Friday, July 24, 2015

विश्वामित्र - प्रारम्भ प्रयोजन

वक्त है आया ऐतिहासिक वीरों जैसे बलिदान  का ,
कार्यक्षेत्र मैं ध्यान रहा है जिन्हें गुरु के मान का|
भक्तिभाव से ओत प्रोत हो कुछ तो ऐसा कर जाएँ,
सच्चे शिष्य बनकर के हम विजय पताका लहराएँ||

        यातनाओं से सच्ची भावनाएँ कब किसकी मिटी हैं?
                कठिन दुर्गम श्रृंग से क्या प्रबल सरिताएँ रुकी हैं?
                क्या कभी रुका है पतंगा अग्नि की जलन से?
                च्युत किया कब वारों ने वीर को कर्तव्य पथ से?
                लोह दुर्गम द्वार से कब शक्तियाँ रुक सकी हैं?
                संघर्षों से ही सदा संकल्प शक्ति दृढ़ हुई है।

तपस्वी व साहसी इन्सान कभी तूफानों से घबराया नहीं करते।
वो क्या बंदें मुसीबत में जो मुस्कराया नहीं करते।
गिराए जाएँ गिरि से या गिरी ही आ पड़े उन पर।
भयंकर मौत भी आए तो भय खाया नहीं करते।
सदाकत के लहू से सींच कर पाले हैं जो गूंचे।
खिंजा भी आए तो वो फूल कुम्हलाया नहीं करते।
भरोसा है जिन्हें अपने सिदक पर और ईश्वर पर।
तमन्नााओं में वो दामन को उलझाया नहीं करते।
जो  अक्सर  राज  आने  का  समझ  जाते  हैं।
वो जग में एक दफा आकर भी फिर आया नहीं करते।


            कुछ वर्षों पूर्व की बात है मैं व मेरा एक विद्यार्थी कुरुक्षेत्र में प्रत्येक शनिवार को ब्रह्मसरोवर पर रहने वाले साधु-बाबाओं की सेवा करते थे। जो रोगी होते थे उनको दवाईयाॅं वितरित की जाती थी। एक दिन हमने देखा कि एक दुबले पतले साधु चुपचाप लेटे हुए थे। हमने उनसे पूछा कि क्या वो रोगी हैंउन्हें दवा चाहिए। इस पर उन्होंने उत्तर दिया नहीं वो रोगी नहीं है अपितु अमरण अनशन पर 10 दिन से बिना कुछ खाए पिए बैठे हैं। उन्होंने गायों की गोचर भूमि छुड़ाने के लिए अनशन कर रखा था परन्तु उनका कोई संगी साथी न था अकेले थे। हमारा आश्चर्य बढ़ा व उनसे कहा कि ऐसे आप अकेले कैसे अनशन करेंगे, कुछ तो साथ चाहिए। इस पर उन्होंने निराशा भरा उत्तर दिया कि अनेक संस्थाओं में घूमा सबको गायों के दर्द के बारे में बताया परन्तु उनका साथ देने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ इस कारण अकेले अनशन पर बैठ गए हैं। पूछने पर उन्होंने बताया कि वो दण्डी स्वामी हैं व अपना कत्र्तव्य पूरा कर रहे हैं। इस पर हमने कहा कि अकेले कब तक लड़ोगे ऐसे तो भूखे मर जाओगे और सफाई कर्मचारी आपकी लाश को गडढा खोद कर दफना देंगे। क्या यह आत्म हत्या नहीं होगी? इस पर उनका उत्तर था-
            दुनिया डरे मरण से, मेरे मन आनन्द।
            कब मरिए कब मिलिए, पूर्ण परमानन्द।।
