Wednesday, August 30, 2023

जिंदगी में क्या सीखना सबसे जरूरी है?

एक गधा पेड़ से बंधा हुआ था।
शैतान आया और उसने उस गधे की रस्सी खोल दी।
वो गधा खेत में घुसा और उधम मचाना शुरू किया।
उस खेत के मालिक की बीवी ने उस गधे को बंदूक चला कर धराशाई कर दिया।
गधे के मालिक को ये देख कर प्रकोपकारी गुस्सा आ गया। उसने बड़ा सा पत्थर उस खेत के मालिक के बीवी के सिर में डाल कर उसे ढेर कर दिया।
खेत का मालिक घर आया, अपनी बीवी को खून से लथपथ देख कर उसने उस गधे के मालिक को मार डाला।
अब गधे के मालिक की बीवी ने अपने बच्चो को उस किसान के घर को आग लगाने का कहा।रात के अंधेरे में उस किसान के बचने के कोई आसार नहीं रहेंगे इस खुशी में वो दोनो बच्चे घर आए।
पर उस आग में से को किसान बच गया और घर आ कर उसने उस गधे के मालिक की बीवी बच्चो को गोली से उड़ा दिया।
जेल की सलाखों के पीछे अपना पूरा घर परिवार, पड़ोसी, जमीन जायदाद सब खो चुका किसान सोच में पड़ा रहा। उसने शैतान से पूछा, ये सब कैसे हुआ?
शैतान बोला," मैंने कुछ भी नहीं किया इस बार, मैंने सिर्फ गधे को संखल से मुक्त किया। तुम उस पर क्रिया प्रतिक्रिया करते रहे और अपने अंदर के शैतान को मुक्त किया।"
तो अब किसी बात का जवाब देते वक्त, प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, किसी को कुछ जानकारी देते हुए, बदला लेते हुए, किसी को कोसते हुए….., रुकिए और विचार कीजिए।
खयाल रखिए, क्युकी आज कल शैतान क्या करता है….कुछ भी नहीं करता, वो सिर्फ आप के अंदर के गधे की सांखल खोलता है।

रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना

 7 मार्च 1679 ई0 की बात है, ठाकुर सुजान सिंह अपनी शादी की बारात लेकर जा रहे थे, 22 वर्ष के सुजान सिंह किसी देवता की तरह लग रहे थे, ऐसा लग रहा था मानो देवता अपनी बारात लेकर जा रहे हों।
उन्होंने अपनी दुल्हन का मुख भी नहीं देखा था, शाम हो चुकी थी इसलिए रात्रि विश्राम के लिए “छापोली” में पड़ाव डाल दिये। कुछ ही क्षणों में उन्हें गायों में लगे घुंघरुओं की आवाजें सुनाई देने लगी, आवाजें स्पष्ट नहीं थीं, फिर भी वे सुनने का प्रयास कर रहे थे, मानो वो आवाजें उनसे कुछ कह रही थी।
सुजान सिंह ने अपने लोगों से कहा, शायद ये चरवाहों की आवाज है जरा सुनो वे क्या कहना चाहते हैं। गुप्तचरों ने सूचना दी कि युवराज ये लोग कह रहे है कि कोई फौज “देवड़े” पर आई है। वे चौंक पड़े। कैसी फौज, किसकी फौज, किस मंदिर पे आयी है?
जवाब आया “युवराज ये औरंगजेब की बहुत ही विशाल सेना है, जिसका सेनापति दराबखान है, जो खंडेला के बाहर पड़ाव डाल रखी है। कल खंडेला स्थित श्रीकृष्ण मंदिर को तोड़ दिया जाएगा। निर्णय हो चुका था।
एक ही पल में सब कुछ बदल गया। शादी के खुशनुमा चहरे अचानक सख्त हो चुके थे, कोमल शरीर वज्र के समान कठोर हो चुका था। जो बाराती थे, वे सेना में तब्दील हो चुके थे, वे अपनी सेना के लोगों से विचार विमर्श करने लगे। तब उनको पता चला कि उनके साथ सिर्फ 70 लोगो की सेना थी।
तब रात्रि के समय में बिना एक पल गंवाए उन्होंने पास के गांव से कुछ आदमी इकठ्ठे कर लिए। करीब 500 घुड़सवार अब उनके पास हो चुके थे।
अचानक उन्हें अपनी पत्नी की याद आयी, जिसका मुख भी वे नहीं देख पाए थे, जो डोली में बैठी हुई थी। क्या बीतेगी उसपे, जिसने अपनी लाल जोड़े भी ठीक से नहीं देखी हो।
वे तरह तरह के विचारों में खोए हुए थे, तभी उनके कानों में अपनी माँ को दिए वचन याद आये, जिसमें उन्होंने राजपूती धर्म को ना छोड़ने का वचन दिया था, उनकी पत्नी भी सारी बातों को समझ चुकी थी, डोली की तरफ उनकी नजर गयी, उनकी पत्नी महँदी वाली हाथों को निकालकर इशारा कर रही थी। मुख पे प्रसन्नता के भाव थे, वो एक सच्ची क्षत्राणी का कर्तव्य निभा रही थी, मानो वो खुद तलवार लेकर दुश्मन पे टूट पड़ना चाहती थी, परंतु ऐसा नहीं हो सकता था।
सुजान सिंह ने डोली के पास जाकर डोली को और अपनी पत्नी को प्रणाम किये और कहारों और नाई को डोली सुरक्षित अपने राज्य भेज देने का आदेश दे दिया और खुद खंडेला को घेरकर उसकी चौकसी करने लगे।
लोग कहते हैं कि मानो खुद कृष्ण उस मंदिर की चौकसी कर रहे थे, उनका मुखड़ा भी श्रीकृष्ण की ही तरह चमक रहा था।
8 मार्च 1679 को दराबखान की सेना आमने सामने आ चुकी थी, महाकाल भक्त सुजान सिंह ने अपने इष्टदेव को याद किया और हर हर महादेव के जयघोष के साथ 10 हजार की मुगल सेना के साथ सुजान सिंह के 500 लोगो के बीच घनघोर युद्ध आरम्भ हो गया।
सुजान सिंह दराबखान को मारने के लिए उसकी ओर लपके और मुगल सेना के 40 लोगो को मौत के घाट उतार दिया। ऐसे पराक्रम को देखकर दराबखान ने पीछे हटने में ही भलाई समझी, लेकिन ठाकुर सुजान सिंह रुकनेवाले नहीं थे। जो भी उनके सामने आ रहा था वो मारा जा रहा था। सुजान सिंह साक्षात मृत्यु का रूप धारण करके युद्ध कर रहे थे। ऐसा लग रहा था मानो खुद महाकाल ही युद्ध कर रहे हों।
इस बीच कुछ लोगों की नजर सुजान सिंह पे पड़ी, लेकिन ये क्या सुजान सिंह के शरीर में सिर तो है ही नहीं…
लोगों को घोर आश्चर्य हुआ, लेकिन उनके अपने लोगों को ये समझते देर नहीं लगी कि सुजान सिंह तो कब के मोक्ष को प्राप्त कर चुके हैं। ये जो युद्ध कर रहे हैं, वे सुजान सिंह के इष्टदेव हैं। सबों ने मन ही मन अपना शीश झुकाकर इष्टदेव को प्रणाम किये।
अब दराबखान मारा जा चुका था, मुगल सेना भाग रही थी, लेकिन ये क्या, सुजान सिंह घोड़े पे सवार बिना सिर के ही मुगलों का संहार कर रहे थे। उस युद्धभूमि में मृत्यु का ऐसा तांडव हुआ, जिसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मुगलों की 7 हजार सेना अकेले सुजान सिंह के हाथों मारी जा चुकी थी। जब मुगल की बची खुची सेना पूर्ण रूप से भाग गई, तब सुजान सिंह जो सिर्फ शरीर मात्र थे, मंदिर का रुख किये।
इतिहासकार कहते हैं कि देखनेवालों को सुजान के शरीर से दिव्य प्रकाश का तेज निकल रहा दिख था, एक अजीब विश्मित करने वाला प्रकाश निकल रहा था, जिसमें सूर्य की रोशनी भी मन्द पड़ रही थी।
ये देखकर उनके अपने लोग भी घबरा गए थे और सब ने एक साथ श्रीकृष्ण की स्तुति करने लगे, घोड़े से नीचे उतरने के बाद सुजान सिंह का शरीर मंदिर की प्रतिमा के सामने जाकर लुढ़क गया और एक शूरवीर योद्धा का अंत हो गया।
माँ भारती के इस शूरवीर योद्धा को कोटि कोटि नमन।

