Tuesday, November 5, 2013

कुण्डलिनी मंथन


(कृप्या इस लेख को पढ़ने के साथ सनातन धर्म का प्रसाद पुस्तक का कुण्डलिनी जागरण अध्याय अवश्य पढ़े)
     सुनते है कि समुद्र मंथन में पहले विष निकला था फिर अमृत, कुण्डलिनी मंथन में भी इसी प्रकार की स्थिति होती है। व्यक्ति के साधनात्मक पुरुषार्थ से जब कुण्डलिनी जागरण होना प्रारम्भ होता है तो उसको आनन्द तो आता है परन्तु साथ-2 कठिनार्इयाँ बाधाएँ भी आनी प्रारम्भ हो जाती है क्योंकि जो शक्ति बनती है उसको असुर झपटना चाहते है। इसको थोड़ा ठण्डे दिमाग से समझना पडे़गा।
     साधक जब साधना करता है तो उसका मन उसको कष्ट देता है मन को छुटृल साँड की तरह इधर-उधर अवारा चिन्तन की आदत होती है जब उस पर लगाम कसी जाती है तो वह जल्दी से उस बन्धन को स्वीकार नहीं करता। इधर थोड़ा शक्ति बनी तो वह उसके चित्त के जन्म जन्मातरो के संस्कारो के हिला देती है। मन ओर चित्त में अन्तर समझना होगा। मन जो वर्तमान में साधक की स्थिति है चित्त जो पुराने जन्मों से संचित है। एक साधक बहुत समर्पित भक्त प्रवृत्ति के थे कुण्डलिनी पर चोट होते ही उनका समर्पण कम हो गया वो भय सन्देह में फंस गए। एक बड़े उदार प्रवृत्ति से दूसरो की सहायता करने वाले थे, कुण्डलिनी जाग्रत होते ही बड़े कंजूस दूसरों का अनहित करने के विचार उनके मन में आने लगे। कुछ लोग इस अवस्था में वासना में फंसने लगते है तो कुछ मरने मारने को उतारू हो जाते है अन्य भ्रमों पागलपन की स्थिति में भी जाने लगते है। इसके कारणों को हमें ठीक से समझना होगा।
     आचार्य श्री राम जी एक स्थान पर लिखते है कि उच्च चेतना एक ऐसा दर्पण है जो व्यक्ति के भीतर क्या है उसको साफ-2 दिखा देता है ताकि व्यक्ति उसका परिशोधन कर सके। अन्य मनीषी कहते है कि व्यक्ति के चित्त के संस्कारों को समाप्त कर देती है। सर जान वुडरफ अपनी पुस्तक सर्पेन्ट पावर में कुण्डलिनी का विस्तृत विवरण देते है। इसको सर्पिणी भी शास्त्रों में कहा जाता है जो जीव को उसके संस्कारों से मुक्त करके ब्राàमी स्थिति तक ले जाती है परन्तु यह यात्रा सरल नही है।
    सर जान वुडरफ मद्रास हार्इकोर्ट में जज थे अंग्रेज सरकार उनको योग्यता का बड़ा सम्मान करती थी। एक बार उनकी अदालत में एक विचित्र मुकदमा आया जिसमें दोषी के सजा से बचाने एक साधु आया। साधु ने कहा कि असली दोषी उसका शिष्य नहीं है अपितु कोर्इ और है जिसका पता उस साधु ने बताया। पुलिस जब उस दोषी को पकड़ कर लार्इ जिसे साधु ने बताया था, तो जान वुडरफ ने उस साधु ने पूछा कि उसे असली मुजरिम का पता कैसे लगाया तो साधु ने कहा साधना की शक्ति से। जान वुडरफ उस साधु के प्रति नतमस्तक हो गए कि उन्होंने गलत व्यक्ति को फाँसी देकर बड़ा अपराध कर दिया होता। अब जान वुडरफ का ध्यान भारत की अध्यात्म रूपी अनमोल सम्पदा की ओर मुड़ गया उन्होंने भारतीय शास्त्रों का अध्ययन करना अपने जीवन का लक्ष्य बनाया। एक बार ब्रिटिश पार्लियामेन्ट में प्रश्न उठा ‘Are Indians Uncivilzed’? इस प्रश्न के उत्तर में जान वुडरफ ने अंग्रेज सरकार को फटकारा कि उन्होंने भारतीयों को असभ्य कहने की दिम्मत कैसे की? उन्होंने इसके विरोध में तुरन्त अपने पद से इस्तीफा दे दिया सर की उपाधि अंग्रेज सरकार को लौटा दी। उन्होंने जनेऊ शिखान धोती धारण कर भारतीय वेश लेकर आश्रम में साधना की अनेक पुस्तके लिखी।
