कुछ दिन पहले की बात है कि मैं अपना मकान बनवा रहा था। मजदूर, मिस्त्री, लोग काम कर रहे थे । तभी थोडी बूदाँ बाँदी प्रारम्भ हुयी। सभी वर्षा से बचने
के लिए एक ओर खडे हो गए परन्तु मैंने देखा एक मोटा ताजा मजदूर वर्षा में भी काम कर
रहा था। मैंने उससे कहा भाई थोड़ा रोड के नीचे आ जाओं भीग जाओगे तो बीमार हो
जाओगे। वह बोला बाऊ जी अगर वर्षा तीन-चार घण्टा चली ओर मैने काम रोके रखा तो मैं
बिना काम किए मजदूरी नहीं ले सकँूगा। मैंने कहा ठेकेदार ने तो आपको काम पर लगा
दिया। अब उसे मजदूरी देनी पड़ेगी चाहे काम हो या वर्षा के कारण न हो। उसने कहा यदि
काम रूक तो ठेकेदार दुःखी मन से हमें पैसा देगा ओर में किसी के मन के दुःखी करके
पैसा नहीं लेता। क्योंकि दुःखीमन से दिया पैसा हमें नहीं फलेगा। यह बात मेरे भीतर
तक चीरती हुयी चली गयी। तभी दो मिस्त्री मेरे पास आए व कहने लगे कि बाऊ जी वर्षा
में पकोडे होते तो क्या आनन्द आता। मैं दुकान से पकोडे ले आया व एक-एक कर सबके
देने लगा । उस मोटे वाले मजदूर की जब बारी
आयी तो उसने लेने से मना कर दिया व कहा कि मैं किसी की कमाई का नहीं खाता क्या पता
कैसी कमाई है सेठ लोगों की कमाई खराब होती है। सभी मजदूर मिस्त्री पकोडे खाने लगे।
वर्षा बढ़ी तो वह अपने छोले से हनुमान चालीसा निकलकर पढ़ने लगा । एक छोटे से मजदूर
को इतना ज्ञान, इतना संयम यह देखकर मेरे आश्चर्य की सीमा न रही कि भारत की आत्मा अभी जिन्दा
है। जो आदर्श एक अनपढ़ मजदूर ने मुझे दिखाया वह आदर्श मैंने बड़े-बड़े
धर्मधिकारियों व प्रबुद्ध वर्ग में भी नहीं देखा। धन के देखकर अच्छे अच्छो की लार
टपकने लगती है।
मनुष्य के मूल्याँकन की कसौटी क्या है? बड़ा ही स्पष्ट समाज का रवैया है ‘धन’। जिसके पास पैसा है उसके आगे पीछे सब घूमते हैं। आश्रम के पदाधिकारी के यदि
या सूँघ आ जाए कि बड़े सेठ आए है तो उसकी पूरी सेवा पानी होगी मंच पर जमकर भी
होगी। कब तक हमारे मन में धन के प्रति लोभ बना रहेगा व हम अपने प्रिय कार्यकर्ताओं
को नजरअंदाज करते रहेंगे। जब तक मनुष्य के मूल्याँकन की कसौटी को नहीं बदला जाएगा।
तब तक युग निर्माण कैसे सम्भव हो पाएगा? परम पूज्य गुरुदेव एक ऐसे आदर्श के
जिन्होंने बिड़ला जी के लौटा दिया ताकि मिशन धनवालों के हाथ की कटपुतली न बन जाए।
धनवान, स्वार्थी व महत्वाकाँक्षी लोग मिशन पर यदि हावी होते चले जाँएगे कि ‘कैसे होगा युग निर्माण’।
दूसरा प्रश्न है कि क्या हम अपने कर्तव्य के प्रति जागरूक है। हम जो गायत्री
परिवार के सदस्य है पूज्यवर हमें ब्राह्मण पुरोहित की भूमिका निभाने के लिए दे गए
हैं। ब्राह्मण पुरोहित अपनी भूमिका भूल गया, मात्र पैर पुजवाने धन कमाने तक
सीमित रह गया। तो पूरे समाज में त्राहि-2 मच गयी। धर्मतन्त्र, राजतन्त्र, अर्थतन्त्र तीनों मिलकर जन सामान्य का शोषण कर रहे थे उस समय पूज्यवर का अवतरण
इस धरा पर हुआ और लाखों ब्राह्मणों पुरोहितो की उत्पत्ति गायत्री परिवार के रूप
में हुयी। तीनों तन्त्रों को दिशा देना ब्राह्मण पुरोहितों का कार्य है। यह कार्य