Monday, August 28, 2023

भगवान व मौत को याद रखें

 राबिया बसरी एक महशूर फ़क़ीर हुई है! जवानी में वह बहुत खूबसूरत थी | एक बार चोर उसे उठाकर ले गए और एक वेश्या के कोठे पर ले जाकर उसे बेच दिया | अब उसे वही कार्य करना था जो वहाँ की बाक़ी औरते करती थी |

इस नए घर में पहली रात को उसके पास एक आदमी लाया गया | उसने फौरन बातचीत शुरू कर दी | ' आप जैसे भले आदमी को देखकर मेरा दिल बहुत खुश है " वह बोली | ' आप सामने पड़ी कुर्सी पर बैठ जाये , में में थोड़ी देर परमात्मा की याद में बैठ लूँ | अगर आप चाहे तो आप भी परमात्मा की याद में बैठ जाएँ | 'यह सुनकर उस नवजवान की हैरानी की कोई हद न रही | वह भी राबिया के साथ ज़मीन पर बैठ गया | फिर राबिया उठी और बोली ' मुझे विश्वास है की अगर में आपको याद दिला दूँ की एक दिन हम सबको मरना है तो आप बुरा नही मानोगे | आप यह भी भली भाँति समझ ले की जो गुनाह करने की आपके मन में चाहा है , वह आपको नर्क की आग में धकेल देगा | आप खुद ही फैसला कर ले की आप यह गुनाह करके नर्क की आग आग में कूदना चाहते है या इससे बचना चाहते है|'
यह सुनकर नवजवान हक्का बक्का रह गया| उसने संभलकर कहा, ऐ नेक और पाक औरत, तुमने मेरी आँखे खोल दी , जो अभी तक गुनाह के भयंकर नतीजे की और बंद थी | मै वादा करता हूँ की फिर कभी कोठे की तरफ कदम नही बढ़ाऊंगा |
हर रोज नए आदमी राबिया के पास भेजे जाते | पहले दिन आये नवजवान की तरह उन सबकी जिंदगी भी पलटती गयी | उस कोठे के मालिक को बहुत हैरानी हुई की इतनी खूबसूरत और नवजवान औरत है और एक बार आया ग्राहक दोबारा उसके पास जाने के लिए नही आता, जबकि लोग ऐसी सुन्दर लड़की इए दीवाने होकर उसके इर्दगिर्द | ऐसे घूमते है जैसे परवाने शमा के इर्दगिर्द | यह राज जानने के लिए उसने एक रात अपनी बीवी को ऐसी जगह छुपाकर बिठा दिया, जहां से वह राबिया के कमरे के अंदर सब कुछ देख सकती थी | वह यह जानना चाहता था की जब कोई आदमी राबिया के पास भेजा जाता है तो वह उसके साथ कैसे पेश आती है?
उस रात उसने देखा की जैसे हीं ग्राहक ने अंदर कदम रखा, राबिया उठकर खड़ी हो गई और बोली,आओ भले आदमी, आपका स्वागत है | पाप के इस घर में मुझे हमेशा याद रहता है की परमात्मा हर जगह मौजूद है | वह सब कुछ देखता है और जो चाहे कर सकता है | आपका इस बारे में क्या ख्याल है ? यह सुनकर वह आदमी हक्का बक्का रह गया और उसे कुछ समझ न आई की क्या करे ? आखिर वह कुछ हिचकिचाते हुए बोला, हाँ पंडित और मौ।लवी कुछ ऐसा ही कहते है |राबिया कहती गई, 'यहाँ गुनाहो से घिरे इस घर में, में कभी नही भूलती की ख़ुदा सब गुनाह देखता है और पूरा न्याय भी करता है वह हर इंसान को उसके गुनाहो की सजा देता है | जो लोग यहाँ आकर गुनाह करते है, उसकी सजा पाते है | उन्हें अनगिनत दुःख और मुसीबत झेलनी पड़ती है | मेरे भाई, हमे मनुष्य जन्म मिला है भजन बंदगी करने के लिए दुनिया के दुखो से हमेशा के लिए छुटकारा पाने के लिये, ख़ुदा से मुलाकात करने के लिए, न की जानवरो से भी बदतर बनकर उसे बर्बाद करने के लिए |
पहले आये लोगो की तरह इस आदमी को भी राबिया की बातो में छुपी सच्चाई का अहसास हो गया | उसे जिंदगी में पहली बार महसूस हुआ की वह कितने घोर पाप करता रहा है और आज फिर करने जा रहा था | वह फूटफूट कर रोने लगा और राबिया के पाव पर गिरकर माफ़ी मांगने लगा|
राबिया के शब्द इतने सहज, निष्कपट और दिल को छु लेने वाले थे की उस कोठे के मालिक की पत्नी भी बाहर आकर अपने पापो का पश्चाताप करने लगी | फिर उसने कहा ऐ नेक पाक लड़की, तुम तो वास्तव में फ़क़ीर हो | हमने कितना बड़ा गुनाह तुम पर लादना चाहा | इसी वक्त इस पाप की दलदल से बहार निकल जाओ ' इस घटना ने उसकी अपनी जिंदगी को भी एक नया मोड़ दे दिया और उस पाप की कमाई हमेशा के लिए छोड़ दी |
उस मालिक के सच्चे भक्त जहां कही भी हो, जिस हालात में हो, वे हमेशा मनुष्य जन्म के असली उद्देश्य की ओर इशारा करते है और भूले भटके जीवो को नेकी की रह पर चलने की प्रेरणा देते है।
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शिक्षाप्रद कहानी

