Monday, May 23, 2016

प्राणायाम

        श्वास की डोर से जीवन की माला गुँथी है। जिंदगी का हर फूल इससे जुड़ा और इसी में पिरोया है। श्वासों की लय और लहरें इन्हें मुस्कराहटें देती हैं। इनमें व्यतिरेक, व्यवधान, बाधाएँ-विरोध और गतिरोध होने लगे तो सब कुछ अनायास ही मुरझाने और मरने लगता है। शरीर हो या मन, दोनों ही श्वासों की लय से लयबध्द होते हैं। इसकी लहरें ही इन्हें सींचती हैं, जीवन देती हैं; यहाँ तक कि सर्वथा मुक्त एवं सर्वव्यापी आत्मा का प्रकाश भी श्वासों की डोर के सहारे ही जीवन में उतरता है।
        श्वासों की लय बनते ही जीवन के रंग-रूप अनयास ही बदलने लगते हैं। क्रोध, घृणा, करूणा, वैर, राग-रोष, ईर्ष्या -द्वेष अनुराग प्रकारांतर से श्वास की लय की भिन्न-भिन्न अवस्थाएँ ही हैं; यह बात कहने-सुनने की नहीं, अनुभव करने की है। यदि महीने भर की सभी भावदशाओं एवं अवस्थाओं का चार्ट बनाया जाए तो जरूर पता चल जाएगा कि श्वास की कौन सी लय हमें शांति व विश्रांति देती है। किस लय में मौन और शांत, सुव्यवस्थित होने का अनुभव होता है? किस लय के साथ अनायास ही जीवन में आनंद घुलने लगता है? ध्यान और समाधि भी श्वासों की लय की परिवर्तनशीलता ही है।
श्वास की गति वलय को जागरूक हो परिवर्तित करने की कला ही तो प्राणायाम है। यह मानव द्वारा की गई अब तक की सभी खोजों में महानतम है;  यहाँ तक कि चाँद और मंगल ग्रह पर मनुष्य के पहुँच जाने से भी महान; क्योंकि शरीर से मनुष्य कहीं भी जा पहुँचे, वह जस का जस रहता है, परंतु श्वास की लय के परिवर्तन से तो उसका जीवन ही बदल जाता है। हालाँकि यह लय परिवर्तन होना चाहिए आंतरिक होशपूर्वक, जो प्राणायाम की किसी बँधी-बँधाई विधि द्वारा संभव नहीं है। यदि विधि ही खोजनी हो तो प्रत्येक श्वास के साथ होशपूर्वक रहना होगा और साथ ही श्वास-श्वास के साथ भगवन्नाम के ज पका अभ्यास करना होगा। ऐसा हो तो श्वासों की लय के साथ जीवन की लय बदल जाती है।


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