भारतवर्ष में अनेक आध्यात्मिक संस्थाए सक्रिय है जिनमें लगभग 24 संस्थाए तो ऐसी है जिनमे से प्रत्येक से कम से कम एक-एक करोड़ व्यकित जुड़ा है। इनमे से पाँच के नाम दिए जा रहे हैं-
1. गायत्री परिवार
2. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ
3. ब्रहम कुमारीज
4. आर्य समाज
5. इस्कान
यदि ये संस्थाए वास्तव में राष्ट्र हित व जनहित के लिए समर्पित हैं तो इनको हाथ मिलाना चाहिए। राष्ट्र हित के मुद्दो पर एक साथ मिलकर कार्य करना चाहिए। जो संस्था यह कहती है कि वो केवल आध्यात्मिक हैं समाज सुधार से उनका कोई लेना-देना नहीं है वो सम्भवतः बड़ी भूल पर हैं। यदि किसी मोहल्ले में आग लगी है और उस मोहल्ले का कोई व्यक्ति यह कहे कि मेरा इस आग से कोई लेना-देना नहीं हैं तो वह आध्यात्मिक कैसे हो सकता है। आज समाज अनेक कुरीतियांे की आग मेें जल रहा है उसको बुझाना हम सभी का दायित्व है। बन्दा वैरागी आत्म-कल्याण के लिए एकान्त में तप कर रहे थे। पूज्य गुरुदेव गोविन्द सिंह जी उनसे मिले व उन्होंने उनकी आत्मा को झनकझोल कि आध्यात्मिक व्यक्ति स्वार्थी कैसे हो सकता है। अर्जुन ने भी श्री कृष्ण को यही समझाया था कि कर्म योग को नजरन्दाज कर जो आध्यात्मिक होने की बात करता है वह ढोंगी है वह अपने अहं की पुष्टि करता है।
संस्थाओं के पास ऐसी बड़ी जन शक्ति है जो संवेदनशील है अच्छी परम्पराओं के लिए ग्रहणशील हैं व संस्थाओं के प्रति किसी न किसी रूप में समर्पित हैं। यदि 24 करोड़ की इस जन शक्ति को हम युग निर्माण के हिसाब से प्रशिक्षित करें तो एक बड़ा आन्दोंलन सम्भव है।
परन्तु संस्थाओं के इस अभियान में अनेक प्रकार की बाधाएँ समाज के समने आ रही है।
1. पहल कठिनाई यह है कि अधिकतर जगह विस्तार अर्थात Quantity का ही हल्ला मचा हुआ है। अर्थात संस्थाए बड़ी सँख्या में अपने सदस्य बनाकर अपना विस्तार कर रही हैं। भीतरी सुधार अथवा Quality पर ध्यान नहीं दिया जा रहा हैं पर अभियान में कोई सफलता नहीं मिल रही है। हिमालय की ऋषि सत्ताओं ने सन 2011 में इस गलत नीति पर अपना रोष जाहिर किया था।
2. दूसरी कठिनाई यह है कि अनेक संस्थाओ में Lower Conscious अर्थात अपरिपक्व व्यक्तित्व बड़े पदो पर बैठे हैं जिन्हे समाज सुधार से अधिक अपनी पद-प्रतिष्ठा की चिन्ता है। इससे वहाँ कार्यकत्ताओं में बड़ा असन्तोष उत्पन्न होता है। ठलुओं, चापलुसों व अंहकारियों को हलवा-पूरी मिलती है व निष्ठावान बेचारे भटकते रहते हैं। अतः या तो पद Rotation में हो या ऐसे व्यक्तियों को पद छोड़ने के लिए मजबूर किया जाए।
3. संस्थाओं में रजोगुण व तमोगुण बढ़ने पर Negative Carriers उत्पन्न हो जाते हैं। उसका कारण यह होता है कि ऐसे व्यक्ति संस्थाओं में बड़े जोश-खरोश के साथ जुड़ते हैं परन्तु कोई न कोई उनकी महत्वाकांक्षा भी साथ रहती है। पाँच-दस वर्ष कार्य करने पर जब उनका वह उद्देश्य (Hidden objective) पूरा नहीं होता तो वो पस्त हो जाते हैं व Negative Carriers की तरह व्यवहार करना प्रारम्भ कर देते हैं अब उनके द्वारा समाज को केवल