            उन्होंने कहा कि गायों की दुर्दशा वो बर्दाश्त नहीं कर सकते इसके लिए यदि उन्हें अपने प्राणों का बलिदान भी करना पड़े तो वो सहर्ष तैयार हैं। उनकी बात सुनकर हमारी आॅंखों से आॅंसू लुढ़क निकले व हमने उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिया। आज भी इस राष्ट्र में ऐसे साधु-संन्यासी मौजूद हैं जो राष्ट्र की संस्कृति, गौ माता की रक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान करने को तैयार हैं। दण्डी स्वामी पढ़े लिखे नहीं थे परन्तु उनका जीवन अनमोल है जो इस राष्ट्र की संस्कृति से इतना प्रेम करते हैं। हमने जिला प्रशासन की मदद से उनको आश्वासन दिलाया व बड़ी कठिनाई से एक माह उपरान्त उनका अनशन तुड़वाया।
            स्वामी विवेकानन्द जी 100 युवकों के द्वारा राष्ट्र निर्माण का कार्य कराना चाहते थे। परन्तु आज जनसंख्या बहुत बढ़ चुकी है व स्थिति पूर्व से भी अधिक भयावह है अतः आज युग निर्माण के लिए ऐसे 24,000 समर्थ व्यक्तित्व चाहिएॅं जो इस राष्ट्र की संस्कृति को अपने प्राणों के समान प्यार करते हों। यदि ऐसे महान व्यक्तित्वों को संगठित किया जा सके तो युग निर्माण की दिशा में प्रगति सम्भव है। ऐसी बात नहीं है कि भारत में महान व्यक्तित्वों की कमी है, खोजने पर लाखों ऐसे व्यक्तित्व मिलना सम्भव है परन्तु कठिनाई यह है कि ये चेहरे विभिन्न मिशनों में बिखरे पड़े हैं व संगठित नहीं हो पा रहे हैं। कोई ऐसे समर्थ तन्त्र नहीं बन पाया जो इन महानुभावों को एक मंच, एक मशाल के नीचे ला सके। परन्तु देवसत्ताओं की यह इच्छा अब पूरी होने जा रही है।
            कहते हैं कि भारत में 33 करोड़ देवी-देवता निवास करते थे परन्तु आज चारों ओर भौतिकवाद अर्थात् पैसा, पद, प्रतिष्ठा, बड़ी गाड़ी, आलीशान कोठी का परचम लहरा रहा है। मेरा भारत इतना संस्कृति विहीन इतना कान्तिहीन शायद ही कभी रहा हो जितना आज है। अनेक समस्याएॅं अपनी संस्कृति को बचाने के लिए जी तोड़ प्रयास कर रही हैं। यदि भोगवाद की आॅंधी के सामने ये संस्थाएॅं दीवार बनकर न खड़ी होती तो आज हमारा बुरी तरह पाश्चात्यकरण हो गया होता। न परिवार परम्परा रहती न संस्कार परम्परा बचती। वासनाओं के दलदल व धन के मद में पूरा समाज अस्त-व्यस्त हो गया होता। ये संस्थाएॅं वास्तव में साधुवाद की पात्र हैं जो अपना-अपना दीपक जलाएॅं भोगवाद में डूबे इस अन्धे समाज को कुछ उजाला दिखाने का प्रयास कर रही हैं।
            अपने 24 वर्षों के अनुभव के दौरान मैं अनेक संस्थाओं के सम्पर्क में आया व मैंने उनसे ज्ञान, ध्यान, साधना व स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया । भारत में अनेकों छोटी-बड़ी संस्थाएॅं काम कर रही हैं। पहले हम कुछ बड़ी संस्थाओं व उनके अनुयायियों पर निगाह डालते हैं जिनका मोटा - मोटा अनुमान नीचे दिया जा रहा है।
गायत्री परिवार 3 करोड़
