Friday, April 24, 2020

कोरोना वायरस & High Immune Strategy (Part-1)


  ‘कोरोना को हराना है हमें अपने देश को बचाना है।’

        कोरोन से लड़ाई के  दो पक्ष हैं- पहला है Prevention दूसरा - Cure अर्थात् प्रथम स्तर पर कोरोना के  प्रसार को रोकना आवश्यक है तो दूसरे स्तर पर शरीर को हमें इस तरह विकसित करना है कि यदि इसके  विषाणु (Virus) हमारे सम्पर्क  में आ जाएँ तो वो घातक सिद्ध न हो सकें  व हमारे लिए लिए अल्प पीड़ादायक हों। क्या यह सम्भव है कि Preventive Measures के  द्वारा कोरोना जड़ से समाप्त हो जाएगा? इस संदर्भ में यदि हम डॉ॰ एन्थोनी स्टीफन फाउची जो कि अमेरिका के  प्रसिद्ध इम्यूनोलोजिस्ट व व्हाइट हाउस कोरोना टास्क फोर्स के  प्रमुख सदस्य हैं, के  विचार जानने का प्रयास करें तो उन्होंने कोरोना जड़ से खत्म ना होने की चेतावनी दी है। बुद्धिजीवियों के  एक वर्ग का मानना है कि इस वायरस से हमारे शरीर को लड़ना ही होगा यानी शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति को इसे हराना ही होगा। तो क्या हर व्यक्ति को कोरोना के  संक्रमण से एक बार या कई बार गुजरना पड़ेगा? यह सोचकर हम सभी की रूह काँप उठती है। अभी तो मात्र अनुमान ही लगाया जा सकता है व ईश्वर से यही प्रार्थना करनी चाहिए कि कोरोना के  द्वारा नुकसान कम से कम हो।
        इसके  साथ-साथ हमें अपने प्रतिरोधी रक्षा तंत्र (Immune System) को मजबूत करने की दिशा में प्रयास आरम्भ कर देना चाहिए, क्योंकि प्यास लगने पर कुआँ खोदने का कोई लाभ नहीं होता। इसके  लिए हमें वायरस व हमारे शरीर के  रक्षा तन्त्र के  विषय में Basic Knowledege होना आवश्यक है। क्या धरती पर मौजूद सूक्ष्म जीव वायरस को रोकने की क्षमता इस विलक्षण मानव शरीर में नहीं हैं? यह सोचना समझदारी की बात नहीं है। इस विषय में यदि प्रसिद्ध प्राकृतिक चिकित्सक लुई कुने को समझें तो हमारा Confidence बढ़ सकता है। उन्होंने अपने ऊपर प्रयोग किया। हैजा के  उतने कीटाणु मंगवाये जिससे 2 हजार व्यक्तियों को हैजा हो जाए। वो कीटाणु उन्होंने अपने भोजन में डाल दिए। इतनी बड़ी मात्रा में कीटाणु उनको रोगी न बना पाए। यह प्रयोग देख विश्व के  चिकित्सक व बुद्धिजीवी दंग रह गए। यदि रक्त शुद्ध व क्षारीय है तो कीटाणुओं का प्रभाव शरीर पर न्यून होता है। शोधन प्रक्रिया के  द्वारा यह संभव है।
        मनुष्य शरीर के  अन्दर व आस-पास के  वातावरण में लाखों करोड़ों की संख्या में सूक्ष्मजीव मौजूद रहते हैं जिनमें वायरस भी हैं।
      According to NCBI (National Center for Biotechnology Info.) - there are 219 virus species that are known to be able to infect humans. Corona Virus are a group of viruses that usually cause mid illness, such as common cold. Most people get infected with corona viruses at some point in their lines and the majority of these infections are harmless. The new corona virus (Covid-19) illness is a notable exception. It is an RNA virus like the flu and measles and more prone to changes and mutation compared with DNA viruses such as herpes and small pox etc. The new corona virus spreads much more readily than the older ones. To infect cell, it uses its spike protein that binds to the cell membrane. So what makes the new viruses so much more infectious? It has a specific structure that allows it to bind ‘at least 10 times more tightly than others’ to the host cell membrane. Scientists are examining the nature of spike