एक दिन बहू ने गलती से यज्ञवेदी में थूक दिया!!!
सफाई कर रही थी मुंह में सुपारी थी पीक आया तो वेदी में थूक दिया पर उसे आश्चर्य हुआ कि उसका थूक स्वर्ण में बदल गया है।
अब तो वह प्रतिदिन जान बूझकर वेदी में थूकने लगी और उसके पास धीरे-धीरे स्वर्ण बढ़ने लगा
महिलाओं में बात तेज़ी से फैलती है इसलिऐ कई और महिलाएं भी अपने-अपने घर में बनी यज्ञवेदी में थूक-थूक कर सोना उत्पादन करने लगी!
धीरे-धीरे पूरे गांव में यह सामान्य चलन हो गया।
सिवाय एक महिला के !
उस महिला को भी अनेक दूसरी महिलाओं ने उकसाया... समझाया...!
“अरी तू क्यों नहीं थूकती?”
“जी, बात यह है कि मैं अपने पति की अनुमति बिना यह कार्य हर्गिज नहीं करूंगी और जहाँ तक मुझे ज्ञात है वह अनुमति नहीं देंगे!”
किन्तु ग्रामीण महिलाओं ने ऐसा वातावरण बनाया कि आख़िर उसने एक रात डरते-डरते अपने ‎पति‬ को पूछ ही लिया।
“खबरदार जो ऐसा किया तो...!
यज्ञवेदी क्या थूकने की चीज़ है?”
पति की गरजदार चेतावनी के आगे बेबस...
वह महिला चुप हो गई पर जैसा वातावरण था और जो चर्चाएं होती थी, उनसे वह साध्वी स्त्री बहुत व्यथित रहने लगी।
ख़ास कर उसके सूने गले को लक्ष्य कर अन्य स्त्रियां अपने नए-नए कण्ठ-हार दिखाती तो वह अन्तर्द्वन्द में घुलने लगी!
पति की व्यस्तता और स्त्रियों के उलाहने उसे धर्मसंकट में डाल देते।
“यह शायद मेरा दुर्भाग्य है...
अथवा कोई पूर्वजन्म का पाप...
कि एक सती स्त्री होते हुए भी मुझे एक रत्ती सोने के लिए भी तरसना पड़ रहा है”
“शायद यह मेरे पति का कोई गलत निर्णय है”
“ओह, इस धर्माचरण ने मुझे दिया ही क्या है?”
“जिस नियम के पालन से ‎दिल‬ कष्ट पाता रहे उसका पालन क्यों करूँ?”
और हुआ यह कि वह बीमार रहने लगी।
पतिदेव‬ इस रोग को ताड़ गए और उन्होंने एक दिन ब्रह्म मुहूर्त में ही सपरिवार ग्राम त्यागने का निश्चय किया।
गाड़ी में सारा सामान डालकर वे रवाना हो गए। सूर्योदय से पहले पहले ही वे बहुत दूर निकल जाना चाहते थे।
किन्तु...
अरे, यह क्या...???
ज्यों ही वे गांव की कांकड़(सीमा) से बाहर निकले!
पीछे भयानक विस्फोट हुआ।
पूरा गांव धू-धू कर जल रहा था!
सज्जन दम्पत्ति अवाक् रह गए।
और उस स्त्री को अपने पति का महत्त्व समझ आ गया।
वास्तव में... इतने दिन गांव बचा रहा,
तो केवल इस कारण...
कि उसका परिवार गांव की परिधि में था।
धर्मांचरण करते रहें...
कुछ पाने के लालच में इंसान बहुत कुछ खो बैठता है...
इसलिए लालच से बचें...😎😊😍
भजन सिमरण करते रहे सतगुरु हमे सही राह चलाए

हमारे दांत मजबूत और चमकदार दांत हो, इसके लिए हमें क्या करना चाहिए?

सुंदर सशक्त दांत हमारे चेहरे को सही आकार देते हैं ,भारत व अन्य विकासशील देशों में अभी दांतो की केयर पर उतना खर्च प्रति व्यक्ति नहीं जितना युरोप व अमेरिका में करते हैं. यदि दांतों की सफाई बचपन से न की जाय तो 15/20 वर्ष की आयु में दंतक्षय शुरू हो जाता है और एक महत्व पूर्ण बात , दांतों का संपूर्ण इलाज ओपन हार्ट सर्जरी से अधिक मंहगा है उदाहरण एक दांत की फिलिंग व रूट कनाल (दांत की जड़ को सजीव रखने की क्रिया) एक दांत का खर्च 3 से 7 हजार तक है और इस पर सेरामिक या मेटालिक कैप का खर्चा भी 3से 7हजार अलग से, और यदि दांत हटाकर नया जबड़े की हड्डी में बोल्ट से सेरामिक दांत लगाया जाय तो 20 से 40 हजार प्रति दांत खर्च हो सकते हैं ,अब गिन लें यदि 15 /20 दांतों में यह किया तो 6 से 9 लाख खर्चा तक हो सकता है साथ ही इस प्रक्रिया को अलग अलग एक एक दांत के लिऐ अलग अलग करवाया तो डेंटल सर्जन के पास आपको 30 बार जाना पड़ सकता है और प्रति विज़िट 2 घंटे साथ दर्द वाली संभावना व खाने की दवाओं का खर्च भी होगा.अब गिन लें ओपन हार्ट सर्जरी में दर्द इससे आधा भी नहीं होता और पेशेंट 4 से 8 दिन में स्वस्थ हो घर वापिस इसका कुल पैकेज का खर्च 3.5 से 6 लाख है.
अब आते हैं दांतो को हमेशा सुरक्षित कैसे रखें . खुराक ,हड्डियों व दांतों की मजबूती के लिये कैल्शियम , विटामिन डी युक्त भोजन ,दूध से बने आहार मछली या काड् लिवर आयल सुनहरे जैली भरे कैप्सूल दो रोज़ ले और वर्ष में कम से कम 100 दिन 35 मिनट धूप का सेवन आपके खाऐ विटामिन डी व कैल्शियम को शरीर में घोलने का काम करेगा . 40 की आयु पश्चात भोजन के अतिरिक्त बाहरी रुप से गोली या एक ग्राम पाऊच, शायद calciferol या ऐसे नाम से 1 ग्राम का पाऊच मिलता है वर्ष भर में 25/ या 30 तक पाऊच अवश्य लें और सही एकदम सटीक जानकारी चाहिए तो बस एकबार हड्डी रोग विशेषज्ञ से मिल कर पूछें प्रति सप्ताह एक दूध में डालकर लेना है इसका पूरा असर दूध में लेने साथ साथ धूप में रोज 30 मिनट बैठने से शरीर इसको शोषित करता है नहीं तो आधा अधूरा असर होता है , हो सके तो जो खा सकते हैं वो दो उबले अंडे रोज़ व सप्ताह में दो बार मछली व अखरोट बादाम अलसी के भुने बीज भी खाऐं नहीं तो सबको 40/45 की आयु पश्चात सबको हड्डियों का क्षरण (घिसना व नये हड्डी के ऊतक नहीं बनना ) होता है विशेषकर महिलाओं को मेनोपॉज के बाद इसकी अधिक आवश्यकता पड़ती है. आपने मेनोपॉज (रजोनिवृत्ति) आयू के बाद देखा होगा कि महिलाओं में घुटनों में दर्द व चलने सीढ़ी चढ़ने में दर्दे या दिक्कतें आती हैं वह इसी की कमी से इसी आयु में शारीरिक परिवर्तन से होता है और सारी आयू इस दर्द को झेलना एक मजबूरी बन जाती है।
केवल सुबह 5 - 7 मिनट ब्रश पेस्ट घिसना जितना लाभ देता है उतना ही नुकसान भी , पहली बात और समझ : हम हमेशा दांतों को घिसकर सारी आयु मूर्खता करते , समझते हैं कि हो गई सफाई जबकि वस्तु स्थिति यह है कि यदि मसूढ़े वृक्ष हैं तो दांत तना व टहनियां हैं अत: जब तक जड़ मजबूत नही तब तक तना भी स्वस्थ नहीं अतः मसूड़ों जीभ , तालू की उंगलियों से मालिश और अधिक जरूरी है , ब्रश को साबुन से मसल धो कर रखें ये नहीं कि एक ही झूठे ब्रश व रोज के बैक्टीरिया से भरे ब्रश से सफाई हो और अब पढ़ें दांतों की सफाई की आसान और सही प्रक्रिया

