Friday, April 30, 2021
Wednesday, April 28, 2021
महत्त्वूर्ण ज्ञान
हमारे जीवन में सबसे महत्त्वूर्ण ज्ञान क्या है, जिसे अपनाना अनिवार्य है?
एक दिन रामकृष्ण परमहंस किसी संत के साथ बैठे हुए थे। ठंड के दिन थे। शाम हो गई थी। तब संत ने ठंड से बचने के लिए कुछ लकड़ियां एकट्ठा कीं और धूनी जला दी। दोनों संत धर्म और अध्यात्म पर चर्चा कर रहे थे। इनसे कुछ दूर एक गरीब व्यक्ति भी बैठा हुआ। उसे भी ठंड लगी तो उसने भी कुछ लकड़ियां एकट्ठा कर लीं। अब लकड़ी जलाने के लिए उसे आग की जरूरत थी। वह तुरंत ही दोनों संतों के पास पहुंचा और धूनी से जलती हुई लकड़ी का एक टुकड़ा उठा लिया।
एक व्यक्ति ने संत द्वारा जलाई गई धूनी को छू लिया तो संत गुस्सा हो गए। वे उसे मारने लगे। संत ने कहा कि तू पूजा-पाठ नहीं करता है, भगवान का ध्यान नहीं करता, तेरी हिम्मत कैसे हुई, तूने मेरे द्वारा जलाई गई धूनी को छू लिया। रामकृष्ण परमहंस ये सब देखकर मुस्कुराने लगे। जब संत ने परमहंसजी को प्रसन्न देखा तो उन्हें और गुस्सा आ गया। उन्होंने परमहंसजी से कहा, ‘आप इतना प्रसन्न क्यों हैं? ये व्यक्ति अपवित्र है, इसने गंदे हाथों से मेरे द्वारा जलाई गई अग्नि को छू लिया है तो क्या मुझे गुस्सा नहीं होना चाहिए?’
परमहंसजी ने कहा, ‘मुझे नहीं मालूम था कि कोई चीज छूने से अपवित्र हो जाती है। अभी आप ही कह रहे थे कि ये सभी इंसानों में परमात्मा का वास है। और थोड़ी ही देर बाद आप ये बात खुद ही भूल गए।’ उन्होंने आगे कहा, ‘दरअसल इसमें आपकी गलती नहीं है। आपका शत्रु आपके अंदर ही है, वह है अहंकार। घमंड की वजह से हमारा सारा ज्ञान व्यर्थ हो जाता है। इस बुराई पर काबू पाना बहुत मुश्किल है।’
*शिक्षा:-*
जो लोग घमंड करते हैं, उनके दूसरे सभी गुणों का महत्व खत्म हो जाता है। इस बुराई की वजह से सब कुछ बर्बाद हो सकता है। इसीलिए अहंकार से बचना चाहिए। सभी व्यक्तियो को उचित सम्मान दे
*सदैव प्रसन्न रहिये।*
*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*
With thanks by
Kautilya Tripathi (MHRD)
कोरोना से जंग में काढ़ा पीना अत्यधिक फायदेमंद
*🦠कोरोना से ☂️😷बचने में 🤝🏻मदद करता है- 🍃पीपल के ✌🏻दो 🍃पत्तों का सेवन...*
*🚩भारतीय संस्कृति इतनी महान है कि इसका वर्णन करना किसी के बस की बात नहीं है और अगर आज हम उसका पालन करते तो कोरोना जैसी महामारी से आसानी से बच जाते। पहले हम पानी नहीं बेचते थे तब कोई बोलता कि पानी भी बिकेगा तब मजाक समझते थे; आज ऑक्सीजन भी बिकने लगा जबकि यह कुदरत ने हमें मुफ्त दिया है लेकिन आज हम इनका इतना दुरुपयोग कर रहे हैं कि पानी व ऑक्सीजन की कमी पड़ रही है। पहले के जमाने में पीपल, तुलसी, बरगद, नीम व बेल आदि के इतने पेड़ होते थे कि भरपूर ऑक्सीजन रहता था व उसके शुद्ध हवा से हम स्वस्थ रहते थे, क्योंकि भोजन तो हम दिन में 1-2 किलो ग्रहण करते हैं पर हवा हम 13 किलो ग्रहण करते हैं; तो जितनी शुद्ध हवा होती है उतना ही व्यक्ति स्वस्थ रहता है। आज फिर से समय आ गया है कि पीपल, तुलसी, नीम आदि के पेड़ चारों तरफ लगाये जायें।*
*🚩पीपल के पत्तों की महत्ता...*
*🚩कोरोना की वर्तमान स्थिति में आयुर्वेद से जुड़े सलाहकार रोगियों को शरीर में पर्याप्त ऑक्सीजन प्राप्त करने के लिए नए सुझावों का उपयोग करने के लिए कह रहे हैं। पूरे देश में कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं। फिर लोग घर पर रहते हैं और कोरोना से बचने के लिए घरेलू नुस्खों का उपयोग करते हैं। अगर आप भी इन टिप्स का इस्तेमाल करेंगे तो आपकी सेहत बेहतर रहेगी। आयुर्वेद के अनुसार हर दिन दो पीपल के पत्तों का सेवन करने से शरीर का ऑक्सीजन स्तर बढ़ेगा।*