protein of the new corona virus to explain the viral life cycle and to develop the vaccine. Doing so could stop the corona virus from penetrating the cells. A new study has shown that using antibiodies from 4 mice that had been immunized against old SARS-COV reduced infection by 90% in cell cultures, caused by COVID-19. This is according to the information on how to prevent the spread of corona virus given by CDC (Centers for Diseases Control and Prevention)
        अब तक वायरस की 219 प्रजातियाँ खोज ली गई हैं जो मनुष्य को बीमार करती हैं व प्रति वर्ष 3-4 नए वायरस सामने आते हैं। वायरस जीव और निर्जीव के  बीच की कड़ी हैं। जीव खुद से अपनी प्रतिलिपि बना सकता है लेकिन निर्जीव नहीं है। जैसे बैक्टीरिया जीव होते हैं और ये खुद की प्रतिलिपि तैयार कर सकते हैं। वायरस अनुकूल परिस्थितियों में लम्बें समय तक पड़ा रह सकता है तो प्रतिकूल स्थिति में अल्पकाल में नष्ट हो जाता है लेकिन किसी जीव के  सम्पर्क  में आने पर अपने को बढ़ाने लगता है।
        कोरोना वायरस अनेक प्रकार के  होते हैं व अब से पूर्व भी फैलते रहे हैं। इनको फैलने के  मुख्य कारण चूजे, चूहे व चमगादड़ माने जाते रहे हैं। इनमें कुछ घातक होते हैं व कुछ सामान्य नजला, खाँसी, बुखार उत्पन्न करते हैं। सन् 2003 में SARS कोरोना वायरस ने दुनिया में 8,000 लोगों को बीमार किया जिसमें लगभग 800 लोगों की मौत हो गयी। इसका प्रकोप 8 माह तक रहा। इसका व नए कोरोना वायरस (Covid-19) का ळदवउपब ैजतनबजनतम लगभग 86% समान है। कोरोना एक परजीवी वायरस है जो इन्सान की कोशिकाओं में ही जीवित रह सकता है। कोरोना नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि इसकी सतह पर मुकुट (Crown) की तरह प्रोटीन की कील नुमा उभरी संरचनाएँ होती हैं। यह वायरस प्रोटीन और तैलीय लिपिड की बुलबुलेनुमा झिल्ली से ढंका होता है। इसका Incubation Period 5 दिन का होता है अर्थात् वायरस के  शरीर में प्रवेश करने के  बाद शरीर में इसके  लक्षण 5 दिन बाद दिखने शुरु हो जाते हैं।
        वायरस दो प्रकार के Genetic Material (DNA या RNA) से बनते हैं। DNA जीव है और RNA निर्जीव। कोरोना RNA (RNA Gnomes) वायरस है। शरीर में वायरस से लड़ने की प्रतिरक्षा प्रणाली है जो श्वेत रक्त कणिका (WBC) के  रूप में मानी जाती है। अगर कोई वायरस DNA वाला होता है तो वह शरीर के  अन्दर जाकर खुद को द्विगुणित करने लगता है। जिसकी पहचान शरीर की प्रतिरक्षा प्रणा (Immune System) आसानी से कर लेती है और उसको आसानी से खत्म कर देती है। लेकिन RNA वायरस खुद को नहीं बढ़ा सकता है। लिहाजा यह शरीर की कोशिका में प्रवेश करके  खुद को बढ़ाता है। प्रतिरक्षा प्रणाली उसे पहचानने में समय लेती है या पहचान नहीं पाती क्योंकि उसे लगता है कि यह शरीर का ही एक हिस्सा है।
        जब कोई वायरस शरीर पर हमला करता है तो शरीर के  अंदर युद्ध जैसे हालात पैदा हो जाते हैं। वायरस के  प्रवेश करते ही आपके शरीर का इम्यून सिस्टम वायरस से लड़ने की कोशिश करता है। आपका शरीर वायरस को एक विदेशी हमलावर की तरह देखता है और पूरे शरीर को संकेत देता है कि शरीर पर हमला हुआ है। इसके  बाद वो वायरस को खत्म करने के  लिए साइटोकाइन नाम का केमिकल छोड़ना शुरु करता है। शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति पूरे जोर से हमले का जवाब देने में जुट जाती है और इस कारण आपको बदन दर्द और बुखार भी हो सकता है। बुखार इसलिए होता है क्योंकि शरीर तापमान बढ़ाकर वायरस की शक्ति को कम करने की कोशिश करता है। बलगम या ड्रॉपलेट्स एक तरीके  से मृत कोशिकाएँ है जो शरीर से खाँसी के  माध्यम से बाहर निकाली जाती हैं।
