एक बार एक व्यक्ति ने
सन्त सुक्रात से पुछा मानवी जीवन में सबसे मुल्यवान वस्तु कौन सी हैं। उनका उत्तर
था। प्रेम पूछने वाला चैंक पडा उत्तर उसकी अपेक्षा के विपरीत था। उसने सोचा था
आत्मा परमात्मा या इनसे सम्बन्धित कोई अन्य दार्शनिक शब्द उनके मुख से निकलेगा। पर
सन्त के उत्तर से वह आवाक रह गया।
प्रेम संसार की अकेली ऐसी अपार्थिव चीज है
जिसे हर कोई प्राप्त करना चाहता है। चाहे वो अमीर हो या गरीब शिक्षित हो या
अशिक्षित सब समान रूप से इसकी उपेक्षा दूसरों से करते हैं। मनुष्य का सारा दर्शन
समस्त काव्य सम्पूर्ण धर्म एवं समग्र संस्कृति इसी एक शब्द से अनुप्रेरित है।
जीवन में सवंेदना की कमी सबसे बडी दरिद्रता
हैं। जिसके भीतर का यह स्रोत सूख गया उससे बढकर दीन हीन इस संसार में कोई दूसरा
नही हैं। हम अपने अन्दर प्रेम तत्व विकसित करके परमात्मा के समीप पहुंच जाते हैं।
सबसे उत्तम प्रकार का प्रेम भक्ति बताया गया हैं। ईश्वर के प्रति प्रेम की
पराकाष्ठा ही समर्पण हैं।
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