*🚩पीपल के पत्तों में नमी, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, फाइबर, कैल्शियम, आर्सेनिक, तांबा और मैग्नीशियम जैसे तत्व होते हैं। यह आपके स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। यदि आप फेफड़ों में सूजन और तनाव महसूस करते हैं, सांस लेने में कठिनाई, सीने में दर्द के साथ खांसी है तो प्रतिदिन पीपल पत्ती का सेवन करने से इन सभी में आपको आराम मिलेगा।*
*🚩पीपल के पत्तों से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।*
*यदि आपकी रोगप्रतिकारक शक्ति कोरोना महामारी की अवधि के दौरान अच्छी है, तो यह आपको कोरोना के खिलाफ सुरक्षा प्राप्त करने में मदद करेगा। गिलोय को पीपल के पत्तों के साथ मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करना चाहिए। इससे शरीर में रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ती है।*
*🚩बहुत अधिक शराब पीने से आपके लीवर पर असर पड़ सकता है। ऐसे समय में लीवर को स्वस्थ रखने के लिए पीपल का सेवन करना आवश्यक है ताकि लीवर को नुकसान न पहुंच सके। डॉक्टर लीवर की बीमारी वाले लोगों को हर दिन पीपल के पत्ते लेने की सलाह देते हैं।*
*🚩अगर आपको कफ की समस्या है तो टेंशन लेने की आवश्यकता नहीं है, पीपल की पत्तियां आपके लिए अच्छा विकल्प हैं; जिससे कि आपको जल्द ही कफ से राहत मिलेगी। पीपल के पत्तों का सूप बनाकर पीने से कफ नष्ट होता है।*
*🚩पीपल का वृक्ष दमानाशक, हृदयपोषक, ऋण-आयनों का खजाना, रोगनाशक, आह्लाद व मानसिक प्रसन्नता का खजाना तथा रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ानेवाला है। बुद्धू बालकों तथा हताश-निराश लोगों को भी पीपल के स्पर्श एवं उसकी छाया में बैठने से अमिट स्वास्थ्य-लाभ व पुण्य-लाभ होता है। पीपल की जितनी महिमा गाएं, उतनी कम है।*
*🚩मनुष्य सोचता था कि हमारा ही अधिकार है- पृथ्वी पर और जल तथा वायु को प्रदूषित कर दिया, इसका परिणाम खुद मनुष्य ही भुगत रहा है। कई शहरों में हवा जहरीली हो गई, ऑक्सीजन की कमी पड़ रही है।*
*🚩सबसे पहले हमें स्वदेशी पारम्परिक जड़ी बूटियों की पहचान करनी होगी और तुलसी, पीपल, नीम, गिलोय आदि कुदरती वृक्षों और पौधों को लगाना होगा और उसकी औषधियां लगानी होगी जिससे हमारे देश में आ रही अरबों-खरबों रुपयों की दवाई आनी बंद होगी और हमारी दवाइयां विदेशों में निर्यात होंगी। इससे आमदनी बढ़ेगी जिससे देश आत्मनिर्भर बनेगा और कोरोना जैसी महामारी से बचा जा सकेगा।*
With Thanks by Kautilya Tripathi
Saturday, April 24, 2021
क्या हम भविष्य में होने वाले हैंड सेनीटाइजर के दुष्परिणामों से वाकिफ हैं?
मेरी ज्यादातर आदत रही , पर्स में सेनिटाइजर रखने की। अब कोरोना काल में तो, ये सब जरूरी ही हो गया है।
अभी कुछ दिन पहले, मै किट्टी में गई थी, मैने बैठते ही सेनिटिजर निकाल कर हाथ में लगाया, क्योंकि हम लोगों के होटल में, लिफ्ट वगैरा में हाथ,या इधर उधर हाथ लगते ही रहते है। पास बैठी फ्रेंड को भी सेनिटिजर ऑफर किया, उसने मना कर दिया की, कि sanitizer लगाने से उसके हाथ बहुत रूखे हो गए।
मैं सोचने लगी, कि सेनिटाइजर से भी हाथ खराब हो सकते हैं क्या?
