किसी नगर में कौशिक नामक एक क्रोधी और निष्ठुर ब्राह्मण रहता था। उसे कोढ़ की बीमारी थी। उसकी पत्नी शांडिली अत्यंत माँ दुर्गा की बड़ी भक्ता थी। वह बड़ी पतिव्रता थी और कोढ़ से सड़े-गले पति को सर्वश्रेष्ठ पुरूष और पूजनीय समझती थी।
एक रात वह अपने पति को कंधे पर लादकर कहीं लेकर जा रही थी। रास्ते में माण्डव्य मुनि को उसके पैरों की ठोकर लग गई।
ऋषि क्रोधित हुए और शाप दे दिया- 'मूर्ख स्त्री तेरा पति सूर्योदय होते ही मर जाएगा।'
ऋषि के शाप को सुनकर शांडिली बोली- 'महाराज, भूल से मेरे पति का पैर आपको लगा, जानबूझकर आपका अपमान नहीं किया, फिर भी आपने शाप दिया।
मैं शाप देती हूँ कि जब तक मैं न कहूँ तब तक सूर्य ही उदय न हो।'
माण्डव्य आश्चर्य में पड़ गये। उन्होंने कहा- 'तुम इतनी बड़ी तपस्विनी हो कि सूर्य की गति को रोक सकती हो'?
शांडिनी बोली- 'मैं तो भगवती की शरणागत हूँ, वही मेरे पतिव्रत धर्म की रक्षा करेंगी'।
उसकी बात निष्फल नहीं रही। सूर्य अगली सुबह से लेकर दस दिन तक नहीं निकले। ब्रह्मांड संकट में आ गया। देवताओं को बड़ी चिंता हुई।
वे अनुसूया जी के पास पहुँचे। अनुसूया जी सबसे बड़ी पतिव्रता स्त्री थीं। उनका प्रभाव देवों से भी अधिक था।
देवों ने कहा- 'माता, एक पतिव्रता के प्रभाव के कारण संसार में संकट आ गया है। आपसे ज्यादा योग्य संसार में कोई और स्त्री नहीं होगी जो एक पतिव्रता शांडिली को समझाकर उसका क्रोध शांत कर सके'।
अनुसूयाजी शांडिनी के पास पहुँची और उसके कारण उत्पन्न हुए संकट का प्रभाव बताकर वचन वापस लेने का अनुरोध किया।
अनुसूयाजी ने कहा, 'तुम्हारे पति की मृत्यु के बाद उन्हें फिर से जीवित और स्वस्थ करने का मैं वचन देती हूँ'। शांडिनी को भरोसा हो गया, उसने अपना वचन वापस ले लिया और सूर्य की गति को की अनुमति दे दी।
सूर्योदय के साथ ही माण्डव्य के शाप के कारण उसका पति मर गया। अनुसूयाजी ने सूर्य का आह्वान करते हुए कहा- 'मेरे पतिव्रत में यदि शक्ति है तो आप इस मृत पुरुष को पुनः जीवन, स्वास्थ्य और सौ वर्ष तक सुखद गृहस्थ जीवन का आशीर्वाद करें'।
माण्डव्य ने इसे अपने अहं का प्रश्न बना लिया और बोले- मेरे शाप को कोई काट नहीं सकता। इसे जीवित करने का प्रयास करना व्यर्थ है।
अनुसूयाजी ने भगवती का स्मरण किया- 'माता मेरी लाज रखकर माण्डव्य का अहंकार चूर करें'। अनुसूया माता की स्तुति करने लगीं। माता वहाँ प्रकट हुईं और कौशिक को जीवन और स्वास्थ्य प्रदान किया। माण्डव्य का अहंकार समाप्त हो गया।
माण्डव्य बोले- 'आज मैंने दो पतिव्रता नारियों की शक्ति देख ली। पतिव्रता स्त्रियों में स्वयं भगवती का वास हो जाता है।
हे भगवती, मैं अपनी शक्तियों के अनुचित प्रयोग के लिए क्षमा माँगता हूँ।' माता ने माण्डव्य को क्षमा कर दिया। माण्डव्य तप के लिए चले गए।
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