हनुमान जी चिरंजीवी हैं | वे जंगलों में तपस्या कर रहे ऋषि मुनियों के साथ तो लगातार संपर्क में रहे हैं लेकिन यह कलियुग में पहली बार है कि उनकी लीलाये मुख्य धारा के भक्तों तक पहुँच रही हैं | नीचे दी गई घटना हनुमान जी ने मातंगों को कुछ महीने पहले बताई जब वे उनसे मिलने आये थे | यह घटना हनुमान जी की उन कलियुग लीलाओं का भाग है जो सेतु द्वारा समझी और प्रकाशित की जा रही हैं | इन लीलाओं में वह ब्रह्मज्ञान अपने शुद्धतम रूप में मौजूद है जो पिछले कुछ सदियों में तोड़े मरोड़े जाने के कारण वेदों पुरानों से गायब हो गया है |]
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महाभारत युद्ध में जब दोनों तरफ की सेनाएं कुरुक्षेत्र की रणभूमि में आ गई तब मेरे प्रभु (विष्णु कृष्ण के रूप में ) ने मुझसे कहा - “हे हनुमान , पांडवों ने अपने जीवन में हमेशा दुःख भोगे हैं | उनके पिछले कर्मों ने इनको हमेशा दुःख और दर्द ही दिए हैं | जैसा कि मैं देख सकता हूँ , इस युद्ध में भी उन्हें अपने पिछले कर्मों के कारण हार का सामना करना पड़ेगा | लेकिन यह युद्ध अब केवल पांडवों का युद्ध नहीं है | यह युद्ध पूरी मानवता के कल्याण का युद्ध है | इसलिए पांडवों के पूर्ण अस्तित्व को शुद्ध करना आवश्यक है ताकि वे अपने दुर्भाग्य से पीछा छुड़ाकर इस युद्ध को जीत सकें | इनके पूरे अस्तित्व को शुद्ध करने हेतु युद्ध से पहले इनके लिए नवदुर्गा पूजा कराना आवश्यक है |”
पूजा में भगवान् कृष्ण ने वहाँ उपस्थित सभी लोगो को यह बताया था कि देवी दुर्गा कैसे अपने 9 रूपों में किसी मनुष्य के पूरे अस्तित्व को शुद्ध करती हैं |
उन्होंने बताया :
जब पानी में अशुद्धियाँ होती हैं तब हम उसे आसवन विधि से शुद्ध करते हैं (पानी को वास्पिकृत करके पुनः द्रवित करने की प्रक्रिया)| ठीक उसी प्रकार देवी दुर्गा किसी मनुष्य के पूरे अस्तित्व को खींचकर उसे वापिस शुद्ध रूप में पुनः मुक्त कर देती हैं |
किसी भी मनुष्य का अस्तित्व समय के तीन आयामों में फैला होता है - भूत , वर्तमान और भविष्य | देवी दुर्गा अपने पहले तीन रूप (शैलपुत्री , ब्रह्मचारिणी तथा चन्द्रघंटा) मनुष्य के भूत को शुद्ध करने के लिए लेती हैं | वे अपने अगले तीन रूप (कुष्मांड, स्कन्दमाता तथा कात्यायिनी) किसी मनुष्य के वर्तमान को शुद्ध करने के लिए लेती हैं | वे अपने आखिरी तीन रूप (कालरात्रि , महागौरी और सिद्धिदात्री) मनुष्य के भविष्य को शुद्ध करने के लिए लेती हैं | इस तरह मनुष्य का पूर्ण अस्तित्व शुद्ध हो जाता है |
भूत का शुद्धिकरण :
हमारा भूतकाल तीन चीजों से बना है :
(1) स्मृतियाँ जो बाहरी दुनिया के बारे में बनी हुई हैं : हमने भूतकाल में जो कुछ भी अनुभव किया है उसकी स्मृतियाँ हमारे पास हैं | लेकिन शैलपुत्री रूप में देवी दुर्गा की कोई स्मृतियाँ नहीं है (शैल अथवा चट्टान की अपनी कोई स्मृति नहीं होती) | बजाय उसके वे भक्तों की स्मृतियों को शुद्ध करती हैं | आघात , विश्वासघात आदि की बुरी स्मृतियाँ दुर्भाग्य लाती हैं अतः उन्हें परिष्कृत करना आवश्यक है |