1. गायत्री परिवार
2. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ
3. ब्रहम कुमारीज
4. आर्य समाज
5. इस्कान
यदि ये संस्थाए वास्तव में राष्ट्र हित व जनहित के लिए समर्पित हैं तो इनको हाथ मिलाना चाहिए। राष्ट्र हित के मुद्दो पर एक साथ मिलकर कार्य करना चाहिए। जो संस्था यह कहती है कि वो केवल आध्यात्मिक हैं समाज सुधार से उनका कोई लेना-देना नहीं है वो सम्भवतः बड़ी भूल पर हैं। यदि किसी मोहल्ले में आग लगी है और उस मोहल्ले का कोई व्यक्ति यह कहे कि मेरा इस आग से कोई लेना-देना नहीं हैं तो वह आध्यात्मिक कैसे हो सकता है। आज समाज अनेक कुरीतियांे की आग मेें जल रहा है उसको बुझाना हम सभी का दायित्व है। बन्दा वैरागी आत्म-कल्याण के लिए एकान्त में तप कर रहे थे। पूज्य गुरुदेव गोविन्द सिंह जी उनसे मिले व उन्होंने उनकी आत्मा को झनकझोल कि आध्यात्मिक व्यक्ति स्वार्थी कैसे हो सकता है। अर्जुन ने भी श्री कृष्ण को यही समझाया था कि कर्म योग को नजरन्दाज कर जो आध्यात्मिक होने की बात करता है वह ढोंगी है वह अपने अहं की पुष्टि करता है।
संस्थाओं के पास ऐसी बड़ी जन शक्ति है जो संवेदनशील है अच्छी परम्पराओं के लिए ग्रहणशील हैं व संस्थाओं के प्रति किसी न किसी रूप में समर्पित हैं। यदि 24 करोड़ की इस जन शक्ति को हम युग निर्माण के हिसाब से प्रशिक्षित करें तो एक बड़ा आन्दोंलन सम्भव है।
परन्तु संस्थाओं के इस अभियान में अनेक प्रकार की बाधाएँ समाज के समने आ रही है।
1. पहल कठिनाई यह है कि अधिकतर जगह विस्तार अर्थात Quantity का ही हल्ला मचा हुआ है। अर्थात संस्थाए बड़ी सँख्या में अपने सदस्य बनाकर अपना विस्तार कर रही हैं। भीतरी सुधार अथवा Quality पर ध्यान नहीं दिया जा रहा हैं पर अभियान में कोई सफलता नहीं मिल रही है। हिमालय की ऋषि सत्ताओं ने सन 2011 में इस गलत नीति पर अपना रोष जाहिर किया था।
2. दूसरी कठिनाई यह है कि अनेक संस्थाओ में Lower Conscious अर्थात अपरिपक्व व्यक्तित्व बड़े पदो पर बैठे हैं जिन्हे समाज सुधार से अधिक अपनी पद-प्रतिष्ठा की चिन्ता है। इससे वहाँ कार्यकत्ताओं में बड़ा असन्तोष उत्पन्न होता है। ठलुओं, चापलुसों व अंहकारियों को हलवा-पूरी मिलती है व निष्ठावान बेचारे भटकते रहते हैं। अतः या तो पद Rotation में हो या ऐसे व्यक्तियों को पद छोड़ने के लिए मजबूर किया जाए।
3. संस्थाओं में रजोगुण व तमोगुण बढ़ने पर Negative Carriers उत्पन्न हो जाते हैं। उसका कारण यह होता है कि ऐसे व्यक्ति संस्थाओं में बड़े जोश-खरोश के साथ जुड़ते हैं परन्तु कोई न कोई उनकी महत्वाकांक्षा भी साथ रहती है। पाँच-दस वर्ष कार्य करने पर जब उनका वह उद्देश्य (Hidden objective) पूरा नहीं होता तो वो पस्त हो जाते हैं व Negative Carriers की तरह व्यवहार करना प्रारम्भ कर देते हैं अब उनके द्वारा समाज को केवल
Negativity ही दी जाती है। Catch Negative Great Negative
Give
Negative
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