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 3 करोड़
ब्रह्मकुमारी २ करोड़
iskcon 2 करोड़
धन धन सतगुरु 2 करोड़
कुल 12 करोड़
इसके अलावा ऐसे अनेक मिशन हैं जिनके अनुयायिओं की संख्या 1 करोड़ के आस पास हैं ऐसे कुछ मिशन नीचे दिए जा रहें हैं |
1. श्री श्री रवि शंकर
2. दिव्य ज्योति जागृति संस्थान
3. सत्य साईं सेवा मिशन
4. सत्य धर्म बोध मिशन
5 श्री राम चन्द्र मिशन
6. दी प्रेम रावत मिशन
7. अमृतानंद मयी माँ मिशन
8. दिवाइन लाइफ सोसाईटी
9. राधा स्वामी
10. आर्य समाज
11. राम कृष्ण मिशन
12. शिव सेना
13. भारत स्वाभिमान मंच
14. स्वामी नारायण
15. विश्व हिन्दू परिषद्
           इस प्रकार इन सभी मिशन से जुड़े व्यक्तियों की संख्या 24 करोड़ से अधिक है| यदि ये मिशन अपनी कमियों को दूर कर अपना अपना सुधर कर लें उसी दिन धरती पर स्वर्ग का अवतरण हो जायेगा|मिशनों से अनुरोध यह है कि यदि वो जितनी शक्ति प्रचार प्रसार में लगते है यदि उसकी चौथाई शक्ति अपनी कमियों को दूर करने मे लगाएँ तो बहुत काम हो जाएगा 

            जहाॅं तक गायत्री परिवार का सम्बन्ध है यह मिशन देव सत्ताओं के द्वारा पोषित व श्रेष्ठ आध्यात्मिक व्यक्तियों का मिशन हैं  इस मिशन ने सर्वप्रथम अध्यात्म एवं विज्ञान के समन्वय को पुरे विश्र्व के प्रबुधु वर्ग का ध्यान भारतीय संस्कृति की विशेषताओं की ओर आकर्षित किया हैं इस दिशा में देवसंस्कृति विश्वविद्यालय का योगदान सराहनीय है जहाँ शिक्षा,संस्कार व् संस्कृति की दिव्य त्रिवेणी बहती है अब अन्य अनेक संस्थाएँ भी इस दिशा में अच्छा प्रयास कर रही हैँ।  युग की माँग के अनुसार संस्थाओं के देवस्ताओं के दायित्व बदलते रहते है सन  2011शताब्दी समारोह पर देवस्ताओं ने एक नया दायित्व इस मिशन को दिया है वह है 24000समर्थ लोकसेवियो का राष्ट्र को समर्पण इसकी भूमिका तो सन 1995 मेंअर्ध महापूर्णहुति से बननी प्र्रारंभ हो गयी थी परन्तु इस कार्य में विलम्ब होता चला गया जब भी कोई महान कार्य प्र्रारंभ होता है स्वार्थी व महत्वाकाँक्षी व्यक्ति मिशन में घुसना प्र्रारंभ कर देते है व् उनमें टकराव आना स्वाभाविकहै  इससे मिशनों में अनेक समस्याएँ जन्म लेने लगती है इसी प्रकार गायत्री परिवार में भी समय के साथ -साथ बहुत सी खरपतवार पनपी है जिसकी सफाई आवश्यक है अन्यथा हम पुस्तकें बेचते,हवन करते,भजन कीर्तन गाते रह जाएँगे ,युग निर्माण का मोर्चा हमारे हाथ से खिसक सकता है हमें दूसरे मिशनों से बहुत कुछ सीखना है
