Monday, August 31, 2020

पंचकोषी रोग निवारण विधि

इस विधि में पाँच विभिन्न स्तरों पर रोग निवारण की प्रक्रिया अपनाई जाती है। जिससे जटिल रोगों का भी समूल नाश सम्भव है। 

1. अन्नामय कोष के स्तर पर

इस स्तर पर हम शरीर की सात धातुओं को जितना मजबूत कर सके उतना अच्छा होगा। धातुओं के पोषण का पूरा विज्ञान आयुर्वेद ने दिया है। अन्नमय कोष के स्तर पर रक्तचाप नियन्त्रण हेतु नमक कम लेना प्रायः सर्वविदित है। इस दिशा में लेखक ने सौ महत्त्वपूर्ण सूत्रों का संकलन किया है। कृपया पढ़ें ‘स्वास्थ्य के सौ अनमोल सूत्र (100 Golden Rules for Health )’

2. प्राणमय कोष

व्यक्ति के कर्मो का सीधा प्रभाव उसके प्राणमय कोष पर पड़ता है। अतः कर्मों की पवित्रता आवश्यक है। जिनका प्राणमय कोष मजबूत होता है वो बहुत उल्टे काम करने पर भी स्वस्थ रहते हैं व जिनका प्राणमय कोष कमजोर होता है वो थोडे़ से गलत कार्यों से ही रोगी हो जाते हैं। पुराणों में असुरों के लोगों को सताने व दुराचार करने की अनेक कहानियाँ आती हैं। परन्तु ये असुर लम्बे समय तक पहले तप भी तो करते हैं जिससे उनका प्राणमय कोष मजबूत हो जाता है। दीपक को जलाना व यज्ञ कराना प्राणों में सन्तुलन उत्पन्न करता है वातावरण के दूषित प्राणों से हमारी रक्षा करता है।

निर्भयता प्राणमय कोष को सशक्त बनाने का अच्छा माध्यम है। गलती पकड़े जाने का भय व्यक्ति के प्राणमय कोष को कमजोर बनाता है। अतः हमेशा सन्मार्ग पर चलें (Always follow the righteous Path)। जिस व्यक्ति का प्राणमय कोष जितना अच्छा होता है वह उतना निर्भय होता है व जो जितना निर्भय होता है उसका प्राणमय कोष उतना मजबूत होता है। आत्मा की अमरता मृत्यु भय व अन्य डरों में कमी लाता है। अतः आत्मा की अमरता का अभ्यास करें। पूर्व में राणा प्रताप, तात्यॉं टोपे, लक्ष्मी बाई आदि वीरों व अनेक ऋषियों का प्राण बडा़ जानदार होता था। परन्तु आज व्यक्ति का प्राण दुर्बल होता जा रहा है। कहते हैं ‘वीर भोग्या वसुन्धरा’ अर्थात् जो वीर है जिसका प्राण मजबूत है वही स्वस्थ है वही धरती का भोग अर्थात् सुख ले सकता है। दुर्बल प्राण अर्थात् रोगी का जीवन सुख-चैन से रहित हो जाता है।

प्राणमय कोष को मजबूत करने का विज्ञान ‘प्राणायाम विद्या’ के अन्तर्गत आता है। आज के युग में यह विद्या लुप्तप्रायः ही है। या यह कहा जा सकता है कि व्यक्ति की जीवन शैली इस प्रकार बनती जा रही है कि उसका प्राण दुर्बल हो गया है। इस पर एक स्वतन्त्र पुस्तक आवश्यक है।

