Sunday, August 16, 2015

मानव के दुःखो का कारण

ईश्वर दिव्य है वह आपके अंदर दिव्यता लाना चाहता है वह सत है और वैसी ही प्रतिक्रिया आपके अंदर चलाने की उसकी इच्छा होती है आपके मन का मैल दूर हो तो आपका जीवन ईश्वरीय मन मोहकता दिव्यता का केंद्र बन जाए और उसकी सुवास से सारा वातावरण महक जाए
अपने भीतर समाविष्ट अमिट सत्य को पहचानिये यह सत्य आपको संकीर्णता से मुक्त कर देगा संसार की बदलती हुई गतिविधियो से शरीर के नाना प्रकार के रूपों से तब आप दुखी और विक्षुब्ध न होगें आपका जीवन हास्य युक्त चहकता और दमकता हुआ रहेगा मूल बात आत्म चेतना को पहचाना है जिससे आप मन को तमोगुण से बचा सकते है और मुनष्य जीवन को आनंदमय बना सकते है वह परमात्मा तेजस्वी प्रकाशवान और सम्पूर्ण मानसिक पीडाओ को नष्ट करने वाला है उसे विकसित करने में आपका कल्याण है भगवान कृष्ण ने कहा है 



हे अर्जुन इस जगत में जो कुछ भव्य तेजस्वी तथा ऐश्वर्यवान प्रतीत होता है वह मेरे ही तेज का अंश है जो अपने अंदर मुझ  दैवी चेतना का अनुभव करते है मैं उनके बंधन काट देता हूँ 

मुनष्य की दयनीय दशा का एक ही कारण है और वह यह है कि उसके अंदर का भगवान मूर्छित हो चूका है अथवा उसने अपनी मंपभूमि इतनी गन्दी बना ली है जहाँ परमात्मा का प्रखर प्रकाश सम्भव नही है यदि वह सचेत रहता उसकी मानसिक शक्तियाँ प्रबुद्ध रहती भलाई की शक्ति जीवित रहती तो ]वह जिन साधनों को लेकर इस वसुंधरा पर अवतीर्ण हुआ है वे अचूक ब्रहा अस्त्र है उनकी शक्ति वज्र से भी प्रबल है सृषिट का अन्य कोई भी प्राणी उसका सामना करने को समर्थ नही हो सकता वह युवराज बन कर आया था विजय सफलताएँ उत्तम सुख शक्ति शौर्य साहस उसे उत्तराधिकार में मिले है इनसे वह चिरकाल तक सुखी रह सकता था भ्र्म चिंता शंका संदेह आदि का कोई स्थान उसके जीवन में नही पर अभागे मुनष्य ने अपनी दुर्व्यवस्था आप उतपन की है ईश्वरीय सत्ता की उपेक्षा करने के कारण ही उसकी यह दुःखद सिथति प्रकट हुई अपने पैरो में कुल्हाड़ी मारने का अपराधी मनुष्य स्वयं है इसका दोष परमात्मा को नही 
परमात्मा हमारे अति समीप रह कर प्रेम का सन्देश देता है पर मनुष्य अपनी वासना से उसे कुचल देता है वह अपनी सादगी ताजगी और प्राण शक्ति से हमे सदैव अनुप्राणित रखने का प्रयत्न रखता है पर मनुष्य आडंबर आलस्य और अकर्मण्यता के द्वारा उस शक्ति को छिन्न भिन्न कर देता है कालांतर में जब आंतरिक प्रकाश की शक्ति क्षीण पड़ जाती है तो दुख द्व्न्द् के बखेड़े बढ़ जाते है तब मनुष्य को औरो की भलाई करना तो दूर अपना ही जीवन भार रूप लगने लगता है परमात्मा की अंतः करण से वियुक्ति ही कष्ट और क्लेश का कारण बंधन का कारण है
मुनष्य बड़ी बुद्धि विवेक और वचार 

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