उदाहरण के लिए सन् 2014 हमने साधना वर्ष घोषित किया। जिसमें लाखों लोगों ने भाग लिया। अब यदि इन लोगों को साधना में जो कठिनाईयाॅं उत्पन्न हुई होंगी क्या उनके समाधान की कोई उचित व्यवस्था मिशन ने बनाई। साधना वर्ष घोषित करने से पूर्व प्रत्येक राज्य के उच्च स्तरीय साधकों की सूचि साधना करने वालों के लिए जारी करनी चाहिए थी जिससे जो साधना के प्रति गम्भीर थे उनकी कठिनाईयों का अविलम्ब हल निकाला जा सके। साधना की सफलता के लिए हमें रामचन्द्र मिशन से सीख लेनी चाहिए उन्होनें विभिन्न जिलों में अपने बड़े अच्छे प्रशिक्षक केंद्र से तैयार करके भेज रखे है जो विभिन्न लोगो की साधना संबंधी समस्याओं में बहुत सहायक सिद्ध होते हैं व् निःशुल्क लोगो का साधनामय उपचार करते हैं जबकि हमारे परिजनों को इधर उधर भटकना पड़ता हैं  यदि हम ढंग से नहीं चलेंगे तो कैसे हम किसी भी अभियान में सफल नही  हो पाएॅंगे। युग निर्माण एक ऐसा संघर्ष है जिसमें यदि एक भी पक्ष कमजोर पड़ा तो अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाएगी। 
                        यदि हम 24000 समर्थ लोकसेवी तैयार करने के लिए विशेष अभियान नही चलाते तो युग निर्माण का मात्र लोगो को बहलावे ही देते रहेंगे जैसे एक माँ अपनी बेटी को दे रही थी घटना इस प्रकार है की एक बार एक परिवार अपनी बेटी को कॉलज हॉस्टल में छोड़ने आया परिवार में एक छोटी बेटी थी जो बड़ी बहन से बहुत लगाव करती थी जब वो वापिस ट्रेन में जाने लगे तो छोटी बेटी बड़ी बहन को याद करके रोने लगी माँ ने उसको टॉर्च  पकड़ा दी व कहा  कि बहन यही कही छुपी होगी ढूढ़ ले तीन चार घंटे का सफर इस प्रकार कट गया इसी प्रकार यदि हमने कुछ ठोस अभियान न चलाया तो हम अपना समय इस भुलावे में यो ही काटते रहेंगे कि हम युग निर्माण कर रहे हैं 
   मिशनों की कमियों को उजागर करना इस पवित्र पुस्तक का उद्देश्य नहीं है मात्र स्थान-स्थान पर संकेत ही किए जा रहे हैं। जिससे मिशनों के पदाधिकारी जागरूकता पूर्वक उन संकेतों को समझ कर अपनी कमियों को दूर कर सकें। अन्यथा धीरे-धीरे मिशन पैर पूजने पुजवाने, जयकारा बोलने, चन्दा, गेहूॅं-चावल इकट्ठा कर जीवन यापन करने, आम जनता की मनोकामना पूर्ति तक ही सीमित रह जाते हैं उनसे कोई महत्त्वपूर्ण कार्य नहीं सध पाता न ही कोई बड़ी योजना को क्रियान्वित कर पाते हैं।
            अंग्रेजों की चापलूसी करते-करते उनकी जयकार लगाते-लगाते यह संस्कार हमारे भारतवासियोें के रक्त में आ गया है। कोई भी सेठ जी आएॅं, कोई भी राजनेता धर्मनेता आएॅं आम जनता का काम है। उनकी जी हजूरी करना। गलत को गलत व सही को सही कहने वाले लोग एक मंच के नीचे एकत्रित होने चाहिएॅं। आज पुनः महात्मा गाॅंधी के सत्याग्रह आन्दोलन की आवश्यकता पड़ रही है क्योंकि राजतन्त्र, धर्मतन्त्र, अर्थतन्त्र व प्रबुद्ध वर्ग मिलकर अपनी रोटियाॅं सेक रहा है जबकि इन तन्त्रों को राष्ट्र हित अथव जनहित को सर्वोपरि महत्व देना चाहिए। यही कारण है कि विभिन्न मिशन राष्ट्रीय मुद्दों पर एक होकर जोर नहीं लगा पा रहे हैं। ऐसे अनेक राक्षस हमको निगलने के लिए तैयार बैठे हैं परन्तु हम सब भारतवासी मिलकर एकजुट होकर उनको परास्त करने का प्रयास नहीं कर रहे हैं क्योंकि हम सब गुरुओं के नाम पर, मिशनों-संस्थाओं के नाम पर, क्षेत्रों, जातियों, पार्टियों के नाम पर बट चुके हैं। इनके कुछ समस्याओं का जिक्र नीचे दिया गया है।