     बात कुण्डलिनी साधना की चल रही थी। कुण्डलिनी जागरण के साथ-2 व्यक्ति अपने को बदला बदला महसूस करता है। कर्इ बार दुष्ट व्यक्ति भक्त बन जाता है जैसे अंगुलिमाल, वाल्मिकी आदि कर्इ बार भक्त व्यक्ति दुष्ट बनता प्रतीत होता है। इसलिए पहले विष निकलता है कठिनार्इ यह है कि व्यक्ति का चिक्त, परिवार, सामाजिक परिवेश सूक्ष्म वातावरण व्यक्ति के अनुकूल नहीं होता जिससे जूझना व्यक्ति को कठिन जान पड़ता है। पहले तो व्यक्ति अपने कु:संस्कारो से दुखी है ऊपर से परिवार के लोग उसे गलत motivate करते है। अनेक जगह मैंने खुद पाया है कि पत्नियाँ अपने पति को काम वासना के जाल में उलझाने का प्रयास करती है। यह पाठको से मेरा विनम्र निवेदन है कि लेखक पुरुष साधको के सम्पर्क में अधिक रहा है इस कारण उन्हीं का रोना रोता है। एक तो साधक अपनी वासना को काबू करने में ऐड़ी चोटी का जोर लगा रहा है दूसरा उसकी पत्नी अपनी उल्टी सीधी हरकतो से उसको परेशान कर रही है। ऐसे में सूक्ष्म वातावरण की असुर सत्ताएँ लाभ उठाकर उनके घर में झगडे़ करवा देती है जिससे व्यक्ति साधना के मतलब का रहता घर ठीक से चला पता क्योंकि घर में फैल negativity जाती है जिसके प्रभाव में बच्चे जल्दी जाते है कर्र्इ बार यह भी देखा जाता है कि साधको के बच्चे ज्यादा रोगी होते है उसका कारण यही negativity होती है। व्यक्ति या तो डरा कर साधना करना छोड़ देता है या उत्साहीन होने लगता है लेकिन देवसत्ताएँ उसको पुन: आत्म बल प्रदान करती है इन परिस्थितियों से उसको छुड़ाने का प्रयास भी करती है। इस प्रकार की अनेक बाधाएँ साधना में आती है कुछ बातों का वर्णन करना यहाँ रोचक रहेगा।
     एक बार एक अविवहित युवक मेरे पास आया अपनी विचित्र स्थिति के बारे में मुझे बताने लगा। उसको जब Salary मिली तो बैंक से पैसे निकाल कर ला रहा था। मार्ग में झुग्गी झोंपड़ी देखकर उसे प्रेरणा हुर्इ कि Salary जरूरतबन्दों को बाँट दें। करूणावंश उसने वह धन गरीबों में बाँट दिया। घर आया तो परिवार वालो ने डाँटा। वह लोगो का भविष्य सही-2 बता दिया करता था घर वाले उसे पागल समझते है उसका AIMS में इलाज करा रहे है। कभी-2 ओझाओं से झड़वाते भी है। उसके भीतर अनेक परिवर्तन भी आते है। कर्इ बार उसकी सिग्रेट शराब पीने की इच्छा होती है मारपीट करने के मन चाहता है। हमने उसे बताया कि उसकी कुण्डलिनी जाग्रत है परन्तु किसी दिव्य संरक्षण के अभाव में बेपेंदे के लोटे की तरह वह इधर उधर लुढ़कता फिर रहा है। कभी देवशक्तियाँ प्रेरणा देकर उसके सत्कर्म के लिए बाध्य करती है तो