        विज्ञान कहता है कि एक बार किसी वायरस का संक्रमण होने के  बाद इन्सान की रोग प्रतिरोधक शक्ति उस वायरस से लड़ना सीख जाती है। इस कारण फिर वह वायरस उस इन्सान के लिए घातक नहीं होता है। मानव शरीर पर जब किसी वायरस का आक्रमण होता है हमारा प्रतिरोधी तन्त्र (Immune System) उस वायरस को पहचान कर उसके  एण्टीबॉडी बना लेता है। यदि उस वायरस का उसके  शरीर में पूर्व में संक्रमण हो चुका है तो उसकी एण्टीबॉडी का कोड हमारे शरीर में सुरक्षित रहता है और उस स्थिति में शरीर का काम केवल शरीर में घुसने वाले वायरसों की संख्या के  आधार पर नए एण्टीबॉडीज का निर्माण करना है जिससे वायरस को मार भगाया जा सके। इसलिए पूर्व में संक्रमित हो चुके  किसी वायरस से हम ज्यादा बीमार नहीं पड़ते हैं। परन्तु जब यह वायरस हमारे शरीर के  लिए नया होता है तो शरीर को उस वायरस की संरचनात्मक स्थिति को समझकर उसके  अनुसार एंण्टीबॉडी बनाने में कम से कम तीन दिन लग जाते हैं और यह उस व्यक्ति की इम्यूनिटी पर भी निर्भर करता है। इस बीच वह वायरस अपनी संख्या शरीर में बढ़ा लेता है और हमारे शरीर को नुकसान पहुँचाना शुरु कर देता है। हमारा प्रतिरोधी तन्त्र एण्टीबॉडी बनाकर और उनका उत्पादन शुरु करके लगभग 7 दिनों में वायरसों का शरीर से खात्मा कर देता है। इस प्रकार अगर व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता ठीक है व धातुएँ पुष्ट हैं तो यह शरीर में 10 से 14 दिनों के  लिए आएगा व थोड़ी बहुत उथल-पुथल मचाकर चला जाएगा। इसमें डरने की कोई भी आवश्यकता नहीं है। AIMS, Delhi के  Director रणदीप गुलेरिया के  अनुसार इस वायरस से संक्रमित 80% व्यक्ति बिना दवा के  कुछ दिनों आसानी से ठीक हो जाते हैं व मृतकां की संख्या 5% से अधिक नहीं है।
        कठिनाई तब होती है जब या तो हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम है या फिर हमारी धातुएँ कमजोर हैं। जैसे कमजोर दीवार पर हल्का धक्का मारने पर भी गिरने का भय रहता है वैसे ही कमजोर धातुएँ वायरस के  दुष्प्रभाव को सहन नहीं कर पाती व शरीर में नुकसान अधिक हो जाता है। धातुएँ 7 होती हैं. रस, रक्त, माँस, मेद, अस्थि, मज्जा एवं शुक्र। इन धातुओं के  विषय में यदि विस्तार से जानना है अथवा केसे उनको मजबूत किया जाए यह समझना है तो लेखक की पुस्तक 'स्वस्थ भारत (A Manual for Healthy Life & Healthy India)' का अध्ययन करें।
        कोरोना के  कहर से IT Sector में हलचल मची हुई है। उसके  निक नेम से एक और विधा Immune Technology प्रारम्भ हो चुका है जिसकी आवश्यकता आज पहले वाले IT से अधिक है। इस लेख में प्रतिरोधी क्षमता (Immune System) बढ़ानें व धातु पुष्टि के कुछ नुस्खों का विवरण दिया जा रहा है।
1. रक्त की pH Value 7.4 होती है, जो कि हल्का क्षारीय है। जैसे ही रक्त अम्लीय होने लगता है अर्थात् pH Value 7 से कम होने लगती है वैसे ही प्रतिरोधक क्षमता तेजी से घटने लगती है। pH Value को ठीक बनाए रखने के  लिए हमारी हड्डियों से केल्शियम कार्बोनेट आदि महत्त्वपूर्ण तत्त्व खि्ांच कर रक्त में आने लगते हैं जिससे हड्डियाँ कमजोर हो जाती हैं। अतः भोजन में क्षारीय तत्त्वों (Alkaline Foods) का अधिक से अधिक समावेश करें। माँसाहार का एकदम परित्याग करें क्योंकि यह रक्त को अम्लीय बनाता है यदि आज माँस खाया तो इसका प्रभाव रक्त पर 5-7 दिन तक बना रह सकता है। जब चीन जैसे देश में लोग माँसाहार त्यागकर शाकाहार अपनाने का प्रयत्न कर रहे हैं तो हम भारतीय क्यों नहीं?