इतना सरल नहीं है इसके लिए दो बात चाहिए पहला कि हमारा दामन पक्का साफ हो हम लोभ मोह में न फंसे हो, व्यक्तिगत अंह, परिवारवाद, जातिवाद से बचे हों । दूसरा हमारे अन्दर पर्याप्त तपोबल हो अर्थात हम समर्थ भी
हों। ऋषियों के तपोबल के किससे हमने खूब सुने हैं । कि ऋषि अगस्त ने तपोबल से
समुद्ध पी लिया था विश्वमित्र का तपोबल प्रसिद्ध है आदि-2। यदि हम लोग व्यक्तिगत अंह नहीं छोड पा रहे है, परिवारवाद, जातिवाद में उलझे पड़़े है, पदो को लेकर खींचातानी बनी रहती है, शक्तिपीठों पर वाद विवाद, झगड़े होते रहते है- तो ‘कैसे होगा युग निर्माण’। अब बात आती है सामथ्र्य की यदि हम समर्थ नहीं होंगे तो मात्र सदविचारों का
प्रचार करते रह सकते है उनकी स्थापना नहीं हो पाएगी। आचार्य जी मात्र 2000 तक प्रचार अभियान चाहते थे इसलिए उन्होंने 2000 के बाद किसी का समय
दान नहीं मांगा था । सन् 2000 के बाद हमें चुने हुए परिजनों के समर्थ बनाने की दिशा में ध्यान देना था।
हमें प्रचार स्थली के स्थान पर साधना स्थली चाहिए थी। क्या साधना व्यक्ति के समर्थ
बनाती है? इस प्रश्न का उत्तर कौन देगा? यदि नहीं बनाती तो ऋषि इतने समर्थ कैसे
थे कि राजा लोग उनसे भय खाते थे। यदि बनाती है तो अभी तक हम 24,000 समर्थ व्यक्तित्व क्यों नहीं तैयार कर पाए। ऐसी दशा में हम कैसे युग निर्माण
के ठेकेदार बनते है? कहीं न कहीं गडबड़ जरूर है या तो हमारी नीयत में खोट है कि हम समर्थ
व्यक्तित्व उभरते नहीं देखना चाहते जिससे युग निर्माण के संघर्ष से बचे रहें, मात्र जन सामान्य के युग निर्माण का स्वपन दिखाकर अपने पैर पुजवाते रहें और
मान सम्मान का जीवन जीते रहें। या फिर हमें वह विज्ञान अभी तक पता ही नहीं चल पाया
जिससे साधना से समर्थ व्यक्तित्व की उपलब्धि होती है। जो लिखा जा रहा है वह बड़़ी
कडवी सच्चाई है । भय इस बात का नहीं है कि इससे मिशन की बदनामी होगी। भय तो इस बात
का है कि कब तक हम लोगों की आँखों पर पर्दा डालकर रखेंगे। यह पर्दा दिनोदिन झीना
होता जा रहा है जिस दिन यह उतर गया आने वाली पीढ़ी हमारे मुँह पर थूकेगी व अपने
प्रश्नों का जवाब माँगेगी कि हमने युग निर्माण के नाम पर क्या किया? हम कहेंगे कि हमने सन् 2014 साधना वर्ष घोषित किया। क्या हमने यह
भी घोषणा की कि हमें इस वर्ष में क्या सफलता मिली इसका विश्लेषण हमने क्यों नहीं
किया। यदि हमें सौ भी उच्चस्तरीय साधक समर्पित कार्यकर्ता मिले तो हमने अका क्या
नियोजन किया? हमने साहब बाँध तो बहुत बड़ा बनाया परन्तु जो बिजली बनी उसको घरों तक भेजने का
तन्त्र नहीं विकसित किया तो क्या होगा? हम अव्वल दर्जे के मूर्ख कहलाएगें।
वह बाँध व बिजली हमारे लिख खतरा बन जाएँगे।
पूज्य गुरुदेव शतसूत्री योजना अपने हिमालय प्रबरू के दौरान लेकर आए। क्या हमने
एक-एक योजना के लिए एक-एक विभागाध्यक्ष बनाया। जो साधक हमें साधना वर्ष के दौरान
मिले हो उन्हें उनकी योग भूमि, योग्यता व अनुभव के हिसाब से शतसूत्री
कार्यक्रमों में झोंकना चाहिए। अपनी शतसूत्री
योजना के प्रति हमें गम्भीर होने की आवश्यकता है। परन्तु हमने इस दिशा में