  1. सुबह की बजाय रात को दांत साफ कर सोयें ,रात में दांतों व मुंह की सफाई न होने से बैक्टीरिया 10 गुना जल्दी से फैलता है,रात को दांत साफ करें तो यह बैक्टीरियल हमला नहीं होता.
  2. सबसे पहले साबुन से हाथ धोकर उंगली से मसूड़ों की 1 या डेढ़ मिनट अंदर बाहर हल्की मालिश करें इससे मसूढों मे रूका तरल बाहर निकलता है , साथ ही जीभ भी दो उंगलियों से साफ करे ,टंग क्लीनर से न करें यह जीभ को छीलता है और जीभ पर जो बिंदिया नुमा टेस्ट बडस् होते हैं उन्हें नुकसान पहुंचता है और खाना खाते समय मिर्चें अधिक लगती हैं
  3. अब टुथपेस्ट उंगली पर लगा कर (ब्रश से नहीं) फिर से मसूड़े व दांत दोनों की 2 मिनट मालिश करें व जीभ पर और जीभ नीचे के अंदर की साईड की भी मालिश और एक या दो मिनट का समय छोड़ दें मुँह में असर होते होते समय लगता है ,इससे पेस्ट का सही असर दांतो व मसूढो़ पर होता है , अब इसके बाद एक मिनट मात्र मीडियम नरम ब्रश से नीचे से उपर व उपर से नीचे ,अंदर बाहर सफाई करें, यदि दो दांतो के बीच कुछ गैप है तो एक स्पेशल ब्रश (नीचे चित्र में फोटो देखें) से उस गैप में यदि कुछ फंसा है तो निकालें यह हरेक के लिऐ नहीं केवल दांतों में गैप है तो वही इसे प्रयोग करें. आप बिना भूले यदि इस तरह से नियमित दांत साफ करते रहें तो मेरा दावा है कि प्रोढ़ायू तक दांत मजबूत चमकदार व मसूढ़े स्वस्थ्य रहेंगे ,रात में यह करने से सुबह आप चाहें तो ब्रश न कर केवल टुथपेस्ट से मात्र डेढ़ मिनट साफ करें इससे सुबह का समय भी बचता है . इसके अतिरिक्त सप्ताह में एक बार फिटकरी का टुकड़ा पानी में सात बार हिलाकर उसकी दो कुल्ली करें या इसके स्थान पर डेंटल ऐंटिसेप्टिक लोशन (चित्र संलग्न है यह मात्र जानकारी के लिए है जरुरी नहीं कि यही लें किसी भी अच्छी कंपनी का लें ) की 8/10 बूंदें मुंह मे मलकर एक कुल्ली कर लें याद रहे यह प्रक्रिया रोज़ाना नहीं केवल सप्ताह में दो बार करनी है ,यदि रोज़ करेंगे तो दांतो के एनामल घिस सकता है और ठंडा गरम लगने की शिकायत हो सकती है. इसके अतिरिक्त हर बार खाने के बाद हर बार पानी से कुल्ली करने की आदत बनाऐं , आजकल कई प्रकार के लिक्विड रंग बिरंगे माउथवॉश भी बाजार में हैं ,पर यदि आप इस लेख के बताऐ तरीके से दांत साफ रखें तो माऊथवाश एक खर्चीली आदत से अधिक कुछ विशेष नहीं वैसे जो कर रहे हैं या करने की क्षमता है तो करें कोई हर्ज नहीं और यह भी ध्यान रहे कि ओरल माउथवॉश तरल मंहगे व पूर्णतया कैमिकल्स ही हैं ये हमारे मुँह के अंदरूनी भाग में खराब बैक्टीरिया के साथ मुँह में कुछ मित्र (लाभकारी) बैक्टीरिया को भी मारता है जिससे पेट के गुड बैक्टीरिया कम होने से पाचनतंत्र कमजोर हो सकता है . ,कुछ व्यक्तियों को मसूढ़ों की सूजन का रोग होता है इसे पायोरिया नाम से जाना जाता है.जिसका स्वंय को महसूस नहीं होता पर दूसरे व्यक्ति उस व्यक्ति के अति नजदीक अपना मुंह करने में असहज महसूस करते हैं यह स्थिति जानने के लिये घर के मेंम्बर से कह कर पूंछें कि वह आपका मुँह सूंघें ओर बताऐं कि तेज बदबू तो नहीं है और यदि ऐसा है तो तुरंत डेंटल सर्जन से चेकअप करा पूरा इलाज कराना जरूरी है अन्यथा घर पर कितने ही दांत साफ कर लें जब तक मसूढे पूर्ण स्वस्थ नहीं होते तो 50/55की आयु में सब दांत गिरने शुरू हो सकते हैं।
अपने अनुभव व क्षमता के अनुसार मैंने बहुत डिटेल्ड उत्तर दिया है ,यदि अपनाया जाये तो गारंटी है कि सत्तर हों या अस्सी साल दांत सही मजबूत रहेंगे. उत्तर पसंद आया तो सोच में न पड़ें आज रात्रि से शुभ प्रारंभ करें ,और विशेष यह कि एक अपवोट भी चाहें तो करें धन्यवाद . तिथि :- 23.सेप्टेंबर.2021…….
विशेष नोट:- लेखक के पास कोई मेडिकल डिग्री या विशेषज्ञता नहीं है ,यह स्वंय के सहज ज्ञान व अनुभव आधारित लिखा गया है , किसी भी सामान्य या टिपिकल रोग निदान हेतु डाक्टर की राय प्रथम लें. चित्र में दिये उत्पाद केवल उदाहरण व पाठकों की जागृति हेतु हैं व लेखक का इन उत्पादों या इनके निर्माता से किसी प्रकार का संबध नहीं. 🙏 भारतमाता की जय .वंदेमातरम

Tuesday, August 22, 2023

Ancient Indian Health tips

 कौनसा जूस या रस कितनी मात्रा में लेना चाहिए

भैषज्य कल्पना विज्ञान ग्रन्थ के अनुसार…

【!v】हल्दी की मात्रा 25 से 50 mg तक निर्धारित है। इससे अधिक लेने पर गर्मी, खुश्की करती है।

【v】नीम इतना ही खाना चाहिए, जिससे कंठ कड़वा हो जाये। ज्यादा लेने पर यह पित्त की वृद्धि करता है।

  • सप्ताह में दो बार मूंग की दाल का पानी जरूर पिएं। हो सके, तो मूंग की दाल में रोटी गलाकर खावें। पेट के रोगों में यह बहुत मुफीद है।
  • रात को फल, जूस, सलाद के सेवन से बचें।
    अरहर की दाल सबसे ज्यादा कब्ज
    पैदा करती है।
  • सुबह बिना नहाए कुुुछ भी
    अन्न न लेवें। अधिकांश लोगों ने यह
    आदत बना ली है कि…सुबह चाय के
    साथ बिस्किट आदि बिना स्नान के ही
    लेते हैं, जो शरीर के लिए बेहद हानिकारक है।

आयुर्वेद चंद्रोदय, द्रव्यगुण विज्ञान, आयुर्वेदिक निघण्टु, भावप्रकाश शास्त्रों के अनुसार शरीर की गन्दगी दूर करने का तरीका-

【१】लोंकी का जूस 20 ml लेना लाभकारी है।

【२】करेले का रस 10 ml पर्याप्त है।

【३】नीम, बेल के पत्तों की 2 से 3 नई कोपल ही लाभदायक है।

【४】आयुर्वेद के अनुसार कोई भी चीज जितनी कम मात्रा में लेंगे, उतना कारगर होगी।

【५】अनेक लोग एक से दो चम्मच तक हल्दी का उपभोग करते हैं, यह हानिकारक है।

【६】रात में ठंडा दूध कफ बढ़ाता है और सुबह ठंडा दूध पियें, तो पित्त सन्तुलित होता है।

ऐसे बहुत से अनुपान आयुर्वेद में बताएं है।

【७】शहद और देशी घी बराबर लेने पर विष हो जाता है।

【८】दिन भर में एक से अधिक नीबू का रस लेने से नपुंसकता आने लगती है।

【९】अरहर की दाल खाएं, तो उस दिन पानी 4 गुना पियें।

【१०】उड़द की दाल की तासीर देशी घी से बेहतरीन होती है।

【११】दिन भर इन समुद्री या सादा नमक 60 फीसदी और सेंधा, काल नमक 40 फीसदी लेना चाहिए।

【१२】कुछ लोग केवल सेंधा नमक का ही इस्तेमाल करते हैं, जिससे रक्त नाड़ियाँ दूषित होने लगती हैं।