धन्य धन्य गौमाता

वह समय था 19वीं एवं 20वीं सेंचुरी का अर्थात 1800 से लेकर 1999 का समय। भारत में आक्रमणकारी आतताइयों के अलावा कोई और भी था जिसने त्राहिमाम मचा रखा था। वैसे तो यह त्राहिमाम हजारां-वर्षो से मचा हुआ था किंतु सिर्फ 20वी सेंचुरी में 300 मिलियन अर्थात 30 करोड़ लोग इस त्राहिमाम से परलोक सिधार चुके थे। क्या था यह त्राहिमाम। यह था एक छोटा सा वायरस। नाक और गले के माध्यम से एक अदृश्य वायरस मानव के शरीर में घुस जाता था। फेफड़ों में जाकर फ्लू और बुखार जैसे लक्षण आते थे, फिर पूरा शरीर फफोलो से भर जाता था। गाँव के लोग इस महामारी को बड़ी माता कहते थे और वैज्ञानिक लोग चेचक। चेचक होते ही 10 में से 4 लोगो को मरना ही होता था। समय बीत रहा था विश्व भर में बेहिसाब लोग चेचक से मर रहे थे किन्तु भारत में लोगों का एक समूह था जिनको चेचक होता ही नहीं था और यह था भारत के गौ पालक ग्वालों का समूह।

ये ग्वाले दिन भर गौमाता के सानिध्य में रहते, उनको चराते, नहलाते दुहते। इस समूह से बाहर जब लोग बड़ी माता से मर रहे होते, इन ग्वालों को बस थोड़ा था बुखार होता, दो चार पिम्पल्स और वो ठीक हो जाते। लम्बी कथा को शार्ट करता हूँ, ग्वालों की इस महामारी बड़ी माता से रक्षा और कोई नही, गाय माता ही कर रही थी। होता यह था कि गाय के शरीर बड़ी माता का खतरनाक वायरस गाय के शरीर में रहने वाले गाय के वरिओला नामक वायरस के समक्ष घुटने टेक देता था और गाय को तो बड़ी माता से कुछ होता ही नही था, वरन गाय के सानिध्य में रहने वाले मनुष्य भी बड़ी माता से सुरक्षित हो जाते थे।

भारत के ग्वालों के इस अनुभव को एडवर्ड जेनर नाम के एक अंग्रेज वैज्ञानिक ने कैश किया और गाय के शरीर से इसी वैरियोला वायरस के पीप को निकाल कर इसी पीप को मनुष्यों में देना शुरू कर दिया ताकि वो लोग जो गाय के सानिध्य में नही रहते उनको भी गाय के इस चमत्कारी श्राव के द्वारा बड़ी माता से बचाया जा सके। हजारों वर्षों से धरती पर त्राहिमाम मचाती चेचक अर्थात बड़ी माता का निदान विश्व को मिल गया था। यही चेचक की वैक्सीन थी और विश्व की प्रथम वैक्सीन भी। इस वैक्सीन को खोजने का श्रेय मिला अंग्रेज एडवर्ड जेनर को, लोग भारत के ग्वालों को भी भूल गए और गाय को भी। यह कथा फिर कभी, किन्तु कथा का सारांश यह है कि हजारो वर्षो की महामारी का इलाज मिला गौं माता से।

किसी को उल्टी हो रही हो तो उसको रोकने के घरेलु नुस्खे

अगर किसी को उल्टी हो रही हो तो उसको रोकने के घरेलु नुस्खे- उल्टी रोकने के लिये मुख्यतः दो सबसे बेहतरीन घरेलु उपाय है। उल्टी कई कारणों से होती है। लेकिन मैं दो बिन्दुओ का जिक्र कर रहा हूँ। गैस्ट्राइटिस (गर्मियों में) अथवा कोल्ड स्ट्रोक की वजह से। मैं जो दो प्रकार के घरेलु उपाय बता रहा हूँ दोनों ही प्रकार की उल्टी रोकने कारगर हैं।

अजवाइन- अजवाइन गैस और अपच के लिए बेहतरीन घरेलु उपाय है। अजवाइन एक चम्मच गुनगुने पानी के साथ फांक ली जाये तो उल्टी को फ़ौरन रोका जा सकता है। इसे गर्मियों में प्राथमिक रूप से लिया जा सकता है, हालांकि सर्दियों में भी ले सकते हैं।

बड़ी इलाइची- बड़ी इलाइची को छिलके सहित तवे पर भून (जब तक छिलका सुलगने ने लगे) कर उसके बीज निकाल ले। फिर बीज पीस कर चुटकी भर गुनगुने पानी से फांक ले।

दोनों ही स्थिति में पानी बहुत कम मात्रा में ले। ध्यान रहे जब तक उल्टी हो रही है तब तक पानी बहुत थोड़ा-सा ही पीना चाहिए।

