अनैतिकता की नींव पर नैतिकता का भवन खड़ा नहीं हो सकता है।
संसार में सारे धर्म, सारे संप्रदाय, सारे महामानव, सारे ऋषि - मनीषी, सारे शास्त्र व सभी मानवों की अन्तर्आत्मा एकमत से नैतिकता का समर्थन करते हैं, नैतिकता को धर्म का प्राण कहते हैं तो क्या नैतिक जीवन मूल्य इतना महत्वपूर्ण है? उत्तर होगा ! हां नैतिकता विहीन व्यक्ति का प्राणबल ,मनोबल, आत्म बल सब नष्ट हो जाता है । जबकि बल ही संसार में सर्वोपरि संपदा है, शक्ति व सामर्थ्य है ।
जैसे मानवीय शरीर व जीवन प्राण के प्रवाह के कम होने से दुर्बल व रोगी हो जाता है, प्राण विहीन होने से मृत लाश बन जाता है ,उस शरीर में दुर्गंध आने लगती है, कीड़े पड़ जाते हैं ,उनके आंतरिक अंग अववयों का क्षय होने लगता है । ठीक इसी तरह नैतिकता रूपी प्राण जब जीवन से निकल जाता है तो धर्म रूपी शरीर एक लाश के रूप में बन जाता है, उसके अंदर विकृतियों के कीड़े उत्पन्न होने लगते हैं, उसकी दुर्गंध से मानवता परेशान होने लगती है, धर्म के क्षेत्र में छल - छद्म , झूठ,पाखंड, अन्याय , व अत्याचार भी प्रवेश कर जाता है और ऐसे नैतिकता विहीन पाखंडी, अधर्म को धर्म का रूप बनाकर प्रस्तुत करते हैं । क्योंकि अनैतिकता मानव को जो विपरीत बुद्धि का बना देती है, जनहित का चिंतन समाप्त कर निजहित के चिंतन में केन्द्रीत कर देती है इसीलिए अनैतिकता को संसार में त्याज्य कहा गया है लेकिन आज जब हम सत्य की कसौटी पर, नैतिकता की कसौटी पर समाज, राष्ट्र, धर्म- संस्कृति व राजनीति का नेतृत्व करने वालों को कसते हैं तो 100 में 99 फेल होते हैं । जब हम गहराई से बड़े-बड़े राजनेताओं ,बड़े-बड़े धर्माचार्यों ,बड़े-बड़े सामाजिक संगठनों के संचालकों को, बाहर नैतिकता का ढोल पीटने वाले, नैतिकता के आंदोलन चलाने वाले, मंच और माइक पर चिल्ला चिल्ला कर नैतिकता के लिए जमीन आसमान एक करने वाले लोगों के निजी जीवन के भीतर झांककर देखते हैं तो अनैतिकता कूट-कूट कर भरी हुई दिखाई देती है । अगर सचमुच में नैतिक जीवन मूल्यों पर आधारित अभियान खड़े होते, राष्ट्र का निर्माण करने वाले धर्म के आचार्य खड़े होते, राजनेता खड़े होते ,सामाजिक संगठन खड़े होते, जातीय संगठन खड़े होते तो आज संसार की स्थिति, देश और समाज की स्थिति कुछ और होती, प्राणबल ,मनोबल ,आत्मबल से व्यक्ति, परिवार, समाज व राष्ट्र संपन्न होता और ब्रह्मबल (ईश्वरिय) बल की इन सब पर अटूट वर्षा होती लेकिन दुर्भाग्य अनैतिकता का सहारा लेने वाले, छोटी-छोटी सफलताओं के लिए अनैतिकता का उपयोग करने वाले यहां कहां सोचते है ? संसार के सारे धर्मों का, धर्म संप्रदायों का ,कर्मकाण्डों का, उपासनाओं व साधनाओं का,योग व अध्यात्म की सारी क्रियाओं का मूल उद्देश्य देखा जाए तो वह एक ही है कि मानव नैतिक बने । नैतिकता विहीन व्यक्ति अपने परिवार, समाज व राष्ट्र के लिए कोढ़ स्वरूप है और कहीं महान मिशन में ऐसे अनैतिकता का सहारा लेने लोग बैठ जाए तो उन मिशनों का सर्वनाश कर देते हैं , उनकी भक्ति करने वाले लाखों-करोड़ों लोगों में अपनी प्रवृतियों का समावेश उनके जीवन को पतन के गर्त में गिरा देते हैं । बाहर से पूजा, पाठ, प्रार्थना ,नमाज, कीर्तन, भजन के, दिखावा प्रदर्शन के कितने ही सरंजाम क्यों न खड़ा किया जाए सब सारहीन व ढकोसला मात्र रह जाते हैं इसलिए हे मानव ! नैतिकता जीवन का प्राण है,धर्म का प्राण है , अध्यात्म का प्राण है, जीवन मूल्यों का प्राण है, भारत जब कभी भी जगतगुरु और सोने की चिड़िया रहा उसका मूलाधार नैतिकता ही रही तथा इसी ने इस देश के लोगों को देवता बनाया था लेकिन आज हम कहां खड़े हैं ? हमारा नैतिक मूल्य कितना ऊंचा रहा इस तथ्य को थॉमस बुनरो मैकाले (टी बी मैकाले ) ने भारत आकर जब सर्वेक्षण किया व उन तथ्यों को 2 फरवरी 1835 में हाउस ऑफ कॉमन्स में रखते हुए मैकाले कहता है कि *"मैंने भारत के कोने कोने की यात्रा कि मुझे इस देश में एक भी व्यक्ति चोर और एक भी व्यक्ति भिखारी नहीं मिला"* तो आप कल्पना करिए इन 188 वर्षों में हमारा राष्ट्र क्या से क्या बन गया, कहां गए हमारे जीवन मूल्य ? हजारों वर्षों तक विदेशी आक्रांताओं के आक्रमणों से हमारी लूट हुई, गुलामी की अवस्था में जिए फिर भी हमने नैतिक मूल्यों का परित्याग नहीं किया यही कारण है कि भारत और भारत की संस्कृति जीवित रही लेकिन आज इस समाज व राष्ट्र को नैतिकता की कसौटी पर कसा जाय व देखा जाए तो नैतिक जीवन मूल्यों में जीने वालों का अकाल पड़ा है । 188 वर्षों में हमारे जीवन मूल्य, हमारी संस्कृति, हमारे संस्कार, हमारी वेशभूषा व हमारी भाषा सब कुछ बदल गए , आओ हम मिलकर फिर अपने जीवन को नैतिकता की कसौटी पर कसते हुए संचालित करें तथा समाज व राष्ट्र का नेतृत्व करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को इस कसौटी पर कसे तो निश्चित हम इस राष्ट्र को नवीन दिशा देंगे, समाज को नई दिशा देंगे । इससे कम में बात बनने वाली नहीं यह व्यवस्था आज करो या हजार साल के बाद करना पड़े, जब भी व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र का सही मायने में उत्थान करने की अभिलाषा होगी तो हमें नैतिक जीवन के मूल्यों को गहन आस्था के साथ अपने जीवन में धारण करना होगा तभी हमारे जीवन में, समाज व राष्ट्र के जीवन में देवत्व की स्थापना होगी । इस तथ्य को समाज व राष्ट्र का प्रत्येक व्यक्ति जिन्हें राष्ट्र का निर्माण करने की अभिलाषा है अपने हृदय के अंतः स्थल में गहराई से प्रवेश करा दें कि *"अनैतिकता की नींव पर नैतिकता का भवन कभी भी खड़ा न हो सकेगा" ।
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