Wednesday, November 11, 2020

बवासीर का घरेलु निदान

       जब मलाशय की शिरायें फूल जाती हैं तो उनमें गाँठे बन जाती हैं। यह कब्ज के कारण होता है जो लोग अधिक समय तक गद्दी या कुर्सी पर बैठे रहते हैं, उनकी गूदा (Anus) की श्लैष्मिक झिल्ली में उत्तेजना पैदा होती है क्योंकि रक्तवाहीनियाँ दब जाती है। प्रोस्टेट गलैण्ड के बढ़ जाने तथा मूत्राशय में पथरी हो जाने के कारण बवासीर की शिकायत हो जाती है। गुदा में मस्से गुच्छों के रूप में उभर आते हैं। जो लोग कटु, अम्ल, लवण, तीक्ष्ण तथा गरम पदार्थों का सेवन अधिक करते हैं, उनको भी यह रोग हो जाता है।

रोग के लक्षण

      गुदाद्वार के भीतर तथा बाहर एक छोटी-सी गाँठ बन जाती है जिसमें सूजन होती है, गाँठों में टपकन, जलन तथा अकड़न पैदा हो जाती है। मल त्याग के समय दर्द होता है तथा खून गिरता है। (Anus) में जलन, दर्द, कड़ापन, बार-बार खुजली होती है। भूख कम हो जाती है, जोड़ों तथा जाँघों में दर्द होता है, लगातार कमजोरी उत्पन्न होती है।

उपचार

  • सुबह खाली पेट 2 चम्मच मूली का रस चुटकीभर नमक मिलाकर पीयें।
  • बादी बवासीर (सूखी और सूजन वाली) में नीम का तेल या कासीसादि या जात्यादि तेल का अन्दर पिचू लें (रबड़ की पाइप द्वारा) और बाहर मस्सों पर लगाएँ।
  • पके अनार के छिलकों को छाया में सूखाकर पीस लें और बारीक कपड़छन चूर्ण बना लें और रोजाना दिन में 3 बार 2-2 चम्मच चूर्ण को पानी या मट्ठे से सेवन करें।
  • 1 चम्मच आँवले का चूर्ण मट्ठे के साथ या पानी के साथ खायें।
  • गूदा पर दिखाई देने वाले बवासीर के मस्सों पर पपीते की जड़ पानी में घिसकर लगायें।
  • गाजर का रस एक कप तथा पालक का रस एक कप - दोनों को 8-10 दिनों तक नियमित रूप से पीने से बवासीर खत्म हो जाती है।
  • रीठे के छिलके तवे पर भूनकर पीस लें, फिर उसमें समभाग पपरिया कत्था मिलाकर मस्सों पर लगायें।
  • थोड़ी-सी फिटकरी और थोड़ी-सी हरड़ पिसी हुई - दोनों को मक्खन में मिलाकर गुदा पर लगायें।
  • 1 चुटकी त्रिफला चूर्ण शहद के साथ रोजाना सेवन करें ऊपर से मट्ठा या पानी पी लें।
  • सप्ताह में एक बार हल्के गरम पानी (1 लीटर) में 1 नीम्बू का रस मिलाकर एनिमा पाइप से एनिमा लें ताकि कब्ज की शिकायत न रहे।
  • गरम पानी को बड़े टब में भरकर नीचे (Hips) की सिंकाई करें।
  • रोजाना 4-5 लीटर पानी पीयें।
  • गुदा मार्ग की साफ-सफाई अच्छे से पानी डालकर करें।

      इन घरेलू उपायों को करते हुए आयुर्वेदिक/होम्योपैथिक/एलोपैथिक जो पद्धति आपको सही लगे वह दवा डॉक्टर के निर्देशन में सेवन करें।

Sunday, November 8, 2020

क्या आप तस्वीरों के माध्यम से स्वास्थ्य सलाह दे सकते हैं?

