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- सतयुग की वापसी (Revival of Golden Era)
आज हिन्दू समाज में एक आम धारणा प्रचलित है कि इस समय कलियुग चल रहा है। इस कलियुग की अवधि चार लाख बत्तीस हजार वर्ष (4,32,000) है, अभी मात्र पाँच हजार वर्ष ही बीते है तथा आने वाले समय मे घोर कलियुग आएगा। यह कितनी मानक काल गणना है जिसके हिसाब से अभी चार लाख सत्रार्इस हजार (4,27,000) वर्ष और कलियुग के शेष है। क्या इससे अधिक पाप, पीड़ा, पतन का बोझ धरती सह पाएगी अथवा इससे अधिक प्रासदी क्या मानव जाति कह पाएगी? सोचकर किसका दिल नहीं काँप उठेगा कि मानवता को इतने लम्बे समय तक अभी अन्धकार युग में जीना पडे़गा। इससे अधिक अधर्म और क्या बढ़ेगा? कैसे मानव जाति के अस्तित्व की रक्षा होगी? किसी भी जागरूक आत्मा को ये प्रश्न निश्चित रूप से दुख देने वाले है।
परन्तु इसके विपरीत तत्वदर्शियों (God realized saints) के मत कुछ भिन्न है उनके अनुसार कलियुग की अवधि समाप्त हो चुकी है। स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा था कि उनके महान गुरू स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी के चरण जिस दिन इस धरती पर पडे थे अन्धकार युग घटना (कटना) प्रारम्भ हो गया था व लगभग पौने दो सौ वर्श में यह अन्धकार पूरी तरह समाप्त हो जाएगा तथा भारत माता उज्जवल सिंहासन पर विराजमान होगी। जब स्वामी जी शरीर छोड़ने जा रहे थे तो उनसे शिष्यों व गुरूभार्इयों ने प्रश्न किया अभी तो कार्य प्रारम्भ हुआ था आशा की किरणें चमकी थी ओर आप कह रहे है कि आपके जाने का समय आ गया है। स्वामी जी ध्यानस्थ हुए व बोले ‘‘मैं अपने दिव्य नेत्रों से देख रहा हँू। भारत माता उज्जवल सिंहासन पर विराजमान है हजारों विवेकानन्द इस राष्ट्र में पैदा होंगे व भारत पुन: जगदगुरू बनेगा’’। इसमें कोर्इ दो राय नहीं कि स्वामी जी के शरीर छोड़ते ही इस देश में सैकड़ों महापुरुष लौहपुरुष उत्पन्न हुए। किस-किस को गिनें? श्री अरविन्द, श्री रमण, तिलक, गोखले, मालवीय जी, नेहरूजी गाँधी जी, वीर भगत, सुखदेव, आजाद, राम प्रसाद बिसमील, अश्फाक उल्ला खाँ, सावरकर, जतिन बाघा, सुभाष चन्द्र बोस, लाला लाजपत राय, बिनोबा जी, नीम करौरी के बाबा, गुरू गोलवरकर व हेडगेवार जी, स्वामी श्रद्धानन्द, श्रीमती एनी बेसेन्ट, श्री माँ, शास्त्री जी, सरदार पटेल, युग ऋषि श्री राम आचार्य, भीम राव अम्बेडकर, राजऋि टण्टन एंव लोकनायक जयप्रकाश नारायण आदि-आदि। बहुत से ऐसे है जो प्रसिद्धि पा गए परन्तु अनेक ऐसे भी है जो नींव की र्इट बने व चुपचाप देश समाज, मानवता की सेवा करते हुए भारत माँ के लिए अपने जीवन की आहुति चढ़ा गए। उनका योगदान भी किसी प्रकार कम नहीं आँका जा सकता। इस प्रकार स्वामी जी की भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हुअी उनके जोर के बाद भारत की धरती महामानवों से पट गयी किसी के भी चरित्र पेंट रोमाच पैदा होता है उनके कारनामे पढ़कर।