सार्थक प्रयास नहीं कर पा रहे हैं तो ‘कैसे होगा युग निर्माण’।
रोगों के ऐलोपैथिक इलाज से काम नहीं चलता इसके लिए आयुर्वेदिक उपचार चाहिए।
भारत सरकार ‘स्वच्छ भारत’ अभियान के अन्र्तगत साफ सफाईयाँ करा रही है परन्तु जब तक पालिथीन समाप्त नहीं
हो जाती, जनसंख्या नियन्त्रित नहीं होती तब तक यह अभियान कैसे सिरे चढ़ेगा। केवल कुछ 2 अक्तूबर जैसी तारीखें आएँगी साफ सफाईयाँ बड़े स्तर पर होगी व कुछ समय के लिए
भारत साफ सुथरा दिखेगा परन्तु कुछ दिनों बाद फिर वही गंदगी ऐलोपैथी उपचार में यही
होता है कुछ समय के लिए रोग हब जाता है व फिर दोबारा उभर कर आता है।
जब तक हम रोगों का आयुर्वेदिक उपचार नहीं करेंगे उनकी जडे़ नहीं कटेगी। यही
समस्या हमारे साथ है जब तक हम 24,000 लोगों को समर्थ नहीं बनाएँगे तब तक हम
सभी अभियानों को पूर्णता तक नहीं पहुँचा पाएँगे।
मित्रों रोगों को दूर करने के लिए करवी औषधि दी जाती है पुरोहितो को समाज के
कड़वे घँूट पीने पड़ते हैं जैसा कि स्वामी विवेकानन्द, दयानन्द के अल्पायु में शरीर छोड़ना पड़ा। राजीव दीक्षित जैसे महान राष्ट्र
भक्त के मात्र 43 वर्ष की आयु में ही धरती से विदा होना पड़ा। सच्चे लेखकों के कड़वी सच्चाईयाँ
लिखनी ही पड़ती हैं।
आज हमें कठोर आत्मविश्लेषण की आवश्यकता है कि हम युग निर्माण की दिशा में
कितना आगे बढ़ पाए। कुछ बाराती दुल्हन लेने गए बाजे की धुन में इतना मस्त हो गए कि
गोल-2 ही घूमते रहे। हम भी ढोल, दपली, भजनों कीर्तनों, प्रवचनों का आनन्द तो ले परन्तु लक्ष्य सदा याद रखें-युग निर्माण। यह शब्द
हमें खाते पीते, सोते जागते सदा हमारे कर्तव्य का बोध कराता रहे हमारे गुरू के संकल्प को याद
दिलाता रहे। मात्र कुछ भजन गाकर, मीठी मीठी बातें कहने सुनने से युग
निर्माण यदि होना होता तो 40 वर्ष से ऊपर हम यही करते आ रहे है। समाज में गन्दगी की जड़े इतनी गहराई तक जा
चुकी है कि ऐलोपैथिक उपचार से काम चलने वाला नहीं हैं। हम सफाईयाँ करते-करते थक
जाते हैं परन्तु गन्दगी साफ नहीं होती। हमारे युवा भाई ब्रह्मचर्य की किताबें
पढ़-पढ कर अच्छे-अच्छे संकल्प बनाते है परन्तु युवतियाँ जब उल्टे सीधे वस्त्र
धारणा कर सड़क पर निकलती है तो सारे संकल्प धरे के धरे रह जाते है। हमारे माननीय
प्रधानमन्त्री जी ने नारा दिया- ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ परन्तु मित्रों हमें युग निर्माण के लिए एक पंक्ति ओर जोड़ी होगी।
‘बेटी बचाओं, बेटी पढ़ाओं एवं बेटी को शील व संस्कारवान बनाओ’ अब नारी जागरण के साथ
नारी संस्कार शिविर चलने चाहिए। जब तक नारियाँ शील व संस्कारवान नहीं बनेगी ‘कैसे होगा युग निर्माण’।
जो लोग गुरु सत्त देव सत्ताओं से गहराई से जुड़े है वो संस्कृति का यह पतन
देखकर कराह उठते हैं। ऐसे लोगों के संगठित होने की आवश्कता है समर्थ होने की
आवश्यकता है और एक बार मिलकर जोर लगाने की आवश्कता है जिसमें गन्दगी की इनज ड़ों
तक हम पहुँच सके वो आमूल पूल परिवर्तन व क्रान्ति समाज में हो सके।
मैं व्यक्तिगत रूप से अपने सभी परिजनों का बहुत सम्मान करता हँू व उनसे यह आशा