2. किसी भी होम्योपैथिक दुकान से कालमेघ (Andrographis Paniculata) का टिंचर लेकर 50 उस पानी में उसकी 7-8 बूँदें डालकर सुबह शाम खाली पेट 5 से 10 दिन तक सेवन करें।
3. भारत में अडूसा/वासा (Justicia adhatoda) बहुतायत से मिलता है, जिसको ग्रामीण भाषा में बाँसा भी कहते हैं। इसकी ताजी कोमल पत्तियाँ एवं फूल (5-7) प्रातः सांय पानी के  साथ चबाना बहुत ही लाभकारी है। बाजार में यह अनेक तरह से मिलता है जैसे वासा अवलेह इत्यादि। लेखक के  अनुभव के  अनुसार उपरोक्त विधि से ताजा सेवन करना सर्वोत्तम है।
4. फेफड़ों एवं श्वसन तन्त्र (Respiratory Track) की ताकत को बढ़ाने के  लिए अंजीर का सेवन लाभकारी होता है। ठंडा होने के  कारण यह पित्त प्रकृति के लोगों के लिए विशेष लाभप्रद है। दो अंजीर रात को भिगोकर रखें व सुबह चबाकर खाएँ। कफ प्रकृति के  एवं मोटे लोग अंजीर का अधिक सेवन न करें अथवा इसके  साथ बादाम व पिस्ता भी खाएँ। इससे अंजीर के  दोषों का शमन होता है। अंजीर में विटामिन ‘ए’ होता है इससे यह आँख के  कुदरती गीलेपन को बनाए रखता है। यह पढ़ने वाले बच्चों के  नेत्रों के  लिए बहुत उपयोगी है। अंजीर बालकों की कब्जियत मिटाने के  लिए भी लाभकारी है।
        कब्जियत के  कारण जब मल आँतों में सड़ने लगता है, तब उसके जहरीले तत्त्व रक्त में मिल जाते हैं और रक्तवाही धमनियों में रुकावट डालते हैं, जिससे शरीर के  सभी अंगों में रक्त नहीं पहुँचता। इसके फलस्वरूप शरीर कमजोर हो जाता है तथा, दिमाग, नेत्र, हृदय, जठर, बड़ी आँत आदि अंगों में रोग उत्पन्न हो जाते हैं। शरीर दुबला-पतला होकर जवानी में ही बुढ़ापा नजर आने लगता है। ऐसी स्थिति में अंजीर का उपयोग अत्यंत लाभदायी होता है। यह आँतों की शुद्धि करके रक्त बढ़ाता है एवं रक्त-परिभ्रमण को सामान्य बनाता है।
5. प्रकृति के अनुसार औषधि अथवा वनस्पति का चयन। उदाहरण के  लिए हल्दी, लहसुन व अलसी के  गुणों से Internet भरा पड़ा है। परन्तु पित्त प्रकृति के  लिए यें हानिप्रद ही सिद्ध होते हैं या फिर इनको कुछ अलग विधियों द्वारा देने का विधान है, अन्यथा एसिडिटी बनती है।
6. तमोगुणी व नकारात्मक लोगों पर कोरोना की मार बहुत पड़ती है। पश्चिमी देशों में तमोगुणी लोग बहुतायत से हैं उनकी प्राण ऊर्जा दूषित होती है अतः हमें सतोगुण की वृद्धि करनी होगी। सतोगुण बढ़ाने के  लिए प्रातः काल सूर्योदय के  पूर्व उठने से बहुत लाभ होता है। अब से 20-25 वर्ष पूर्व परिवार में 5-7 बच्चे आराम से पल जाया करते थे। परन्तु आज मात्र 1-2 बच्चों का पालन बड़ा कठिन पड़ता हैं। कारण परिवारों में तमोगुण बढ़ने से अब बच्चे आज्ञाकारी नहीं रहे। सतोगुणी बालक ही बड़ों के प्रति श्रद्धा व सहयोग का भाव रखता है।
        तमोगुणी व्यक्ति ताड़ना (प्रताड़ना) के  द्वारा ही सन्मार्ग पर आता है ऐसा गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में लिखा है-
