Monday, March 24, 2025

नारी की गरिमा व दायित्व

 शेषनाग ने क्यों दिया अपनी बेटी को श्राप

बार माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु के परम भक्त शेषनाग को उनकी भक्ति और सेवा के कारण भगवान के हाथ पर एक दिव्य सूत्र से बांध दिया। इस बंधन की शक्ति इतनी अधिक थी कि शेषनाग की आंखों से दो आंसू टपक पड़े। उन दो आंसुओं से दो दिव्य कन्याओं का जन्म हुआ।

इनमें से पहली कन्या सुनैना थी, जिसका विवाह मिथिला के राजा जनक से हुआ और वे माता सीता की माता बनीं। दूसरी कन्या सुलोचना थीं, जिनका विवाह पहले देवराज इंद्र के पुत्र जयंत से तय हुआ।

लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था...

रामायण के युद्ध से पहले जब रावण के पुत्र मेघनाद ने अपने पराक्रम से इंद्र और उनके पुत्र जयंत को पराजित कर दिया, तो सुलोचना ने यह समाचार सुना। वे मेघनाद के शौर्य और पराक्रम पर मोहित हो गईं और मन ही मन उन्हें पति रूप में स्वीकार कर लिया।

दूसरी ओर, मेघनाद भी सुलोचना के अनुपम सौंदर्य और तेजस्विता पर मुग्ध हो गए। दोनों का विवाह हुआ, और सुलोचना लंका की बहू बनीं।

जब नागराज शेषनाग को इस विवाह का पता चला, तो वे अत्यंत क्रोधित हुए। उन्होंने सुलोचना को श्राप देते हुए कहा—

"तुमने अधर्म का मार्ग अपनाने वाले व्यक्ति को अपना पति चुना है। इसी कारण त्रेता युग में तुम्हारे पति का वध मेरे ही अवतार लक्ष्मण के हाथों होगा।"

राम-रावण युद्ध के दौरान मेघनाद ने अपनी मायावी शक्तियों से राम और लक्ष्मण को घायल कर दिया। लेकिन जब लक्ष्मण को संजीवनी बूटी से जीवनदान मिला, तो वे पुनः युद्ध के लिए तैयार हुए।

गुरु वशिष्ठ के आशीर्वाद से लक्ष्मण ने युद्ध में मेघनाद का वध किया। परंतु श्रीराम ने लक्ष्मण को पहले ही यह आदेश दिया था कि—

"लक्ष्मण, युद्ध में तुम निश्चित ही मेघनाद का वध करोगे, इसमें कोई संदेह नहीं। लेकिन यह ध्यान रखना कि उसका सिर पृथ्वी पर न गिरे। क्योंकि उसकी पत्नी परम पतिव्रता है, और उसके सतीत्व के प्रभाव से हमारी सेना का संहार हो सकता है।"

लक्ष्मण ने अपने बाणों से मेघनाद का सिर धड़ से अलग कर दिया, लेकिन उसे पृथ्वी पर गिरने नहीं दिया। हनुमान उसे श्रीराम के शिविर में ले आए।

युद्ध भूमि से मेघनाद की दाहिनी भुजा आकाश में उड़ती हुई लंका के महल में आ गिरी। जब सुलोचना ने इसे देखा, तो वे अचंभित हो गईं। वे समझ नहीं पा रही थीं कि यह उनके पति की भुजा है या किसी और की।

अपने पतिव्रत धर्म की परीक्षा के रूप में उन्होंने भुजा से कहा—

"यदि तू मेरे स्वामी की ही भुजा है, तो मेरे पतिव्रत की शक्ति से युद्ध का सारा वृतांत लिख दे।"

दासियों ने लेखनी पकड़ाई, और वह कटी हुई भुजा स्वयं लिखने लगी—

"प्राणप्रिय, यह भुजा मेरी ही है। युद्धभूमि में मेरा सामना लक्ष्मण से हुआ, जो कई वर्षों से तपस्वी जीवन जी रहे हैं। वे तेजस्वी और दैवीय गुणों से संपन्न हैं। मैंने पूरी शक्ति से युद्ध किया, लेकिन अंततः लक्ष्मण के बाणों से मारा गया। मेरा शीश श्रीराम के पास है।"