1. जनसंख्या नियन्त्रणः यह एक ऐसा असुर है जो हमारे सारे संसाधनों को निगल जाता है। प्रदूषण, गंदगी, भीड़ व चारों ओर बेरोजगारी, चोरी-चकारी इसी असुर ने फेला रखी है। परन्तु हम सब कुछ जानते हुए भी चुप्पी साधे बैठे हैं। हमारा पौरुष, हमारा आत्मबल क्या इतना क्षीण हो चुका है।
2. अश्लीलता निवारणः यह एक ऐसा असुर है जिसने हमारी युवा पीढ़ी को मदहोश बना दिया है। उन्हें बस धन, गाड़ी, बंगला वैभव विलास ही प्रिय है। उनका रक्त आज राष्ट्र व धर्म संस्कृति की दयनीय स्थिति को देखकर कहाॅं उबलता है जैसे भगतसिंह, आजाद, सुभाष, खुदी राम बोस व सावरकर आदि का उबलता था। आज लड़कियों को भी अमीर व विलासी लड़कों से लगाव है। वो सावित्री कहाॅं जो सत्यवान जैसे आदर्शवादी को वरण कर हिन्दू नारियों के लिए मिसाल कायम कर पाए।
3. गौ संरक्षणः जब तक गौ का सम्मान नहीं होगा तब तक कैसे सात्विकता व स्वास्थ्य इस देश में आ पाएगा। परन्तु हम इस दिशा में कितने गम्भीर हैं यह हम सब जानते हैं।
4. कृषि: कृषि में रासायनिक खादों व विषैले कीटनाशकों का प्रयोग हमारी सारी भूमि का नाश किए दे रहा है। परन्तु इसको रोकने का कोई भी उच्च स्तरीय प्रयास हमारे समाज ने नहीं किया।
5. कचरा प्रबन्धनः जगह-जगह पाॅलिथीन के कूड़े के ढेर लोग एकत्र कर उनमें आग लगा देते हैं इससे खतरनाक विषैली गैसों की उत्पत्ति होती है परन्तु जन सामान्य को इसकी जानकारी नहीं है।
            ऐसा प्रतीत होता है कि हमारे स्वार्थ, महत्त्वाकाक्षाएॅं, वैभव-विलास ने हमारी आत्मा को इतना मलिन कर दिया है कि हमारे ऊपर मंडराते संकट हमें दिखाई नहीं दे रहे। प्रबुद्ध वर्ग को अपने बैंक बैंलेंस की फिक्र है कि कैसे यह बढ़ता जाए। धर्मतन्त्र को भीड़ से मतलब है कि कैसे उनकी संस्थाओं में भीड़ बढ़े व उनके प्रवचनों पर जोरदार तालियाॅं बड़ें कैसे ऊॅंचे-ऊॅंचे, बड़े-बड़े भव्य मन्दिर बनें, भीड़ जुटे और चारों ओर उनकी ख्याति फैले। राजतन्त्र वोट बैंक के मोह में कोई भी कठोर निर्णय लेने का साहस ही नहीं कर पा रहा है।

            ऐसी विषम परिस्थिति में इस राष्ट्र की जागरूक आत्माओं को, पुरोहितों को संगठित होना होगा, एक सत्याग्रही सेना का गठन करना होगा जो चार बड़े तन्त्रों, धर्मतन्त्र, राजतन्त्र, अर्थतन्त्र व जनतन्त्र को दिशा विहीन होने से रोकें।

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