        ‘ढ़ोल ग्वार क्षुद्र पशु नारी, सकल ताड़न के अधिकारी।’
                यहाँ पर उस नारी की बात कही है जो पशुवत आचरण करती है।
        मदर शिप्टन अपने अनुयायियों को तमोगुणी मन के  सम्बन्ध में एक कहानी सुनाती थी। एक दयालु सन्त थे उन्हें रास्ते में कीचड़ में पड़ा एक सुअर का बच्चा दिखा। बच्चा बड़ा सुन्दर था। उन्हें उस पर तरस आ गया। उसको कीचड़ से निकालकर साफ सुथरे बाड़े में रखा। एक बार बाड़े का दरवाजा खुला रह गया। वह सुअर का बच्चा तुरन्त दौड़ कर फिर कीचड़ में घुस गया। यही दशा तमोगुणी मन की होती है। मौका पाते ही वह तुरन्त नीच व दुष्टकर्मों में संलिप्त हो जाता है। उसे सख्ती के साथ बाँध कर रखना पड़ता है। तमोगुणी व्यक्ति कुरूर होता चला जाता है युद्ध कला में प्रवीण होते हैं। रजोगुणी व्यक्ति महत्वाकाँक्षी होता है। सतोगुणी आदर्शों व सिद्धान्तों पर चलने वाला होता है। अर्जुन सतोगुणी थे अतः युद्ध नहीं करना चाहते थे परन्तु तमोगुणी दुर्योधन को युद्ध प्रिय था। कृष्ण की अपनी सेना में मदिरापान से तमोगुण बढ़ गया था।
7. जहाँ-जहाँ Vaccination अधिक हुआ होगा वहाँ-वहाँ Immune System कमजोर होगा। जिन रोगों का Vaccine हुआ होगा उनके  प्रति रक्षा तन्त्र अधिक कारगर होता है परन्तु दूसरे किसी नए रोग के  लिए कमजोर हो जाता है। अतः Vaccination सोच समझ कर कराया जाया जैसे पोलियो आदि आवश्यक Vaccine ही लगवाएँ।
8. कोरोना का वायरस यदि नाक से घुसता है तो अधिक हानिकारक होता है अतः नाक में देसी घी अथवा सरसो का तेल प्रातः व रात्रि सोते समय डालें।
9. घर में दीपक अवश्य जलाएँ। यदि सम्भव हो तो सप्ताह में एक बार लघु हवन अवश्य करें। गाय के  उपले अथवा गोले के  टुकड़े पर गुगल, कपूर, घी व हवन सामग्री, नीम के  पत्ते आदि से होम करें।
10. हर्रे अथवा त्रिफला का सेवन करें। हरड़ का शोधन करके  ही प्रयोग करें। इससे पेट साफ रहता है। जिनको कब्ज रहता है उनके  रक्त के  दूषित होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
11. रोज सुबह खाली पेट पानी के साथ तुलसी की 7 पत्तियों के  सेवन से स्मरण शक्ति, रोग प्रतिरोधक क्षमता, बल और तेज बढ़ता है। तुलसी की पत्तियों को दही या छाछ के  साथ सेवन करने से वजन कम होता है, शरीर की चर्बी घटती है, थकान मिटती है व शरीर सुडौल बनता है, दिन भर स्फूर्ति बनी रहती है और रक्त कणों में वृद्धि होती है। तुलसी से हृदय एवं गुर्दों की कार्यशक्ति में वृद्धि होती है। इसके  सेवन से मंदाग्नि, कब्जियत, गैस आदि रोग दूर होते हैं। कफ प्रकृति के व्यक्ति तुलसी का सेवन शहद के साथ भी कर सकते हैं। शहद में विटामिन ‘बी’ होता है जिससे शरीर की ताकत बढ़ती है। शहद को जिस औषधि के साथ मिलाया जाता है यह उस औषधि के गुणों को बढ़ा देता है। यह दूध की तरह मधुर, पौष्टिक और सम्पूर्ण आहार भी है। शहद जैसे-जैसे पुराना होता है वैसे-वैसे गुणकारी बनता है। एक वर्ष के  बाद शहद पुराना माना जाता है।