पति के वध का समाचार मिलते ही सुलोचना विलाप करने लगीं।

पति के शीश को लाने के लिए श्रीराम के शिविर में जाना

सुलोचना ने अपने ससुर रावण से कहा कि वे श्रीराम से विनती करें कि वे मेघनाद का शीश लौटा दें। लेकिन रावण ने उत्तर दिया—

"पुत्री, तुम स्वयं जाओ। श्रीराम पुरुषोत्तम हैं, वे तुम्हें निराश नहीं करेंगे।"

सुलोचना पति का शीश लेने के लिए श्रीराम के शिविर में पहुंचीं। जैसे ही उनके आने की सूचना मिली, श्रीराम स्वयं चलकर उनके पास आए और कहा—

"हे देवी, तुम्हारे पति परम पराक्रमी और महान योद्धा थे। लेकिन विधि के विधान को कौन बदल सकता है? तुम्हें इस अवस्था में देखकर मुझे पीड़ा हो रही है। बताओ, मैं तुम्हारी क्या सहायता कर सकता हूँ?"

सुलोचना ने अश्रुपूरित नेत्रों से श्रीराम को निहारते हुए कहा—

"रघुवंशी, मैं अपने पति के साथ सती होने के लिए उनका शीश लेने आई हूँ।"

श्रीराम ने सम्मानपूर्वक मेघनाद का शीश उन्हें सौंप दिया।

पति का कटा शीश देखकर सुलोचना का हृदय द्रवित हो गया। उन्होंने लक्ष्मण की ओर देखते हुए कहा—

"सुमित्रानंदन, तुम गर्व मत करना कि तुमने मेरे पति का वध किया है। मेरे पति को धराशायी करने की शक्ति विश्व में किसी के पास नहीं थी। यह तो केवल दो पतिव्रता नारियों के भाग्य का खेल था— तुम्हारी पत्नी उर्मिला भी पतिव्रता हैं, और मैं भी। किंतु मेरे पति, जिनका हृदय सदा धर्म से जुड़ा था, अधर्म का अन्न ग्रहण कर रहे थे। यही मेरे दुर्भाग्य का कारण बना।"

सुलोचना ने समुद्र के तट पर चंदन की चिता तैयार करवाई। वे पति के शीश को गोद में लेकर चिता पर बैठ गईं।

उन्होंने श्रीराम से प्रार्थना की—

"प्रभु, आज मेरे जीवन का अंतिम दिन है। कृपया आज के दिन युद्ध रोक दें।"

श्रीराम ने सुलोचना की विनती स्वीकार कर ली। सुलोचना धधकती अग्नि में प्रविष्ट हो गईं और अपने पति के साथ सती हो गईं।

जब सुलोचना राम शिविर से गईं, तो सुग्रीव ने व्यंग्य में कहा—

"यदि मेघनाद की भुजा लिख सकती है, तो उसका कटा शीश भी हंस सकता है!"

श्रीराम ने उत्तर दिया—

"सुग्रीव, व्यर्थ की बातें मत करो। तुम सतीत्व की महिमा नहीं जानते!"

सुलोचना ने कहा—

"यदि मैं सच्ची पतिव्रता हूँ, तो मेरे पति का यह मस्तक हंस उठे!"

और जैसे ही उन्होंने यह कहा, मेघनाद का कटा मस्तक सचमुच हंसने लगा।

सती सुलोचना की कथा हमें सिखाती है कि नारी का सतीत्व संसार की सबसे बड़ी शक्ति है। सुलोचना की पतिव्रता शक्ति ने पूरे ब्रह्मांड को हिला दिया था। उनका त्याग और प्रेम सदा अमर रहेगा।

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