Wednesday, August 19, 2020

स्वास्थ्य को नज़रंदाज़ न करें

    जवानी के जोश में व्यक्ति होश खो बैठता है उसे नज़र आता है शराब व कवाब का मजा व उसमे जग उठती है अंधाधुन्द धन कमाने की इच्छा, दौलत कमाने के चक्कर में अपना स्वास्थ्य खो बैठता है और फिर जीवन का सत्य नज़र आता है कि वह यह क्या कर गया| जब एक मजदुर को चैन की नींद सोते देखता है। बड़े अस्पतालों के चक्कर लगाते-2 उसकी नींद व शांति दोनों ही छीन चुकी होती हैं। आज उस डॉ. से समय (Appointment) लेना है तो आज दूसरे से। पर अब पछतावा क्या होता है जब चिड़िया चुग गयी खेत| अपनी मुर्खता पर आंसू बहाने के आलावा उसके पास कोई रास्ता नहीं रहता।

जैसे ही व्यक्ति 45 पर करता है निम्न रोंगों व दवाओं का कुचक्र उसको बर्बाद करने के लिए सामने खड़ा नज़र आता है।

1. उच्च रक्तचाप की दवा

2. मधुमेह की दवा 

3. यूरिक एसिड कम करने की दवा

4. कोलेस्ट्रोल कम करने की दवा

5. एसिडिटी दूर करने की दवा

6. नींद लेन की दवा

7. डिप्रेशन दूर करने की दवा

8. Anxietyनियंत्रण करने की दवा 

9. कव्जदूर करने की दवा

10. दर्द दूर करने की दवा

    इन दस दवाओं में से कोई दो या तीन दवाएँ लगभग एक चोथाई जनता को 45 वर्ष से ऊपर की उम्र में देने की आवश्यकता आन पड़ी हैं और यदि समाज में स्वास्थ्य के प्रति जाग्रति न आयी तो आने वाले 5 वर्षो में इस दवाओं की खपत दुगनी हो जाएगी| ये सभी दवाएँ Slow Poison हैं जो हमारे Liver कोधीरे-2 करके Damage करती चली जाती है व व्यक्ति में अनेक जटिलताएं उत्पन्न होती हैं। यदि हम इनसे पीछा छुड़ाना है तो हमें युवा उम्र में ही कोई न कोई स्वास्थ्य संवर्धन का तरीका अवश्य अपनाना होगा| चाहे कोई योग केंद्र में जाएँ और चाहे कोई खेलकूद अपनायें। अन्यथा स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही बढती उम्र हमारे लिए बहुत दर्दनाक साबित हो सकता हैं|