12. आयुर्वेद के आचार्य वाग्भट्ट के अनुसार यदि लम्बी जिंदगी जीना चाहते हो तो हरड़ के सेवन का अभ्यास करें। पाचन शक्ति ठीक करने के  लिए यह सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। इसके सेवन से पूर्व इसका शोधन आवश्यक है। 100-200 ग्रा. छोटी हरड़ लेकर तक्र (छाछ) में भिगों दें। छाछ इतना ही ले कि ये सोख ले। 6-7 घंटे के  उपरांत इनको छाछ से निकाल कर छाया में सुखा लें। तत्पश्चात उनको देसी घी में हल्की आंच पर सेक कर काँच के बर्तन में रख दें। 40 दिन तक 1-1 हरड़ सुबह-शाम सेवन करें। हरितकी एक श्रेष्ठ रसायन द्रव्य है जो शरीर से विकृत का तथा मल का नाश करके नेत्र तथा अन्य इन्द्रियों का बल बढ़ाती है। शरीर में मल संचय होने पर बुद्धि तथा इन्द्रियाँ बलहीन हो जाती हैं। हरड़ इस संचित मल का शोधन करके  धातु शुद्धि करती है। हरड़ को मेध्या कहा जाता है क्योंकि यह बुद्धिवर्धक है। हरड़ धात्वग्नि बढ़ाती है जिससे धातुएँ शुद्ध व पुड्ढ होती है। दुर्बल व उष्ण प्रड्डति के  लोग यदि हरड़ लेते हैं तो भोजन में घी का उपयोग अवश्य करें।
13. नारियल पानी पीने से रक्त क्षारीय होता है। यह बहुत लाभप्रद है।
14. विटामिन ‘सी’ से भरपूर डाइट लें। खट्टे फल, नीम्बू संतरा आदि जिता आपका शरीर आसानी से सह सके  व हजम कर सके। कुछ व्यक्ति खट्टा फल खाने या गला खराब की शिकायत करने लगते हैं। इनको सीमित मात्रा में लेना चाहिए।
15. मौसमी फल और हरी सब्जियों में भरपूर मात्रा में एण्टी ऑक्सीडेंट्स होते हैं। जिनसे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
16. संकट में सकारात्मक सोच रखें- पता नहीं भूत व्यक्ति को कोई हानि पहुँचाता है या नहीं परन्तु भूत का भय बहुत ही खतरनाक होता है। इसी प्रकार आज हमारे आस-पास कोरोना के  भय का महौल बढ़ता जा रहा है। डॉक्टर्स का कहना है कि डर हमारे इम्यूनिटी सिस्टम को कमजोर करता है। मन के  साथ इम्यूनिटी का बड़ा संबंध है। यदि मन मजबूत है तो बड़ी आयु में भी शरीर वायरस का मुकाबला करने में सक्षम सिद्ध होगा। भारत में ईश्वर विश्वास के  द्वारा व्यक्ति को निर्भय होने में मदद मिलती है। आस्तिक व आध्यत्मिक व्यक्ति संकट में भी सकारात्मक सोच के  द्वारा बड़ी-बड़ी विपत्तियों पर विजय पाने में सफल होता है।
17. कोरोना वायरस से लड़ने के  लिए एक अच्छे सैनिटाइजर को 60%-80% एल्कोहल ग्रेड की आवश्यकता होती है। थोड़ी मात्रा में Hand Sanitizer का प्रयोग पर्याप्त नहीं होता है। यदि 100% एल्कोहल वाला सैनिटाइजर प्रयोग किया गया तो यह त्वचा पर बैक्टीरिया या वायरस को मारने से पहले उड़ जाता है। साबुन को वायरस मारने के  लिए सैनिटाइजर से अच्छा माना जाता है। साबुन के फैटी एसिड वायरस की बाहरी परत को निष्क्रिय कर देते हैं।
