एल्युमिनियम के बर्तनों के लाभ-हानि
आजकल
हर रसोईघर में हमें एल्युमिनियम के बर्तन जैसे प्रेशर कुकर, कढ़ाई, फ्राइंग
पैन आदि दृष्टिगोचर होते हैं। क्योंकि भाग-दौड़ वाली ज़िंदगी में एल्युमिनियम के
बर्तनो में खाना बनाने के कुछ फायदे हैं-
1. एल्युमिनियम के बर्तन दूसरी धातुओं के बर्तनो
की अपेक्षा सस्ते होते हैं।
2. इन बर्तनों में भोजन जल्दी पकता है।
3. इन बर्तनो का भार भी अन्य धातुओं के बर्तन से
कम होता है।
पर क्या आप जानते हैं कि इन फायदों के बावजूद
खाना बनाने के लिए यदि सबसे खराब कोई धातु है, तो वह है- एल्युमिनियम।
सुनकर अचंभित हो गए न! आइए जानते हैं कुछ तथ्य-
1. एल्युमिनियम भारी धातु (Heavy
Metal) है, जो भोजन पकाने वाले एल्युमिनियम के बर्तन के
माध्यम से भोजन में शामिल हो हमारे शरीर में पहुँच जाता है। रोजमर्रा में, हम इन
एल्युमिनियम के बर्तनो से 4-5 मि. ग्रा. एल्युमिनियम का सेवन कर लेते हैं।
पत्तेदार सब्जियाँ, आम्लीय खाद्य पदार्थ जैसे टमाटर एल्युमिनियम को
सबसे ज्यादा सोखते हैं। शरीर के ज्यादातर विषैले-तत्व स्वेद या मूत्र के जरिये
निष्कासित हो जाते हैं। पर चूँकि एल्युमिनियम भारी धातु है, हमारे
देह का उत्सर्जन तंत्र (Excretory System) आसानी से इसका निष्कासन
नहीं कर पाता।
2. एल्युमिनियम ऊर्जा का अत्यधिक सुचालक है। इसलिए
इसमें पके भोजन की लगभग 80 प्रतिशत पौष्टिकता खत्म हो जाती है, जिससे
व्यक्ति को रोग घेर लेते हैं। इसलिए अंग्रेजों ने साजिश के तहत जेलों में
एल्युमिनियम के बर्तनों का प्रयोग शुरू किया था, ताकि देश-भक्त कैदियों को
शारीरिक रूप से कमजोर कर मार्ग से हटाया जा सके। पर आज हम स्वेच्छा से इस धीमे ज़हर
को गले लगाए बैठे हैं।
3. वैज्ञानिक-अनुसंधानों के अनुसार भी एल्युमिनियम
एक धीमा ज़हर है। एलोपैथी हो या आयुर्वेद या आधुनिक चिकित्सा विज्ञान, सभी
में एल्युमिनियम का प्रयोग निषेध है।
एल्युमिनियम के बर्तनो का उपयोग करने से होने
वाली बीमारियाँः-
1. एल्युमिनियम धातु असंख्य घातक बीमारियों को
खुला आह्नान है। दमा, टी. बी., डायबीटिज़, गुर्दे
की विफलता, यहाँ तक कि कैंसर में भी एल्युमिनियम का योगदान
है।
2. एल्युमिनियम से दिमागी स्नायु रेशों का, कोशिकाओं
का बनना दुःसाध्य हो जाता है। याद्दाश्त का कमजोर होना, चिंता
और अवसाद ग्रस्त रहना- इस एल्युमिनियम का ही मस्तिष्क पर कुप्रभाव है।
3. एल्युमिनियम हमारी हड्डियों, माँस-पेशियों, जिगर
और गुर्दे में प्रवेश कर हमें कई स्तर पर रोगग्रस्त करता है।
4. एल्युमिनियम विषाकतता से मुँह में अल्सर, अल्ज़ाइमर, दस्त
और नेत्र रोग आदि भी देखने को मिलते हैं।
एल्युमिनियम बाॅक्साइट से बनता है, जिसकी
