Monday, March 24, 2025

प्रभु मिलन की राह

एक राजा सायंकाल में महल की छत पर टहल रहा था. अचानक उसकी दृष्टि महल के नीचे बाजार में घूमते हुए एक सन्त पर पड़ी। सन्त तो सन्त होते हैं, चाहे हाट बाजार में हों या मन्दिर में अपनी धुन में खोए चलते हैं।

राजा ने महूसस किया वह सन्त बाजार में इस प्रकार आनन्द में भरे चल रहे हैं जैसे वहाँ उनके अतिरिक्त और कोई है ही नहीं। न किसी के प्रति कोई राग दिखता है न द्वेष।

राजा को सन्त की यह मस्ती इतनी भा गई कि तत्काल उनसे मिलने को व्याकुल हो गए। उन्होंने सेवकों से कहा इन्हें तत्काल लेकर आओ।

सेवकों को कुछ न सूझा तो उन्होंने महल के ऊपर से ही रस्सा लटका दिया और उन सन्त को उस में फंसाकर ऊपर खींच लिया।

कुछ मिनटों में ही सन्त राजा के सामने थे। राजा ने सेवकों द्वारा इस प्रकार लाए जाने के लिए सन्त से क्षमा मांगी। सन्त ने सहज भाव से क्षमा कर दिया और पूछा–‘ऐसी क्या शीघ्रता आ पड़ी महाराज जो रस्सी में ही खिंचवा लिया ?’

राजा ने कहा–‘एक प्रश्न का उत्तर पाने के लिए मैं अचानक ऐसा बेचैन हो गया कि आपको यह कष्ट हुआ।’ सन्त मुस्कुराए और बोले–‘ऐसी व्याकुलता थी अर्थात कोई गूढ़ प्रश्न है। बताइए क्या प्रश्न है ?’

राजा ने कहा–‘प्रश्न यह है कि ’भगवान् शीघ्र कैसे मिलें’–मुझे लगता है कि आप ही इसका उत्तर देकर मुझे सन्तुष्ट कर सकते हैं ? कृपया मार्ग दिखाएं।’

सन्त ने कहा–‘राजन् ! इस प्रश्न का उत्तर तो तुम भली-भांति जानते ही हो, बस समझ नहीं पा रहे. दृष्टि बड़ी करके सोचो तुम्हें पलभर में उत्तर मिल जाएगा।’

राजा ने कहा–‘यदि मैं सचमुच इस प्रश्न का उत्तर जान रहा होता तो मैं इतना व्याकुल क्यों होता और आपको ऐसा कष्ट कैसे देता। मैं व्यग्र हूँ–आप सन्त हैं. सबको उचित राह बताते हैं।’

राजा एक प्रकार से गिड़गिड़ा रहा था और सन्त चुपचाप सुन रहे थे जैसे उन्हें उस पर दया ही न आ रही हो। फिर बोल पड़े सुनो अपने उलझन का उत्तर

सन्त बोले–‘सुनो, यदि मेरे मन में तुमसे मिलने का विचार आता तो कई अड़चनें आतीं और बहुत देर भी लगती। मैं आता, तुम्हारे दरबारियों को सूचित करता। वे तुम तक सन्देश लेकर जाते। तुम यदि फुर्सत में होते तो ही हम मिल पाते, और कोई जरूरी नहीं था कि हमारा मिलना सम्भव भी होता।

परन्तु जब तुम्हारे मन में मुझसे मिलने का विचार इतना प्रबल रूप से आया तो सोचो कितनी देर लगी मिलने में ? तुमने मुझे अपने सामने प्रस्तुत कर देने के पूरे प्रयास किए। इसका परिणाम यह रहा कि घड़ी भर से भी कम समय में तुमने मुझे प्राप्त कर लिया।’

राजा ने पूछा–‘परन्तु भगवान् के मन में हमसे मिलने का विचार आए तो कैसे आए और क्यों आए ?’ सन्त बोले–‘तुम्हारे मन में मुझसे मिलने का विचार कैसे आया ?

राजा ने कहा–‘जब मैंने देखा कि आप एक ही धुन में चले जा रहे हैं और सड़क, बाजार, दूकानें, मकान, मनुष्य आदि किसी की भी तरफ आपका ध्यान नहीं है, उसे देखकर मैं इतना प्रभावित हुआ कि मेरे मन में आपसे तत्काल मिलने का विचार आया।’

सन्त बोले–‘यही तो तरीका है भगवान को प्राप्त करने का। राजन् ! ऐसे ही तुम एक ही धुन में भगवान् की तरफ लग जाओ, अन्य किसी की भी तरफ मत देखो, उनके बिना रह न सको, तो भगवान् के मन में तुमसे मिलने का विचार आ जायगा और वे तुरन्त मिल भी जायेंगे।

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