18. नमक चीनी कम स्वस्थ रहे हम. रक्त में Sugar का स्तर जैसे ही आवश्यकता से अधिक होता है व्यक्ति में संक्रमण (Infection) बढ़ने लगता है। अतः कृत्रिम शुगर जैसे गुड़, खांड, चीनी का प्रयोग बन्द करें केवल फ्रूट शुगर ले वो भी थोड़ा। फ्रूट शुगर में फ्रक्टोज होता जो शीघ्र शुगर का स्तर नहीं बढ़ाता है। नमक को भी बहुत सीमित कर देना चाहिए इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
19. चाय, काफी, Cold Drinks, चॉकलेट आदि Acidic होते हैं अतः इनका प्रयोग बहुत सीमित करें।
20. पंसारी की दुकान से बायविडंग खरीदें यह काली मिर्च के  आकार की भूरी, जामनी  रंग की गोलियाँ होती है। इन्हें थोड़ा कूटकर पानी में डालें व हल्की आँच पर गर्म कर अथवा उबालकर रख लें। वह पानी खाली पेट तीन समय पीयें अथवा उसमें गरारे करें। बायविडंग कृमिनाशक होता है दाँतो से लेकर आँतो तक, बच्चों के  पेट के  कीड़े सब समाप्त कर देता है।
21. गिलोय की तीन चार इंच तने को लेकर मसल कर 50 मिली. पानी में भिगो दें। उसके 3 घंटे बाद वह सब पी लें गिलोय चबाकर खा लें। गिलोय के तने पत्ते का काढ़ा उबालकर पीना लाभप्रद रहता है। इसमें चिरायता (नेपाली) भी मिला दें तो यह बहुत शक्तिशाली रोगप्रतिरोधक होता है।
22. पंसारी से कुटकी चिरायता लें। 2-3 ग्रा. प्रति 100 मिली. पानी में रात को भिगो कर रखें प्रातः छानकर पी लें। धूप में इसको सुखाएँ व शाम को पुनः भिगो दें ऐसा 2-3 दिन करें। यह तीव्र शोधक है व इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है। इससे कई बार पेट तेजी से साफ होता है डरे नहीं। 5 दिन से अधिक इस सेवन न करें।
      नोट-इस प्रयोग के  उपरान्त 2 घंटे तक दूध व उससे बने पदार्थों का सेवन न करें।
23. बाजार से ताजा सुदर्शन चूर्ण किसी अच्छी कम्पनी का खरीदें। छः माह से पुराना न हो। 3 ग्रा. सुबह शाम खाली पेट लें।
24. किसी न किसी प्रकार उपवास रखने का प्रयास करें।
        वैसे तो सभी प्रयोग सुरक्षित है परन्तु फिर भी उनको किसी वैद्य अथवा अनुभवी आचार्य की देख-रेख में करें। एक साथ सभी प्रयोग न कर डालें। शरीर की प्रकृति व आयु के अनुसार औषधि की मात्रा तय करें। यदि लेखक की किसी बात में कोई संशय है तो अधिक जानकारी के लिए लेखक की पुस्तक ‘स्वस्थ भारत’  पढ़ें।

2 comments:

  1. Hello Sir.
    आपने प्रतिरोधी क्षमता बढ़ानें के नुस्खों को पढने के बाद मन को शांति मिली कि Corona Virus को आराम से हराया जा सकता है.
    'स्वस्थ भारत' पुस्तक का अध्ययन करने हेतू मैंने Internet पे देखा तो मुझे कुछ नही मिला.कृप्या करके बताईये की पुस्तक किस प्रकार प्राप्त की जा सकती हैं.
    धन्यवाद

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    1. please write your postal address on mail rkavishwamitra@gmail.com or call me at mobile 9416570828. wish for your Happy & Healthy Life

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