भी करता हँू कि गुरुदेव के इस प्यारे बालक को अन्यथा न लें, अपितु इस माध्यम से व्यक्त देव सत्ताओं की पींडा व चेताक्षी के समझें। महाकाल
की प्रतिक्रिया युग निर्माण को लेकर रोद्र रूप धारण करने जा रही है जो लोग भी
धर्मतन्त्र व राजतन्त्र के उच्च पदो पर बैठे है परन्तु अपने कर्तव्यों के प्रति
जागरूक नही है स्वार्थों से जुडे है उनका समय निकट आ चुका है। गोस्वामी जी ने सत्य
ही कहा है-
‘‘जासु राज प्रिय प्रजा दुःखारी, सो नृृप अवश्य नरक अधिकारी।’’
अर्थात् जिस राजा की प्रजा दुःखी हो वह राजा अवश्य नरक का अधिकारी है। इसी
कारण पहले राजा बेटा बदलकर यह आकलन करते थे कि प्रजा दुःखी है या सुःखी। परन्तु अब
वह भाव हमारे उच्च पदों पर बैठें लोगों में धीरे-धीरे करके घट रह गया है। जिन
लोगों ने महत्वपूर्ण पदो पर बैठकर अपने कर्तव्यों का उचित पालन नहीं किया उनका नाम
‘काले अक्षरों’ में लिखा जाएगा। हम गायत्री परिवार के परिजनों के महाकाल ने बहुत पवित्र व
महान कार्य दिया है इसके अनुरूप हम अपने व्यक्तित्व को ढाल सकें अपना जीवन दान इस
महान उद्देश्य के लिए कर सकें व महान क्रान्तिकारियों की तरह हमारी आहुति भी इस
युग निर्माण के महायज्ञ में स्वीकार हो यह प्रार्थना हम देवसत्ताओं से करते है।
‘वंय राष्ट्रे जागृृयाम पुरोहितः’ के अपने कर्तव्य के पूरा करना हम
गायत्री परिजनों का कर्तव्य है हमारे अन्दर भगवान इतना आत्मबल ब्रह्मबल दें कि हम
व्यक्ति की प्रतिमा, पद प्रतिष्ठा को देखकर दबाव न माने वरण सच्चाई पर डटे रहने व वास्विकता का बोध
कराने से पीछे न हटें। व्यक्तिगत रूप से ईष्र्या द्वेष न पालें, घृणा इत्यादि के भाव मन में न लाएँ
परन्तु गुरुवर के संकल्पों का सदा याद रख उस आधार पर अपने जीवन का निर्माण
करें। यदि पाँच करोड के गायत्री परिवार से 24,000 थी ऐसी विश्वामित्र
उभर आए तो उसी दिन रावण की सोने की लंका ढ़ह जाएगी व महाकाल का युग निर्माण का एक
महत्वपूर्ण चरण पूरा हो जाएगा। अभी ऐसे लोगों की संख्या कम है जो सच्चाई व अच्छाई
के लिए अपना सब कुछ दाँव पर लगा सकें अतः आसुरी शक्तियाँ पलटवार करके अनेक बाधाएँ
उत्पन्न करती है। धीरे-धीरे ऐसे लोगों की संख्या बढ़ रही है व आसुरी शक्तियों का
मनोबल टूट रहा है। सावधान,
ये आसुरी शक्तियाँ कदम वेश में पीले सब तरह के लोगों के
भीतर अपना डेरा जमाए बैठी है अतः हमें सावधानी के साथ संगठित होकर आगे बढ़ना है।
युग निर्माण का इतिहास बनने जा रहा है जिनके जीवन की आहुति महाकाल स्वीकार करेगा
उनका नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा वो इस लोक में व परलोक में ब्रह्मा ज्ञान
व परम पद के प्राप्त होंगे। आइए हम भी इस पुनीत कार्य में भाग लेने में पीछे न
हटें व महाकाल के सपूत होने का गौरव प्राप्त करें।
‘जय भारत जय महाकाल’
विश्वामित्र रजश
देश की रक्षा के लिए,
हमें वीर जवान चाहिए।
लोगों की भूख मिटाने को, मेहनती किसान ।
समाज की सुख के लिए इन्सान ।।
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