 


bY rAHUL pARASHAR

नाभि में छुपा है आपकी सेहत का राज

 

क्या आपकी नाभि में छुपा है आपकी सेहत का राज?

नाभि को शरीर का सेंट्रल पॉइंट कहा जाता है। इसी के द्वारा आप अपनी शरीर से जुड़ी समस्याओं का उपचार करके अच्छा स्वास्थ्य पा सकते हैं। नाभि में सेहत के राज छुपे हुए है। आओ जानते हैं:-

अगर आंखों की नसें और नज़र कमजोर हो गई है, तो घबराने की जरूरत नहीं है। नारियल का तेल और शुद्ध गाय के घी को मिलाकर रात को सोने से पहले नाभि में 3–4 बूंदे टपकाएं और 15–20 मिनट ऐसे ही लेटे रहे। नाभि इस तेल को सोख लेगी। कुछ महीनों के बाद ही यह समस्या दूर हो जाएगी है।

पीरियड्स के समय महिलाओं को दर्द होने पर नाभि में थोड़ी-सी ब्रांडी रूई में भिगोकर रखने से दर्द मिनटों में दूर हो जाता है।

शरीर में किसी भी प्रकार की कमजोरी होने पर रात को सोने से पहले नाभि में गाय का शुद्ध देसी घी लगाना चाहिए। इससे कुछ दिनों में ही शारीरिक कमजोरी दूर हो जाती है।

होंठ फटते हैं या काले पड़ गए हैं तो नाभि में सरसों का तेल कुछ दिन लगाने यह समस्या ठीक हो जाती है। इससे पुराना सिर दर्द ठीक होता है और बालों की अनेक प्रकार की समस्याएं भी दूर हो जाती हैं।

चेहरे को चमकदार और सुंदर बनाने के लिए नाभि में बादाम का तेल लगाना चाहिए। इससे सर्दियों में चेहरे की खुश्की भी दूर होती है।

चेहरे के कील-मुंहासे और दाग-धब्बों को दूर करने के लिए नाभि में नीम का तेल या नीम का रस बहुत ही लाभकारी माना गया है।

चेहरे को हमेशा मुलायम रखने के लिए शुद्ध देसी घी को नाभि पर लगाना चाहिए। इससे चेहरे की चमक बरकरार रहती है।

तिल का तेल लगाने से शरीर में दर्द से राहत मिलती है।

जैतून का तेल लगाने से जोड़ों के दर्द से छुटकारा मिलता है और मोटापा भी कम होता है। अरंडी का तेल भी जोड़ों के दर्द में फायदेमंद है।

इसके अलावा सरसों का तेल रोजाना नाभि पर लगाने से बहुत बीमारियों से छुटकारा पाया जा सकता है।

with thanks from

ASHOK SACHDEVA

आयुर्वेदिक दवा "कामदुधा रस" के फायदे

 कामदुधा रस एक ऐसी आयुर्वेदिक दवा है जिसका उपयोग पाचन समस्याओं, पुराने बुखार, सीने की जलन, ऊर्ध्वाधर (वर्टिगो), मतली, उल्टी, कमजोरी आदि से आराम पाने के लिए किया जाता है। यह हर्बल और खनिज सामग्री से बना होने के कारण इसका प्रयोग कई बीमारियों के आयुर्वेदिक उपचार के लिए किया जाता है।

कामदुधा रस के गुण

  • एंटासिड
  • एंटी-ऑक्सीडेंट
  • एंटी-इंफ्लेमेटरी
  • उलटी रोकने वाला (एंटी-एमटिक)
  • टॉनिक
  • हल्का अवसाद विरोधी (एंटी-डिप्रेसेंट)
  • एडाप्टोजेनिक
  • सिर में चक्कर आने का विरोधी (एंटी-वर्टिगो)
  • 1. सूजन को कम करने में मदद करे