कभी आसुरी शक्तियाँ उसके अपने पाश में लेकर उससे बुरा कार्य करा देती है। बाद में होश आने पर व्यक्ति पश्चाताप करता है कभी-2 उसे पता ही नहीं चलता था कि कहाँ जाना है वह घर से कुछ सोचकर निकलता है परन्तु चला कही ओर जाता है ऐसी परिस्थिति में हम तुरन्त उसको अपने पूजा कक्ष में ले गए उससे कहा कि वह गुरुसत्ता हिमालय की देवसत्ताओं से प्रार्थना करे कि उसके संरक्षण मार्गदर्शन मिलें। हम लोगो ने भी उसके जीवन में शक्ति की प्रार्थना की। पूजा कक्षा में उसे ऐसा लगा कि गुरुदेव माता जी ने उसके जीवन का घर अपने हाथ में ले लिया है। हमने उसके घर अखण्ड़ जप किया जिससे आसुरी सत्ता उसको दिग्भ्रमित करें। धीरे-2 वह युवक सही सलामत एक अच्छी कम्पनी में अच्छे पद पर Set हो गया। 
     समस्या यह है कि व्यक्ति के उसकी स्थिति के बारे में सही ज्ञान नहीं होता जिससे वह भटकता रहता है। या तो उसको Mental Hospitals के भरोसे छोड़ दिया जाता है या ओझा तान्त्रिक से झाड़ फूँक चलती रहती है। पूज्य गुरुदेव जी की विश्व कुण्डलिनी जागरण साधना से अनेक व्यक्तियों के सहस्त्रार चालू हो जाते है वे देव शक्तियों अथवा आसुरी शक्तियों के वाहक बड़ी सरलता से बन जाता है। पूर्व काल में व्यक्ति एक-2 चल को काबू में कर चलता था नीचे से (मूलाधार) प्रारम्भ करता था अपने अधमय प्राणमय कोषों का शोधन कर आगे बढ़ता था। परन्तु आज के समय व्यक्ति की साधना का प्रारम्भ जाने अनजाने आज्ञा चक्र अथवा सहस्त्रार चक्र से हो जाता है। जो भी व्यक्ति साधना के इस चैनल में गया अपने व्यक्तित्व का परिष्कार करना उसकी मजबूरी है। अन्यथा आसुरी शक्तियाँ उसको भ्रमित करती रहेगी। पूर्व जन्मों की साधना के कारण व्यक्ति चैनल में जाता है। हमने ऐसे भी व्यक्ति देखें जो कुछ माह अथवा वर्ष तुरीयावस्था में रहे अनेक ऋषि सिद्धियों के स्वामी बने परन्तु कुछ समय पश्चात् आसुरी शक्तियों ने उनके योग भ्रष्ट कर डाला। उनके चाहने वालों समझ आया उनको बहुत नुकसान उठाना पड़ा।
     भारत में व्यक्ति बहुत शीद्य्र ही किसी पर भी श्रद्धा कर बैठता है विवेक की आँख बन्द कर उसके भगवान बना देता है। व्यक्ति को सावधानी पूर्वक साधक के परखते रहना चाहिए। जैसे ही साधक नैतिक नियमों की अवेहलना करना प्रारम्भ कर दें उसका पतन निश्चित हो जाता है। लेखक के जीवन में ऐसे अनेक साधक आए जिनके जीवन में भरी उठा पठक चली। आज का समय बहुत सम्भल कर चलने का है। जन सामान्य को चाहिए कि वो साधको पर श्रद्धा तो करें उनका सम्मान भी करें दूसरे उनको लाभ होगा परन्तु साथ-2 सचेत भी रहें। अच्छे साधक का साथ बहुत प्रेरणा आनन्द दायक होता है जब तक देवीप्रवाह बना रहें। परन्तु लोभ लालच, पद प्रतिष्ठा उसके भीतर के कु:संस्कार भड़क देती है आसुरी शक्तियाँ मौके का फायदा उठाकर भ्रमित कर देती है। धीरे-2 देव संरक्षण कमजोर पड़ता जाता है साधक आसुरी शक्तियों की चपेट में जाता है।

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