Friday, July 31, 2015

गुरु पूर्णिमा विशेष

The fruit  of discipleship blossom not in silver vases, but in the blood-red grounds of sacrifices and offerings.
साधना प्रखर हम करें दृढ़ संकल्प मन में धरें|
खिल उठे सहस्त्रदल कमल, सृजित हो नवयुग विमल||
            किसी भी मिशन में ऐसे व्यक्तियों की संख्या कम होती है जो किसी व्यक्तिगत स्वार्थ के कारण मिशन से न जुड़ें हो। मिशनों की सबसे बड़ी कमी तो यह है कि मिशन में सत्य की मशाल जलाकर रखने वाले लोग न के बराबर होते हैं। ये लोग ही मिशन की गतिविधियों, सफलताओं, विफलताओं की सही समीक्षा कर पाते हैं। कारण यह है कि ऐसे लोगों को मिशन में कम ही बर्दाश्त किया जाता है क्योंकि मिशन के अधिकतर पदाधिकारी मात्र अपने मिशन का गुणगान व बड़ी-बड़ी बातें बनाना जयकारे लगवाना व चापलूसी करवाना पसन्द करते हैं। जिन सूत्रों से मिशन की नींव मजबूत होती है धीरे-धीरे उन सूत्रों की अवहेलना होना प्रारम्भ हो जाता है। इससे मिशन बाहर से तो बढ़ता चढ़ता फेलता दिखता है परन्तु भीतर ही भीतर खोखला होता जाता है।
            वही मिशन समाज को कुछ सार्थक दे पाता है जिसमें वो लोग पर्याप्त हो तो अपने जीवन व अपने परिवार से अधिक मिशन को प्यार करते हों। अन्यथा मिशन में भाई भतीजावाद उपजता है व धीरे-धीरे करके एक भीतरी असन्तोष लोगों की कार्यक्षमता को कम करता जाता है। जब हम राजपूताने का इतिहास पढ़ते हैं तो ऐसे लोग बहुत हुआ करते थे जो अपनी मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने को तत्पर रहते थे। परन्तु आज वो प्यार वो इच्छा शक्ति लुप्तप्राय होती जा रही है। जहाॅं तहाॅं है तो अलग-थलग पड़ी है।
            जब मैं गायत्री परिवार से जुड़ा व मुझे पता चला कि श्रीराम आचार्य जी श्री रामकृष्ण परमहंस का अगला जन्म हैं तो मेरे मन में एक प्रश्न उठा। यदि ये वही हैं तो इन्होंने उस मिशन का उपयोग क्यों नहीं किया। क्यों दुबारा से सारा नया सरंजाम जोड़ा जिससे इतना समय-साधन लगे। बहुत बाद में इस प्रश्न का उत्तर मिला। मिशन में 40-50 वर्ष चलने के बाद स्वार्थी व महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति घुसकर गुड़-गोबर एक कर डालते हैं व मिशन से कोई भी उच्च प्रयोजन हल नहीं हो पाता।
            गायत्री परिवार के संविधान में एक सूत्र आता है-
            सज्जनों को संगठित करने, अनीति से लोहा लेने व नवसृजन की गतिविधियों में . . .
            इस सूत्र पर हम ईमानदारी से यदि काम करें तो हमें काफी सफलता मिल सकती है। उदाहरण के लिए विश्वविद्यालय ;क्ैटटद्ध के गौशाला के एक श्रमिक कार्यकत्र्ता को हरिद्वार आते हुए देवबन्द के कुछ गुण्डा तत्वों ने जबरन कैद कर लिया। वहाॅं एक गिरोह कार्य करता है जो मजदूरों को बहला-फूसलाकर ले जाता है व उन्हें कैद करके बुरी तरह मार-मार कर काम करवाता है। गायत्री परिवार के एक साहसी परिजन को जब यह पता चला तो उसने उन मजदूरों को मुक्त कराने का निर्णय लिया। इस साहसिक अभियान में गुरुवर के आशीर्वाद से उनको सफलता मिली व अनेक मजदूर, औरतें, बच्चे जालिमों की कैद से मुक्त करवाए। वास्तव में ऐसे लोग ही अनीति से लोहा लेने में सक्षम हैं। यदि केन्द्र ऐसे लोगों की गतिविधियों पर नजर रखे व ऐसे 100-200 लोग आपस में जुड़ कर संगठित हो जाएॅं तो कुछ बड़े साहसिक अभियानों को गति दी जा सकती है। तभी नवसृजन की गतिविधियाॅं कुछ जोर पकड़ेंगी अन्यथा खाली बातें व मंचों से घोषणाएॅं होती रहेगी। हम 40 वर्ष पूर्व भी हवन-कीर्तन किताबें बेचने का कार्य करते थे आज भी वही कर रहे हैं। उस समय भी लोगों का आवाहन अखण्ड ज्योति के माध्यम से करते थे आज भी वही कर रहे हैं। सन् 1990 में भी हम यही कहते थे कि 12 वर्षों का सन्धिकाल है, 12 वर्षों बाद सतयुग आएगा आज 24 वर्षों बाद भी यह कह रहे हैं कि 12 वर्षों बाद सतयुग आएगा। ज्यों के त्यों, वहीं के वहीं क्यों खड़े हैं क्यों नहीं आगे बढ़ पा रहे हैं इसकी कठोर समीक्षा मिशन के पुरोहितों शुभ-चिन्तकों को एक उच्च स्तरीय बैठक के माध्यम से करनी चाहिए। यह हमारे गुरुदेव व हमारे मिशन की इज्जत का सवाल है।
            अन्यथ आने वाली पीढ़ी हमारे नाम पर थूकेगीऋ कहेगी पाॅंच करोड़ का विशाल गायत्री परिवार समाज में कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन ला पाने में कामयाब नहीं हो पाया। कहने का तात्पर्य है कि 24 हजार समर्थ लोग संगठित होकर पाॅंच वर्षों की एक लक्ष्य, एक योजना के अन्तर्गत कार्य करें, वीर राजपूतों की तरह अपने प्राणों की बाजी लगा दें और गड्ढ़े में फंसी गाड़ी को ऐसा उठाएॅं कि यह स्पष्ट दोड़ती चली जाए। यदि जीवन रहे तो आन बान शान के साथ यदि मृत्यु आए तो गुरुवर का हाथ हमारे सिर पर हो वो कहें - आओं मेरे प्रिय राजकुमार तुमने इस मिशन के लिए कुर्बानी दी है, तुमने यह मानव जीवन सार्थक किया है अब तुम्हें स्वर्ग, मोक्ष व )षि  संसद में स्ािान मिलने जा रहा है भव बन्धन से मुक्त होकर ब्रह्मानन्द, परमानन्द में विचरण करो।
            आओ मित्र! आज छोटी मोटी संकीर्णताओं, चिन्ताओं, आशा अपेक्षाओं को त्यागकर उस महाप्राण के महाभियान में प्राणाहुति का संकल्प करें। आदर्शों सिद्धान्तों से समझौता न कर उस लाल मशाल में अपने लाल रक्त रूपी तेल को डालने का साहस करे। आज मिशन को नपुंसकों की नहीं मंगलपाडे व अभिमन्यु जैसे शूरवीरों की जरूरत है तो युग निर्माण के इस महाभियान में उबाल ला सकें व रक्त की अंतिम बूॅंद तक इसके लिए संघर्ष करते रहें। आज गुरु पूर्णिमा 2015 पर हम अपनी ढीली पीली नीतियाॅं त्यागकर कुछ ऐतिहासिक करने का प्रण करें।

विश्वामित्र राजेश

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