Sunday, May 18, 2014

Solution of common Human problems

     हे मानव! तू दुखी, निराश व भयभीत क्यों? तू नहीं जानता कि सम्पूर्ण विश्व ब्रह्माण्ड का संचालन करने वाली शक्ति तेरे भीतर में विराजमान है। जिस दिन तू उसकी झलक देख लेगा तेरा जीवन आनन्द से पूर्ण हो जाएगा, और अभावों का नाश हो जाएगा। शरीर के पिजरें में कैद तू अपने को सामान्य मानव मान रहा है व लाचार कैदी पंछी की भाति इधर-उधर मुह मार कर लहुलूहान हो रहा है।
     आप कहेंगे कि यह तो हम पहले भी बहुत बार सुन चुकें है थोड़ी देर के लिए कुछ उत्साह उत्पन्न होता है फिर क्षीण हो जाता है और व्यक्ति पुनः उसी ढर्रे पर जीने के लिए विवश रहता है वेदों का अहं ब्रह्ममसि, सोहम्, तत्वमसि हमने बहुत सुना है लेकिन वह हमारे भीतर टिक नहीं पाता कारण स्पष्ट है कि हमें उस चीज की अनुभूति नहीं है बिना अनुभूति के हमारी श्रद्धा थोड़ी देर वहा टिकती है फिर हट जाती है मात्र उतनी देर के लिए ही हमें सभी चीजें सकारात्मक दिखाई देती हैं हम सोच को बदलने की कोशिश तो करते है परिस्थितियों को बदलने की कोशिश करते हैं थोड़ी ही देर में हार मान बैठते हैं। अभी तक मनोवैज्ञानिकों ने नकारात्मक सोच के नुकसान तो बताए, सकारात्मक सोच की तरफ व्यक्ति को प्रेरित किया लेकिन यदि सभी प्रयासों के बावजूद सोच सकारात्मक न बन पाए फिर क्या मार्ग है यह किसी ने नहीं बताया। कभी-कभी हम घी डाल कर अग्नि को बुझाने का प्रयास करते हैं तो कभी तेज हवा चला कर अग्नि को बुझाने का प्रयास करते हैं यदि आग कम लगी है तो घी डालने से बुझ जाएगी लेकिन आग अधिक लगी है तो घी डालने से बढ़ जाएगी इसी प्रकार हलकी आग तेज हवा से बुझ जाएगी लेकिन अधिक आग तेज हवा से और प्रबल हो जाएगी।

      यदि हमारे भीतर नकारात्मक सोच का विष भयानक रूप से घुला पड़ा है तब मनोमय कोष पर उसका उपचार सम्भव नहीं है इस विष को बाहर निकालने के लिए हमें विज्ञानमय कोष में प्रवेश करना पड़ेगा जिसके द्वारा इस विष का निष्कासन सम्भव है आज मनोवैज्ञानिक तो बहुत हैं परन्तु विज्ञानमय कोष को गहराई से समझने वाले व समझाने वाले षि स्तर के व्यक्ति बहुत ही कम हैं इसी कारण व्यक्ति मनोमय कोष में ही समस्याओं का समाधान ढूढता रहता है यह ठीक वैसा ही जैसे प्रयास करके एक कुए से निकले व कुछ दिन बाद खाई में आ गिरे। भौतिकवाद की दुनिया में शान्ति कहा उपलब्ध है। समस्याओं का स्थाई समाधान पाने के लिए विज्ञानमय कोष के आध्यात्मिक जगत् में प्रवेश करना होगा।

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