अमृतमपत्रिका से with thanks

Monday, August 21, 2023

अनैतिकता की नींव पर नैतिकता का भवन

अनैतिकता की नींव पर नैतिकता का भवन खड़ा नहीं हो सकता है। 


संसार में सारे धर्म, सारे संप्रदाय, सारे महामानव, सारे ऋषि - मनीषी, सारे शास्त्र व सभी मानवों की अन्तर्आत्मा एकमत से नैतिकता का समर्थन करते हैं, नैतिकता को धर्म का प्राण कहते हैं तो क्या नैतिक जीवन मूल्य इतना महत्वपूर्ण है? उत्तर होगा ! हां  नैतिकता विहीन व्यक्ति का प्राणबल ,मनोबल, आत्म बल सब नष्ट हो जाता है । जबकि बल ही संसार में सर्वोपरि संपदा है, शक्ति व सामर्थ्य है । 

जैसे मानवीय शरीर व जीवन प्राण के प्रवाह के कम होने से दुर्बल व रोगी हो जाता है, प्राण विहीन होने से मृत लाश बन जाता है ,उस शरीर में दुर्गंध आने लगती है, कीड़े पड़ जाते हैं ,उनके आंतरिक अंग अववयों का क्षय होने लगता है । ठीक इसी तरह नैतिकता रूपी प्राण जब जीवन से निकल जाता है तो धर्म रूपी शरीर एक लाश के रूप में बन जाता है, उसके अंदर विकृतियों के कीड़े उत्पन्न होने लगते हैं, उसकी दुर्गंध से मानवता परेशान होने लगती है, धर्म के क्षेत्र में छल - छद्म , झूठ,पाखंड, अन्याय , व अत्याचार भी प्रवेश कर जाता है और ऐसे नैतिकता विहीन पाखंडी, अधर्म को धर्म का रूप बनाकर प्रस्तुत करते हैं । क्योंकि अनैतिकता मानव को जो विपरीत बुद्धि का बना देती है, जनहित का चिंतन समाप्त कर निजहित के चिंतन में केन्द्रीत कर देती है इसीलिए अनैतिकता को संसार में त्याज्य कहा गया है लेकिन आज जब हम सत्य की कसौटी पर, नैतिकता की कसौटी पर समाज, राष्ट्र, धर्म- संस्कृति व राजनीति का नेतृत्व करने वालों को कसते हैं तो 100 में 99 फेल होते हैं । जब हम गहराई से बड़े-बड़े राजनेताओं ,बड़े-बड़े धर्माचार्यों ,बड़े-बड़े सामाजिक संगठनों के संचालकों को, बाहर नैतिकता का ढोल पीटने वाले, नैतिकता के आंदोलन चलाने वाले, मंच और माइक पर चिल्ला चिल्ला कर नैतिकता के लिए जमीन आसमान एक करने वाले लोगों के निजी जीवन के भीतर झांककर देखते हैं तो अनैतिकता कूट-कूट कर भरी हुई दिखाई देती है । अगर सचमुच में नैतिक जीवन मूल्यों पर आधारित अभियान खड़े होते, राष्ट्र का निर्माण करने वाले धर्म के आचार्य खड़े होते, राजनेता खड़े होते ,सामाजिक संगठन खड़े होते, जातीय संगठन खड़े होते तो आज संसार की स्थिति, देश और समाज की स्थिति कुछ और होती, प्राणबल ,मनोबल ,आत्मबल से व्यक्ति, परिवार, समाज व राष्ट्र संपन्न होता और ब्रह्मबल (ईश्वरिय) बल की इन सब पर अटूट वर्षा होती लेकिन दुर्भाग्य अनैतिकता का सहारा लेने वाले, छोटी-छोटी सफलताओं के लिए अनैतिकता का उपयोग करने वाले यहां कहां सोचते है ?  संसार के सारे धर्मों का, धर्म संप्रदायों का ,कर्मकाण्डों का, उपासनाओं व साधनाओं का,योग व अध्यात्म की सारी क्रियाओं का मूल उद्देश्य देखा जाए तो वह एक ही है कि मानव नैतिक बने । नैतिकता विहीन व्यक्ति अपने परिवार, समाज व राष्ट्र के लिए कोढ़ स्वरूप है और कहीं महान मिशन में ऐसे अनैतिकता का सहारा लेने लोग बैठ जाए तो उन मिशनों का सर्वनाश कर देते हैं , उनकी भक्ति करने वाले लाखों-करोड़ों लोगों में अपनी प्रवृतियों का समावेश उनके जीवन को पतन के गर्त में गिरा देते हैं । बाहर से पूजा, पाठ, प्रार्थना ,नमाज, कीर्तन, भजन के, दिखावा प्रदर्शन के कितने ही सरंजाम क्यों न खड़ा किया जाए सब सारहीन व ढकोसला मात्र रह जाते हैं इसलिए हे मानव ! नैतिकता जीवन का प्राण है,धर्म का प्राण है , अध्यात्म का प्राण है, जीवन मूल्यों का प्राण है, भारत जब कभी भी जगतगुरु और सोने की चिड़िया रहा उसका मूलाधार नैतिकता ही रही तथा इसी ने इस देश के लोगों को देवता बनाया था लेकिन आज हम कहां खड़े हैं ? हमारा नैतिक मूल्य कितना ऊंचा रहा इस तथ्य को थॉमस बुनरो मैकाले (टी बी मैकाले ) ने भारत आकर जब सर्वेक्षण किया व उन तथ्यों को 2 फरवरी 1835 में हाउस ऑफ कॉमन्स में रखते हुए मैकाले कहता है कि *"मैंने भारत के कोने कोने की यात्रा कि मुझे इस देश में एक भी व्यक्ति चोर और एक भी व्यक्ति भिखारी नहीं मिला"* तो आप कल्पना करिए इन 188 वर्षों में हमारा राष्ट्र क्या से क्या बन गया, कहां गए हमारे जीवन मूल्य ?  हजारों वर्षों तक विदेशी आक्रांताओं के आक्रमणों से हमारी लूट हुई, गुलामी की अवस्था में जिए फिर भी हमने नैतिक मूल्यों का परित्याग नहीं किया यही कारण है कि भारत और भारत की संस्कृति जीवित रही लेकिन आज इस समाज व राष्ट्र को नैतिकता की कसौटी पर कसा जाय व देखा जाए तो नैतिक जीवन मूल्यों में जीने वालों का अकाल पड़ा है । 188 वर्षों में हमारे जीवन मूल्य, हमारी संस्कृति, हमारे संस्कार, हमारी वेशभूषा व हमारी भाषा सब कुछ बदल गए , आओ हम मिलकर फिर अपने जीवन को नैतिकता की कसौटी पर कसते हुए संचालित करें तथा समाज व राष्ट्र का नेतृत्व करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को इस कसौटी पर कसे तो निश्चित हम इस राष्ट्र को नवीन दिशा देंगे, समाज को नई दिशा देंगे । इससे कम में बात बनने वाली नहीं यह व्यवस्था आज करो या हजार साल के बाद करना पड़े, जब भी व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र का सही मायने में उत्थान करने की अभिलाषा होगी तो हमें नैतिक जीवन के मूल्यों को गहन आस्था के साथ अपने जीवन में धारण करना होगा तभी हमारे जीवन में, समाज व राष्ट्र के जीवन में देवत्व की स्थापना होगी । इस तथ्य को समाज व राष्ट्र का प्रत्येक व्यक्ति जिन्हें राष्ट्र का निर्माण करने की अभिलाषा है अपने हृदय के अंतः स्थल में गहराई से प्रवेश करा दें कि *"अनैतिकता की नींव पर नैतिकता का भवन कभी भी खड़ा न हो सकेगा" ।

