Wednesday, May 4, 2016

स्वामी विवेकानंद (देश के युवकों से)

मेरी समस्त भावी आशा उन युवकों में केंद्रित है, जो चरित्रवान हांे, बुध्दिमान हों, लोकसेवा हेतु सर्वस्वत्यागी व आज्ञापालक हों, जो मेरे विचारों को क्रियान्वित करने के लिए और इस प्रकार अपने तथा देश के व्यापक कल्याण के हेतु अपने प्राणों का उत्सर्ग कर सकें यदि मुझे नचिकेता की श्रध्दा से संपन्न केवल दस या बारह युवक मिल जाएँ, तो मैं इस देश के विचारों और कार्यों को एक नई दिशा में मोड़ सकता हूँ। ईश्वरीय इच्छा से इन्हीं लड़कों में से कुछ समय बाद आध्यात्मिक और कर्मशक्ति के महान् पुंज उदित होंगे, जो भविष्य में मेरे विचारों को कार्यान्वित करेंगे।
युवकों को एकत्र और संगठित करों। महान् त्याग के द्वारा ही महान् कार्य संभव है। मेरे वीर, श्रेष्ठ, उदात्त बंधुओं! टपने कंधों को कार्यचक्र में लगा दो, कार्यचक्र पर जुट जाओ। मत ठहरो, पीछे मत देखो-न नाम के लिए , न यश के लिए। व्यक्तिगत अहमन्यता जो एक ओर फेंक दो और कार्य करो। स्मरण रखो कि घास के अनेक तिनकों को जोड़कर जो रस्सी बनती है, उससे एक उन्मत्त हाथी को भी बाँधा जा सकता है।
तुम सदैव शौर्य से संपन्न रहो। केवल वीर ही मुक्त् िको सरलतापूर्वक पा सकता है, न कि कायर। कमर कसो। ओ वीरो! तुम्हारे सामने शत्रु खड़ा है- यह माया-मोह की क्रूर सेना। इसमें तनिका भी संदेह नहीं कि समस्त महान् सफलताओं के मार्ग नाना बाधाओं से भरे हैं, किंतु तब भी तुम अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निरंतर और अधिकतम प्रयत्न करते रहो।
ओ वीर आत्माओ! टागे बढ़ो, उन्हें मुक्त कराने के लिए जो जंजीरों में जकड़े हुए हैं, उनका बोझ हलका कराने के लिए, जो दुःख के भार से लदे हैं, उन हृदयों को अलोकित करने के लिए, जो अज्ञान की गहन तमिसा में डूबे हुए हैं। सुनो, वेदांत डंके की चोट पर घोषणा कर रहा है, ‘अभी’ निर्भय बनो। ईश्वर करे यह पवित्र स्वर धरती के समस्त प्राणियों के हृदय की ग्रंथियाँ खोलने में समर्थ हो।    - स्वामी विवेकानंद 

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