Thursday, March 26, 2015

आत्म निर्माण


            हे युग पुरुष! तेरा आवाहन मुझे झकझोर रहा है। तेरी गीता मुझे रणक्षेत्र में कूदने के लिए विकल का रही है। परन्तु यह राह बड़ी कठिन प्रतीत होती है। काॅंटों भरे रास्ते पर चलने के समान दुष्कर भी लगती है! ऐसी विषम परिस्थिति में कैसे आगे बढ़ूॅं। इसके लिए सर्वप्रथम आत्म-निर्माण करना होगा। आत्म-निर्माण के द्वारा ही लौह-पुरुष समाज में खरादे जाएॅंगे।
            सर्वप्रथम हमें एक ऐसा मानस बनाना होगा जो कठिन व विपरीत परिस्थितियों में भी उद्विग्न न हों, शान्त रह सके, प्रभु पर विश्वास कर सके कि ईश्वर कृपा से परिस्थितियों से हम अवश्य विजयी होंगे ऐसा विश्वास जगाना होगा। क्योंकि सत्यमेव जयतेके अनुसार जीत सदा सच्चाई की ही होती आई है। हम धर्म के लिए, सत्य के लिए, न्याय के लिए संघर्ष करने हेतु आगे बढ़ रहे हैं। विजय श्री सदा वहीं होती है जहाॅं श्रीकृष्ण होते हैं। हम तो योग में स्थिति होकर ही कर्म कर रहे हैं अर्थात् परमात्मा की प्रेरणा से कर्म कर रहे हैं व कर्मफल भी उन्हीं को अर्पित है।
            दूसरे हमें उत्तम स्वास्थ्य के लिए आवश्यक ज्ञान अनिवार्य हैं। क्योंकि कठिन संघर्षों में टूट-फूट अवश्य होती है। यदि हमें स्वास्थ्य सुधार के उपाय पता है तो रोगी होने पर अल्प साधना में शीघ्र ही स्वस्थ हुआ जा सकता है।
            तीसरा हमें समान मानसिकता के लोगों का एक संघ लेकर चलना है। बिना संघ शक्ति के किसी भी अभियान को हम गति नहीं दे पाएॅंगे। प्रारम्भ में तो एकला चलो रेकी नीति अपनानी पड़ती है परन्तु सफलता के लिए संगठन शक्ति बहुत आवश्यक है।

जाग्रत आत्माओं से आवाह्न

वैदिक काल में व्यक्ति का जीवन बहुत सरल था। शिष्य में श्रद्धा बहुत होती थी व गुरु का व्यक्तित्व बहुत ऊॅंचा होता था। गुरु सूत्रों द्वारा शिष्य को मार्गदर्शन करते थे। शिष्य उन सूत्रों को याद करके जीवन में अपनाने का प्रयास करते थे। आज के युग की समस्या है न शिष्य श्रद्धावान है न ही गुरु प्रज्ञावान।
            क ोई भी विचारधारा लें सैंकड़ों तरह के वाद-विवाद लोग करते हैं व किसी परिणाम पर नहीं पहुॅंच पाते। उदाहरण के लिए ब्रह्मचर्य के महत्व को ही लीजिए। लोग दुनिया भर के लाभ-हानि इसके गिना देंगे। इसी प्रकार मोबाईल का अन्धाधुन्ध प्रयोग व्यक्ति को अपने विनाश के लिए बहुत सारे गड्डे खोद डाले हैं जो घुन की तरह हमारे समाज को भीतर ही भीतर खोखला किए दे रहे हैं। जनता अपनी मस्ती में मस्त है व सरकार अपनी कुर्सी के नशे में मस्त है। धर्माधिकारी अपने पैर पूजवाने व पैसा बटोरने में लगे हैं तो प्रबुद्ध वर्ग अपनी गाड़ी व बंगले चमकाने में लगे हैं।

            ऐसी कठिन परिस्थिति में स्वस्थ भारतका सपना कैसे साकार हो पाएगा। यह एक गम्भीर समस्या है। व्यक्ति की सोच भोग व स्वार्थ यही तक सीमित होकर रह गई है। कौन हैं जो स्वस्थ भारतका निर्माण करने के लिए देवशक्तियों का आगे बढ़कर सहयोग करेंगे।

No comments:

Post a Comment