श्री अरविन्द जी भी ऐसे महायोगी हुए जो पहले एक सशक्त क्रान्तिकारी के रूप में उभरें तत्पश्चात एक कमरे में बन्द हो गए। उनके अनुसार भारत को आजादी मिलना निश्चित हो चुका था व एक और बड़ा कार्य होना शेष है धरती पर भगवत चेतना का अवतरण। परमात्मा के अवतरण के लिए ऋषि सत्ताएँ तप करती है। वही कार्य श्री अरविन्द जी का था दिव्य संस्कृति, अति मानस के लिए वो ऋषि अगस्तय की पवित्र तपोभूमि पाडिचेरी में बैठकर कठोर तप आजीवन करते रहें। उनके अनुसार धरती पर देव युग आ रहा है यह भागवत इच्छा है। व्यक्ति के लिए परमात्मा की चेतना में निवास करना सरल हो जाएगा व मानव मनस से अति मानस की ओर जाकर शक्ति, शन्ति व आनन्द का स्वामी बनेगा।
भारत में एक और बड़े सन्त हुए जिन्हें ब्रह्मा बाबा के नाम से जाना जाता है व ब्रह्माकुमिराज उक बहुत बड़ी संस्था के संस्थापक हुए। उन्होंने भी धरती पर सतयुग की वापसी की घोषणा की व लाखों लोगों के ज्ञान, ध्यान, भक्ति व पवित्रता का पथ दिखाकर एक बहुत बड़ा कार्य किया। उनकी प्रेरणा से आज भी पूरे विश्व में असंख्य नर नारी उच्च चरित्र व दिव्य जीवन की ओर बढ़ रहे है।
भारत में महान योगियों की अनेक श्रृखलाएँ अनेक मिशन कार्यरत रहे है कहते है इन सबके प्रेरणास्त्रोत व सूत्राधर देवात्मा हिमालय के हजारो वर्ष के एक परम तपस्वी है जिनके कोर्इ महागुरू, कोर्इ शिव बाबा कोर्इ त्र्यम्बक बाबा आदि अनेक नामो से जानता है। लाहिडी महाशय इनको ‘महावतार बाबा’ तो युग ऋषि श्री राम आचार्य इनको ‘सर्वेश्वरनन्द जी’ की उपाधि देते है। सन्त कबीर से लेकर अनगिनत महापुरुषों को इन्होंने सूक्ष्म से दीक्षा ही व स्वयं को छुपाए रखा। सर्वप्रथम लाहिडी जी ने उनको महावतार बाबा के नाम से सार्वजनिक किया। क्योंकि यह धरती हिमालय के सिद्ध पुरुषों की कार्यस्थली बनने जा रही है। हर बारह सौ वर्ष पश्चात् अवतारी प्रक्रिया का संयोग बनता है। र्इसा से लगभग 600 वर्ष पूर्व महात्मा बुद्ध आए ओर 600 वर्ष पश्चात् आचार्य शंकर। अब पिछले दो हजार वर्ष की गन्दगी को साफ करने के लिए अवतार नहीं महावतार होने जा रहा है।
महावतार बाबा ने इलाहबाद कुम्भ में श्री श्री युक्तेश्वर गिरि जी को दर्शन दिए ओर जनता को काल गणना को ठीक प्रकार समझाने का आदेश दिया। साथ-साथ पूर्व ओर पश्चिम की एकता एंव सांस्कृतिक आदान प्रदान के लिए कार्य करने को कहा। इस हेतु उन्होंने अनेक पुस्तके लिखी एवं अपने एक शिष्य ‘मुकुन्द लाल घोष’ को सन् 1920 में अमेरिका भेजा। यही मुकुन्द विश्व में स्वामी योगानन्द परमहंस के नाम से विश्व विख्यात हुए एवं उनकी पुस्तक ‘योगी कथामृत’ शताब्दी की एक सौ लोकप्रिय आध्यात्मिक पुस्तको में से एक है। युक्तेश्वर गिरी जी के अनुसार भारतीय ज्योतिषियों की काल गणना में कुछ गलती हो गयी थी जो उन्होंने कलियुग के 1200 वर्षो को 4,32,000 वर्षो में परिणित कर दिया। श्री श्री युक्तेश्वर गिरी जी ने काल गणना का बड़ा सुन्दर चित्रण अपनी पुस्तक ‘केवल्य दर्शनम्’ में किया है जो निम्न प्रकार है।
