Friday, December 20, 2013

देवत्व की राह

देवत्व की राह की मंजिल देवत्व है, जहाँ हमारी कथनी और करनी में मेल हो, जहां हमारी आत्मा में सच्चार्इ और भलार्इ के प्रति पूर्णाग प्रेम हो और झूठ और बुरार्इ के प्रति पूर्णाग घृणा हो। ऐसा नहीं कि यह मंजिल नामुमकिन है मनुष्यात्मा के लिए, मगर मुश्किल यह है कि हम इस मंजिल को पाने से डरते हैं।
कोर्इ छोटे गांव का लड़का मुम्बर्इ जाकर फिल्मों का हीरो बनना चाहता हो, मगर साथ ही साथ इस बात का इज़हार करने से भी डरता हो कि सब लोग मज़ाक उड़ायेंगे। अपने अन्दर उसे वो सब नज़र आता है, जो उसे हीरोबनने में काम आयेगा, मगर वो इतना बड़ा सपना देखने से ही डरता हो। कर्इ बार मुम्बर्इ के लिए बस या ट्रेन पकड़कर निकले भी, मगर दो-चार स्टेशन बाद ही उतर जाये या वापस अपने गांव की ट्रेन पकड़ ले। यही हाल मनुष्यात्मा का है। देवता बनना चाहती है आत्मा, मगर अपने आपसे भी यह बात कबूल करने से डरती है। कर्इ बहाने बनाती है, जैसे कि इस दुनिया में संतों को तो भीख मांग कर गुजारा करना पड़ता है, कहां देवता बनने को निकलूँ। यथास्थिति में रहना कितना आसान है। क्यों देवत्व की राह पकड़ कर जान का जंजाल मोल लूं? जिधर देखो दुनिया में झूठ का बोलबाला है। आम आदमियों की भरमार है। भला मैं ही क्यों स्पेशल बनने की कोशिश करूं आदि-आदि। मगर, अधिकारी आत्मा को इसमें मजा ही नहीं आता। उसे मालूम है कि देवत्व तक पहुंचने की सामग्री उसके अन्दर मौजूद है, मगर हिम्मत नहीं पड़ती कि पीछे न मुड़ने की ठानकर देवत्व की राह पर चल पड़े।
इस डर से पनपता है सच्चार्इ-भलार्इ के प्रति दोगला बर्ताव। जब तक राह आसान रही, तक तक सच्चार्इ-भलार्इ के मुरीद बने, मगर जहां राह जरा कठिन हुर्इ, वहां अपने उसूलों को तोड़-मरोड़कर अपने फायदे मुताबिक ढालना चालू। लेकिन, यह राह बहुत फिसलन भरी है। आप लाख सोचें कि सिर्फ इस बार यह पाप कर लूं, यह तो एक अपवाद है, मगर चढ़ती बाढ़ में अपने घर की एक दीवार से एक र्इट निकालना भी बहुत बड़ी भूल होती है। मुसीबत के वक्त में हमें अपनी सुरक्षा मजबूत करने की जरूरत है, न कि कोर्इ औचित्य स्थापित करने की या अपवादों की पैरवी करने की।
हीरो बनने की ठानी है, तो मुम्बर्इ की राह से कदम भटकने न दो और सतत् प्रयास करो, वरना अगर बिन पेंदे के लोटे की तरह कभी इधर तो कभी उधर लुढ़कते रहे, तो हीरो नहीं भांडबनकर रह जाओगे। देवत्व की मंजिल अच्छी लगती है, नेचर के सभी जगतों से पूर्ण मेल में रहना सुखद लगता है, तो ठानो मन में कि देवत्व की राह से भटकोगे नहीं, अपने उसूल पहला मौका मिलते ही सस्ते दामों में बेचोगे नहीं। वदा करो अपने आपसे कि अपने ज़मीर को जिन्दा रखोगे। देवत्व की राह की मंजिल बहुत हसीन है, इस राह में कदम भटकने न दो, सतत् चलते रहो इस पर, ताकि इस लोक में न सही, परलोक में आकर तो देवत्व की मंजिल को पा सको।
           शुभ हो! शुभ हो! शुभ हो! शुभ हो!


                                                           -परलोक सन्देश

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