Tuesday, September 26, 2023

चेतना का दिव्य प्रवाह ३१.

अपनी श्रद्धा सीधे धर्म- संस्कृति, राष्ट्र व जीवन मूल्यों से जोड़िए।

 जो वस्तु जितनी बहुमूल्य होती है उस पर लुटेरों की दृष्टि भी उतनी तीव्र रहती है , श्रद्धा संसार की सर्वोपरि देवी संपदा है, अगर मानव के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण कोई चीज है तो वह श्रद्धा है, श्रद्धा हृदय के भावों की अभिव्यक्ति है,और जहां भाव जुड़ता है वहां व्यक्ति का अपनापन जुड़ जाता है , श्रद्धा आत्मा का प्रकाश है, यह जहां भी पड़ता है वहां सब कुछ अपना बना लेता है । 

 इसी श्रद्धा के गुण का लाभ उठाने बुद्धिमान लोग तत्काल सक्रिय हो जाते हैं और हर तंत्र में सक्रिय हो जाते हैं, चाहे राजतंत्र हो, चाहे समाज तंत्र या धर्म तंत्र हो, हर जगह श्रद्धा का ही दोहन होता है । श्रद्धा वह सीधी दुधारू गाय हैं जिसको हर कोई पकड़ कर बांध लेता है तथा इसका दूध पी - पी कर पुष्ट होता रहता है उसका बछड़ा (लोक कल्याण) बेचारा भूख रह जाता है तथा दुर्बल ही बना रहता है ।

 राजतंत्र की तरह धर्म तंत्र का कलेवर श्रद्धा के आधार पर ही चलता है जिसका आर्थिक आंकलन किया जाए तो वह राजतंत्र से कम नहीं अधिक बैठता है लेकिन इस श्रद्धा का दोहन करने के लिए बुद्धिमान लोग, विभिन्न तंत्रों में सक्रिय रहते हैं जिनको सामान्य जनमानस पहचान ही नहीं पाता है । उन सब के आवरण राष्ट्रभक्त, धर्मशील और आदर्शवादी दिखाई देते हैं और इसी की आड़ में युगों - युगों से श्रद्धा का दोहन होता आया है और आज भी हो रहा है । जब कभी सत्य उजागर होता है तो श्रद्धा अंधी हो जाती है और सत्य को स्वीकार करने को तैयार नहीं होती या फिर श्रद्धा टूटती है तो मनुष्य नास्तिक बनता चला जाता है ,उसका विश्वास सबसे हटता चला जाता है । श्रद्धा का अंधा हो जाना या टूट जाना दोनों स्थितियों में जीवन की व समाज की भारी क्षति होती है ।

 हमारी श्रद्धा महान पुरुषों से, संतो व महात्माओं से तथा लोक सेवकों से जुड़ती है, धर्म के कार्यों से जुड़ती है , धर्म यानी सृष्टि का हित करने वाले महान मिशनों से जुड़ती है, उन सब के लिए काम करने वाले लोगों से जुड़ती है और जहां इन क्षेत्र में हल्के स्तर के लोकेषणा ,(यानी नाम यश के भूखे), वित्तेषणा (यानी धन का लोभ लाभ करने वाले), पुत्रेषणा(यानी अपने परिवार को, खून के रिश्तों को पद,प्रतिष्ठा व धन का लाभ पहुंचाने वाले) बुद्धिमान , चालक व धुर्त लोग प्रवेश कर जाते हैं तो उन अभियानों को, योजनाओं को, मिशनों को, विकृत कर देते हैं ऐसी स्थिति में आप व्यक्तियों से जुड़ने की बजाय अपनी श्रद्धा को ,धर्म- संस्कृति, राष्ट्र व जीवन मूल्यों से सीधे जोड़िए , आदर्शों और सिद्धांतों से जोड़िए और इस कसौटी पर आप प्रत्येक उस व्यक्ति को कस कर देखिए जिनके प्रति आप श्रद्धा कर रहे हैं । अगर आपकी श्रद्धा व्यक्तियों के साथ जुड़ी हुई है तो धोखा हो सकता है , जिन महान पुरुषों से हमारी श्रद्धा जुड़ती है आप जरा गौर करें उन महान पुरुषों ने हमेशा मानवता के उत्थान के लिए, धर्म-संस्कृति के लिए, राष्ट्र के लिए, जीवन मूल्यों के लिए काम किया है । अगर हमारे बीच में ऐसे महान पुरुष नहीं है पर उनकी योजनाएं और विचार विद्यमान है अतः हम व्यक्तियों के प्रति की जाने वाली श्रद्धा से ऊपर उठकर सीधे अपनी श्रद्धा को महानता के साथ जोड़े इसीमें हमारा, परिवार, समाज और राष्ट्र का कल्याण है ।

 रामकुमार शर्मा  9451911234    

  *युग विद्या विस्तार योजना* 

(मानवीय संस्कृति पर आधारित एक समग्र शिक्षण योजना)।              

विद्या विस्तार राष्ट्रीय ट्रस्ट, दिल्ली (भारत)


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