सैनिटाइजर के बारे में इतनी जानकारी नहीं थी कि इसके अत्यधिक इस्तेमाल से काफी नुकसान होता है। फिर जुट गई, इसकी एक्स्ट्रा जानकारी जानने के लिए, लीजिए सेनिटाइजर की पूर्ण व्याख्या😊
हैंड सेनिटाइजर में मिले, कई तरह के केमिकल्स:
1. हैंड सेनिटाइजर में ट्रायक्लोसान नाम का एक कैमिकल होता है। जो सेनिटाइजर के अत्यधिक उपयोग से हाथों की त्वचा को नुकसान पहुंचाता है। ये रक्त के साथ मिलकर मांसपेशियों के आर्डिनेशन को नुकसान पहुंचाता है।
2.सेनिटाइजर में मिला बेजालकोनियम क्लोराइड हाथों से बैक्टीरिया तो निकाल देता है, पर उसमे खुजली और जलन पैदा कर देता है।
3.बहुत से सेनिटाइजर, खुशबू वाले होते है, जिसको लगाने से, और उसकी भीनी भीनी खुशबू से मन प्रसन्न तो हो जाता है, पर वह हमारी shin के लिए कितने नुकसानदेह है, पता नही चलता।
ऐसे सेनिटाइजाओं में खुशबू के लिए फैथलेट्स नामक रसायन का इस्तेमाल होता है, इसकी अत्यधिक मात्रा, पाचन तंत्र पर बुरा असर छोड़ती है, ये हमारे लीवर, फेफड़े और प्रजनन तंत्र को नुकसान पहुंचाते है।
4.सेनिटाइजर के ज्यादा, इस्तेमाल से त्वचा ड्राई हो जाती है।
बच्चों के लिए भी सेफ नहीं:
1.ये अल्कोहल युक्त, होने के कारण बच्चों की सेहत के लिए भी सेफ नहीं है। अगर कभी बच्चा इसे पी ले, तो यह नुकसान देह है।
2.रिसर्च के अनुसार, यह बच्चों के इम्युनिटी सिस्टम पर भी बुरा असर छोड़ता है।
3. इससे बच्चे चिड़चिड़ी और बीमार हो जाते हैं।
4. छोटे बच्चों की बार-बार मुंह में हाथ डालने की आदत होती है। जिससे उनके हाथ में लगा, सेनीटाइजर उनके पेट में जाता है। जो उनकी पाचन शक्ति को प्रभावित करता है। जिससे उनके पेट में दर्द और उल्टी की समस्या हो सकती है। इस कारण डॉक्टर्स बच्चों के लिए, अल्कोहल फ्री सेनीटाइजर इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं।
सैनिटाइजर एलर्जी होने का भी कारण बन सकता है:
बच्चों के लिए हर्बल और ऑर्गेनिक सेनीटाइजर का उपयोग करना बेहतर होता है। नॉर्मल सैनिटाइजर में पाए जाने वाले केमिकल्स बच्चों में एलर्जी की समस्या पैदा कर सकते हैं। सेनिटाइजर की सुगंध, बच्चों के लिए नुकसानदेह भी होती है। इसलिए बच्चों के लिए, सुगंध रहित सेनिटाइजर का ही प्रयोग करें।
सैनिटाइजर की वजह से आंखों में प्रॉब्लम:
डॉक्टर्स के अनुसार, सेनिटाइजर में 60% 70% अल्कोहल की मात्रा होने से आंखों पर बुरा असर पड़ता है। इससे आंखों में जलन, चुभन, लाली और खुजली की समस्या होने लगती है। अल्कोहल की अधिक मात्रा कंजेटाईवा और कार्निया के लिए केमिकल ईरीटेंट का काम करती है।
सेनिटाइजर की बजाय, साबुन से हाथ धोना बेहतर होता है:
बहुत से लोग, हाथ धोने की बजाय, सेनिटाइजर लगाकर ही खाना खा लेते हैं, लेकिन यह गलत है ऐसा करने से सैनिटाइजर में पाया जाने वाला आइसोप्रोपिल अल्कोहल उनके हाथों के माध्यम से पेट में चला जाता है, जिससे पाचन तंत्र प्रभावित होता है यह फूड प्वाइजनिंग और पेट से जुड़ी बीमारियां होने का कारण भी बन सकता है।
अगर आप घर और ऑफिस में हैं, तो साबुन से ही हाथ धोना बेहतर होता है।