कामदुधा रस के औषधीय गुण पुरानी गैस्ट्र्रिटिस के मामलों में काफी प्रभावी होते हैं| यह पेट के अंदरूनी अस्तर की रक्षा करता है। यह शराब, दर्दनाशक और बैक्टीरिया के कारण होने वाली से परेशानियों की वजह से पेट को होने वाले नुकसान से पेट की रक्षा करता है।

2. एसिडिटी से राहत दिलाये

कामदुधा रस में पाई जाने वाली जड़ी बूटियाँ और खनिज गैस्ट्रिक एसिड से होने वाले प्रभाव को कम करने में मदद करते हैं। कामदुधा रस सीने की जलन को कम करने, पेट की जलन को कम करने में, खट्टे स्वाद और खट्टी मतली को ठीक करने में भी मदद करता है|

  • 3. पेप्टिक अल्सर को कम करे

कामदुधा रस गैस्ट्रिक अल्सर, ओसोफेजेल अल्सर और डुओडेनल अल्सर के साथ साथ पेप्टिक अल्सर को ठीक करने का भी एक अच्छा उपाय है।

  • कामदुधा ल्यूकोरिया और मासिक धर्म के दौरान भारी रक्तस्त्राव जैसी समस्याओं के लिए एक उपयोगी दवा है।
  • जब किसी को त्वचा के विकार से खून बह रहा हो, जलन हो रहा हो तो इसका उपयोग किया जाता है|
  • कामदूधा रस शीतवीर्य (ठंडा), क्षोभ नाशक और शक्तिदायक है तथा पाचनक्रिया, रुधिराभिसरण, वातवहन क्रिया और मूत्रमार्ग पर शामक असर पहुंचाता है। कामदूधा रस से जीर्णज्वर (पुराना बुखार), पित्तविकार, अम्लपित्त दाह (जलन), मूर्छा, भ्रम (चक्कर), उन्माद यह सब रोग नष्ट हो जाते है।

कामदुधा रस पोषक, रक्तशोधक, शरीरवर्धक, वीर्यवर्धक, बुद्धिवर्धक, ह्रदय की जलन का नाशक, ह्रदय पोषक, और वात-पित्त नाशक है। इसको पित्त से होने वाले सभी रोगों में निस्संकोच प्रयुक्त कर सकते है। आधुनिक रुक्ष (सूखा) और ऊष्ण युग में ऐसी शीत – स्निग्ध औषध सार्वजनिक उपयोग योग्य है।

स्त्रियोंके रक्तप्रदरमे कामदूधा रस उपयोगी है। सगर्भावस्थामे कड़वी, खट्टी, जलती हुई वमन (उल्टी) होती हो, तो वह भी कामदूधा रसके सेवनसे शमन होजाती है।

बालकोकी काली खांसी पर उपयोगी औषधियोंमे कामदूधा रस उत्तम औषधि है। अति निर्बलता आने पर और आमाशय ()मे अधिक उग्रता होने पर अन्य औषधिया जब निष्फल होजाती है तब यह लाभ पहुंचा देती है।

कामदुधा रस शीतवीर्य होने से इसका शामक प्रभाव पाचनक्रिया, रुधिराभिसरण क्रिया, वात वहन क्रिया और मूत्र मार्ग पर होता है। इन अवयवों में उत्पन्न दाह (जलन) कम होता है।

इसका कार्य भ्रम, चक्कर आदि विकारों से लेकर उन्माद (Insanity) की परिस्थिति तक मस्तिष्क के विकार, आमाशय (Stomach) से लेकर सब महास्त्रोतों के विकार, मूत्राघात (पेशाब की उत्पत्ति कम होना या पेशाब का रुकना), मुत्रोत्सर्ग, मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन) आदि मूत्रविकार तथा सामान्य रक्तस्त्राव और नाक से रक्तस्त्राव व रक्तपित्त की भयंकर स्थिति तक, सब पर विभिन्न अनुपनों से उपयोगी है।