(2) हमने अपने अस्तित्व के चिन्ह जो बाहरी संसार पर छोड़े हैं : हमने भूतकाल में जो कुछ भी किया है उसके चिन्ह बाहरी संसार पर छोड़े हैं | अगर हमने अच्छे काम किये हैं , चाहे उन्हें करते समय हमें किसी ने देखा न हो , ब्रह्माण्ड ने हमें अवश्य देखा है और उन कामों के चिन्ह ब्रह्माण्ड में मौजूद हैं | अगर हमने बुरे काम किये हैं , चाहे उन्हें करते समय हमें किसी ने न देखा हो लेकिन ब्रह्माण्ड में उसके चिन्ह मौजूद हैं | लेकिन देवी दुर्गा अपने ब्रह्मचारिणी रूप में बाहरी संसार से बिलकुल अलग थलग हैं | वे अपने अस्तित्व के चिन्ह बाहरी संसार पर नहीं छोडती | बजाये उसके वे हमारे छोड़े गए चिन्हों को परिष्कृत करती हैं | बुरे कामों के चिन्ह हमारे लिए दुर्भाग्य लाते हैं , इसलिए उनका परिष्कृत होना आवश्यक है |
(3) हमारा स्वभाव : हम सबका एक विशिष्ट स्वभाव है | दो भिन्न लोग एक ही परिस्थिति में दो भिन्न तरीकों से प्रतिक्रिया देते हैं | हमारा स्वभाव चन्द्रचिन्ह अर्थात राशि द्वारा निर्धारित होता है | देवी दुर्गा अपने चन्द्रघंटा रूप में चन्द्र द्वारा प्रभावित नहीं होती | उनका केवल एक ही स्वभाव है - हमारे स्वभावों को परिष्कृत करना |
वर्तमान काल का शुद्धिकरण :
हमारा वर्तमान भी तीन चीजों से बना है :
(1) जो सूचना की बारिश हम पर हो रही है : हम बाहरी संसार से विभिन्न रूपों में सूचनाये ले रहे हैं -प्रकाश की किरणों से हमें चीजों के रंग तथा आकार आदि पता चलते हैं ; ध्वनि की तरंगों से हमें चीजों की ध्वनि पता चलती है ; गंध के बहाव से हमें चीजो की गंध पता चलती है आदि आदि | ये सूचनाये हमें प्रभावित करती हैं इसलिए इनका शुद्धिकरण आवश्यक है | देवी कुष्मांड , कुष्मांड अर्थात ब्लैक होल की तरह सभी नकारात्मक सूचनाओं को सोख लेती हैं |
(2) सभी सूचनाये जो हमारी इन्द्रियों द्वारा समझी जा रही हैं : कई बार हमें अच्छी सूचना प्राप्त होती है लेकिन हमारी इन्द्रियां उसे गलत समझ लेती हैं | उदाहरण के तौर पर हमें कोई सही सलाह दे और हम अपने पूर्वाग्रह के कारण उसे गलत समझ बैठें | [जैसे कि कहावत है , सावन के अंधे को सब हरा दीखता है ] अतः हमारी इन्द्रियों की सूचना को समझने की योग्यता को परिष्कृत करना भी आवश्यक है | स्कन्दमाता उस योग्यता (स्कन्द) को परिष्कृत करती हैं |
(3) वर्तमान में हमारी मनोदशा : मनोदशा को हम जीव जंतुओं के आधार पर भी वर्गीकृत कर सकते हैं | उदाहरण के तौर पर, कभी हम गाय की तरह शांत होते हैं , कभी बिल्ली की तरह बेचैन , कभी पक्षी की तरह आजाद तो कभी कुत्ते की तरह दब्बू और कभी बैल की तरह आक्रामक , आदि आदि | देवी दुर्गा अपने कात्यायनी रूप में हमारी मनोदशा को परिष्कृत करती हैं |
भविष्य का शुद्धिकरण:
भविष्य तीन चीजों से बना है :
(1) भविष्य का डर : भविष्य के बारे में हमारे डर हमें प्रभावित करते हैं और दुर्भाग्य लाते हैं | अतः उन्हें परिष्कृत करना आवश्यक है | देवी दुर्गा अपने कालरात्रि रूप में हमारे बेतुके डरों को खींचकर बाहर निकालने का काम करती हैं |
(2) भविष्य के बारे में कोरी कल्पना और स्वपन : अगर हम बहुत ज्यादा कोरी कल्पनाओं में डूबे रहें तो उससे भी हमारे भाग्य पर असर पड़ता है | देवी दुर्गा अपने महागौरी रूप में हमारे सपनों और कल्पनाओं को शुद्ध करती हैं |
(3) जो काम किया है उसके फल की भविष्य में सम्भावना : कई बार हम काम तो सही से करते हैं लेकिन जब फल लेने का समय आता है तब सब गड़बड़ हो जाता है | अतः जो काम हमने किया है उसके फलों का परिष्करण आवश्यक है जो देवी दुर्गा अपने सिद्धिदात्री रूप में करती हैं |
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