्तेजित होने का स्वभाव जीवनी शक्ति को भारी क्षति पहुँचाता है।
39. रात्रि को सोते समय मच्छरों से बचने ष्ेऽ लिए मच्छरदानी का प्रयोग करना चाहिए। कीटनाशकों का कम से कम प्रयोग करना चाहिए। लम्बे समय तक मच्छरनाशक रसायनों ष्ेऽ उपयोग से मनुष्य को सर्दी-जुकामपेट में ऐंठन और आँखों में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। ये लक्षण और विड्डतियाँ पायरेथ्राइडस नामक ड्डत्रिम कीटनाशक ष्ेऽ कारण होती हैं जो कीटों ष्ेऽ तंत्रिका तन्त्र पर हमला करता है। सेफ्टी वाच समूह सी.यू.टी.एस.’ ने अपने नए प्रकाशन इज इट रियली सेफ’ में बताया है कि ये रसायन मानव शरीर ष्ेऽ लिए बहुत-ही विषैले और हानिकारक होते हैं।
40.  भोजन बनाते समय साबुत दालों का प्रयोग करना चाहिए। छिलका उतरी दालों का प्रयोग बहुत कम करना चाहिए। आटा चोकर सहित मोटा प्रयोग में लाना चाहिए। बारीक आटा व मैदा कम से कम अथवा कभी-कभी ही प्रयोग करना चाहिए। दालसब्जियों को बहुत अधिक नहीं पकाना चाहिए। आधा पका ;ींस िबववाद्ध भोजन ही पाचन व पौष्टिकता की दृष्टि से सर्वोत्तम है।
41. व्यस्त रहेंमस्त रहें ष्ेऽ सूत्र का पालन करना चाहिए। व्यस्त दिनचर्या प्रसन्नतापूर्ण ढंग से जीनी चाहिए।
42. प्रातः उठते ही दिनभर की गतिविधियों की रूपरेखा बना लेनी चाहिए व रात्रि को सोते समय दिन भर की गतिविधियों का विश्लेषण करना चाहिए। यदि कभी कोई  गलती प्रतीत होती होतो भविष्य में उस त्रुटि को दूर करने का संकल्प लेना चाहिए।
43. शयन ष्ेऽ लिए बिस्तर पर मोटे बाजारू गद्दों का प्रयोग न करेंहल्ष्ेऽ रूई ष्ेऽ गद्दों का प्रयोग करें।
घर में अथवा आस-पास नीम चढ़ी गिलोय उगाकर रखें व हफ्ते पन्द्रह दिन एक-दो बार प्रातःकाल उबालकर पीते रहें। गिलोय से शरीर स्वस्थ व निरोग रहता है। लीवर सुचारू रूप् से काम करता है।
44. शीत )तु में दो तीन माह  आॅंवले का उपयोग करें। यह बहुत ही उच्च कोटि का स्वास्थ्यवर्धक रसायन है।
45. प्रातःकाल सूर्योदय के समय सविता देवता को प्रणाम कर उत्तम स्वास्थ्य की कामना करें व गायत्री मन्त्र पढ़ें। इससे सूर्य स्नान होता है। नस नाडि़यों के रोग जैसे सर्वाइकल आदि नहीं होते।
46. वस्त्र सदा ढीलें पहने। नाड़े वाले कुर्ते-पजामे सर्वोतम वेश हैं। कसी जीन्स आदि बहुत घातक होती हैं।
47. जब भी मिठाई खाएॅंकुल्ला अवश्य करें।
48. घर में तुलसी उगाकर रखें इससे सात्विक ऊर्जा में वृद्धि होती है तथा वास्तु दोष दूर होते हैं। समय-समय पर तुलसी का सेवन करते रहें।
49. मोबाईल पर लम्बी बातें न करें। यह दिमाग में टयूमर व अन्य व्याधियाॅं उत्पन्न कर सकता है।
50. देसी गाय के दूध घी का सेवन करें। देसी गौ का सान्निधय भी बहुत लाभप्रद रहता है।
to be continued...........................................................