सेनिटाइजर में बहुत से हानिकारक केमिकल्स पाए जाते हैं, अगर आपने भोजन से पहले सैनिटाइजर का प्रयोग किया है तो भी आप साबुन से हाथ जरूर धोएं।
अत्यधिक जरूरत के समय सैनिटाइजर का इस्तेमाल करें:
अगर आप बच्चों के साथ बाहर घूमने, पिकनिक या मॉल में गए हैं, तभी सेनिटाइजर का इस्तेमाल करें या फिर हॉस्पिटल या किसी बीमार व्यक्ति को देखने गए हैं तब सेनिटाइजर का इस्तेमाल करें, क्योंकि बच्चे जल्दी ही बीमारियों के संपर्क में आ जाते हैं।
अधिकतर लोग समझते हैं कि सेनिटाइजर लगा लिया, हम सेफ हो गए। पर ध्यान से देखा जाए, तो सेनिटाइजर का अत्यधिक उपयोग नुकसानदेह है, जो शरीर को अंदरूनी क्षति पहुंचाता है।
इसलिए जरूरत के अनुसार ही सेनिटाइजर का उपयोग करना चाहिए। वरना पुराने जमाने की तरह, ज्यादा से ज्यादा साबुन इस्तेमाल करने की आदत डालें।
चित्र: गुगल से
Thursday, April 8, 2021
जीवन की यात्रा को बेहतर बनाने का आसान तरीका क्या है?
जीवन की यात्रा को बेहतर बनाने का एकमात्र तरीका है, ध्यान की ऊर्जा को जगाकर अपने चैतन्य (consciousness) को मन के परे आयाम में प्रतिष्ठित कर जीवन-व्यवहार करना।
ध्यान (Meditation) के लिए कुछ समय नियमित रूप से निकालें और अपनी शून्यता को महसूस करें। शेष दिन भी आप ध्यान-पूर्वक (meditatively) जीते हुए व्यतीत करें।
ध्यान-पूर्वक (meditatively) जीने के सूत्र इसप्रकार हैं :
(1) अतीत की यादों और भविष्य की चिंताओं के बिना वर्तमान क्षण को समर्पित भाव से जीना।
(2) चेतना को शरीर और मन से परे स्थित रखना। अर्थात् जाति, पंथ, लिंग, आयु, धर्म, रंग, नस्ल और राष्ट्रीयता से परे खुद को आत्मा के रूप में चिंतन करना
(3) लोगों से बातचीत करते समय प्रतिक्रिया करने से बचना।
(4) अपने द्वारा की गई भलाई को भूल जाना और दूसरों के द्वारा किए गए दुर्व्यवहार के लिए उन्हें क्षमा करना।
(5) इच्छाहीनता का अभ्यास करना और जीवन द्वारा जो कुछ भी पेश किया जाता है उसे प्रसन्नता से स्वीकार करना। यह अहम् पर काबू पाने के लिए प्रमुख साधना है। क्योंकि अहम् इच्छा - पूर्ति द्वारा परिपुष्ट होता है।
(6) चीजों और लोगों के प्रति अनासक्ति का भाव रखना।
(7) किसी भी विश्वास-व्यवस्था से बाहर आना। अर्थात् किसी भी पंथ, गुरु, विचारधारा, संगठन आदि का एक अंधभक्त (फॉलॉअर) नहीं बनना।
(8) अपने दिमाग को अपने दिल से संतुलित करें, यानी तार्किक रूप से और साथ ही प्यार से सोचें।
(9) हर घटना का सकारात्मक पहलू ही देखना।
(10) अपने वचनों और कर्मों द्वारा दूसरों को उत्तेजित नहीं करना। साथ ही दूसरों के दुर्व्यवहार से उत्तेजित नहीं होना। *****
इनका पालन करने से आप अपने सच्चे आत्म-स्वरूप (True Self) को उपलब्ध हो जाएंगे। जो आप को कर्ता-भाव से मुक्त कर देगा। फ़िर आप जो करेंगे वही अकर्म होगा।
*****
जीवन में उपरोक्त आचार संहिता स्वाभाविक हो जाती है जब आपको अपने वास्तविक "स्वत्व" का एहसास होता है।*****
With Thanks by--- Vijay Prakash
Friday, April 2, 2021
क्या आप कुछ अनूठे तथ्य साझा कर सकते हैं
क्या आप कुछ ऐसे अनूठे तथ्य साझा कर सकते हैं जो असीमित अपवोट के हकदार हैं?
