तव्चा की प्राकृतिक अथवा कृत्रिम सुन्दरता
वर्ष २०१४ में सेंटर फॉर साइंस में कईं सौंदर्य प्रसाधनों की जांच की गई , इनमे तव्चा का रंग निखारने का दवा करने वाली क्रीम , उम्र कम करने वाली लिपस्टिक आदि ७३ कॉस्मेटिक उत्पाद शामिल थे। जांच के उपरांत तो तथ्य सामने आए, वे किसी को भी अचंभित कर सकते हैं। ३२ फेयरनेस क्रीमों में से १४ में भारी मात्रा में मर्करी ( पारा ) पाया गया ड्रग्स एवं कॉस्मेटिक एक्ट के निर्देशानुसार, सौंदर्य उत्पादों में मर्करी के प्रयोग पर पाबंदी है ; जबकि इन उत्पादों में मर्करी की मात्रा ४० प्रतिशत व हाइड्रोकिवनों, लैंड , निकल , क्रोमियम तथा स्टेरॉएड आदि रसायनों की मात्रा ६० प्रतिशत तक पाई गई।
इसके आलावा कुछ रसायन ऐसे भी है। जिनका सौंदर्य प्रसाधनों में बहुतायत से इस्तेमाल होता है। इनमे हाइड्रोकिवनों एक अच्छा ब्लीचिंग एजेंट माना जाता है , लेकिन इसका नियमित इस्तेमाल तव्चा को बदरंग कर सकता है। ग्लाइकोलिक एसिड , रेटिनॉल और बीटा हयडरक्सी एसिड त्वचा को गोरा व चमकदार बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाते है , जिनसे तव्चा की प्राकृतिक रूप से अल्ट्रावॉयलेट किरणों से लड़ने की क्षमता पर असर पड़ता है। तव्चा जल्दी बूढ़ी दिखने लगती है और चेहरे पर झुर्रिया आने लगती है। ट्रेटिंनॉएन , त्वचा को टोन करने के लिए किया जाता है , लेकिन इसके अधिक इस्तेमाल से तव्चा पर लाल निशान पड़ जाते हैं। इससे तव्चा पतली व रूखी पड़ जाती है। इसके अलावा सिलिकॉन का प्रयोग क्रीम को मुलायम बनाने के लिए इस्तेमाल होता है , लेकिन इससे एलर्जी भी हो सकती है।
तव्चा संबंधी कुछ शोधों के अनुसार, क्रीम तथा अन्य प्रसाधनों से प्राकृतिक रंग में २० प्रतिशत तक गोरापन संभव है। इसे ज्यादा का दावा करने वाले उत्पाद केवल भ्र्म पैदा करते हैं। दरअसल ये क्रीम केवल सूर्य की किरणों से बचाव करती है, ऐसी तव्चा में मेलेनिन का निर्माण कम होने की वजह से होता है। बिना सोचे-समझे, रंग गोरा करने की चाह में इनका अधिक इस्तेमाल नुकसान ही पहुंचाता है।
आमतौर पर २५ से २८ दिनों में हमारे शरीर में तव्चा की नई परत बनती है और इससे तव्चा अपना रंग बदलती है लेकिन किसी ब्लीचिंग एजेंट के सम्पर्क में आने पर तव्चा की बनने वाली नई परत बहुत शीघ्र ही उपर आ जाती है। तो हमारी तव्चा अल्ट्रावयलेट किरणों के प्रति संवेदनशील हो जाती है ; जबकि हमारी तव्चा के मेलेनिन पिगमेंट्स सूर्य की अल्ट्रावॉयलेट किरणों से उसे बचाते है।
विशेषज्ञों के अनुसार , रसायनों के प्रयोग से हमारी तव्चा पर सिर्फ पॉलिश होती है। असली खूबसूरती व चमक के लिए तव्चा का आंतरिक रूप से स्वस्थ होना जरूरी है और ऐसा तभी सम्भव है , जब तव्चा को स्वस्थ रखने व रक्त को शुद्ध करने के लिए जरूरी सभी पोषक तत्वों का सेवन किया जाएगा। इसके अतिरिक्त आयुर्वेदिक औषधियों , जैसे - गिलोय , खदिर , सारिवा , आँवला आदि का सेवन विशेषज्ञों के परामर्श के आधार पर किया जा सकता है। इसके अलावा तव्चा की साफ़-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
तव्चा को साफ रखने के लिए देशी तरीकों में मुलतानी मिट्टी व काली मिट्टी का प्रयोग , बेसन-हल्दी डीके प्रयोग प्रमुख है। तव्चा की मृत कोशिकाओं की सफाई में कच्चे दूध या मलाई को रुई में भिगोकर उसे तव्चा पर मलने से भी लाभ होता है। चंदन को घिसकर तव्चा पर लगाने से भी तव्चा चिकनी, स्वस्थ व चमकदार बनती है। देशी तरिके अपनाकर बनाए गए फेस पैक भी तव्चा की रंगत निखारने में लाभकारी होते है। रंगत निखारना एक बात है , लेकिन उसे गोरा बनाने के प्रयास में पूरी तरह जुट जाना अलग बात है ; क्योकि कभी भी साँवले रंग की तव्चा को गोरा नहीं बनाया जा सकता , थोड़े समय के लिए भले ही उस पर मेकअप करके गोरा बना दिया जाए , लेकिन स्थायी रूप से गोरापन पाना सम्भव नहीं है। इसलिए अपनी इस मानसिकता को बदलना होगा की गोरा रंग ही सूंदर होता है और अच्छ दीखता है। साँवला रंग भी उतना ही सलोना लगता है , यदि तव्चा स्वस्थ हो।
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