इसका निर्माण अधिकतर सुधा (चुना) कल्प से होने के कारण शक्ति वर्धक भी होता है। जीर्णज्वर (पुराना बुखार) में शक्तिपात होता ही है उसे यह दूर करता है।

इसके योग घटक में शंख, कपर्दिक होने से प्लीहावृद्धि (Spleen Enlargement) दूर होकर वह स्वस्थ स्थिति में आ जाता है। मंदाग्नि दूर होकर भूख लगने लगती है।

शीत सह ज्वर (Malaria) में कड़वी (तिक्त) औषधियों का अधिक उपयोग किया जाता

  • कामदुधा रस के साइड इफेक्ट्स
  • कामदुधा रस ज्यादा खुराक लेने से कब्ज हो सकती है|
  • गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को इसे लेने से पहले डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
  • कामदुधा रस को अपने आप ही दवा के रूप में लेना खतरनाक है।
  • ज्यादा दवा लेने से झटके और चक्कर आ सकते हैं
with thanks SACHIN SAHU

Friday, November 6, 2020

दिव्य संदेश

     मनुष्य के चिन्तन और व्यवहार से मनुष्य का आचरण बनता है। जिस तरह का मनुष्य आचरण करता है, वैसा वातारण बनता है। वातावरण से परिस्थितियाँ बनती हैं और वही सुख, दुःख, स्थान, पतन का निर्धारण करती है। जमाना बुरा है, कलयुग का दौर है, परिस्थितियाँ कुछ प्रतिकूल बन गयी हैं, भाग्यचक्र कुछ उल्टा चल रहा है, यह कहकर लोग मन को हल्का करते हैं, पर इससे समाधान कुछ नहीं होता। जन समाज में से ही तो अग्रदूत निकलते हैं। प्रतिकूलता का दोषी मुर्धन्य राजनेताओं को भी ठहराया जा सकता है पर भूलना नहीं चाहिए इन सब का उद्गम केन्द्र मानवीय अन्तराल ही है। आज की विषम परिस्थितियों को बदलने की जो आवश्यकता समझते हैं उन्हें कारण की तह तक जाना होगा। अन्यथा सूखे पेड़, मुरझाते वृक्ष़ को हरा-भरा बनाने के लिए जड़ की उपेक्षा करके पत्ते सींचने जैसी विडम्बना ही चलती रहेगी। आज अन्तः के उद्गम से निकलने तथा व्यक्तित्व परिस्थितियों का निर्माण करने वाली आस्थाओं का स्तर गिर गया है। मनुष्य ने अपनी गरिमा खो दी है और संकीर्ण स्वार्थपरता का विलासी परिपोषण ही उसके जीवन का लक्ष्य बन गया है। वैभव सम्पादन और उद्धत प्रदर्शन, उच्छृंखलता दुरुपयोग ही सबको प्रिय है। समृद्धि बढ़ रही है पर उसके साथ रोग शोक कलह भी प्रगति पर है। प्रतिभाओं की कमी नहीं पर श्रेष्ठता संवर्धन व निकृष्टता उन्मूलन हेतु प्रयास ही नहीं बन पड़ते। लोक मानस पर पशु प्रवृतियों का ही आधिपत्य है। आदर्शों के प्रति लोगों का न तो रुझान है न ही उमंग है। दुर्भिच्छ सम्पदा का नहीं आस्थाओं का है। स्वास्थ्य की गिरावट, मनोरोगों की वृद्धि, अपराधी वृत्ति तथा उद्दण्डता सारे वातावरण में संव्याप्त हैं और ये ही अदृश्य जगत में उस परिस्थिति को विनिर्मित कर रही है जिसके रहते धरती महाविनाश युद्ध की विभिषिकाओं के बिल्कुल समीप आ खड़ी हुयी है।
ओउम् शान्ति शान्ति!