कई खदानें सदियों से भारत में मौजूद थीं। परन्तु भारतीय मनीषियों ने इसकी हानि से
अवगत होने के कारण मिट्टी के बर्तनों में भोजन पकाने की हिदायत दी थी।
मिट्टी के बर्तनों के लाभ-हानि
1. लखनऊ के लैब में अनुसंधानकर्ताओं ने विभिन्न
धातुओं के बर्तनों में अरहर दाल को पकाया, ताकि यह जाना जा सके कि किस
बर्तन में भोजन पकाने के पश्चात् सबसे अधिक पौष्टिक तत्व सुरक्षित रहते हैं। इस
प्रयोग के निष्कर्ष कुछ इस तरह पाए गए-
धातु के बर्तन पकाने के बाद बचे सुक्ष्म पोषक तत्व
मिट्टी 100 प्रतिशत
काँसा 93 प्रतिशत
पीतल 87 प्रतिशत
एल्युमीनियम 13 प्रतिशत
अतः
मिट्टी के बर्तनों में भोजन पकाने से सूक्ष्म पोषक तत्व 100
प्रतिशत
प्राप्त होते हैं, जो अन्य किसी धातु से प्राप्त नहीं होते।
2. मिट्टी के बर्तनों में बनाए भोजन का सेवन करने
पर, एक
साल के अन्दर ही बहुत पुराने शुगर-रोगियों की शुगर का स्तर 480
से 180
पर
गिरा हुआ पाया गया।
3. देह को लाभ प्रदान करने वाले 18 सूक्ष्म
पोषक तत्व केवल मिट्टी में ही पाए जाते हैं।
4. मिट्टी के बर्तनं में आयरन, कैल्शियम, मैगनीशियम
और मैंगनीज प्र्याप्त मात्रा में होते हैं।
5. निःसन्देह, जहाँ एल्युमीनियम कुकर में
दाल 20 मिनट
में बनकर तैयार हो जाती है, वहाँ मिट्टी की हाँडी में 40 मिनट
लग जाएँगे। परन्तु समय की तुलना में स्वाद और सेहत अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं।
6. पहले घरों में दूध उबालने, दही
जमाने, दाल
पकाने, चावल
बनाने व अचार रखने के लिए मिट्टी के बर्तनों का ही इस्तेमाल किया जाता थां आज
विदेशी अंधानुकरण के चलते, हम एल्युमीनियम के बर्तनों में भोजन पका रहे
हैं और रोगों को बुला रहे हैं। इसलिए स्वयं को रोगमुक्त और पूर्णतः स्वस्थ रखने के
लिए एल्युमीनियम के बर्तनों के स्थान पर मिट्टी के बर्तनों का ही प्रयोग करें।
रोटी को लपेटने के लिए एल्युमीनियम पन्नी की बजाय सूती कपड़े का इस्तेमाल करें।
7. यदि मिट्टी के बर्तनों उपलब्ध नहीं हैं, तो
काँसे, पीतल, स्टील
या लोहे के बर्तनों का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। प्रतिदिन कुछ मात्रा में लोहा
हमारी देह में लोहे के बर्तनों से जाता है। परन्तु देह में लोहे की कमी के कारण, हमारे
लिए यह मात्रा सुरक्षित है। लाल रक्त कोशिकाओं को बनाने में भी लोहे का विशिष्ट
योगदान है। इसलिए आप लोहे की कढ़ाई का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
Thanks to Shri Rajiv Dixit & Akhand Gyan for this useful information
काँसा 93 प्रतिशत
पीतल 87 प्रतिशत
bahut achhi bat hai ,,,, rajeev dikshti ji me bhut phle btai thi
ReplyDeleteGood ग्यान वर्धक
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