Tuesday, September 26, 2023

चेतना का दिव्य प्रवाह ३२.

  *अंध श्रद्धा वह दरिया है जिसमें घातक मगरमच्छ उत्पन्न होते हैं ।* 

 इस संसार में प्रकृति की एक शाश्वत व्यवस्था है कार्य के परिणाम स्वरूप तमाम सम्पत्तियां व विपत्तियां उत्पन्न होती है जैसे कहीं फूलों का बगीचा लगाया जाएगा तो चारों तरफ सुगंध व सौंदर्य ही दृष्टिगोचर होगा, वहां कोयल, मोर, भौंरे ,मधुमक्खियां व तितलियां गुंजन करते हुए,फूदकते हुए ,उड़ते हुए स्पष्ट दिखाई देंगे तथा वातावरण स्वर्गीय आनंद देने वाला बनेगा ।

ऐसे ही कीचड़, गंदगी, कूड़ा करकट चारों तरफ भरा होगा तो वहां चारों तरफ बदबू फैलेगी, मक्खी,मच्छर, खटमल , पिस्सू, घातक वायरस व बैक्टीरिया उत्पन्न होंगे ही होंगे ,उनसे बचने के लिए दवाइयां कारगर नहीं है बल्कि वातावरण की स्वच्छता ही उसका कारगर उपाय है ।

 ऐसे ही जहां अंध श्रद्धा उत्पन्न होती है वहां पर अराजक स्तर के व्यक्ति धर्म, अध्यात्म का आवरण ओढ़ कर, संत महात्माओं का चोला पहनकर , समाज सेवा का लबादा ओढ़कर, प्रचार तंत्र का प्रयोग करके, अराजक तत्वों को समाज सेवा का चोला पहनकर, संगठनों में ,संस्थाओं में, धार्मिक तंत्रों में, सामाजिक तंत्रों में जहां भी उनको अपना आर्थिक लाभ, नाम यश की पूर्ति का योग दिखता है वहां छल-छद्म , झूठ-कपट व पाखंड का सहारा लेकर प्रविष्ठ कर जाते हैं और अंध श्रद्धा के वातावरण में ये खूब फलते फूलते है ।

 समाज की अंध श्रद्धा एक प्रकार की दरिया है,नदी है जिसमें ऐसे ही घातक मगरमच्छ उत्पन्न होते हैं जो कुछ भी श्रेष्ठ है उसको निगल जाते है यदि कोई उस नदी में जल आचमन करने, अर्घ्य लगाने, स्नान करने व जल पान करने हेतु उतर जाता है तो ये मगरमच्छ व उनका कुनबा घात लगाकर आक्रमण कर देते है।अंध श्रद्धा में उनको उपयुक्त वातावरण व पोषण मिलता रहता है अंध श्रद्धालुओं की भीड़ में उनका व उनके कुकृत्यों का प्रतिकार करने वाला कोई होता बल्कि यह भीड़ तो उनको गुरु, भगवान, देवता व महान अवतारी चेतना मानकर उनकी चरण वंदना करके अपने को परम सौभाग्यशाली समझती है और इस स्थिति में वे निरंकुश होकर अपने कार्यों को अंजाम दे सकते हैं इसलिए जब तक संसार में अंध श्रद्धा रहेगी, विकृत लोग मगरमच्छों की तरह संगठनों व संस्थानों में उत्पन्न होते रहेंगे और उसे अंध श्रद्धालुओं की शक्ति के बल पर ,सामर्थ्य के बल पर व धन के बल पर अराजकता करते रहेंगे व अवसर का लाभ उठाते रहेंगे ,यह अनादि से होता रहा है और वर्तमान में भी खुली आंखों से इसकी झांकी सर्वत्र की जा सकती है ।

 आप अपना चिंतन करें आपकी श्रद्धा कहीं अंधी तो नहीं है ? श्रद्धा को हमेशा जिनके प्रति आरोपित करना होता है उनको आदर्शों , सिद्धांतों, नैतिक मूल्यों तथा चरित्र निष्ठा,त्याग, तप ,सादगी, सज्जनता , विनम्रता , जिम्मेदारी , बहादुरी की कसौटी पर कसकर देख लेना चाहिए अगर इस कसौटी पर व्यक्ति खरा नहीं उतरता है तो वह श्रद्धा व विश्वास का पात्र नहीं हो सकता है वह चाहे जितने बड़े विशाल तंत्र का अधिपति क्यों न बन गया हो या लंकाधिपति रावण जैसे बलशाली ,सिद्ध व प्रतापी ही क्यों ना हो । आप अपना आत्म विश्लेषण करें,चिंतन व मंथन करें और आप कहां खड़े हैं ? अंध श्रद्धा की छांव में या विवेकशीलता युक्त श्रद्धा की छांव में ।

 रामकुमार शर्मा   9451911234    

  *युग विद्या विस्तार योजना* 

(मानवीय संस्कृति पर आधारित एक समग्र शिक्षण योजना)।              

विद्या विस्तार राष्ट्रीय ट्रस्ट, दिल्ली (भारत)


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