सत्य युग में हुए महान ऋषि मनु ने अपनी मनु संहिता में इन चार युगों का स्पष्ट वर्णन किया है:-
चत्वार्याहु: सहस्त्राणि वर्षाणान्तु कृतं युगम्।
तस्य तावच्छती सन्ध्यां सन्ध्यांश्च तथाविध:।।
इतरेषु ससन्ध्येषु ससन्ध्यांशेषु च त्रि“ाु।
एकापायेन वर्तन्ते सहस्त्राणि शतानि च।।
यदेतत् परिसंख्यातमादावेव चतुर्युगम्।
एतद् द्वादशसाहस्त्रं देवानां युगमुच्यते।।
दैविकानां युगानान्तु सहस्त्रं परिसंख्यया।
ब्राह्ममेकमहर्ज्ञेयं तावती रात्रिरेव च।।
कृत युग (सत्य युग या जगत् का ‘‘स्वर्ण युग’’) चार हज़ार वर्षों का होता है। उसके उदय की संधि के उतने ही सौ वर्ष होते हैं तथा उसके अस्त की संधि के भी (अर्थात् 400़़+4000+400=4800)। अन्य तीन युगों में, उनके उदय एवं अस्त की संधियों सहित, हज़ार एवं सौ की संख्या एक से कम हो जाती है (300़़+3000+300=3600, इत्यादि)। 12,000 वर्षों के इस चतुर्युग के चक्र को एक दैव युग कहा जाता है एक हज़ार दैव युगों से ब्रह्मा का एक दिन बनता है और उसकी रात भी उतनी ही लम्बी होती है।
सत्य युग की अवधि 4000 वर्षों की होती है। उसके आरम्भ होने से पहले अस्तमान होने वाले युग के साथ 400 वर्षों का तथा उसके समाप्त होने के बाद आने वाले युग के साथ 400 वर्षों का उसका संधिकाल होता है इस प्रकार सत्य युग का वास्तविक काल 4800 वर्षों का होता है। इसके बाद उत्तरोत्तर आनेवाले युगों की एवं युग संधियों की अवधि के निर्धारण के लिए यह नियम है कि हज़ार वर्षों की संख्या से और शत् वर्षों की संख्या से भी, एक का आंकड़ा कम किया जाए। इस नियम के अनुसार त्रेता युग की अवधि 3000 वर्ष एवं आरम्भ तथा अंत में उसका संधि काल 300 वर्ष होगा, अर्थात् त्रेतायुग की कुल अवधि 3600 वर्ष की होगी।
अत: द्वापर युग की अवधि 2000 वर्ष है और दोनों सिरों का दो-दो सौ वर्षों का संधिकाल मिला क रवह 2400 वर्ष हो जाती है। अंत में कलियुग 2000 वर्षों का होता है और एक-एक सौ वर्षों का संधिकाल मिलाकर वह 1200 वर्षों का हो जाता है। इस प्रकार इन चार युगों की अवधियों का कुल योग 12000 वर्ष होता है जो एक दैव युग कहलाता है। ऐसे दैव युगों की एक जोड़ी से, अर्थात् 24000 वर्षों से युग चक्र की एक आवृत्ति पूरी होती है।
र्इस्वी सन् 499 से सूर्य महाकेन्द्र की ओर बढ़ने लगा और मानव की बुद्धि धीरे-धीरे विकसित होने लगी। इस ऊध्र्वगामी कलियुग के 1100 वर्षों में अर्थात् र्इस्वी सन् 1599 तक मानव बुद्धि इतनी जड़ थी कि उसे विद्युत शक्तियों का अर्थात् सूक्ष्मभूतों का कोर्इ आकलन नहीं हो रहा था। राजनीतिक स्तर पर भी साधारण तौर पर किसी राज्य में शांति नहीं थी।