अपना उद्धार स्वयं करें

     बारह वर्षों की घनघोर तपस्या व ध्यान- साधना के फलस्वरूप वर्धमान महावीर को केवल ज्ञान (विशुद्धज्ञान) की परम उपलब्धि हुई थी। 'केवल ज्ञान' यह महापुरुषों की वह अवस्था है, जब उनके लिए ज्ञान से भिन्न कुछ नहीं रह जाता है, केवल ज्ञान ही रह जाता है।
    जैसे वसंत ऋतु में वृक्षों से पुराने पल्लव स्वयमेव झरते जाते हैं, गिरते जाते हैं, टूटते जाते हैं और वृक्षों की डालियों में नए पल्लव, नए रंग- बिरंगे पुष्प उग आते हैं वैसे ही केवल ज्ञान, निर्वाण, कैवल्य, आत्मसाक्षात्कार की अवस्था में साधक के मन से राग-द्वेष, लोभ-मोह, आसक्ति आदि सभी विकार मिट जाते हैं और साधक के हृदय में ज्ञान का अमृत अरुणोदय होता है और साधक का आत्मलोक ज्ञान के अमृत प्रकाश से जगमगा उठता है।
    12 वर्षों की लंबी तपस्या व ध्यान-साधना के फलस्वरूप महावीर का अंतस् भी केवल ज्ञान से जगमगा उठा था। वे ज्ञानरूप हो गए। उनके लिए तब कुछ भी ज्ञेय नहीं रहा। 'मैं ज्ञाता हूँ' यह भान भी उनके लिए शेष नहीं रह गया। केवल और केवल ज्ञान ही रह गया। महावीर ज्ञानरूप हो गए। सत्यरूप हो गए, प्रेमरूप हो गए, आनंदरूप हो गए।
    उनके रोम-रोम से वह दिव्य ज्ञान, प्रेम व सत्य स्वतः प्रवाहित होने लगा। उनके उपदेशों से उनके ज्ञान, प्रेम व सत्य की सुगंध चहुँओर फैलने लगी और वातावरण व जनमानस को सुगंधित - करती गई, आप्लावित करती गई। ज्ञान की उसी भावदशा में भगवान महावीर मध्यमा नगरी पहुॅचे। और वहाँ पर महासेन नामक एक उद्यान ठहरे। उनके आगमन की चर्चा सगंध के समान सर्वत्र फैल गई।
    हजारों नर-नारी उनके दर्शन व उपदेश पाने को वहाँ एकत्रित हुए। भगवान महावीर ने मिध्या धारणाओं में भटकती जनता के समक्ष उस महासत्य को प्रकट किया, जिसे उन्होंने कठिन तपस्या व ध्यान-साधना के द्वारा जाना था ।
    उन्होंने अपने अमृत उपदेश में कहा कि अपना उद्धार स्वयं करो । आत्मोद्धार के लिए आध्यात्मिक जीवनचर्या आवश्यक है। आत्मोद्धार के लिए न तो नारीत्व बाधक है और न ही पुरुषत्व साधक है। आत्मोद्धार के लिए पवित्र जीवनचर्या, संयम और सम्यक ज्ञान आवश्यक है। जीवन में सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह का होना आवश्यक है। साथ ही प्राणिमात्र के लिए सेवा, सहकार व प्रेम की भावना का होना भी आवश्यक है।
    उन्होंने आगे कहा-' "तुम्हारे सुख-दुःख के लिए कोई और नहीं, बल्कि तुम्हारे कर्म ही जिम्मेदार हैं। जब तुम अच्छे या शुभ कर्म के रूप में अच्छे कर्मबीज बोते हो तो तुम्हें सुख प्राप्त होता है और जब तुम बुरे कर्म के बीज बोते हो तो दुःख प्राप्त होता है। मनुष्य अपना जीवन ईश्वर की दया व क्रोध पर अवलंबित मानकर अपने को आलसी और परावलंबी बना बैठा है, पर सच तो यह है कि तुम्हारे सुख-दुःख तुम्हारे ही कर्मों पर अवलंबित हैं, ईश्वर की दया या क्रोध पर नहीं। तुम जो भी हो, जैसे भी हो, तुम अपने अच्छे या बुरे कर्मों के कारण ही हो।"
    वे फिर बोले- "इसलिए यदि सुखी रहना चाहते हो तो आलस्य, प्रमाद का त्याग कर श्रम करो, संयम करो, पुरुषार्थ करो, शुभ और अच्छे कर्म करो पर हाँ, अच्छे कर्म भी आसक्ति से रहित होकर ही करो जिससे कि तुम किसी कर्मबंधन में नहीं बँधो और मोक्ष प्राप्त कर आनंद की अनुभूति कर सको। तुम्हारा सुखी या दुःखी होना ईश्वर के ऊपर नहीं, स्वयं तुम्हारे ऊपर ही निर्भर है; क्योंकि • ईश्वर मनुष्य स्वयं है । तुम्हें ' अहं ब्रह्मास्मि' ' मैं ही ब्रह्म हूँ' इस वाक्य को आत्मसात् कर उसे अपने जीवन में चरितार्थ करके दिखाना चाहिए। तुम सब के लिए और मनुष्य मात्र के लिए मेरा यही संदेश है कि तुम अपनी आत्मशक्ति को देखो। तुम अपने महान स्वरूप को पहचानो और अपने महान परम रूप की प्राप्ति के लिए पुरुषार्थ करो। तुम अपना उद्धार स्वयं करो। "
    भगवान महावीर ने कहा- “सत्य ही भगवान है । सत्य चंद्र से भी अधिक सौम्य और सूर्य से भी अधिक तेजस्वी है। इसलिए जीवन में सत्य की उपासना करो । सत्य की आराधना करो। सत्य की अभ्यर्थना करो। सत्य का आचरण करो । आध्यात्मिक जीवनचर्या का पालन करते हुए अपने ईश्वरीय रूप को पहचानो, अपनी शक्ति को पहचानो और अपने कर्त्तव्य का पालन करो। इसी से तुम्हें सच्चा सुख, शांति और आनंद प्राप्त हो सकेगा।"
    भगवान महावीर के अमृत उपदेश को पाकर वहाँ उपस्थित सभी नर-नारी अभिभूत हुए बिना नहीं रह सके और अपने जीवन को तदनुरूप गढ़ने की मनोभूमि बनाने लगे व साथ ही उसी अनुरूप जीने को संकल्पित भी हुए।

Sunday, August 20, 2023

चेतना का दिव्य प्रवाह

1.दो छोर(किनारे) 

यह सृष्टि, यह संसार दो धाराओं से बना है एक चेतन (ब्राह्मिसत्ता) और दूसरा जड़ (भौतिक पदार्थ ) । प्रथम चेतन का प्रवाह सतोगुणी है, वह उत्थान की ओर ले जाता है, मानव को दिव्यता की ओर ले जाता है, देवत्व की ओर ले जाता है, चेतना को अंतर्मुखी करता है, विचारों की शक्ति का जागरण करता है, विवेकशीलता को जगाता है । 

दूसरा प्रभाव भौतिकता का है जिसमें पांच महाभूत प्रकृति(पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि व आकाश तथा प्राणतत्व) से शरीर की रचना है । इसका प्रभाव अधोगामी होता है, नीचे की ओर लाता है, इसका प्रवाह बहिर्मुखी है । जल का प्रवाह स्वाभाविकता से हमेशा नीचे की ओर बहता है उसके लिए उसे कोई प्रयास नहीं करना पड़ता लेकिन जब उसको ऊपर उठाना होता है तब सूर्य को तपना पड़ता है तब यह जल को उठाकर आकाश में ले जाता है, तथा इतना ही नहीं उसको शुद्ध एवं पवित्र करके ले जाता है उपयोग करने योग्य बना कर ले जाता है तो उसके लिए सूर्य का तपना ही पड़ेगा। 