जानिए 125 साल की उम्र खुद को कैसे सेहतमंद बनाए हुए हैं काशी के स्वामी शिवानंद
वाराणसी के स्वामी शिवानंद की उम्र जितना चौंकाती है, उससे ज्यादा यह कि 125 वर्ष की उम्र में भी वह एकदम चुस्त-दुरुस्त हैं। गोरखपुर के आरोग्य मंदिर में शिष्यों के साथ दस दिन के प्रवास पर आए स्वामी शिवानंद की शतकपार इस सेहत का राज है- 'नो ऑयल, ओनली ब्वॉएल'। शिष्यों ने उनका नाम गिनीज बुक ऑफ दि वर्ल्ड रिकॉर्ड में सबसे उम्रदराज व्यक्ति के रूप में नाम दर्ज कराने के लिए आवेदन भी किया है।
दुर्गापुरी, वाराणसी के रहने वाले स्वामी शिवानंद बाल ब्रह्मचारी हैं। स्कूली शिक्षा नहीं ली है मगर स्वाध्याय से योग, अध्यात्म के गुह्य राज से वाकिफ हैं।
अंग्रेजी, हिंदी, बांग्ला भाषा बखूबी बोलते हैं। प्राकृतिक चिकित्सा से शिष्यों को परिचित कराने के लिए वह गोरखपुर के आरोग्य मंदिर में आए हुए हैं। पासपोर्ट व आधार कार्ड पर अंकित जन्मतिथि 8 अगस्त 1896 के अनुसार उनकी आयु 125 वर्ष है। इस उम्र में भी वह एकदम स्वस्थ हैं। स्वामी शिवानंद इसका राज इंद्रियों पर नियंत्रण, संतुलित दिनचर्या, सादा भोजन, योग व व्यायाम बताते हैं। स्वामी शिवानंद के दो मूल मंत्र हैं- 'मिजाज कूल लाइफ ब्यूटीफुल' और 'नो ऑयल ओनली ब्वॉएल'।
रोज अलसुबह 3 बजे उठ जाते हैं। नित्य क्रिया, जाप व ध्यान, व्यायाम के बाद सुबह नाश्ते में लाई-चूरा, दोपहर व रात के भोजन में दाल-रोटी व उबली हुई सब्जी लेते हैं। रात में 8 बजे सो जाते हैं। नंगे पैर चलते हैं। सामाजिक कार्यों में भी रुचि रखते हैं। प्रतिवर्ष पुरी में लगभग 500 कुष्ठ रोगियों को अन्न, तेल-मसाले व दैनिक उपयोग की सामग्री वितरित करते हैं।
वर्तमान बांग्लादेश में हुआ था जन्म
स्वामी शिवानंद का जन्म सिलहट्ट जिला (वर्तमान में बांग्लादेश का हबीबगंज जिला) स्थित हरिपुर गांव में भगवती देवी एवं श्रीनाथ ठाकुर के घर हुआ था। घोर आर्थिक तंगी के कारण माता-पिता ने चार साल की उम्र में उन्हें बाबा ओंकारानंद गोस्वामी को दान कर दिया था। जब छह वर्ष के थे, तभी उनके माता-पिता और बड़ी बहन का निधन हो गया था। बाबा ओंकारानंद के सानिध्य में ही उन्होंने वैदिक ज्ञान हासिल किया और 16 वर्ष की उम्र में पश्चिम बंगाल आ गए।
50 से ज्यादा देशों का कर चुके हैं भ्रमण
स्वामी शिवानंद अपने शिष्यों के बुलावे पर इंग्लैंड, ग्रीस, फ्रांस, स्पेन, आस्ट्रिया, इटली, हंगरी, रूस, पोलैंड, आयरलैंड, नीदरलैंड, स्विटजरलैंड, जर्मनी, बुल्गेरिया, यूके आदि 50 से ज्यादा देशों का भ्रमण कर चुके हैं।
स्वामी शिवानंद 125 वर्ष की उम्र में भी एकदम चुस्त-दुरुस्त हैं। सादा-संतुलित जीवन उनकी लंबी उम्र और निरोगी काया का राज है। वह आरोग्य मन्दिर में 10 दिवसीय प्रवास पर अपने शिष्यों को योग साधना सिखाने आए हैं।