Wednesday, August 5, 2020

दीर्घायु

अपनी दिनचर्या में कौनसी दस चीज़ें शामिल करें की रोगों से बचाव हो सके?
अगर आप अपनी दिनचर्या में ये 10 चीजें शामिल कर लें तो रोग आपको छू भी नहीं पायेगा। हृदय रोग, शुगर , जोड़ों के दर्द, कैंसर, किडनी, लीवर आदि के रोग आपसे कोसों दूर रहेंगे । 
1. आंवला:-
किसी भी रूप में थोड़ा सा आंवला हर रोज़ खाते रहे, जीवन भर उच्च रक्तचाप और हार्ट फेल नहीं होगा, इसके साथ चेहरा तेजोमय बाल स्वस्थ और सौ बरस तक भी जवान महसूस करें।
2. मेथी:-
मेथीदाना पीसकर रख ले। एक चम्मच एक गिलास पानी में उबाल कर नित्य पिए। मीठा, नमक कुछ भी नहीं डाले इस पानी में। इस से आंव नहीं बनेगी, शुगर कंट्रोल रहेगी जोड़ो के दर्द नहीं होंगे और पेट ठीक रहेगा।
3. छाछ:-
तेज और ओज बढ़ने के लिए छाछ का निरंतर सेवन बहुत हितकर हैं। सुबह और दोपहर के भोजन में नित्य छाछ का सेवन करे। भोजन में पानी के स्थान पर छाछ का उपयोग बहुत हितकर हैं
4. हरड़:-
हर रोज़ एक छोटी हरड़ भोजन के बाद दाँतो तले रखे और इसका रस धीरे धीरे पेट में जाने दे। जब काफी देर बाद ये हरड़ बिलकुल नरम पड़ जाए तो चबा चबा कर निगल ले। इस से आपके बाल कभी सफ़ेद नहीं होंगे, दांत 100 वर्ष तक निरोगी रहेंगे और पेट के रोग नहीं होंगे, कहते हैं एक सभी रोग पेट से ही जन्म लेते हैं तो पेट पूर्ण स्वस्थ रहेगा।
5. दालचीनी और शहद:-
सर्दियों में चुटकी भर दालचीनी की फंकी चाहे अकेले ही चाहे शहद के साथ दिन में दो बार लेने से अनेक रोगों से बचाव होता है।
6. नाक में तेल:-
रात को सोते समय नित्य सरसों का तेल नाक में लगाये। 5 – 5 बूंदे बादाम रोगन की या सरसों के तेल की या गाय के देसी घी की हर रोज़ डालें।
7. कानो में तेल:-
सर्दियों में हल्का गर्म और गर्मियों में ठंडा सरसों का तेल तीन बूँद दोनों कान में कभी कभी डालते रहे। इस से कान स्वस्थ रहेंगे।
8. लहसुन की कली:-
दो कली लहसुन रात को भोजन के साथ लेने से यूरिक एसिड, हृदय रोग, जोड़ों के दर्द, कैंसर आदि भयंकर रोग दूर रहते हैं।
9. तुलसी और काली मिर्च:-
प्रात: दस तुलसी के पत्ते और पांच काली मिर्च नित्य चबाये। सर्दी, बुखार, श्वांस रोग, अस्थमा नहीं होगा। नाक स्वस्थ रहेगी।
10. सौंठ:-
सामान्य बुखार, फ्लू, जुकाम और कफ से बचने के लिए पीसी हुयी आधा चम्मच सौंठ और ज़रा सा गुड एक गिलास पानी में इतना उबाले के आधा पानी रह जाए। रात क सोने से पहले यह पिए। बदलते मौसम, सर्दी व वर्षा के आरम्भ में यह पीना रोगो से बचाता हैं। सौंठ नहीं हो तो अदरक का इस्तेमाल कीजिये।
    अधिक जानकारी के लिए ‘स्वस्थ भारत’ A Manual for Healthy life & Healthy India पढ़ें। 
mail id: rkavishwamitra@gmail.com

अचानक दिल का दौरा पड़ने पर हम को क्या करना चाहिए जिससे जान बच जाए?

मुद्रा चिकित्सा में “अपान वायु मुद्रा “ का वर्णन है,
यह मुद्रा वायु मुद्रा अपान मुद्रा को मिलाकर बनाई गयी है, इसका प्रभाव हृदय पर विशेष रूप से पडता है । अतः इसे हृदय - मुद्रा, मृतसंजीवनी मुद्रा भी कहा जाता है ।
फ़ायदे : 
(१) यह तुरन्त प्रभाव दिखाने वाली मुद्रा है । दिल का दौरा रोकने में यह मुद्रा इंजेक्शन के समान असर करती है 
(२) इस मुद्रा के प्रभाव से पेट की गैस व शारीरिक वायु, दोनो का ही शमन होता है 
(३) दिल के दौरे का आभास होते ही इस मुद्रा का तत्काल प्रयोग करना चाहिये, जो प्रभावशाली इंजेक्शन या सोरबीटेट गोली की तरह जादूवत काम करता है और रोगी की अस्पताल पहोचने तक मृत्यु से रक्षा हो जाती है
(४) इसके अन्य लाभों में हृदय की धड़कन और कमजोरी में इस मुद्रा से लाभ मिलना शामिल है 
(५) इस मुद्रा के प्रभाव से हाथों की हृदय रेखा व अविकसित -अतिविकसित चंद्र और सूर्य पर्वत में लाभ होता है।
समय -सीमा : इस मुद्रा को सुबह- शाम १५ -१५ मिनट करना लाभकारी है

apan vayu mudra Archives - Today Bhaskar