हे मानव ! अपनी आत्मा को, चेतना को, उत्थान की ओर ले जाना है तो जीवन में तप करना ही पड़ेगा है और जो तप करने की महाविद्या है, वही हमारी जीवन शैली है,वही हमारी देव संस्कृति है, वही हमारी योग संस्कृति है, वही हमारी भारतीय संस्कृति है, वही हमारी ऋषि संस्कृति है वही हमारी आर्य संस्कृति है , जिसे संसार हिंदू संस्कृति कहता है ,मानवीय संस्कृति कहता है, जिसने भोगों को नहीं, त्याग को महत्व दिया है, जिसने, दया, करूणा ,ममता, प्रेम, आत्मीयता , सहयोग , सहकार, उदारता जैसी भाव संवेदनाएं प्रदान की तथा सर्व हित को महत्व दिया है । 

लेकिन जो अधोगामी संस्कृति है मानव को पतन की ओर ले जाती हैं उसका प्रवाह हमेशा निम्न गामी होता है और चिंतन के प्रवाह को बह्रिमुखी करती है, वह हमेशा मानव को पतन की ओर दौड़ाती है, इसके दुष्प्रभाव से मानव का चिंतन लोकेषणा,वित्तेषणा व पुत्रैषणा में डूब जाता है तथा इन तीनों एषणाओं के चलते मानव के जीवन में सारे कुकर्मों का उदय होने लगता है तथा हृदय की भाव संवेदनाएं मर जाती है और मानव चेतना लोभ,मोह, अहंकार , के चक्कर ब्यूह में फंसाकर, नर पशु ही नहीं , नर पिशाच बन जाती है और वे क्रूर कर्म करता है जिससे मनुष्यता तड़पती है, मानवता तड़पती है तथा उनको देखकर उसको शांति मिलती है । 

जहां भी ऐसे पतन का प्रवाह देखो तो समझ लो की जिन देव मानवों का, जागृतों का, सोये समाज की चेतना को,जन-जन जगाने का दायित्व था, ज्ञान की साधना में जीने वालों का ,तप करने वालों परम कर्तव्य बनता है कि वे अज्ञान में पड़े हुए लोगों को ज्ञान की ओर ले चले लेकिन वे लोग अपने ही तप मुक्ति के साधन में लग रहे, अपनी ही चेतना के विकास में लगे रहे, अपनी ही आत्मा के कल्याण में लग रहे और यह भी एक प्रकार की संकीर्णता है तथा पाप है और जब मानव अपने कर्तव्य धर्म का पालन नहीं करता तो संसार में विकृतियां फैलती है, अन्याय,अत्याचार, अनाचार फैलता है और अत्याचार व अनाचार का शिकार वही व्यक्ति व समाज बनता है जो स्वयं तो जागा था लेकिन उसने सारे समाज को नहीं जगाया, स्वयं तो ज्ञानी बन गया लेकिन समाज को ज्ञानी बनाने का कोई प्रयास नहीं किया । 

युगो युगो से देवता दिखने वाले, धर्मशील दिखने वाले लोग, हमेशा सताए जा रहे हैं, मार खा रहे हैं, प्रताड़ित किये जा रहे हैं ,चारों ओर से दुःखी होते है इसका कारण यही है कि उन्होंने अपने दायित्व को समझा नहीं, अपने कर्तव्य की घोर उपेक्षा की और इसी बात का दण्ड संसार में युगों युगों से मानव को, व्यक्ति, परिवार, समाज व राष्ट्र को मिलता आ रहा है । जब तक यह सृष्टि रहेगी यह शाश्वत ईश्वरीय व्यवस्था चलती रहेगी । 

अब आप चिंतन करो, प्रथम आप किस श्रेणी में खड़े हो ? देवत्व वाली उत्थान की श्रेणी में या पतन की अज्ञान वाली श्रेणी में ? क्या अपने कर्तव्य कर्म धर्म का बोध करके उसके दायित्व को अंगीकार करेंगे तथा विश्व में सुख ,शांति, समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करेंगे ? 

हे मानव ! सारे बंधन तोड़ कर उठ चलो, मानवीय संस्कृति की ओर क्योंकि तुम ईश्वर के महान पुत्र हो ? 

 *युग विद्या विस्तार योजना*। (मानवीय संस्कृति पर आधारित एक समग्र शिक्षण योजना) विद्या विस्तार राष्ट्रीय ट्रस्ट (दिल्ली) भारत  रामकुमार शर्मा 94519 11234

Saturday, August 19, 2023

कलयुग के पाँच संकेत

महाभारत युद्ध के उपरांत पांडव श्री कृष्ण के साथ वन विहार कर रहे थे अचानक उन्होंने कुछ अजीबो-गरीब दृश्य अपने ध्यान में देखे। भगवान् कृष्ण ने उनका स्पष्टीकरण निम्न प्रकार किया:
  1.  भीम ने देखा कि गाय अपने बछड़े को साफ होने के बाद भी उसे इस कदर चाट रही है कि वह घायल हो रहा है, इससे पता चलता है कि कलयुग में माता-पिता अपने बच्चों को बहुत लाड-प्यार करेंगे, अत्याधिक सुविधाएँ देंगे, जिससे उनके भविष्य, व्यक्तित्व और क्षमताओं का नाश होगा।
  2. अर्जुन ने एक पक्षी को देखा, जिसकी पंखों पर वैदिक मंत्र थे, लेकिन उसी समय वह अन्य पशुओं का मांस खा रहा था। यह बताता है कि कलयुग में धर्माधिकारियों द्वारा धर्म और संस्कृति को बनाए रखने का काम तो होगा, लेकिन उनका व्यक्तित्व उच्चकोटि का नहीं होगा। वो अपने लाभ के लिए भक्तों का शोषण करेंगे व भोग-विलास में लिप्त होंगे।
  3. युधिष्ठिर ने दो सूंडों वाले हाथी को देखा, जिसका संकेत है कि इस दुनिया के हर कोने में दो चेहरे वाले लोग होंगे, शासक बड़ी मधुर-मधुर बातें बनायेंगे परन्तु उनके कर्म बहुत घटिया व भ्रष्ट होंगे, जिससे सामान्य लोगों के दुख बढ़ेंगे।
  4. सहदेव ने देखा कि एक कुआँ चार और कुएँ से घिरा हुआ है और चारों बह रहे हैं, लेकिन बीच में खाली है। इससे संकेतित होता है कि गरीबी होगी और धनी और अमीर लोग जो विशाल संपत्ति रखते हैं, उसे अपने लाभ के लिए उपयोग करेंगे, लेकिन गरीब को एक पैसा नहीं देंगे।
  5. नकुल ने देखा कि पहाड़ से एक बड़ा पत्थर गिर रहा है, हर पेड़, इमारत, दीवार आदि को कुचलते हुए, लेकिन एक छोटी सी पौधे ने उसे रोक दिया। उसी तरह, मानवों के साथ, उनके नैतिकता और नैतिक मूल्य गिरेंगे, और उनकी लालसा सब कुछ कुचल देगी जो उनके रास्ते में आएगा, लेकिन वे केवल तभी रुकेंगे जब वे भगवान के नाम का जाप करेंगे।

Ayurvedic Tips

 पुरुष के लिए सबसे ताकतवर शक्तिवर्धक दवाइयां कौन सी है?

मेरा नमस्कार स्वीकार करे,

भारत की संस्कृति और ज्ञान की अथाह सीमा है, शायद जैसे समुद है वैसे, परन्तु उसके जानने की समझने की कमी के कारणों से हम सब जनजीवन परेशान व तकलीफ सहन करते रहते है। आइये इस प्रश्न के संबंध में क़ुछ समझनें की कोशिश करे

सबसे जरूरी है, की आप पुरुष की किस उम्र के संदर्भ में ये यह देखना है कि उसे क्या लेना चाहिए, क्या औषधि का सेवन करना चाहिए?

