नव निर्माण में गायत्री परिवार व संघ ;त्ैैद्ध की भूमिका
वैसे तो इस समय अपने देश में इस समय बहुत सी संस्थाएॅं अच्छे कार्य कर रही
हैं। परन्तु यदि गहन विश्लेषण किया जाए तो दो संस्थाएॅं ऐसी हैं जिन पर भारत माता
की आस लगी है वो हैं-
1.
गायत्री परिवार 2. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
इन दोनों संस्थाओं की पहली विशेषता यह है कि ये दोनों ही राष्ट्रीय स्तर की
संस्थाएॅं हैं जिनका व्यापक जनाधार है। दूसरी विशेषता यह है कि ये दोनों ही निज के
स्वार्थों से ऊपर उठकर एक बहुत ही महान लक्ष्य लेकर चल रही हैं। गायत्री परिवार
सांस्कृतिक व नैतिक उत्थान के लिए तो संघ राष्ट्र निर्माण के लिए समर्पित है। अपने
देश में कुछ का उद्देश्य है व्यापार कर धन कमाना तो कुछ का उद्देश्य है जगह-जगह
जमीन लेकर डाल देना। रविवार को एकाध घण्टा कुछ उस जमीन पर करना बाकि समय वह जमीन
बिना किसी उपयोग के पड़ी रहती है। अनेक संस्थाएॅं तो ऐसी हैं जिनके संस्थापक मर गए
तो कोई सम्भालने वाला नहीं और उनकी जमीने झगड़ों के अड्डे बन गए हैं। भारत सरकार
भी इस दिशा में कोई सार्थक कदम नहीं उठा रही है।
सौभाग्य से गायत्री परिवार व संघ अभी दोनों ही इस प्रकार के कलंकों से मुक्त
हैं। गायत्री परिवार के संचालक श्रीराम ‘आचार्य’ जी ने अपने प्रचण्ड तप के बल पर एक बहुत ही ऊॅंची परिकल्पना की थी जिसको 21वीं सदी उज्ज्वल भविष्य के नाम से जाना जाता है। जिसको विचारकर किसी भी
संवेदनशील आत्मा के रोंगटे खड़े होने लगते हैं और इस महानयज्ञ में अपनी आहुति देने
के लिए मन मचलने लगता है। जो व्यक्ति निज की वासनाओं व तृष्णाओं में जीवन पथ भटक
गए हैं, धन-माया के पचड़ों में उलझे हैं उनके पर तो गोस्वामी जी की यह उक्ति ही लागू
होती है।
‘‘कामहिं क्रोधहि हरि कथा, उसर बीज भए फन जथा।’’
अर्थात् कामुक व्यक्ति को हरि कथा बाचना बंजर जमीन पर बीज बोने के समान है।
अन्यथा जो भी आत्मा थोड़ी जाग्रत है व दैवकृपा से जिसका विवेक बचा है वह युग
निर्माण आन्दोलन में भाग लिए बिना नहीं रह सकती है। जैसे स्वतन्त्रता आन्दोलन जब
चल रहा था तो प्रत्येक भारतवासी इस महान यज्ञ में कुद पड़ा था। चाहे नरम दल हो
चाहे गरम दल दोनों ने अपनी महान् भूमिका निभाई व देशवासियों ने अंग्रेजों को भारत
छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। इतिहास में महात्मा गाॅंधी, वीर सावरकर, नेता जी सुभाष चन्द्र बोस, सरदार भगत सिंह जैसे हजारों नाम
अविस्मरणीय हो गए।
आज पुनः अपने देश को भौतिकवाद व भोगवाद की आॅंधी से बचाने के लिए एक युग सेना
के गठन की आवश्यकता आन पड़ी है। देश का नैतिक, चारित्रिक व सांस्कृतिक पतन इतनी
तेजी से हो रहा है यदि इसको न रोका गया तो इस देश का हवा, पानी, मिट्टी, अन्न, वस्त्र सब कुछ विषाक्त हो जाएगा।
ऐसे युग सैनिक चाहिएॅं जो अपनी संस्कृति, अपने राष्ट्र से अपार प्रेम करते
हों। जो स्वार्थ के लिए नहीं अपितु इस माटी के लिए तप, त्याग, बलिदान का पथ चुनने का साहस रखते हों। भारत माॅं बड़ी आशा से युग सैनिकों की
बाट जो रही है। )षियों की इस भूमि का रक्त ठण्डा कैसे हो सकता है। वीर अभिमन्यु, वीर हकीकत राय, सरदार जोरावर व फतेह सिंह जी, सरदार भगत सिंह जी का लहू आज भी हमारी
रगों में दौड़ रहा है। इतिहास अपने आप को दोहराने जा रहा है। क्या दुर्गा भाभी, लक्ष्मी बाई, भागिनी निवेदिता का पुनर्जन्म नहीं हुआ है? यह दिव्य आत्माएॅं कहाॅं खो गई हैं? कहाॅं सो गई हैं? भारत माॅं की चीख-पुकार को क्यों नहीं सुन पा रही हैं? अभी भोगवाद की आॅंधी ने भारत के युवा को इतना संवेदनहीन नहीं किया है कि भारत
माॅं को सवा लाख युग सैनिक,
आत्म बलिदानी स्तर की आत्माएॅं न मिल पाएॅं। मणियों का यह
हार भारत माॅं को अर्पित करने का समय आ गया है। देखना है कौन है वो जो इस हार के
मोती बनने का सोभाग्य प्राप्त करते हैं। देखना है कौन हैं वो जो वासना, तृष्णा, अहंता के दल दल से उबरकर इस देश व धरती का नया इतिहास रचने का सौभाग्य प्राप्त
करते हैं। कौन हैं वो इस दुखित, पीडि़त मानवता के परित्राण के लिए अपना
जीवनदान देने के लिए तैयार हैं। माॅं भारती अपने नेत्रों में आॅंसू भरकर अपने इन
महान सपूतों को गले लगाने के लिए बुरी तरह प्रतीक्षा कर रही है। आइए इस स्वर्णिम
अवसर को अपने हाथ से न जाने दें, भोगवाद की आॅंधी के विरूद्ध सीना तान कर
खड़े हो जाएॅं ऐसे सवा लाख सपूतों को मेरा सलाम।
जय भारत जय हिन्द
लेखक विश्वामित्र राजेश
‘‘ज्ञान साधना अब बहने लगी है।
आसुरी शक्तियाॅं अब जलने लगी हैं।
युग के विश्वामित्रों में प्राण चेतना भरने लगी है।’’
लेखक ने यह लेख चैत्र नवरात्रि - गुरुवार, 26 मार्च 2015 को प्रातःकाल 4 बजे एक विशेष मानसिक दशा में लिखा है कृपा )षियों के लिए क्षमा करें।
‘‘उठो सुनो युग का आवाहन,
कर लो प्रभु का काज।
अपना देश बनेगा, सारी दुनिया का सरताज।।’’
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