इस काल के बाद जब कलियुग और उत्तरवर्ती द्वापरयुग के बीच का 100 वर्षों का संधिकाल शुरू हुआ तो लोगों को सूक्ष्म तत्त्वों की या विद्युत शक्तियों के गुणों की अर्थात् पंचतन्मात्राओं की पहचान होने लगी। राजनीतिक स्तर पर भी शांति स्थापित होने लगी।
र्इस्वी सन् 1600 के लगभग विलियम गिल्बर्ट ने चुम्बकीय शक्तियों को पहचाना और देखा कि सभी जड़ पदार्थों में विद्युत शक्ति विद्यमान है। 1609 में केप्लर ने खगोल-विज्ञान के महत्त्वपूर्ण नियमों की खोज की और गैलिलिओ ने टेलिस्कोप का आविष्कार किया। 1621 में हॉलैण्ड के ड्रेबेल ने माइक्रोस्कोप का आविष्कार किया। लगभग 1670 के आसपास न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण नियम की खोज की। 1700 में टॉमस सेवरी ने पानी ऊपर खींचने के लिये स्टीम इंजन का प्रयोग किया। बीस साल बाद स्टीफन ग्रे ने मानव शरीर पर विद्युत शक्ति के परिणाम का पता लगाया।
राजनीतिक जगत में आत्मसम्मान का भाव जागा और अनेक प्रकारों से सभ्यता विकसित हुर्इ। इंग्लैण्ड स्कॉटलैण्ड के साथ मिलकर एक शक्तिशाली राज्य बन गया। नेपोलियन बोनापार्ट ने दक्षिण यूरोप में अपनी नयी न्याय संहिता लागू की। अमेरिका स्वतन्त्र हो गया। यूरोप के अनेक हिस्सों में शांति स्थापित हो गयी।
विज्ञान की प्रगति के साथ विश्व भर में रेलवे और टेलिग्राफिक तारों का जाल बिछ गया। सूक्ष्म पदार्थों की रचना का स्पष्ट आकलन तो नहीं हुआ था परन्तु तब भी स्टीम इंजनों, विद्युत् यन्त्रों एवं अन्य अनेक प्रकार के उपकरणों की सहायता से उनका उपयोग किया जाने लगा। 1899 में जब द्वापर युग की संधि के 200 वर्ष पूरे होंगे तब 2000 वर्षों का वास्तविक द्वापर युग शुरू हेागा और वह मानव जाति को विद्युत् शक्तियों का तथा उनके गुणधर्मों का पूर्ण ज्ञान प्रदान करेगा।
पंचांगों में यह भूल अधोगामी द्वापर युग के समाप्त होने के तुरन्त ही बाद राजा परीक्षित के शासनकाल में प्रविष्ट हुर्इ। उस समय महाराज युधिष्ठिर ने जब देख कि कलियुग शुरू होने जा रहा है तो उन्होंने अपने सिंहासन पर अपने पौत्र परीक्षित को बिठा दिया और वे अपने दरबार के सभी ज्ञानी जनों सहित भूलोक के स्वर्ग हिमालय में चले गये। इसलिये राजा परीक्षित के दरबार में ऐसा कोर्इ भी नहीं बचा था जो युग-युगान्तर की कालगणना के सिद्धान्तों की सही जानकारी रखता हो।
अत: जब उस सय चल रहे द्वापर युग के 2400 वर्ष समाप्त हुए तो कोर्इ भी द्वापर युग की समाप्ति की घोषणा कर कलियुग की गणना शुरू करने का और इस प्रकार उस अन्धकारमय युग को और अधिक स्पष्टता के साथ प्रकट करने का साहस नहीं जुटा पाया।
‘केवल्य दर्शनम्’ से साभार
‘केवल्य दर्शनम्’ से साभार
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