उम्र 28 से 50 साल - सबसे पहले सब मनुष्यो को आने खान पान और शारीरिक अवस्था का बहुत ध्यान और परहेज रखना चाहिए, जैसे कि किस समय, किस ऋतु में क्या खाना है, क्या नही खाना चाहिये, हमें उसका बहुत ध्यान रखना चाहिए, जो कि 90 प्रतिशत लोग नही रखते है, इस बारे में कभीं और समझेंगे, आइए प्रश्न के उत्तर पर चलतें है।

25 वर्ष से 50 वर्ष की उम्र:-

हमे बाजीकरण की विशेष जड़ी बूटियों का इस्तेमाल करना चाहिए, उदहारण के लिए, अश्वगंधा, विदारीकंद, वंशलोचन, गोखरू, कौंच के बीज, सेमर का।मूसला, सफेद मूसली, आदि जो विशेष रूप से इस उम्र के दौरान लेनी चाहिए। 50 वर्ष की अवस्था से पहले किसी भी भस्म का इस्तेमाल नही करना चाहिए, अन्यथा परिणाम बहुत घातक हो सकते है। किसी भी अवस्था मे इस दौरान भस्म के इस्तेमाल न करे।

50 वर्ष से 65 वर्ष तक कि अवस्था:- इस उम्र के दौरान पुष्पधन्वा रस, लौह भस्म, रजत भस्म, त्रिवंग भस्म, नाग भस्म लेनी चाहिए

by shri hari sharma

कलयुग के कालनेमि

*एक कबूतर और एक क़बूतरी एक पेड़ की डाल पर बैठे थे।*

*उन्हें बहुत दूर से एक आदमी आता दिखाई दिया ।*

*क़बूतरी के मन में कुछ शंका हुई औऱ उसने क़बूतर से कहा कि चलो जल्दी उड़ चले नहीं तो ये आदमी हमें मार डालेगा।*

*क़बूतर ने लंबी सांस लेते हुए इत्मीनान के साथ क़बूतरी से कहा..भला उसे ग़ौर से देखो तो सही, उसकी अदा देखो, लिबास देखो, चेहरे से शराफत टपक रही है, ये हमें क्या मारेगा..बिलकुल सज्जन पुरुष लग रहा है...?*

*क़बूतर की बात सुनकर क़बूतरी चुप हो गई।*

*जब वह आदमी उनके क़रीब आया तो अचानक उसने अपने वस्त्र के अंदर से तीर कमान निकाला औऱ झट से क़बूतर को मार दिया...औऱ बेचारे उस क़बूतर के वहीं प्राण पखेरू उड़ गए....*

*असहाय क़बूतरी ने किसी तरह भाग कर अपनी जान बचाई औऱ बिलखने लगी।उसके दुःख का कोई ठिकाना न रहा औऱ पल भर में ही उसका सारा संसार उजड़ गया।*

*उसके बाद वह क़बूतरी रोती हुई अपनी फरियाद लेकर राजा के पास गई औऱ राजा को उसने पूरी घटना बताई।*

*राजा बहुत दयालु इंसान था।*

*राजा ने तुरंत अपने सैनिकों को उस शिकारी को पकड़कर लाने का आदेश दिया।*

*तुरंत शिकारी को पकड़ कर दरबार में लाया गया।शिकारी ने डर के कारण अपना जुर्म कुबूल कर लिया।*

*उसके बाद राजा ने क़बूतरी को ही उस शिकारी को सज़ा देने का अधिकार दे दिया औऱ उससे कहा कि " तुम जो भी सज़ा इस शिकारी को देना चाहो दे सकती हो औऱ तुरंत उसपर अमल किया जाएगा "।*

*क़बूतरी ने बहुत दुःखी मन से कहा कि " हे राजन,मेरा जीवन साथी तो इस दुनिया से चला गया जो फ़िर क़भी भी लौटकर नहीं आएगा, इसलिए मेरे विचार से इस क्रूर शिकारी को बस इतनी ही सज़ा दी जानी चाहिए कि अगर वो शिकारी है तो उसे हर वक़्त शिकारी का ही लिबास पहनना चाहिए , ये शराफत का लिबास वह उतार दे क्योंकि शराफ़त का लिबास ओढ़कर धोखे से घिनौने कर्म करने वाले सबसे बड़े नीच होते हैं....।"*

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*इसलिए अपने आसपास शराफ़त का ढोंग करने वाले बहरूपियों से हमेशा सावधान रहें..........सतर्क रहें औऱ अपना बहुत ख़याल रखें.........!!

Thursday, August 10, 2023

मराठे इतिहास

 सन 1680 में औरंगजेब को समझ आ चुका था कि शिवाजी को रोकने उसे स्वयं ही दक्खन जाना होगा। पांच लाख की विशाल फौज लेकर वह दक्खन की ओर निकला और उसके वहां पहुंचने के पहले ही छत्रपति की मृत्यु हो गई।

औरंगजेब को लगा अब तो मराठों को पराजित करना अत्यंत आसान होगा।

परन्तु छत्रपति सम्भाजी ने 1689 तक उसे जीतने नहीं दिया। अपने सगे साले की दगाबाजी की वजह से छत्रपति सम्भाजी पकड़े गए और औरंगजेब ने अत्यन्त क्रूर और वीभत्स तरीके से उनकी हत्या करवा दी।

अब छत्रपति बने राजाराम मात्र 20 वर्ष के थे और औरंगजेब के अनुभव के सामने कच्चे थे। एकबार फिर उसे दक्खन अपनी मुट्ठी में नज़र आने लगा था।

यहीं से इतिहास यह बताता है कि छत्रपति शिवाजी ने किस आक्रामक संस्कृति की नींव डाली थी। हताश हो कर हथियार डालने के बजाय संताजी घोरपड़े और धनाजी जाधव के नेतृत्व में राजाराम को छत्रपति बना कर संघर्ष जारी रहा।

सन 1700 में छत्रपति राजाराम भी मारे गए।

अब उनके दो साल के पुत्र को छत्रपति मान कर उनकी विधवा ताराबाई, जो कि छत्रपति शिवाजी के सेनापति हंबीराव मोहिते की बेटी थी, आगे आई और प्रखर संघर्ष जारी रहा। समय पड़ने पर ताराबाई स्वयं भी युद्ध के मैदान में उतरी।

संताजी और धनाजी ने मुगल सम्राट की नींद हराम कर दी।

कभी सेना के पिछले हिस्से पर, कभी उनकी रसद पर तो कभी उनके साथ चलने वाले तोपखाने के गोला बारूद पर हमले कर मराठों ने मुगलों को बेजार कर दिया। सब लोग इस खौफ में ही रहते थे कि कब मराठे किस दिशा से आएंगे और कितना नुकसान कर जायेंगे।

एक बार संताजी और उनके दो हजार सैनिकों ने सर्जिकल स्ट्राइक की तर्ज पर रात में औरंगजेब की छावनी पर हमला बोल दिया और औरंगजेब के निजी तंबू की रस्सियां काट दी। तंबू के अंदर के सभी लोग मारे गए। परन्तु संयोग से उस रात औरंगजेब अपने तंबू में नहीं था इसलिए बच गया।

27 साल मुगलों का सम्राट, महाराष्ट्र के जंगलों में छावनियां लगा कर भटकता रहा। रोज यह भय लेकर सोना पड़ता था कि मराठों का आक्रमण न हो जाए।

27 साल कुछ हजार मराठे लाखों मुगलों से लोहा भी ले रहे थे और उन्हें नाकों चने भी चबवा रहे थे। 27 वर्ष सम्राट अपनी राजधानी से दूर था। लाखों रुपए सेना के इस अभियान पर खर्च हो रहे थे। मुगलिया राज दिवालिया हो रहा था। अन्तत: सन 1707 में औरंगजेब की मृत्यु हो गई। 27 वर्षों के सतत युद्ध और संघर्ष के बाद भी मराठों ने घुटने नहीं टेके। छत्रपति के दिए लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हजारों मराठे कट गए।

यह इतिहास भी कहां पढ़ाया जाता है?

कितने लोग है जिन्हें ताराबाई, संताजी और धनाजी के नाम भी मालूम है, पराक्रम तो छोड़ ही दीजिए?